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Cryptocurrency Ka Itihas: डिजिटल युग की नई मुद्रा, क्या क्रिप्टोकरेंसी बदल देगी दुनिया की अर्थव्यवस्था?

Cryptocurrency Ka Itihas: आज के समय में क्रिप्टोकरेंसी का भविष्य वैश्विक बहस का एक महत्वपूर्ण विषय बन चुका है।

Shivani Jawanjal
Published on: 4 July 2025 5:33 PM IST
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History Of Cryptocurrency: 21वीं सदी ने तकनीक की रफ्तार से न केवल हमारे जीवन के हर क्षेत्र को प्रभावित किया है, बल्कि आर्थिक दुनिया की परिभाषा भी पूरी तरह बदल दी है। कभी नकद और चेक पर आधारित लेन-देन अब डिजिटल वॉलेट्स, ऑनलाइन ट्रांजैक्शंस और सबसे अहम क्रिप्टोकरेंसी तक पहुंच गया है। यह एक ऐसी अवधारणा है जिसने पारंपरिक मुद्रा प्रणाली को सीधी चुनौती दी है और दुनिया के वित्तीय तंत्र को पूरी तरह से नए रास्ते पर मोड़ दिया है।

न्यूजट्रैक के इस लेख में हम जानेंगे कि क्रिप्टोकरेंसी का इतिहास क्या है, यह कैसे शुरू हुई, कैसे यह वैश्विक आर्थिक व्यवस्था में प्रवेश करती गई और भविष्य में इसका क्या स्थान हो सकता है।

क्रिप्टोकरेंसी क्या है?


'क्रिप्टोकरेंसी' शब्द दो हिस्सों से मिलकर बना है। 'क्रिप्टो' जिसका अर्थ है छुपा हुआ या सुरक्षित और 'करेंसी' यानी मुद्रा। यह नाम ही इस अवधारणा की मूल पहचान को दर्शाता है । एक ऐसी मुद्रा जो पूरी तरह डिजिटल है, गोपनीयता और सुरक्षा के उच्च मानकों पर आधारित है। क्रिप्टोकरेंसी का कोई भौतिक स्वरूप नहीं होता यानी यह न तो नोट के रूप में मौजूद होती है और न ही सिक्के के रूप में। इसका आधार है क्रिप्टोग्राफी तकनीक जो इसे न केवल सुरक्षित बनाती है बल्कि इसके प्रत्येक लेन-देन को सत्यापित भी करती है। पारंपरिक मुद्राओं के विपरीत, यह एक विकेन्द्रीकृत प्रणाली पर काम करती है । अर्थात् न तो किसी सरकार का इस पर नियंत्रण होता है और न ही किसी बैंक या संस्था का। यह स्वतंत्र, वैश्विक और डिजिटल युग की एक क्रांतिकारी मुद्रा है जो पारंपरिक वित्तीय ढांचे को चुनौती देने के लिए तैयार है।

क्रिप्टोकरेंसी की शुरुआत

क्रिप्टोकरेंसी की दुनिया में सबसे पहला और ऐतिहासिक कदम वर्ष 2008 में उस समय उठा जब सातोशी नाकामोटो नामक एक रहस्यमय व्यक्ति या समूह ने 'Bitcoin: A Peer-to-Peer Electronic Cash System' नामक श्वेत-पत्र (White Paper) प्रकाशित किया। इस दस्तावेज़ में एक ऐसी मुद्रा की परिकल्पना की गई थी जो बिना किसी मध्यस्थ संस्था जैसे बैंक या सरकार के सीधे दो व्यक्तियों के बीच ट्रांजैक्शन की अनुमति देती थी। यह विचार इतना क्रांतिकारी था कि 2009 में इसी के आधार पर पहला बिटकॉइन नेटवर्क अस्तित्व में आया और ‘Genesis Block’ नामक पहला ब्लॉक माइन किया गया। बिटकॉइन न केवल दुनिया की पहली विकेन्द्रीकृत क्रिप्टोकरेंसी बनी बल्कि इसे एक ओपन-सोर्स सॉफ्टवेयर के रूप में जारी किया गया। जिस दुनिया भर के डेवलपर्स और निवेशकों ने इसमें रुचि लेना शुरू किया।

