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अमित शाह ने दांव पर लगाई नीतीश की इज्जत, चुनाव में NDA के लिए बड़ी मुसीबत
बिहार विधानसभा चुनाव से पहले अमित शाह ने दावा किया कि एनडीए 160 से ज्यादा सीटें जीतकर दो-तिहाई बहुमत से सरकार बनाएगा। पहले चरण की 121 सीटों पर एनडीए को कड़ी चुनौती का सामना है, जहां नीतीश कुमार की साख और बीजेपी के कई दिग्गजों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है।
Amit shah 160 seats claim: बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान से ठीक पहले, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने एक बार फिर 'अबकी बार 160 पार' का महादावा करके सियासी माहौल को गरमा दिया है। आजतक से खास बातचीत में शाह ने आत्मविश्वास से कहा है कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) दो-तिहाई बहुमत के साथ सरकार बनाएगा और 243 सीटों में से 160 से ज्यादा सीटें हासिल करेगा। उन्होंने जोर देकर कहा कि इस बार एनडीए गठबंधन के सभी घटक दलों का स्ट्राइक रेट (जीत का प्रतिशत) बेहतरीन रहेगा।
लेकिन, अमित शाह के इस '160 पार' के टारगेट को हासिल करने के लिए एनडीए को एक बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ेगा—वह है पहले चरण की 'अग्निपरीक्षा'। बिहार की कुल 243 सीटों में से 121 सीटों पर 6 नवंबर को मतदान है, जिसके बाद दूसरे चरण में 122 सीटों पर वोटिंग होगी। शाह के लक्ष्य तक पहुँचने के लिए, एनडीए को इस पहले चरण की 121 सीटों में से कम से कम 80 सीटों पर जीत दर्ज करनी होगी, जो पिछली बार के प्रदर्शन से लगभग 20 सीटें ज्यादा हैं। क्या यह लक्ष्य हासिल करना संभव है?
2020 का मुकाबला: कांटे की टक्कर थी कहानी
पहले चरण की जिन 121 विधानसभा सीटों पर इस बार चुनाव है, वहाँ 2020 के पिछले चुनाव में एनडीए और महागठबंधन के बीच कांटे की टक्कर देखने को मिली थी। परिणाम लगभग बराबरी का था:
महागठबंधन: 61 सीटों पर जीत दर्ज की थी।
एनडीए: 59 सीटें जीतने में सफल रहा था।
एलजेपी: 1 सीट जीतने में सफल रही थी।
पार्टी-वार प्रदर्शन की बात करें तो पहले फेज की 121 सीटों में आरजेडी ने 42 सीटें जीती थीं, जबकि बीजेपी को 32 सीटें मिली थीं। जेडीयू के हिस्से में सिर्फ 23 विधायक आए थे और कांग्रेस के 8 विधायक थे। माले ने 7, वीआईपी ने चार, सीपीआई और सीपीएम ने दो-दो सीटें जीती थीं। यह साफ दर्शाता है कि इन सीटों पर महागठबंधन का पलड़ा थोड़ा भारी रहा था।
160 के लिए 80 का टारगेट: किसके कंधों पर है ज़िम्मा?
अमित शाह के 160 सीटों के टारगेट को पूरा करने के लिए एनडीए को पहले चरण की 121 सीटों में से 80 सीटें जीतनी होंगी, यानि पिछली बार की तुलना में 20 सीटों की बढ़त बनानी होगी।
इस बार पहले चरण की 121 सीटों पर एनडीए के घटक दलों के बीच सीट बँटवारा कुछ इस प्रकार है:
जेडीयू: 57 सीटों पर लड़ रही है।
बीजेपी: 48 सीटों पर किस्मत आजमा रही है।
एलजेपी (रामविलास): 13 सीटों पर चुनावी मैदान में है।
आरएलएम और 'हम': क्रमशः 2 और 1 सीट पर लड़ रहे हैं।
यह गणित बताता है कि अमित शाह के टारगेट को पूरा करने का सबसे बड़ा ज़िम्मा जेडीयू के ऊपर है, क्योंकि वह एनडीए में सबसे ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ रही है। जेडीयू को अपनी 57 सीटों में से आरजेडी से 36 सीटों पर, कांग्रेस से 13 सीटों पर और सीपीआई माले से 7 सीटों पर सीधी टक्कर मिल रही है। वहीं, बीजेपी को भी अपनी 48 सीटों में से आरजेडी से 23 सीटों पर और कांग्रेस से 13 सीटों पर मुकाबला करना पड़ रहा है।
'एक्स फैक्टर' चिराग-कुशवाहा: क्या नीतीश की भरपाई होगी?
2020 के चुनाव में एनडीए को सबसे बड़ा नुकसान चिराग पासवान और उपेंद्र कुशवाहा के अकेले लड़ने से हुआ था। इस बार, ये दोनों नेता एनडीए खेमे में हैं और इन्हें दक्षिण तथा मध्य बिहार में 'एक्स फैक्टर' माना जा रहा है। चिराग पासवान के चलते पिछली बार जेडीयू को करीब 25 सीटों का नुकसान हुआ था, जिनमें ज्यादातर पहले चरण की सीटें थीं। इस बार मुकाबला सीधा एनडीए और महागठबंधन के बीच दिख रहा है। हालांकि, नीतीश कुमार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर की संभावनाएँ मानी जा रही हैं। ऐसे में, इन 121 सीटों में से 80 से ज्यादा सीटें जीतकर ही एनडीए अमित शाह के लक्ष्य को हासिल कर सकती है। इसके लिए केवल बीजेपी ही नहीं, बल्कि नीतीश कुमार की जेडीयू, चिराग पासवान और कुशवाहा को पिछली गलतियों को सुधारते हुए बेहतरीन प्रदर्शन करना होगा।
बीजेपी दिग्गजों की साख दांव पर
पहले चरण के मतदान में बीजेपी के कई बड़े दिग्गजों की साख दांव पर लगी है। नीतीश सरकार के दोनों डिप्टी सीएम, सम्राट चौधरी (तारापुर) और विजय कुमार सिन्हा (लखीसराय), इसी चरण में मैदान में हैं। इसके अलावा, स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे (सीवान), नगर विकास मंत्री जीवेश मिश्र (जाले), राजस्व मंत्री संजय सरावगी (दरभंगा), पंचायती राज मंत्री केदार प्रसाद गुप्ता (कुढ़नी), और पर्यावरण मंत्री सुनील कुमार (बिहारशरीफ) सहित बीजेपी कोटे के 11 मंत्री इस चरण में किस्मत आजमा रहे हैं। इन दिग्गजों की जीत न केवल एनडीए के 160 के लक्ष्य के लिए जरूरी है, बल्कि बिहार में बीजेपी के भविष्य के नेतृत्व के लिए भी महत्वपूर्ण है।
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