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चीन की इतनी हिम्मत! LAC पर तैनात किया सबसे खतरनाक HQ-16 एयर डिफेन्स सिस्टम, भारत को दे रहा जंग की चुनौती?
China deploys HQ 16 missile on LAC: कुछ ही दिन पहले, भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने चीन का दौरा पूरा किया था और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह रूस में एससीओ बैठक में शामिल थे। लेकिन उसी समय चीन ने सैटेलाइट पर HQ‑16 मिसाइल सिस्टम दिखाई दे रहा था — पैंगोंग झील के उत्तरी घाटी के पास।
China deploys HQ 16 missile on LAC: रिश्तों की मेज़ पर गुफ्तगू जारी थी, जब चीन ने जवाबी चाल खेलने की ठान ली। साफ दिखती सैटेलाइट तस्वीरों में लद्दाख की शांत झील पैंगोंग त्सो के पास HQ‑16 एयर‑डिफेंस सिस्टम की तैनाती पकड़ में आई, जिससे भारत की रणनीतिक सोच को झटका लगा। भरोसे और समझौतों के बीच ये एक ऐसा कदम था, जिसने सुधार के रास्ते को संदिग्ध बना दिया। इंतज़ार कर रहे सीलिडर संवाद के बीच हुआ ये पुरजोर जवाब, रणनीतिक संतुलन से थोड़े थोड़े समय पर काफी दूर जा पहुंचा।
पैंगोंग त्सो किनारे मिसाइल तैनाती – समझौते की खुली धज्जियाँ
कुछ ही दिन पहले, भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने चीन का दौरा पूरा किया था और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह रूस में एससीओ बैठक में शामिल थे। लेकिन उसी समय चीन ने सैटेलाइट पर HQ‑16 मिसाइल सिस्टम दिखाई दे रहा था — पैंगोंग झील के उत्तरी घाटी के पास। यह वह इलाका है जहां फिंगर 4 तक नियंत्रण भारत का माना जाता है, फिर भी चीन ने अपनी सीमा के भीतर इस रक्षा प्रणाली को स्थापित कर दिया। मेगा पुल का निर्माण, भारी सैनिक तैनाती और अब HQ‑16 सिस्टम से यह पूरा क्षेत्र युद्ध के खतरे के बीच आ गया है — और समझौते की सीमाएं स्पष्ट रूप से टूटती नजर आईं।
HQ‑16 का खौफनाक प्रभाव – यह मिसाइल सिस्टम है कितना खतरनाक?
HQ‑16 एक मॉडर्न एयर डिफेंस सिस्टम है, जिसे सामरिक मोर्चे पर बड़ी ताकत मानते हैं। इसकी मिसाइलें 40-70 किलोमीटर तक दूरी में लड़ाकू जेट, हेलीकॉप्टर, ड्रोन और क्रूज़ मिसाइल्स को ट्रैक कर समाप्त कर सकती हैं। इसका तेज़ी से तैनाती क्षमता — क्योंकि यह मोबाइल प्लेटफ़ॉर्म पर आधारित है — इसे कार्रवाई की अवस्था में सेकंडों में बदलने की सुविधा देती है। 3D रडार और ECCM (इलेक्ट्रॉनिक काउंटर-काउंटरमेजिंग) क्षमताओं के साथ, यह पहन की इलेक्ट्रॉनिक हस्तक्षेप को चकमा देकर अपने मिशन को पूरा कर सकता है।
क्यों बदला चीन का रवैया?
पिछले साल अगस्त में चीन ने पैंगोंग की झील को पार करने वाला एक पुल बना लिया था, जिससे उसकी सेना और उपकरणों की आवाजाही तेज़ हो गई। अब HQ‑16 की इस तैनाती ने क्षेत्रीय डी-एस्केलेशन को आगे बढ़ा दिया है। चीन की स्पष्टीकरण में कहा गया है कि यह सुरक्षा के लिए किया गया कदम है और किसी समझौते का उल्लंघन नहीं करता। मगर भारत के लिए यह निर्णायक मोड़ है: आ रहा है यह संकेत कि चीन समझौतों को अपनी स्वहित पर समझौता मानने के लिए तैयार नहीं है।
भारत की प्रतिक्रिया – क्या रहा है रणनीति?
भारत ने तुरन्त प्रतिक्रिया दी है कि यह कदम समझौते का उल्लंघन है और हमारी सीमा की सुरक्षा को प्रभावित करेगा। विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि इस तैनाती पर “सख्त आपत्ति” दर्ज की गई है, और इसे क्षेत्रीय स्थिरता के लिए खतरा बताया गया है। सैनिक स्तर पर भी सतर्कता बढ़ाई गई है। एलएसी के आसपास ड्रोन सर्विलांस, एयर डिफेंस सिस्टम तैयारी और बहुपक्षीय डिपलोमेटिक पहुंच के जरिए भारत ने चीन को यह मैसेज दे दिया है कि यह सख्ती स्वाभाविक है।
अब क्या होगा अगला कदम?
हालांकि अभी क्षेत्र में शांति बनी हुई है, लेकिन स्तरित डिफेंस सिस्टम के चलते अब किसी भू-राजनैतिक घटना को टालना आसान नहीं रहेगा। आईसीआईसी और समझौतों के बीच ये मिसाइल सिस्टम इलाक़ाई गतिशीलता को प्रभावित करेगा। अब भारत की विदेश नीति और सुरक्षा रणनीति दोनों को तगड़ा रुख दिखाना होगा — चाहे वह मोर्चा पर कड़े क़दम हों अथवा दोस्त देशों के साथ समीकरण बनाना। यह स्पष्ट है कि चीन की ऐसी छुपी चाल ने मानवीय सीमा बैठकों को भंग किया और लद्दाख की डीमैपिंग को एक नए विरोधमूलक मोड़ पर ला खड़ा किया। भारत के सामने अब यह चुनौती खड़ी हो गई है कि वह कैसे इस मिसाइल तैनाती को पीछे धकेल सकता है और क्षेत्र में स्थिरता बहाल कर सकता है। क्योंकि जब रणनीति हवा में बदल जाती है, तो सीमा भी स्थूल नजर आती है — और दोस्त-दुश्मन की रेखाएं और भी साफ समझनी पड़ती हैं।
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