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बी. सुदर्शन रेड्डी को उम्मीदवार बनाना विपक्ष की बड़ी गलती? हार सकते है उपराष्ट्रपति का चुनाव
VP candidate B. Sudarshan Reddy: उपराष्ट्रपति चुनाव 2025 में विपक्ष ने बी. सुदर्शन रेड्डी को उम्मीदवार बनाकर बड़ा दांव खेला है। क्या यह मास्टरस्ट्रोक है या भारी गलती? जानें पूरी राजनीतिक रणनीति और इसके असर की कहानी।
VP candidate B. Sudarshan Reddy: भारतीय राजनीति में दांव-पेंच और रणनीति का खेल हमेशा दिलचस्प रहा है। हर चुनाव एक नई कहानी कहता है और हर कहानी में छुपा होता है एक ऐसा दांव जिसे राजनीतिक पार्टियाँ 'मास्टरस्ट्रोक' का नाम देती हैं। इस बार, यह दांव खेला है विपक्षी इंडिया गठबंधन ने, जिन्होंने उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज बी. सुदर्शन रेड्डी को अपना उम्मीदवार घोषित किया है। यह कदम कई सवाल खड़े करता है: क्या यह वाकई एक मास्टरस्ट्रोक है? क्या गठबंधन को इससे कोई वास्तविक फायदा मिलेगा? और क्या यह फैसला केवल प्रतीकात्मक है?
कांग्रेस प्रवक्ता जयराम रमेश ने इस फैसले को सर्वसम्मत बताया है। विपक्ष को उम्मीद है कि कम से कम उनके अपने गठबंधन के दलों का वोट तो मिलेगा ही, साथ ही वे आंध्र प्रदेश के क्षेत्रीय दलों - टीडीपी, वाईएसआरसीपी और बीआरएस - को भी अपने पाले में लाने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि, इन तीनों दलों ने पहले ही एनडीए उम्मीदवार सीपी राधाकृष्णन को अपना समर्थन दे दिया है, और जस्टिस रेड्डी की उम्मीदवारी के बावजूद वे अपने निर्णय पर कायम हैं। इससे साफ है कि विपक्ष का 'तेलुगू कार्ड' फिलहाल कमजोर पड़ गया है।
देर से लिया गया फैसला, 'क्या इंडिया गठबंधन ने गंवा दिया मौका?'
भारतीय राजनीति में समय का बड़ा महत्व है, और कांग्रेस अक्सर इस मामले में पिछड़ती दिखाई देती है। लोकसभा चुनावों में उम्मीदवारों के ऐलान में देरी के चलते यूपी में समाजवादी पार्टी ने अपने उम्मीदवार पहले ही घोषित कर दिए थे, जिससे आम लोगों में दोनों दलों के बीच मतभेद का संदेश गया था। उपराष्ट्रपति चुनाव में भी कुछ ऐसा ही देखने को मिला है। अगर इंडिया गठबंधन ने एनडीए के उम्मीदवार घोषित करने से पहले ही बी. सुदर्शन रेड्डी के नाम का ऐलान कर दिया होता, तो शायद वे मनोवैज्ञानिक बढ़त हासिल कर सकते थे। एक बार फैसला लेने के बाद उसे बदलना किसी भी पार्टी के लिए मुश्किल होता है, खासकर जब जीत निश्चित तौर पर एनडीए की हो।
एनडीए ने सीपी राधाकृष्णन को दक्षिण भारत के दलों को ध्यान में रखकर अपना उम्मीदवार बनाया और टीडीपी, वाईएसआरसीपी और बीआरएस जैसी पार्टियों का समर्थन पहले ही हासिल कर लिया। अगर इंडिया गठबंधन ने भी थोड़ी तेजी दिखाई होती, तो हो सकता था कि ये तीनों राजनीतिक दल आज सुदर्शन रेड्डी के समर्थन में दिखाई देते। लेकिन देर से लिया गया यह फैसला विपक्ष की रणनीति पर एक बड़ा प्रश्नचिह्न लगाता है।
राजनीतिक संदेश में कमी, 'क्या जनता से जुड़ पाएंगे रेड्डी?'
बी. सुदर्शन रेड्डी की उम्मीदवारी भले ही इंडिया गठबंधन की एकता को दर्शाती है, लेकिन यह राजनीतिक संदेश के मामले में कमजोर नजर आती है। रेड्डी एक सवर्ण समुदाय से आते हैं, जिससे वे विपक्ष की दलित-ओबीसी राजनीति के एजेंडे में फिट नहीं बैठते। वहीं, भाजपा ने अपने उम्मीदवार सीपी राधाकृष्णन को ओबीसी, किसान परिवार और दक्षिण भारत के प्रतिनिधि के रूप में पेश किया है, जिससे वे एक मजबूत सामाजिक इंजीनियरिंग का संदेश दे रहे हैं।
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने रेड्डी को एक प्रतिष्ठित और प्रगतिशील न्यायविद बताया है, लेकिन यह फैसला दबाव में लिया गया लगता है। टीएमसी और डीएमके जैसे दलों की गैर-राजनीतिक उम्मीदवार की मांग को पूरा करने के लिए रेड्डी को चुना गया। लेकिन उनकी गैर-राजनीतिक पृष्ठभूमि बिहार जैसे राज्यों में, जहाँ जाति, धर्म और ध्रुवीकरण जैसे मुद्दे प्रमुख हैं, कोई मजबूत राजनीतिक संदेश नहीं दे रही है। इसके विपरीत, भाजपा ने सीपी राधाकृष्णन के जरिए दक्षिण भारत और बिहार दोनों ही जगह के ओबीसी समुदाय को एक साथ साधने की कोशिश की है। रेड्डी का नाम सवर्ण जातियों को भी प्रभावित करने में असफल साबित होने वाला है। इस तरह, सोशल इंजीनियरिंग के स्तर पर इंडिया गठबंधन कैंडिडेट के चयन में फेल हो गया है।
तेलंगाना जाति सर्वे के 'आर्किटेक्ट', 'क्या ओबीसी समुदाय करेगा स्वीकार?'
