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Kamar Dard Ke Karan: सावधान! भारत में कमर दर्द बन चुका है एक खामोश महामारी
Bharat Mein Kamar Dard Ke Karan: कमर का दर्द (Low Back Pain - LBP) अब भारत में डायबिटीज और हृदय रोगों जैसे पुराने रोगों को पीछे छोड़ते हुए विकलांगता का सबसे बड़ा कारण बन चुका है।
Bharat Mein Kamar Dard Ke Karan
Kamar Dard Ke Lakshan: कमर का दर्द (Low Back Pain - LBP) अब भारत में डायबिटीज और हृदय रोगों जैसे पुराने रोगों को पीछे छोड़ते हुए विकलांगता का सबसे बड़ा कारण बन चुका है। हालिया रिपोर्टों के अनुसार, हर साल लगभग हर दूसरा वयस्क भारतीय इस समस्या से ग्रसित होता है। विशेषज्ञों ने इसे भारत की “स्पाइनल महामारी” करार दिया है, जो कार्य क्षमता, स्वास्थ्य देखभाल लागत और जीवन की गुणवत्ता पर गंभीर प्रभाव डाल रही है और जिसके लिए तत्काल नीति और ध्यान की आवश्यकता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2020 में वैश्विक स्तर पर 619 मिलियन लोग कमर दर्द से पीड़ित थे और 2050 तक यह संख्या बढ़कर 843 मिलियन तक पहुंच सकती है। भारत में स्थिति और भी गंभीर है। 2021 के एक अध्ययन के अनुसार, देश में 87.5 मिलियन (8.75 करोड़) लोग कमर दर्द से ग्रसित थे, हालांकि यह आंकड़ा वास्तविकता से कम आंका गया माना जा रहा है क्योंकि मस्कुलोस्केलेटल (हड्डी-जोड़ संबंधित) रोगों पर पर्याप्त डेटा उपलब्ध नहीं है।
इस महामारी के पीछे गलत मुद्रा, अत्यधिक वजन (उच्च BMI), और ऑफिस में बैठने की गलत शैली जैसी आधुनिक जीवनशैली से जुड़ी समस्याएं जिम्मेदार मानी जा रही हैं। विशेष रूप से 25 से 35 वर्ष के युवा पेशेवरों में यह समस्या तेजी से बढ़ रही है, जो अब रोकथामात्मक चिकित्सा देखभाल की ओर ध्यान देने लगे हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार, भारत के स्पाइन क्लीनिकों में रोजाना 60–70 मरीज आते हैं, जिनमें से अधिकतर तब तक इलाज नहीं कराते जब तक दर्द असहनीय न हो जाए।
SMISS-AP कॉन्फ्रेंस में गौतम अडानी ने इसे “राष्ट्रीय संकट” बताया और कहा कि शुरुआती हस्तक्षेप और AI-सक्षम स्पाइनल डायग्नोस्टिक प्लेटफ़ॉर्म जैसे नवाचारों की तत्काल आवश्यकता है ताकि विकलांगता की स्थिति आने से पहले ही रोग का पता लगाया जा सके।
चौंकाने वाला आर्थिक प्रभाव
कमर दर्द का वैश्विक आर्थिक बोझ अरबों डॉलर में है, जिसमें स्वास्थ्य देखभाल लागत और कार्यदिवसों का नुकसान शामिल है। भारत भी इस भारी आर्थिक और सामाजिक दबाव का सामना कर रहा है क्योंकि यह स्वस्थ वृद्धावस्था को प्रभावित करता है और लोगों को समय से पहले रिटायरमेंट के लिए मजबूर करता है।
BMC Geriatrics के एक अध्ययन में सामने आया कि भारत में 45 वर्ष से अधिक उम्र के 31% लोग लंबे समय से पीठ दर्द से पीड़ित हैं, लेकिन अधिकांश लोग ओवर-द-काउंटर दवाओं पर निर्भर रहते हैं या इलाज को नज़रअंदाज़ कर देते हैं, जिससे स्थायी क्षति का खतरा बढ़ जाता है।
नई उम्मीदें और समाधान
हालांकि हाल की शोधों से उम्मीद की किरण भी दिखाई देती है। जून 2025 में JAMA Network Open में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, रोजाना 100 मिनट से अधिक तेज या मध्यम गति से चलने से क्रॉनिक कमर दर्द का खतरा 23% तक कम हो जाता है।
यह सरल और कम लागत वाला उपाय भारत जैसे देश के लिए गेम-चेंजर साबित हो सकता है, जहां बैठे रहने की आदतें और खराब ऑफिस डिज़ाइन इस समस्या को और बढ़ा रहे हैं।
इसके अलावा, नॉन-ओपिऑयड उपचार और रीजनरेटिव मेडिसिन के क्षेत्र में तेजी से प्रगति हो रही है। कंपनियां जैसे कि Mesoblast और Eli Lilly अब टार्गेटेड थेरेपीज़ पर काम कर रही हैं, जो इस बढ़ते बोझ से निपटने में मदद कर सकती हैं।
निवारक उपायों की ओर बढ़ना जरूरी
विशेषज्ञों ने निवारक देखभाल, जैसे कि सही मुद्रा, नियमित व्यायाम और ऑफिस में एर्गोनॉमिक फर्नीचर के इस्तेमाल की आवश्यकता पर बल दिया है। एक स्पाइन सर्जन ने चेताया कि
“कमर दर्द को सामान्य मान लेना खतरनाक हो सकता है। इलाज में देरी अक्सर स्थायी क्षति का कारण बनती है।”
अब जन स्वास्थ्य अभियान और कॉर्पोरेट वेलनेस प्रोग्राम्स भी इस दिशा में काम कर रहे हैं, खासकर शहरी इलाकों में, जहां युवा पेशेवरों की बढ़ती संख्या अब तकनीक आधारित दर्द प्रबंधन समाधानों की मांग कर रही है।
कमर दर्द अब केवल एक निजी स्वास्थ्य समस्या नहीं, बल्कि एक सामाजिक और राष्ट्रीय चिंता का विषय बन चुका है। इस चुनौती से निपटने के लिए प्रारंभिक हस्तक्षेप, नवाचार और निवारक उपायों की सख्त आवश्यकता है — ताकि भारत की रीढ़ की हड्डी सचमुच में मजबूत बन सके।
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