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अब बढ़ेगा LPG संकट! ईरान-इजरायल युद्ध बन रहा युद्ध, भारत के पास सिर्फ 16 दिनों का स्टॉक
iran Israel War Update: ईरान-इजरायल युद्ध के बीच खबर है कि LPG संकट बढ़ सकता है, ऐसे में भारत के पास मात्र 16 दिनों का स्टॉक मौजूद है।
iran Israel War Update LPG Gas Crisis will Increase in India
एलपीजी की मांग और संकट की शुरुआत : पिछले कुछ वर्षों में भारत में घरेलू रसोई गैस (एलपीजी) की खपत काफी तेजी से बढ़ी है। सरकार की योजनाओं और ग्रामीण क्षेत्रों में एलपीजी कनेक्शन के विस्तार के चलते अब लगभग 33 करोड़ घर एलपीजी पर निर्भर हैं। लेकिन अब एक नई चिंता ने जन्म ले लिया है -पश्चिम एशिया में ईरान और इजरायल के बीच बढ़ता तनाव।
तेल संकट का बढ़ता असर : ईरान के परमाणु ठिकानों पर अमेरिका द्वारा किए गए हमलों और इजरायल से जारी विवाद ने अंतरराष्ट्रीय तेल कीमतों को प्रभावित किया है। अगर यह स्थिति और बिगड़ती है, तो इसका सीधा असर भारत सहित पूरी दुनिया पर पड़ सकता है। भारत बड़ी मात्रा में एलपीजी आयात करता है, और अगर सप्लाई चेन में रुकावट आती है, तो घरेलू सिलेंडर की कीमतें बढ़ सकती हैं।
भारत कितना निर्भर है एलपीजी आयात पर?
भारत अपनी कुल एलपीजी खपत का लगभग 66% हिस्सा विदेशों से मंगाता है। इसमें सबसे बड़ा योगदान पश्चिम एशिया के देशों -जैसे ईरान, सऊदी अरब, यूएई और कतर -से आता है। ये देश अगर युद्ध या आपूर्ति रुकावट की स्थिति में आते हैं, तो भारत में एलपीजी संकट पैदा हो सकता है।
केवल 16 दिन का स्टॉक?
सरकारी आंकड़ों और मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, भारत के पास औसतन केवल 16 दिनों का एलपीजी स्टॉक मौजूद होता है। इसका मतलब है कि अगर आपूर्ति में थोड़ी भी रुकावट आती है, तो देश में गैस सिलेंडर की किल्लत हो सकती है।
हालांकि रिफाइनरियों और अन्य स्रोतों से कुछ राहत मिल सकती है, क्योंकि उनके पास करीब 25 दिनों तक का स्टॉक रहता है, लेकिन घरेलू उपयोग के लिए ये पूरी तरह से पर्याप्त नहीं है। यदि युद्ध की स्थिति लंबी चलती है, तो संकट और भी गहरा हो सकता है।
क्या होना चाहिए आगे का कदम?
ऐसी स्थिति में भारत को चाहिए कि वह अपनी एलपीजी भंडारण क्षमता को बढ़ाए और वैकल्पिक स्रोतों से आयात के विकल्प तलाशे। इसके अलावा घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देना और बायोगैस जैसे वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों को अपनाना भी दीर्घकालिक समाधान हो सकता है।
क्यों है एलपीजी की सप्लाई को लेकर चिंता?
एलपीजी को अन्य ईंधनों की तुलना में अधिक संवेदनशील माना जा रहा है क्योंकि इसके विकल्प सीमित हैं। सस्ती और पाइप से आपूर्ति वाली पीएनजी फिलहाल केवल 1.5 करोड़ घरों तक ही सीमित है। वहीं, मिट्टी के तेल की आपूर्ति लगभग बंद हो चुकी है। ऐसे में अगर एलपीजी की सप्लाई पर असर पड़ता है, तो शहरी इलाकों में खाना पकाना मुश्किल हो सकता है क्योंकि बिजली से खाना बनाना काफी खर्चीला साबित होता है।
पेट्रोल और डीजल से राहत की उम्मीद?
भारत पेट्रोल और डीजल उत्पादन के मामले में आत्मनिर्भर है। देश अपनी घरेलू ज़रूरत के साथ-साथ इन ईंधनों का निर्यात भी करता है -लगभग 40% पेट्रोल और 30% डीजल विदेशों में भेजा जाता है। अगर कभी जरूरत पड़ी तो यह घरेलू खपत के लिए वापस इस्तेमाल में लाया जा सकता है। इसलिए एलपीजी की तुलना में पेट्रोल और डीजल की स्थिति ज्यादा स्थिर और कम जोखिम भरी है।
क्या स्थिति है वाकई गंभीर?
शहरों में एलपीजी सिलेंडर की कीमतें अलग-अलग हैं:
• दिल्ली में ₹853
• पटना में ₹942
• लखनऊ में ₹890
• मुंबई में ₹852
• भोपाल में ₹858
• बेंगलुरु में ₹855
विशेषज्ञों का कहना है कि हालात अभी पूरी तरह से बिगड़े नहीं हैं, लेकिन अगर अंतरराष्ट्रीय बाज़ार से अतिरिक्त खरीद करनी पड़ी तो समस्या बढ़ सकती है। मौजूदा समय में सप्लाई चेन काम कर रही है, लेकिन हालात बिगड़ने से पहले कदम उठाना ज़रूरी होगा।
क्या दामों में दिखेगा बड़ा उछाल?
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर हालात बहुत ज्यादा नहीं बिगड़े तो कीमतों में बहुत बड़ा उछाल देखने को नहीं मिलेगा। हालांकि, अगर एलपीजी की सप्लाई में दिक्कत आती है तो कीमतों में सीमित समय के लिए बढ़ोतरी हो सकती है। अंतरराष्ट्रीय मार्केट में स्थिति सामान्य होने के बाद दामों में स्थिरता आने की संभावना है।
सारांश :
ईरान और इजरायल के बीच बढ़ता युद्ध तनाव सिर्फ मध्य-पूर्व तक सीमित नहीं रहेगा, इसका असर भारत की रसोई तक पहुंच सकता है। अगर हालात जल्द नहीं सुधरे, तो एलपीजी की कीमतें बढ़ सकती हैं और आम लोगों की जेब पर असर पड़ना तय है। सरकार और नागरिकों -दोनों को इस चुनौती के लिए तैयार रहना होगा।
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