बिटकॉइन की विशेषताएं

ब्लॉकचेन तकनीक - बिटकॉइन का मूल आधार ब्लॉकचेन तकनीक है जो इसे पारंपरिक डिजिटल लेन-देन से अलग और अधिक सुरक्षित बनाती है। इसमें प्रत्येक लेन-देन को एक 'ब्लॉक' के रूप में संग्रहीत किया जाता है और ये ब्लॉक एक श्रृंखला में आपस में जुड़े होते हैं। इस तकनीक की सबसे बड़ी खूबी इसकी पारदर्शिता है। बिटकॉइन की ब्लॉकचेन एक सार्वजनिक रिकॉर्ड है जिसे कोई भी व्यक्ति ऑनलाइन देख सकता है। इससे धोखाधड़ी और छेड़छाड़ की संभावना बेहद कम हो जाती है।

माइनिंग प्रक्रिया - बिटकॉइन माइनिंग वह तकनीकी प्रक्रिया है जिसके द्वारा नए बिटकॉइन बनाए जाते हैं और नेटवर्क में किए गए लेन-देन को सत्यापित किया जाता है। इसमें जटिल गणितीय समस्याओं को हल करना होता है जिसके लिए अत्यधिक कंप्यूटिंग पावर की जरूरत पड़ती है। माइनिंग जितनी कठिन होती जाती है, उतनी ही इसकी तकनीकी और ऊर्जा आवश्यकताएं बढ़ती हैं जिससे यह एक चुनौतीपूर्ण प्रक्रिया बन जाती है।

सीमित आपूर्ति - बिटकॉइन की एक और महत्वपूर्ण विशेषता इसकी सीमित आपूर्ति है। इसकी कुल संख्या केवल 21 मिलियन तक सीमित है यानी इससे अधिक बिटकॉइन कभी नहीं बनाए जा सकते। यही सीमित आपूर्ति मांग के साथ मिलकर इसके मूल्य को प्रभावित करती है। जैसे-जैसे इसकी लोकप्रियता और मांग बढ़ती है, वैसे-वैसे इसके मूल्य में भी वृद्धि की संभावना बनी रहती है।

प्रारंभिक संघर्ष और संदेह

बिटकॉइन और अन्य क्रिप्टोकरेंसी को अपने आरंभिक दिनों में भारी अविश्वास और आलोचना का सामना करना पड़ा। इसकी कीमतों की अत्यधिक अस्थिरता, साइबर अपराधों में इसके संभावित उपयोग और इस पर किसी सरकारी नियंत्रण या निगरानी की कमी जैसे कारणों ने इसे कई देशों की नजर में संदिग्ध बना दिया। वर्ष 2010 में हालांकि एक दिलचस्प घटना ने इसे एक ऐतिहासिक मोड़ पर पहुंचा दिया, पहली बार बिटकॉइन से कोई वास्तविक वस्तु खरीदी गई। अमेरिकी प्रोग्रामर लैज़्लो हैन्येज़ ने 10,000 बिटकॉइन देकर दो पिज्जा खरीदे। यह लेन-देन आज 'बिटकॉइन पिज्जा डे' के नाम से जाना जाता है और यह दर्शाता है कि किस प्रकार एक शून्य आर्थिक मूल्य वाली डिजिटल मुद्रा ने धीरे-धीरे वास्तविक दुनिया में अपनी पहचान बनाना शुरू किया।

अन्य क्रिप्टोकरेंसी का आगमन

लाइटकॉइन (Litecoin) - लाइटकॉइन बिटकॉइन की तुलना में तेज ट्रांजैक्शन प्रोसेसिंग के लिए जाना जाता है। इसका ब्लॉक समय लगभग 2.5 मिनट है जबकि बिटकॉइन का ब्लॉक समय लगभग 10 मिनट है।

रिपल (Ripple) - रिपल मुख्य रूप से बैंकों और वित्तीय संस्थानों के लिए डिज़ाइन किया गया है, जिससे अंतरराष्ट्रीय भुगतान तेज़ और सस्ते हो सकें।

एथेरियम (Ethereum) - एथेरियम 2015 में लॉन्च हुआ था और यह स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट्स की सुविधा देता है, जो इसे बिटकॉइन से अलग बनाता है।

