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India Infrastructure Development: भारत के इंफ्रास्ट्रक्चर विकास की चुनौतियाँ: एक सर्वांगीण विश्लेषण

India Infrastructure Development:हाल के वर्षों में हाईवे, रेलवे, हवाई अड्डों, बंदरगाहों, डिजिटल नेटवर्क और शहरी सुविधाओं में निरंतर निवेश और विस्तार हुआ है। फिर भी, इस विकास यात्रा में कई गंभीर कमियाँ और चुनौतियाँ मौजूद हैं, जो इसकी पूरी क्षमता को हासिल करने में बाधक बनी हुई हैं।

Ankit Awasthi
Published on: 16 Jun 2025 4:31 PM IST
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Development News (Social Media image)

भारत का इंफ्रास्ट्रक्चर विकास देश की आर्थिक प्रगति, सामाजिक कल्याण और वैश्विक प्रतिस्पर्धा के लिए रीढ़ की हड्डी है। हाल के वर्षों में हाईवे, रेलवे, हवाई अड्डों, बंदरगाहों, डिजिटल नेटवर्क और शहरी सुविधाओं में निरंतर निवेश और विस्तार हुआ है। फिर भी, इस विकास यात्रा में कई गंभीर कमियाँ और चुनौतियाँ मौजूद हैं, जो इसकी पूरी क्षमता को हासिल करने में बाधक बनी हुई हैं। आइए इन पहलुओं को विस्तार से समझते हैं:

1. योजना एवं निष्पादन की कमियाँ:

खंडित योजना एवं समन्वय का अभाव: अक्सर विभिन्न स्तरों (केंद्र, राज्य, स्थानीय निकाय) और विभिन्न विभागों (सड़क, रेल, बिजली, जल) के बीच समन्वय की कमी होती है। एक विभाग द्वारा खोदी गई सड़क को दूसरे विभाग द्वारा बिजली के लिए फिर से खोदा जाता है। मास्टर प्लान या तो अपर्याप्त होते हैं या उनका पालन नहीं होता।





परियोजना में देरी और लागत वृद्धि: भूमि अधिग्रहण में जटिलताएँ, पर्यावरणीय मंजूरी में देरी, अनुबंध विवाद, कानूनी अड़चनें और नौकरशाही की जटिलताएँ अक्सर परियोजनाओं को समय से पीछे धकेल देती हैं। इससे लागत कई गुना बढ़ जाती है (जैसे कई हाईवे या मेट्रो परियोजनाएँ)।

क्षमता की कमी: सरकारी एजेंसियों में जटिल परियोजनाओं की प्रभावी योजना बनाने, प्रबंधन करने और निष्पादित करने की तकनीकी एवं प्रबंधकीय क्षमता की कमी हो सकती है।

2. वित्तपोषण की चुनौतियाँ:

अपर्याप्त निवेश: भारत की विशाल जरूरतों के मुकाबले इंफ्रास्ट्रक्चर में कुल निवेश अभी भी अपर्याप्त है। सार्वजनिक वित्त अकेले इस अंतर को पाटने में सक्षम नहीं है।

निजी निवेशकों में अनिश्चितता: नियामक अनिश्चितता, अनुबंध प्रवर्तन में कठिनाइयाँ, आर्थिक व्यवहार्यता के जोखिम और देरी से भुगतान जैसे मुद्दे निजी निवेशकों को आकर्षित करने और बनाए रखने में बड़ी बाधा हैं। PPP (पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप) मॉडल अक्सर अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरते।

बैंकिंग क्षेत्र पर दबाव: अतीत में इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं के कारण बैंकों पर बड़े बुरे ऋण (NPA) का बोझ आया है, जिससे भविष्य में उधार देने की उनकी क्षमता प्रभावित हुई है।

3. गुणवत्ता एवं स्थिरता का मुद्दा:

निर्माण गुणवत्ता में समझौता: कई परियोजनाओं में निर्माण की खराब गुणवत्ता देखी गई है। उपमहाद्वीपीय सामग्री, अनुचित पर्यवेक्षण और भ्रष्टाचार के कारण बनाए गए संरचनाएँ जल्दी खराब हो जाती हैं, जिससे दुर्घटनाएँ होती हैं और रखरखाव लागत बढ़ती है।

रखरखाव की उपेक्षा: नई परियोजनाओं पर जोर अक्सर मौजूदा संरचनाओं (सड़कों, पुलों, भवनों) के समुचित रखरखाव की अनदेखी कर देता है। इससे उनका जीवनकाल कम होता है और दीर्घकालिक लागत बढ़ती है।

जलवायु लचीलापन का अभाव: बहुत से इंफ्रास्ट्रक्चर को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों (जैसे बाढ़, चक्रवात, अत्यधिक गर्मी) का सामना करने के लिए डिजाइन नहीं किया गया है। यह भविष्य में व्यवधान और क्षति का खतरा बढ़ाता है।

