×

Health Tips: सेहत की छोड़ो, बीमारी और इलाज की सोचो

Health Tips: भारत एक ऐसा देश है जिसे सदियों से स्वास्थ्य और उपचार की जननी कहा जाता है, ऐसे में हमें सबसे स्वस्थ राष्ट्र होना चाहिए था, लेकिन आखिर क्या वजह है कि ऐसा नहीं है।

Yogesh Mishra
Published on: 3 July 2025 12:07 PM IST
Health Tips Motivation
X

Health Tips Motivation

Health Tips: महर्षियों, आयुर्वेद, पतंजलि, धन्वंतरि की भूमि है हमारा देश। स्वास्थ्य और उपचार की जननी। कहा जाता है कि उपचार की समस्त विधाओं की उत्पत्ति यहीं से हुई है। प्रकृति, पेड़ पौधे, जड़ी बूटियां, खनिज, मिट्टी, पानी, और यहां तक की सांस तक में छुपे स्वास्थ्य के रहस्य हमने पहचाने हैं और दुनिया को बताएं हैं।

हमारी जो प्राचीन गौरव गाथा है, जो हमारे पास अद्भुत शक्तियां, जानकारियां और उपाय हैं उस हिसाब से हमें एक अत्यंत स्वस्थ राष्ट्र, स्वस्थ समाज होना चाहिये था। होना ये चाहिए था कि दुनियावाले हमसे स्वस्थ रहना सीखते, हम सेहत के लम्बरदार होते।

लेकिन क्या ऐसा है?

कतई नहीं। इसमे कोई संदेह नहीं कि वास्तविकता में इसका उलट ही।


बात बेहद कडवी और भयावह है लेकिन सच है। महर्षियों की ये भूमि आज बीमारियों की खान है। ये भूमि दुनिया की डायबिटीज राजधानी कहलाई जाती है। हृदय रोग में अव्वल। कैंसर में आगे। मानसिक स्वास्थ्य में बर्बाद। किसी भी बीमारी का नाम लीजिए, हर जगह, कोने कोने में मरीजों की भरमार है। किसी शहर में किसी भी अस्पताल में देख लीजिये, हर डिपार्टमेंट में कतारें, हर रोज साल भर। किसिस भी स्पेशलिस्ट-एक्सपर्ट की क्लीनिक का चक्कर लगा लीजिये, हर रोज मरीजों की लम्बी लाइनें। दस-दस घंटे का इंतज़ार। अहमदाबाद से गुवाहाटी, जम्मू से चेन्नई, लखनऊ से कोलकाता – हर जगह एक ही हाल।


आलम ये है कि डेढ़ अरब की आबादी का बड़ा हिस्सा अपनी जिन्दगी के बहुमूल्य समय, ऊर्जा, रुपया-पैसा इलाज-उपचार में ही झोंकने को मजबूर है। बीमार तो पूरी दुनिया में इंसान पड़ते ही हैं लेकिन क्या इतना बुरा हाल है? कहने को तो तर्क दिया जा सकता है कि बड़ी आबादी में बीमारों की संख्या भी उसी अनुपात में ज्यादा होगी। सही बात है। लेकिन क्या हमारी जैसी आबादी के घनत्व वाले अन्य मुल्कों में यही हाल है? पता कर लीजिये- ऐसा कहीं नहीं पाएंगे। हाँ, पाकिस्तान – बांग्लादेश की बात अलग है।

पूरा फोकस इलाज पर है, किसी तरह बीमारी ठीक हो जाए। किसी तरह बीमारी का सही पता चल जाए। ये भी एक हैरतंगेज़ बात है – बीमारी का पता करने में ही लोगों का कितना पैसा-समय-ऊर्जा खर्च हो जाती है।

क्या आपको नहीं लगता कि फोकस स्वस्थ रहने पर होना चाहिए? गंभीरता इस बात की होनी चाहिए कि बीमारी हो ही नहीं, या कम से कम बीमार पड़ने की नौबत आये। जिले जिले में कैंसर अस्पताल या एम्स खोलने की नौबत आना क्या हम सबके लिए डूब मरने की बात नहीं है? इतने बीमार हो चले हैं हम कि गली गली में अस्पताल चाहिए?