डॉजकॉइन (Dogecoin) - डॉजकॉइन एक मजाक (meme) के रूप में शुरू हुआ था लेकिन समय के साथ यह लोकप्रिय हो गया।

क्रिप्टोकरेंसी और ब्लॉकचेन तकनीक

ब्लॉकचेन (Blockchain) तकनीक क्रिप्टोकरेंसी की रीढ़ है जिसकी मूल अवधारणा एक वितरित सार्वजनिक बहीखाता प्रणाली (distributed ledger) पर आधारित है। यह प्रणाली सभी लेन-देन को सुरक्षित, अपरिवर्तनीय और पारदर्शी तरीके से रिकॉर्ड करती है। प्रत्येक ब्लॉक, पिछले ब्लॉक से क्रिप्टोग्राफिक रूप से जुड़ा होता है जिससे किसी भी डेटा में छेड़छाड़ करना लगभग असंभव हो जाता है। इस तकनीक के अनेक लाभ हैं जैसे कि धोखाधड़ी से सुरक्षा, क्योंकि इसमें दर्ज रिकॉर्ड्स को बदलना या हैक करना अत्यंत कठिन होता है। साथ ही यह विकेन्द्रीकृत प्रणाली है, जिसका अर्थ है कि इसे कोई एक संस्था नियंत्रित नहीं करती। इससे विश्वसनीयता और पारदर्शिता बनी रहती है क्योंकि सभी उपयोगकर्ताओं के पास एक जैसी खाता-बही की प्रति होती है। इसके अलावा ब्लॉकचेन में स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट्स जैसी प्रोग्राम करने योग्य सुविधाएं होती हैं। जिनसे स्वतः और शर्तों के अनुसार लेन-देन संभव हो पाते हैं, जो इसे पारंपरिक वित्तीय प्रणालियों से कहीं अधिक प्रभावशाली बनाता है।

वैश्विक स्वीकृति और निवेश

बिटकॉइन ने 2017 में उस समय वैश्विक ध्यान खींचा जब उसकी कीमत लगभग $20,000 के ऐतिहासिक स्तर तक पहुंच गई। इस अप्रत्याशित वृद्धि ने पूरी दुनिया में क्रिप्टोकरेंसी को लेकर निवेश और चर्चा की लहर पैदा कर दी। इसके बाद कई देशों ने इसे स्वीकार करने की दिशा में कदम बढ़ाए। जापान ने 2017 में बिटकॉइन को कानूनी भुगतान माध्यम के रूप में मान्यता दी जबकि अमेरिका और सिंगापुर जैसे देशों ने इसे कुछ नियमों और सीमाओं के तहत अपनाया। इसके साथ ही एलन मस्क जैसे प्रभावशाली निवेशकों ने न केवल बिटकॉइन बल्कि डॉजकॉइन जैसी अन्य क्रिप्टोकरेंसी में भी निवेश किया, जिससे इनकी लोकप्रियता और बढ़ गई। तकनीकी कंपनियां भी पीछे नहीं रहीं, PayPal ने 2020 में अपने प्लेटफॉर्म पर बिटकॉइन को सपोर्ट करना शुरू किया और Tesla ने भी एक समय बिटकॉइन को भुगतान के रूप में स्वीकार कर डिजिटल करेंसी को मुख्यधारा में लाने का प्रयास किया। यह सब दर्शाता है कि क्रिप्टोकरेंसी अब केवल एक तकनीकी प्रयोग नहीं, बल्कि वैश्विक आर्थिक चर्चा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुकी है।