4. पर्यावरणीय एवं सामाजिक प्रभाव:

पर्यावरणीय क्षति: बड़ी परियोजनाएँ (जैसे बांध, हाईवे, खनन) अक्सर वनों की कटाई, प्राकृतिक आवासों के विनाश, जल प्रदूषण और वायु प्रदूषण का कारण बनती हैं। पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) प्रक्रिया को कमजोर करने या दरकिनार करने के आरोप लगते रहे हैं।


पुनर्वास एवं विस्थापन: बड़े पैमाने पर परियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण से बड़ी संख्या में लोग (विशेषकर आदिवासी और ग्रामीण समुदाय) विस्थापित होते हैं। पुनर्वास और मुआवजा अक्सर अपर्याप्त, देरी से या पारदर्शिता के अभाव में होता है, जिससे मानवीय पीड़ा और सामाजिक अशांति होती है।

शहरी असमानता: शहरी इंफ्रास्ट्रक्चर विकास (मेट्रो, स्मार्ट सिटी) अक्सर अभिजात्य क्षेत्रों पर केंद्रित होता है, जबकि झुग्गी-झोपड़ियों और गरीब इलाकों में बुनियादी सुविधाएँ (पानी, सफाई, बिजली) भी अपर्याप्त होती हैं।

5. ग्रामीण-शहरी अंतराल:

ग्रामीण इंफ्रास्ट्रक्चर की उपेक्षा: देश के विकास का ध्यान अक्सर शहरी और औद्योगिक केंद्रों पर होता है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में सड़क संपर्क, विश्वसनीय बिजली आपूर्ति, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएँ, ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी और सिंचाई सुविधाएँ अभी भी गंभीर रूप से पिछड़ी हुई हैं। यह अंतराल ग्रामीण विकास और प्रवास को रोकने में बाधक है।

6. डिजिटल विभाजन:

असमान पहुँच: हालांकि डिजिटल इंडिया की पहल सराहनीय है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों, वंचित समुदायों, वृद्धजनों और महिलाओं के बीच उच्च-गति इंटरनेट की पहुँच और डिजिटल साक्षरता में अभी भी व्यापक अंतराल बना हुआ है। यह डिजिटल अर्थव्यवस्था में उनकी भागीदारी को सीमित करता है।

7. नवाचार और भविष्य की तैयारी का अभाव:

पारंपरिक दृष्टिकोण: बहुत सारा विकास पारंपरिक तरीकों और प्रौद्योगिकियों पर केंद्रित है। स्मार्ट तकनीकों (IoT, AI), हरित निर्माण सामग्री, नवीकरणीय ऊर्जा एकीकरण और भविष्य की जरूरतों (जैसे इलेक्ट्रिक वाहन चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर) को ध्यान में रखते हुए डिजाइन में अपर्याप्त नवाचार है।

भारत के इंफ्रास्ट्रक्चर विकास की राह महत्वाकांक्षाओं से भरी है, लेकिन यह कई कमियों और चुनौतियों से भी पटी पड़ी है। सिर्फ निर्माण पर ध्यान केंद्रित करने से काम नहीं चलेगा। एक सफल और टिकाऊ इंफ्रास्ट्रक्चर पारिस्थितिकी तंत्र के लिए निम्नलिखित आवश्यक है:

मजबूत योजना एवं समन्वय: केंद्र, राज्य और स्थानीय स्तरों पर एकीकृत दृष्टिकोण।

वित्तपोषण सुधार: निजी निवेश को आकर्षित करने के लिए अनुकूल और स्थिर नीतिगत माहौल, नवीन वित्तपोषण तंत्र।

गुणवत्ता एवं स्थिरता पर जोर: कड़ी गुणवत्ता नियंत्रण, नियमित रखरखाव और जलवायु-लचीला डिजाइन।

पर्यावरणीय एवं सामाजिक जवाबदेही: मजबूत EIA, पारदर्शी और न्यायसंगत पुनर्वास।

ग्रामीण क्षेत्रों पर ध्यान: ग्रामीण कनेक्टिविटि और बुनियादी सुविधाओं में निवेश बढ़ाना।

डिजिटल समावेशन: डिजिटल पहुँच और साक्षरता को सार्वभौमिक बनाना।

नवाचार को अपनाना: भविष्य के अनुकूल और टिकाऊ समाधानों के लिए नई तकनीकों को शामिल करना।

भारत के इंफ्रास्ट्रक्चर को न केवल कंक्रीट और स्टील से बनाना है, बल्कि उसे टिकाऊ, समावेशी, लचीला और भविष्य को ध्यान में रखकर बनाना है। इन कमियों को स्वीकार करना और उनका समाधान खोजना ही देश को वास्तविक "विकास की सुपरपावर" बनाने की कुंजी है।

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