बी. सुदर्शन रेड्डी का तेलंगाना की सोशल इंजीनियरिंग में एक बड़ा रोल रहा है। तेलंगाना सरकार ने 2023 के विधानसभा चुनावों में किए गए वादे के तहत सामाजिक-आर्थिक, शैक्षिक, रोजगार, राजनीतिक और जातिगत सर्वेक्षण (SEEEPC) शुरू किया था। इस सर्वेक्षण के आंकड़ों का विश्लेषण करने और उनकी सटीकता सुनिश्चित करने के लिए एक विशेषज्ञ पैनल का गठन किया गया, जिसकी अध्यक्षता बी. सुदर्शन रेड्डी ने की थी।
इस पैनल का मुख्य उद्देश्य डेटा में किसी भी प्रकार की गड़बड़ी को रोकना और यह सुनिश्चित करना था कि आंकड़े विश्वसनीय और पारदर्शी हों। हालांकि, खुद ओबीसी न होने के चलते सुदर्शन रेड्डी कभी भी ओबीसी नेता की कमी को पूरा नहीं कर पाएंगे। यह स्थिति कुछ-कुछ पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह जैसी है, जिन्होंने मंडल कमीशन लागू तो किया, लेकिन ओबीसी समुदाय पूरी तरह से उनके साथ कभी खड़ा नहीं हो पाया।
यह भी ध्यान देने वाली बात है कि राहुल गांधी तेलंगाना के इसी मॉडल को पूरे देश में लागू करना चाहते हैं। ऐसे में, एक ऐसे व्यक्ति को, जो इस महत्वपूर्ण परियोजना से जुड़ा है, एक ऐसी लड़ाई में खड़ा करना जिसे हारना तय है, रणनीतिक रूप से सही नहीं लगता। अगर उनकी ब्रैंडिंग करनी थी तो उन्हें किसी और महत्वपूर्ण पद पर नियुक्त किया जाना चाहिए था, ताकि उनके अनुभव का लाभ उठाया जा सके।
न्यायपालिका का 'सॉफ्ट कॉर्नर', 'क्या कोई फायदा होगा?'
उपराष्ट्रपति पद के लिए एक जज को उम्मीदवार बनाकर विपक्ष ने देश के सामने न्यायपालिका की निष्पक्ष छवि को बढ़ावा देने वाली पार्टी बनने की कोशिश की है। विपक्ष का कहना है कि उनका उम्मीदवार संविधान से जुड़ा हुआ है, जबकि एनडीए का उम्मीदवार 'आरएसएस' से जुड़ा हुआ है। कांग्रेस को उम्मीद है कि इस चयन के जरिए न्यायपालिका के प्रति सॉफ्ट कॉर्नर (सहानुभूति) हासिल कर पाएगी।
लेकिन इतिहास गवाह है कि ऐसा कभी नहीं हुआ है। विपक्ष ने कई बार राष्ट्रपति पद के लिए सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस को हारने के लिए खड़ा किया है, पर इससे कोई खास फायदा नहीं हुआ है। ऐसे उम्मीदवारों को सिर्फ राष्ट्रीय स्तर पर कुछ दिनों के लिए चर्चा में आने का मौका मिल जाता है। रेड्डी का चयन भले ही न्यायपालिका की स्वतंत्रता और संवैधानिक मूल्यों को मजबूत करने का संदेश देता हो, लेकिन यह संदेश केवल शहरी और शिक्षित मतदाताओं तक ही सीमित है।
सीएसडीएस-लोकनीति के एक सर्वे के अनुसार, बिहार जैसे राज्यों में 60% मतदाता बेरोजगारी और पलायन जैसे आर्थिक मुद्दों को प्राथमिकता देते हैं। न्यायपालिका से संबंधित मुद्दे, जैसे संवैधानिक रक्षा, ग्रामीण और कम शिक्षित मतदाताओं के लिए शायद ही प्रासंगिक हों। कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत भले ही रेड्डी की उम्मीदवारी को संवैधानिक मूल्यों से जोड़ती हों, लेकिन यह भाजपा के ओबीसी नैरेटिव को तोड़ने में कहीं से भी कारगर नहीं दिख रहा है।
कुल मिलाकर, इंडिया गठबंधन का यह फैसला एक ऐसा 'मास्टरस्ट्रोक' लगता है, जो राजनीतिक संदेश और सामाजिक इंजीनियरिंग के मोर्चे पर कमजोर साबित हो रहा है। क्या यह सिर्फ एक प्रतीकात्मक दांव है या इसके पीछे कोई गहरी रणनीति छिपी है, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा। लेकिन फिलहाल, यह दांव हवा में ही घूमता दिखाई दे रहा है।
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