भारत में क्रिप्टोकरेंसी का इतिहास

भारत में क्रिप्टोकरेंसी की यात्रा कई उतार-चढ़ावों से भरी रही है। 2013 में भारत का पहला बिटकॉइन एक्सचेंज Unocoin शुरू हुआ जिससे देश में क्रिप्टो निवेश की शुरुआत हुई। लेकिन 2018 में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने बैंकों और वित्तीय संस्थानों को क्रिप्टोकरेंसी से जुड़ी सेवाएं देने से मना कर दिया, जिससे एक्सचेंजों और निवेशकों को भारी झटका लगा। हालांकि मार्च 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रतिबंध को पलटते हुए क्रिप्टो सेवाओं को फिर से शुरू करने की अनुमति दी। इसके बाद सरकार ने इस क्षेत्र को कर के दायरे में लाते हुए 2022-23 के बजट में क्रिप्टो से अर्जित लाभ पर 30% टैक्स और प्रत्येक ट्रांजैक्शन पर 1% TDS लागू किया। वर्तमान में भारत ने क्रिप्टोकरेंसी को न तो वैध मुद्रा घोषित किया है और न ही इसे अवैध माना है। इसे केवल एक Virtual Digital Asset (वर्चुअल डिजिटल एसेट) के रूप में टैक्स कानूनों में परिभाषित किया गया है, जो यह दर्शाता है कि देश में अभी भी नीति और नियमन को लेकर स्पष्टता की आवश्यकता है।

जोखिम और विवाद

हालांकि क्रिप्टोकरेंसी ने वैश्विक वित्तीय प्रणाली में क्रांति ला दी है, लेकिन इसके साथ जुड़े जोखिम और चुनौतियां भी कम नहीं हैं। सबसे बड़ी समस्या इसकी अत्यधिक मूल्य अस्थिरता है । क्रिप्टो मार्केट में कीमतें कुछ ही घंटों में तेजी से ऊपर-नीचे हो सकती हैं जिससे निवेशकों को बड़ा लाभ तो मिल सकता है, लेकिन भारी नुकसान का खतरा भी बना रहता है। इसके अलावा साइबर अपराध जैसे हैकिंग और फिशिंग के मामले लगातार बढ़ रहे हैं जिससे डिजिटल संपत्तियों की सुरक्षा एक गंभीर चिंता बन चुकी है। डार्क वेब पर अवैध वस्तुओं और सेवाओं की खरीद-फरोख्त में भी क्रिप्टोकरेंसी का उपयोग किया गया है क्योंकि यह छद्मनाम और सीमा-रहित होती है। साथ ही सरकारी नियमों की अस्पष्टता और नीतिगत अनिश्चितता भी इस क्षेत्र की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े करती है। मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवादी फंडिंग जैसी आपराधिक गतिविधियों में इसके उपयोग को लेकर अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों ने कई बार चेतावनी दी है। जिस पर काबू पाने के लिए कई देशों ने अब KYC और निगरानी नियम लागू करना शुरू कर दिया है। ये सभी पहलू बताते हैं कि क्रिप्टोकरेंसी का भविष्य जितना रोमांचक है उतना ही सावधानीपूर्ण भी।

भविष्य की दिशा

आज के समय में क्रिप्टोकरेंसी का भविष्य वैश्विक बहस का एक महत्वपूर्ण विषय बन चुका है। दुनियाभर की सरकारें, केंद्रीय बैंक और अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं इसके प्रभाव, संभावनाओं और जोखिमों पर गंभीरता से मंथन कर रही हैं। कई देश जहां क्रिप्टोकरेंसी को रेगुलेट करने के प्रयास कर रहे हैं वहीं कुछ अपनी खुद की सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (CBDC) विकसित करने की दिशा में भी अग्रसर हैं। चीन ने 2020 में डिजिटल युआन (e-CNY) लॉन्च कर इस क्षेत्र में नेतृत्व किया, जबकि भारत में डिजिटल रुपया (e₹) का परीक्षण 2022 में शुरू हुआ, जो अब धीरे-धीरे विस्तारित हो रहा है। नाइजीरिया, स्वीडन, कोरिया, बहामास, और यूक्रेन जैसे देश भी इस दिशा में प्रयोग कर चुके हैं। IMF, वर्ल्ड बैंक और संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्थाएं भी डिजिटल मुद्राओं के संभावित वैश्विक असर को लेकर अध्ययन कर रही हैं हालांकि उनका रुख फिलहाल सतर्क है। विशेषज्ञों की राय में क्रिप्टोकरेंसी पारंपरिक मुद्रा की पूरी जगह तो नहीं ले पाएगी लेकिन यह वैकल्पिक वित्तीय प्रणाली, निवेश का साधन और तकनीकी नवाचार के रूप में भविष्य में एक बड़ी भूमिका निभा सकती है।

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