Bihar Politics: कांग्रेस और समाजवादी जातीय जनगणना को बना रहे ब्रह्मास्त्र, जानें कौन बनेगा बिहार का अगला राजा, और किसकी राजनीति होगी बर्बाद?

Who is the next King of Bihar: बिहार की मिट्टी में राजनीति हमेशा से गर्म रही है। यहां चुनाव केवल वादों से नहीं, पहचान, जाति और इतिहास की कड़ाही में पकते हैं।

Harsh Srivastava
Published on: 15 May 2025 5:19 PM IST
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Who is the next King of Bihar

Who is the next King of Bihar: बिहार की मिट्टी में राजनीति हमेशा से गर्म रही है। यहां चुनाव केवल वादों से नहीं, पहचान, जाति और इतिहास की कड़ाही में पकते हैं। कभी लालू यादव की ‘सोशल इंजीनियरिंग’ का जादू छाया था, तो कभी नीतीश कुमार के ‘विकास पुरुष’ अवतार ने लोगों को खींचा। लेकिन अब, जब 2025 विधानसभा चुनाव की आहट सुनाई देने लगी है, बिहार की सियासत एक बार फिर अपने पुराने हथियार की तरफ लौट रही है जातीय जनगणना। यह कोई साधारण मुद्दा नहीं है। यह वही शब्द है जो गांवों की गलियों में चर्चा बनता है, जात-पात की दीवारों को सत्ता की सीढ़ी में बदल देता है। और अब जबकि जातीय जनगणना का शोर सत्ता के गलियारों से लेकर सोशल मीडिया तक गूंज रहा है, सवाल यही है इस आंकड़ों की लड़ाई में किस पार्टी की चाल सबसे खतरनाक साबित होगी, और कौन सिर्फ शोर मचाकर हाशिए पर चला जाएगा?

कौन है जातीय जनगणना मुद्दे पर सबसे तेज़

बीजेपी, कांग्रेस और समाजवादी पार्टी तीनों ने इस बार जातीय कार्ड खेलने की ठान ली है, लेकिन अंदाज और नीयत में बड़ा फर्क है। कांग्रेस और एसपी इस मुद्दे पर सबसे तेज़ दिखाई दे रही हैं। राहुल गांधी का "जिसकी जितनी संख्या भारी..." वाला नारा सिर्फ चुनावी भाषण नहीं, बल्कि एक सामाजिक वर्ग को यह भरोसा दिलाने की कोशिश है कि उनका हक अब केवल बातों में नहीं रहेगा, बल्कि आंकड़ों में भी दिखेगा। कांग्रेस बिहार में खुद को ‘पिछड़ों और दलितों की नई आवाज़’ के तौर पर पेश कर रही है — एक ऐसा दावा जो एक समय सिर्फ लालू यादव का ट्रेडमार्क हुआ करता था।

समाजवादी पार्टी भी अनुभव कर रही इस्तेमाल

दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी भी मैदान में पूरी गर्मी के साथ उतरी है। उत्तर प्रदेश से मिले अनुभव को बिहार में दोहराने की कोशिश हो रही है। अखिलेश यादव जानते हैं कि बिना जातीय समीकरण के राजनीति में स्थायित्व नहीं आता, और इसी रणनीति को अब बिहार में भी लागू किया जा रहा है। एसपी को बिहार में ज़मीन भले ही सीमित हो, लेकिन 'जातीय जनगणना' जैसे भावनात्मक मुद्दे पर उनकी उपस्थिति आवाज़ से कहीं ज़्यादा वज़नदार हो जाती है।

बीजेपी रणनीति सभी पार्टियों से अलग

अब बात करते हैं उस पार्टी की जो फिलहाल सबसे बड़ी ताकत है भारतीय जनता पार्टी। बीजेपी की रणनीति इस बार कुछ अलग है। एक तरफ वो OBC नेताओं को आगे कर रही है, तो दूसरी तरफ ‘हिंदू एकता’ के नैरेटिव को भी बनाए रखना चाहती है। यही वजह है कि पार्टी जातीय जनगणना के मुद्दे पर बोलती तो है, लेकिन सतर्कता के साथ। उसकी चिंता यह है कि अगर जातियों का आंकड़ा सामने आया, तो उसकी ‘सामूहिक पहचान’ की राजनीति बिखर सकती है। लेकिन अगर पार्टी इसका विरोध खुलकर करती है, तो उसे पिछड़े और दलित वर्गों में भारी नुकसान हो सकता है। बीजेपी के लिए यह तलवार की धार पर चलने जैसा है एक तरफ वोट बैंक की सुरक्षा, दूसरी तरफ वैचारिक असमंजस।

आखिर इस जातीय जनगणना से क्या बदलेगा?

जवाब है सब कुछ। नेताओं की भाषा बदलेगी, घोषणापत्र की प्राथमिकताएं बदलेंगी, और सबसे ज़्यादा बदल जाएगी सत्ता की कुंजी। जो आंकड़े दशकों से छुपे थे, वो सामने आएंगे। यह तय हो जाएगा कि कौन सी जाति कितनी संख्या में है, और फिर उसी हिसाब से तय होगी हिस्सेदारी नौकरियों में, शिक्षा में, और राजनीति में भी। और यही वो सच है जिससे बीजेपी को सबसे ज़्यादा डर है, और कांग्रेस-SP को सबसे ज़्यादा उम्मीद। लेकिन यह राजनीति जितनी उम्मीदें जगा रही है, उतनी ही खतरनाक भी है। जातियों को गिनने से सामाजिक न्याय की दिशा में बदलाव आ सकता है, लेकिन साथ ही जातिवाद की जड़ें और गहरी भी हो सकती हैं। जब पार्टियां सिर्फ जाति के आधार पर टिकट बांटेंगी, घोषणाएं करेंगी, और आंदोलनों को हवा देंगी तो क्या लोकतंत्र का मूल भाव नहीं बिखर जाएगा?

बिहार की नयी राजनीति

बिहार में जातीय जनगणना की राजनीति फिलहाल सिर्फ सत्ता की लड़ाई नहीं, बल्कि सामाजिक बुनावट की नई व्याख्या भी बनती जा रही है। जहां कांग्रेस और एसपी इसे सामाजिक न्याय की क्रांति बता रही हैं, वहीं बीजेपी इसे ‘सामाजिक विघटन’ की संभावना मानकर शंका की निगाह से देख रही है। अब देखना यह है कि यह जातीय आंकड़ों की राजनीति, बिहार की जनता के लिए न्याय लाएगी या फिर एक नया जातिगत टकराव? जो भी हो, एक बात तय है 2025 का चुनाव सिर्फ सरकार बदलने का नहीं, बल्कि बिहार की राजनीतिक आत्मा को दोबारा परिभाषित करने का मौका होगा। और इस बार, जीत सिर्फ उस पार्टी की नहीं होगी जो सबसे ज़्यादा वोट लाएगी बल्कि उसकी होगी जो जातीय आंकड़ों की इस विस्फोटक राजनीति को संभालने की सबसे बेहतर समझ रखेगी।

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News Cordinator and News Writer

Harsh Shrivastava is an enthusiastic journalist who has been actively writing content for the past one year. He has a special interest in crime, politics and entertainment news. With his deep understanding and research approach, he strives to uncover ground realities and deliver accurate information to readers. His articles reflect objectivity and factual analysis, which make him a credible journalist.

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