दरअसल, स्वस्थ रहने में कोई आकर्षण है नहीं। न डॉक्टर को, न सरकार को और न खुद हम नाचीज़ इंसानों को। दवा, डॉक्टर, अस्पताल, निदान, उपचार की इंडस्ट्री भला क्यों चाहेगी कि कि लोग बीमार न पड़ें? जहाँ खरबों डालर दांव पर लगे हों वहां बीमार न पड़ना पाप है। सरकार भी कमोबेश इसी इंडस्ट्री का हिस्सा है। अस्पताल खोलना, पैसा लगाना, ये ज्यादा राजस्व भी लाता है, नौकरियां देता है, कमाई का जरिया बनाता है। बीमार न पड़ने का इंतजाम करने में अड़चनें बहुत हैं। हरियाली फैलानी होगी, प्रदूषण खत्म करना होगा, मिलावट मिटानी होगी, केमिकल खाद और पेस्टीसाइड खत्म करने होंगे, मोहल्ले-मोहल्ले पार्क बनाने होंगे। जगह जगह खेल के मैदान बनाने होंगे। लोगों का मन मस्तिष्क संतुष्ट करना होगा, जिन्दगी के रोजाना के संघर्ष खत्म करने होंगे, दिमागी आराम के इंतजाम करने होंगे, जिंदगियों को चिंतामुक्त बनाना होगा। हम स्पोर्टिंग राष्ट्र नहीं हैं। साईकिल चलाने का कोई इंसेंटिव नहीं है। साईकिल पाथ का हश्र यूपी वाले देख चुके हैं। फेहरिस्त लम्बी है, कठिन है और बेमजा है। इन चक्करों में पड़ने की बजाय आसान तरीका ढूंढ निकालना बेहतर है – जगह जगह अस्पताल खोल दो, गली गली क्लीनिक खोल दो, जनता को कैंसर अस्पतालों की “सौगात” दे दो।


जनता का क्या है, खूब मिलावटी खाओ, धूल फांको, धुवां खींचो, हर वक्त स्ट्रेस में रहो, पेस्टीसाइड और केमिकलयुक्त भोजन करते रहो। गुटखा चबाते रहो, दारू पीते रहो, कश उड़ाते रहो। इन्हीं सब में मस्त रहो। इजरायल-ईरान से लेकर ट्रम्प और पाकिस्तान, आतंकवाद, जाति समीकरण, हिन्दू-मुसलमान इनकी फ़िक्र में सुबह शाम लगे रहो। जब वक्त मिले तो रील बनाओ शॉर्ट्स देखो। बाकी कोई चिंता न करो – बीमार पड़ो, इलाज मिल जाएगा। बस अस्पतालों के धक्के खाने और खेत बेच कर पैसे का इंतजाम बनाये रखना।

देश में लोगों की गिनती शुरू होने वाली है। कितना ही अच्छा होता कि गिनती के साथ साथ सेहत का भी जायजा ले लिया जाता कि किस किस बीमारी से कितने लोग बीमार हैं, कितना वक्त औसत इंसान अस्पताल और डाक्टर के यहाँ लगाता है, प्रति व्यक्ति कितना पैसा इलाज के नाम पर फुंक रहा है, एक-एक डाक्टर रोजाना औसतन कितने मरीज निपटा रहा है? ज़रा लोग जानें तो देश की सेहत की असलियत।


ज़रा अपने ही घर में देखिये। बीमारी, जांच, डाक्टर, दवा पर कितना कुछ चला जाता है लेकिन सेहत बनी रहे, इसका इंतजाम है कोई? है भी तो बस घर के भीतर तक ही सीमित क्योंकि घर के बाहर न कुछ भी सेहतमंद है न आपका किसी भी चीज पर कोई कंट्रोल है।

पतंजलि-धन्वन्तरी-आयुर्वेद की इस भूमि की यही कड़वी सच्चाई और दुखद हकीकत है। ये हमारी विफलता ही नहीं, एक पापकर्म है कि आने वाली पीढ़ियों के लिए हमने अस्पतालों-क्लीनिकों और बीमारियों विरासत ही छोड़ी है। क्या अब भी कुछ बदलने की गुंजाइश बची है? क्या बीमार पड़ने की बीमारी का कोई उपाय बचा है? जरा सोचिये और मंथन करिये।

( लेखक पत्रकार हैं ।)

Start Quiz

This Quiz helps us to increase our knowledge

Admin 2

Admin 2

Next Story