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'लालू राज कैसे बना जंगल...' पटना HC की एक टिप्पड़ी ने कैसे बर्बाद की उनकी छवि, जानिए पूरा सच
पटना हाई कोर्ट की टिप्पणी से जन्मा 'जंगलराज' शब्द जिसने लालू प्रसाद यादव की छवि को बदनाम किया। जानिए कैसे यह मुहावरा RJD और तेजस्वी यादव की विरासत पर लंबे समय तक असर डालता रहा।
Lalu Prasad Yadav Jungle Raj: भारतीय सामाजिक-राजनीतिक जीवन में कुछ शब्द किसी भी नेता या सत्ता के भाग्य को पलटने की ताकत रखते हैं, और बिहार की राजनीति में 'जंगलराज' शब्द ने ठीक यही किया। 'सामाजिक न्याय' का नारा बुलंद कर सत्ता के शिखर पर पहुंचे लालू प्रसाद यादव के 15 साल के शासनकाल को इस एक शब्द ने दशकों तक परिभाषित और प्रभावित किया। यह शब्द आज भी राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के युवा नेता तेजस्वी यादव का पीछा नहीं छोड़ रहा है, जो विरासत में मिली इस नकारात्मक छवि से जूझ रहे हैं। सवाल यह है कि कानून के राज को खत्म करने का आभास देने वाला यह विनाशकारी मुहावरा आखिर बिहार की राजनीति में आया कैसे? इसके पीछे अपराध या भ्रष्टाचार का कोई राजनीतिक मुकदमा नहीं, बल्कि पटना हाई कोर्ट की एक रोचक और चौंकाने वाली टिप्पणी छिपी है।
'जंगलराज' का जन्म: जब कोर्ट ने कहा- पटना नर्क जैसा है
'जंगलराज' शब्द किसी राजनीतिक दल के घोषणा पत्र या विपक्ष के नारे से नहीं निकला, बल्कि यह पटना हाई कोर्ट के एक जज की मौखिक टिप्पणी थी। और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह टिप्पणी अपराध या कानून व्यवस्था को लेकर नहीं की गई थी। चारा घोटाले में फंसने के बाद लालू यादव ने 25 जुलाई 1997 को इस्तीफा दिया और अपनी पत्नी राबड़ी देवी को सत्ता सौंप दी। उस साल राज्य में राजनीतिक उथल-पुथल चरम पर थी और सरकारी मशीनरी ठप थी। इसी साल मॉनसून की बारिश ने पटना में बाढ़ ला दी। पूरा शहर जलमग्न हो गया। घरों में पानी घुस गया, और कीचड़-गंदगी से शहर में 'नर्क जैसे' हालात हो गए। कोर्ट ने इसके लिए Veritable hell शब्द का इस्तेमाल किया था।
कृष्ण सहाय नामक सामाजिक कार्यकर्ता ने पटना हाईकोर्ट में बजबजाते नाले-नालियों के संबंध में एक याचिका दायर की। इसी केस (MJC 1993 OF 1996) की सुनवाई के दौरान जस्टिस बीपी सिंह और जस्टिस धर्मपाल सिन्हा की खंडपीठ ने टिप्पणी की थी: "बिहार में राज्य सरकार नाम की कोई चीज नहीं है और जंगलराज कायम है, यहां मुट्ठी भर भ्रष्ट नौकरशाह प्रशासन चला रहे हैं।" अदालत की यह तीखी टिप्पणी शहरी विकास सचिव, पटना नगर निगम और अन्य प्रशासनिक अधिकारियों की आपराधिक उदासीनता (Criminal indifference) पर की गई थी, न कि सीधे तौर पर अपराध के मामलों पर।
अराजक प्रशासक की छवि और राबड़ी देवी का 'शेर' वाला बयान
हालांकि 'जंगलराज' की टिप्पणी बुनियादी नागरिक सेवाओं की विफलता पर की गई थी, लेकिन उस दौर की अपराध और अव्यवस्था ने इसे एक शक्तिशाली राजनीतिक हथियार बना दिया। कोर्ट अपने फैसले में इन विभागों की कार्रवाई से इतना रुष्ट था कि उसने कहा, "पटना शहर बिना किसी कॉम्पीटिशन के भय के भारत की सबसे गंदी राजधानी का दावा कर सकता है।" फरवरी 2000 के चुनाव में, तत्कालीन मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने नालंदा की एक चुनावी रैली में अपने समर्थकों से इस मुहावरे पर पलटवार करते हुए कहा था: "हां बिहार में है जंगलराज, जंगल में एक ही शेर रहता है और सभी लोग उस शेर का शासन मानते हैं।" यह बयान अराजकता को स्वीकारने जैसा लगा और विपक्ष के हाथ में बड़ा मुद्दा आ गया।
अपहरण उद्योग और 'सुशासन' का उदय
वरिष्ठ पत्रकार मणिकांत ठाकुर के अनुसार, चूंकि हाईकोर्ट ने इस शब्द का इस्तेमाल किया था, इसलिए विपक्ष ने इसे तुरंत लपक लिया। लालू-राबड़ी के 15 वर्षों के दौर में, किडनैपिंग फॉर फिरौती (फिरौती के लिए अपहरण) की घटनाएं इतनी बढ़ गईं कि इनकी चर्चा देश भर में होने लगी। राज्य में अपराध, अपहरण, रंगदारी और संगठित माफिया का बोलबाला था। लालू के दो साले, साधु यादव और सुभाष यादव, का दबदबा था, जिससे शासन को सबसे ज्यादा बदनामी मिली। चंपा विश्वास बलात्कार कांड, शिल्पी गौतम हत्याकांड, डॉक्टरों की किडनैपिंग और व्यवसायियों के पलायन ने 'जंगलराज' के नैरेटिव को और मजबूत किया। वर्ष 2005 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार ने इस 'जंगलराज' के मुहावरे को पूरी तरह से कैपिटलाइज़ किया। उन्होंने इसके खिलाफ 'सुशासन' का नारा दिया और दिवंगत सुशील कुमार मोदी जैसे नेताओं ने इस नैरेटिव को स्थापित करने में बड़ी भूमिका निभाई।
नवंबर 2005 में नीतीश की जीत ने इस नैरेटिव को सार्वजनिक समर्थन दे दिया। 'जंगलराज' का लेबल लालू यादव की 'सामाजिक मसीहा' की छवि पर हावी हो गया और उनकी छवि 'अराजक प्रशासक' के रूप में बदल गई। समय के साथ, 'जंगलराज' शब्द का न्यायिक संदर्भ लोगों की स्मृति से मिट गया और यह एक शक्तिशाली, स्थायी राजनीतिक मुहावरा बन गया। आज 20 साल बाद भी, यह जुमला युवा तेजस्वी यादव का पीछा नहीं छोड़ रहा है, जो सामाजिक न्याय के एजेंडे पर लौटने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन विरासत में मिली छवि एक बड़ी चुनौती बनी हुई है।
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