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समंदर में ‘साइलेंट स्ट्राइक’, मलक्का से कराची तक भारत ने कसा शिकंजा, DRDO का ये हथियार करेगा दुश्मनों की चाल को फेल

रक्षा मंत्रालय ने DRDO द्वारा विकसित अत्याधुनिक प्रेशर-बेस्ड मूरड माइंस और 12 पूरी तरह से स्वदेशी माइनस्वीपर पोतों को नौसेना में शामिल करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। ये माइंस प्रेशर सेंसर टेक्नोलॉजी से लैस होती है जो आसपास से गुजरने वाले जहाज या पनडुब्बी के कारण पानी के दबाव में हुए बदलाव को महसूस कर खुद सक्रिय हो जाती हैं और टारगेट को नष्ट कर देती हैं।

Shivam Srivastava
Published on: 4 July 2025 5:28 PM IST (Updated on: 4 July 2025 5:58 PM IST)
समंदर में ‘साइलेंट स्ट्राइक’, मलक्का से कराची तक भारत ने कसा शिकंजा, DRDO का ये हथियार करेगा दुश्मनों की चाल को फेल
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Indian Navy: भारत की समुद्री ताकत को और मजबूत करने के लिए सरकार ने एक बड़ा और रणनीतिक फैसला लिया है। रक्षा मंत्रालय ने DRDO द्वारा विकसित अत्याधुनिक प्रेशर-बेस्ड मूरड माइंस और 12 पूरी तरह से स्वदेशी माइनस्वीपर पोतों को नौसेना में शामिल करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। यह सौदा न केवल भारतीय नौसेना की युद्ध क्षमता को नई ऊंचाइयों तक ले जाएगा साथ ही मेक इन इंडिया अभियान को भी जबरदस्त बूस्ट देगा। इस परियोजना की कुल लागत करीब 44,000 करोड़ रुपये आंकी गई है। हर माइनस्वीपर पोत की लागत लगभग 3,500 करोड़ रुपये होगी।

क्या हैं प्रेशर-बेस्ड मूरड माइंस?

इन मूरड माइंस को समुद्र की तय गहराई पर एंकर कर दिया जाता है। जहां ये एक तार के सहारे समुद्र तल से जुड़े रहते हैं और सतह के नीचे स्थिर होकर तैरते हैं। ये माइंस प्रेशर सेंसर टेक्नोलॉजी से लैस होती है जो आसपास से गुजरने वाले जहाज या पनडुब्बी के कारण पानी के दबाव में हुए बदलाव को महसूस कर खुद सक्रिय हो जाती हैं और टारगेट को नष्ट कर देती हैं। इन्हें पारंपरिक कांटेक्ट माइंस की तुलना में ज्यादा घातक और पहचान में कठिन माना जाता है। DRDO की यह पूरी तकनीक स्वदेशी है। माइन लगाने से लेकर डिटोनेशन तक सब कुछ भारतीय डिजाइन और नियंत्रण में रहेगा।

माइनस्वीपर पोत की है दोहरी भूमिका

माइनस्वीपर पोत जिन्हें माइन काउंटर मेजर वेसल्स (MCMV) कहा जाता है। दुश्मन द्वारा समुद्र में बिछाई गई माइंस को पहचानने और निष्क्रिय करने में ये विशेषज्ञ होते हैं। प्रस्तावित 12 पोत 3000 टन वजनी होंगे और आधुनिक सोनार, अंडरवॉटर ड्रोन और रोबोटिक सब-सिस्टम से लैस रहेंगे। इनसे भारत अब सिर्फ माइंस बिछाने वाला देश ही नहीं रहेगा साथ ही युद्ध के हालात में दुश्मन की माइंस को साफ करने की भी क्षमता रखेगा। यानी एक साथ दोहरी ताकत आक्रामकता भी और रक्षात्मक भी।

रणनीतिक मोर्चों पर बढ़ेगी पकड़

इन माइंस और माइनस्वीपर पोतों की तैनाती मुंबई, कोच्चि, विशाखापत्तनम, अंडमान-निकोबार और पोर्ट ब्लेयर जैसे समुद्री ठिकानों पर की जा सकती है। ये इलाके भारत की रणनीतिक समुद्री सुरक्षा के लिए बेहद अहम हैं। मलक्का स्ट्रेट से लेकर कराची और ग्वादर पोर्ट तक ये उपकरण भारत को युद्ध या तनाव की स्थिति में दुश्मन की सप्लाई चेन को बाधित करने की अद्वितीय क्षमता देंगे।

चीन और पाकिस्तान पर बढ़ेगा मनोवैज्ञानिक दबाव

जहां पाकिस्तान की माइनस्वीपिंग क्षमता बेहद सीमित है तो वहीं चीन हिंद महासागर में लगातार अपनी मौजूदगी बढ़ा रहा है। स्ट्रेट ऑफ मलक्का चीन की ऊर्जा सप्लाई के लिए बेहद अहम है। DRDO की माइंस के जरिये भारत उस क्षेत्र में चोक पॉइंट बनाकर चीन की समुद्री गतिशीलता पर बड़ा असर डाल सकता है। वहीं, माइनस्वीपर पोत चीन द्वारा बिछाई गई माइंस को निष्क्रिय करने में अहम भूमिका निभाएंगे।

भारत को मिलेगी निर्णायक समुद्री बढ़त

DRDO की प्रेशर-बेस्ड माइंस और 12 आधुनिक माइनस्वीपर पोत भारत को भविष्य की नौसैनिक रणनीति में बढ़त दिलाएंगे। यह फैसला न केवल भारतीय नौसेना को और सक्षम बनाएगा, बल्कि इसे दुश्मनों के खिलाफ एक शक्तिशाली 'साइलेंट स्ट्राइक' की क्षमता भी देगा।

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