5 अरब डॉलर का झटका! गौतम अडानी ने बांग्लादेश पर ठोका मुकदमा, युनूस के हाथ-पांव फूले

अडानी पावर और बांग्लादेश सरकार के बीच 25 साल पुराने बिजली आपूर्ति समझौते (PPA) को लेकर बड़ा विवाद! यूनुस सरकार ने अनुबंध रद्द करने की चेतावनी दी, जबकि अडानी पावर ने मामला सिंगापुर इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन सेंटर में पहुंचाया।

Shivam Srivastava
Published on: 6 Nov 2025 2:21 PM IST
5 अरब डॉलर का झटका! गौतम अडानी ने बांग्लादेश पर ठोका मुकदमा, युनूस के हाथ-पांव फूले
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अडानी पावर लिमिटेड और बांग्लादेश सरकार के बीच बिजली आपूर्ति समझौते (Power Purchase Agreement – PPA) को लेकर तनाव अब अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक पहुंच गया है। बांग्लादेश की यूनुस सरकार ने 25 साल पुराने इस समझौते को रद्द करने की चेतावनी दी है, जबकि अडानी पावर इस विवाद को इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन में ले गई है।

क्या है विवाद की वजह

यूनुस सरकार अडानी पावर के बिजली बिलों का भुगतान करने में विफल रही है। रिपोर्टों के अनुसार, करीब 850 मिलियन डॉलर (85 करोड़ डॉलर) का बकाया बिल अब भी लंबित है, जो लगभग 15 दिनों की बिजली आपूर्ति के बराबर है।

2017 में तत्कालीन शेख हसीना सरकार ने अडानी पावर के साथ 25 साल के लिए एक दीर्घकालिक PPA साइन किया था। इस आधार पर अडानी समूह ने झारखंड में एक बड़ा बिजली संयंत्र स्थापित किया और वहां से बांग्लादेश तक बिजली पहुंचाने के लिए ट्रांसमिशन नेटवर्क बनाया। अब इस पेमेंट विवाद को लेकर अडानी पावर इंटरनेशनल कोर्ट में जाने की प्रक्रिया शुरू कर चुकी है।

यूनुस सरकार की मांगें और दबाव नीति

सत्ता में आने के बाद मोहम्मद यूनुस की सरकार ने इस समझौते को फिर से नेगोशिएट करने की मांग की है।

• सरकार चाहती है कि अडानी पावर लागत और शर्तों की नई पुनर्विचार प्रक्रिया के लिए तैयार हो, ताकि यूनुस प्रशासन जनता के बीच इसे "बेहतर सौदेबाजी" के रूप में पेश कर सके।

• यूनुस सरकार ने सभी पुराने पावर परचेस एग्रीमेंट्स की जांच का आदेश दिया है और चेतावनी दी है कि किसी भी प्रकार की अनियमितता या भ्रष्टाचार मिलने पर यह PPA रद्द कर दिया जाएगा।

• सबसे बड़ी शिकायत यह है कि अडानी समूह को भारत में विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) के तहत जो टैक्स छूट मिली थी, उसका लाभ बांग्लादेश को नहीं दिया गया।

अडानी पावर का पक्ष

अडानी समूह ने यूनुस सरकार के आरोपों और मांगों को सिरे से खारिज किया है।

कंपनी का कहना है कि:

• भारत सरकार से मिली टैक्स छूट झारखंड जैसे पिछड़े क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा देने के लिए थी, न कि किसी विदेशी सरकार को लाभ पहुंचाने हेतु।

• संबंधित पावर प्लांट एक निर्यात-उन्मुख (Export Oriented) परियोजना है, जिसका उद्देश्य भारत के बिजली एक्सपोर्ट को बढ़ाना था।

• 25 साल पुराने अनुबंध के बीच में बदलाव अस्वीकार्य है और ऐसा करना निवेश-हितों को नुकसान पहुंचाने वाला होगा।

कंपनी का तर्क है कि बांग्लादेश की मांगें व्यावहारिक नहीं हैं और इनके मान लेने से भविष्य में अन्य देश भी इसी प्रकार अनुबंधों पर दबाव बनाने लगेंगे।

अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता और संभावित जुर्माना

जब बातचीत से समाधान नहीं निकला, तो अडानी पावर ने अब आर्बिट्रेशन प्रक्रिया शुरू कर दी है। अनुबंध के अनुसार, यह विवाद सिंगापुर इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन सेंटर (SIAC) में सुलझाया जाएगा।

बांग्लादेश के कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि यदि यूनुस सरकार एकतरफा तरीके से समझौते को तोड़ती है, तो उसे 5 बिलियन डॉलर (लगभग 500 करोड़ डॉलर) तक के अंतरराष्ट्रीय जुर्माने का सामना करना पड़ सकता है। यह राशि अडानी पावर को अंतरराष्ट्रीय अदालतों द्वारा दिलाई जा सकती है।

बांग्लादेशी मीडिया ने यूनुस सरकार को चेतावनी दी है कि जल्दबाजी में निर्णय लेने से देश की अर्थव्यवस्था पर गंभीर बोझ पड़ सकता है।

अब तक यूनुस सरकार ने औपचारिक रूप से अनुबंध को रद्द नहीं किया है। अडानी पावर ने स्पष्ट किया है कि वह नियमित रूप से बिजली आपूर्ति जारी रखेगी और अपने अनुबंधों के सभी विवादों को आर्बिट्रेशन प्रक्रिया के माध्यम से सुलझाने के लिए प्रतिबद्ध है।

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