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Biography Of Ujjwal Nikam: देश के सबसे ताकतवर सरकारी वकील, जानिए उज्ज्वल निकम का न्यायिक सफर

Biography Of Ujjwal Nikam: उज्ज्वल निकम भारत के सबसे साहसी और प्रसिद्ध आपराधिक वकीलों में गिने जाते हैं, जिन्होंने 26/11 हमले और 1993 मुंबई ब्लास्ट जैसे हाई-प्रोफाइल मामलों में आतंकवादियों को फांसी तक पहुंचाया।

Shivani Jawanjal
Published on: 13 July 2025 1:59 PM IST
Biography Of Ujjwal Nikam:  देश के सबसे ताकतवर सरकारी वकील, जानिए उज्ज्वल निकम का न्यायिक सफर
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Biography Of Ujjwal Nikam

Biography Of Ujjwal Nikam: भारत के न्यायिक इतिहास में कुछ ऐसे नाम हैं जिन्होंने न केवल कानून की किताबों में न्याय को जिंदा रखा, बल्कि अदालत के हर मोर्चे पर अपराध के खिलाफ डटकर खड़े हुए। सीनियर क्रिमिनल लॉयर उज्ज्वल निकम एक ऐसा ही प्रखर नाम हैं जिन्होंने आतंकवाद, संगठित अपराध और अति-संवेदनशील मामलों में न केवल सजा दिलवाई बल्कि देश को यह भरोसा भी दिलाया कि न्याय अभी भी जीवित है और मजबूत है। महाराष्ट्र सरकार के मुख्य विशेष सरकारी वकील के रूप में उन्होंने कई ऐतिहासिक मुकदमों में निर्णायक भूमिका निभाई। उनकी काबिलियत और समर्पण को देखते हुए, हाल ही में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 13 जुलाई 2025 को उन्हें राज्यसभा के लिए नामित किया है। जो उनके अद्वितीय योगदान का राष्ट्रीय सम्मान है। ऐसे में आइये नज़र डालते है वरिष्ठ वकील उज्वल निकम जी के अद्भुत सफ़र पर।

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा नामांकित

रविवार, 13 जुलाई 2025 को भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू(President Droupadi Murmu)ने चार प्रतिष्ठित हस्तियों को राज्यसभा के लिए नामित किया, जो अपने-अपने क्षेत्रों में उत्कृष्ट योगदान के लिए जाने जाते हैं। इन नामों में वरिष्ठ आपराधिक वकील उज्ज्वल निकम, पूर्व विदेश सचिव हर्ष वर्धन श्रृंगला, प्रख्यात इतिहासकार डॉ. मीनाक्षी जैन और समाजसेवा से जुड़े सी. सदानंदन मास्टर शामिल हैं। विशेष रूप से उज्ज्वल निकम को भारत में कानून और न्याय के क्षेत्र में उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए छह वर्ष की अवधि (13 जुलाई 2025 से 12 जुलाई 2031 तक) के लिए राज्यसभा सदस्य नियुक्त किया गया है। यह नामांकन न केवल इन व्यक्तियों की विशेषज्ञता का सम्मान है बल्कि भारतीय लोकतंत्र में विविध क्षेत्रों से श्रेष्ठता को स्वीकारने की एक मिसाल भी है।

उज्ज्वल निकम का प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

वरिष्ठ वकील उज्ज्वल निकम का जन्म 30 मार्च 1953 को महाराष्ट्र के जलगांव जिले में हुआ था। उनके पिता देवरावजी निकम पेशे से एक न्यायाधीश थे। जिसकारण उज्ज्वल निकम को बचपन से ही कानून और न्याय व्यवस्था का वातावरण मिला। यही परिवेश उनके भीतर न्याय के प्रति गहरी समझ और रुचि विकसित करने में सहायक बना। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा के बाद साइंस में स्नातक (B.Sc.) की डिग्री प्राप्त की और फिर जलगांव स्थित एस.एस. मनियार लॉ कॉलेज से कानून (LL.B.) की पढ़ाई पूरी की। पढ़ाई के दिनों से ही वे गंभीर, अनुशासित और न्यायप्रिय स्वभाव के थे, जो आगे चलकर उन्हें भारत के सबसे प्रभावशाली और समर्पित सरकारी वकीलों में स्थापित करने वाला आधार बना।

वकालत की शुरुआत और संघर्ष

उज्ज्वल निकम ने अपनी वकालत की शुरुआत अपने गृह नगर जलगांव से की थी, जहाँ वे आम नागरिकों के छोटे-बड़े मुकदमों की पैरवी करते थे। उनकी साफ - सुथरी छवि, दमदार तर्कशक्ति और ईमानदार कार्यशैली ने जल्दी ही उन्हें कानूनी क्षेत्र में एक अलग पहचान दिलाई। उनके प्रोफेशनल रुख और न्याय के प्रति निष्ठा को देखते हुए महाराष्ट्र सरकार ने उन्हें विशेष लोक अभियोजक (Special Public Prosecutor) के रूप में नियुक्त किया। उनका पहला बड़ा मुकदमा 1993 के नासिक सीरियल ब्लास्ट केस में सामने आया जहाँ उन्होंने सरकारी पक्ष की ओर से सशक्त रूप से पैरवी की। यहीं से उनके करियर ने रफ्तार पकड़ी, जिसके बाद उन्होंने प्रेम कुमार बंसल हत्याकांड, 1993 मुंबई बम धमाके, हर्षद मेहता घोटाला और 26/11 मुंबई आतंकी हमला जैसे कई हाई-प्रोफाइल मामलों में विशेष लोक अभियोजक के रूप में काम करते हुए देशभर में अपनी एक मजबूत कानूनी छवि स्थापित की। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

प्रमुख मुकदमे और ऐतिहासिक फैसले

1993 मुंबई बम धमाका मामला - उज्ज्वल निकम को 1993 मुंबई सीरियल बम ब्लास्ट केस में विशेष लोक अभियोजक नियुक्त किया गया था। इस भीषण आतंकी हमले में 250 से अधिक लोगों की जान गई और 700 से अधिक लोग घायल हुए थे। निकम ने अदालत में इतने सशक्त और तथ्यपूर्ण ढंग से सबूतों की प्रस्तुति दी कि करीब 100 से अधिक आरोपियों को दोषी ठहराया गया, जिनमें से कई को मृत्युदंड और आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। इस मुकदमे ने उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर एक तेजतर्रार सरकारी वकील के रूप में स्थापित किया।

26/11 मुंबई हमला (अजमल कसाब केस) - यह उज्ज्वल निकम के करियर का सबसे चर्चित और संवेदनशील मुकदमा रहा। 26 नवंबर 2008 को हुए मुंबई हमलों में शामिल पाकिस्तानी आतंकी अजमल कसाब के खिलाफ उन्होंने अदालत में इतने प्रभावशाली ढंग से केस प्रस्तुत किया कि कसाब को मौत की सजा सुनाई गई। निकम की मजबूत तर्कशक्ति और गवाही की शृंखला ने इस केस को भारत की कानूनी व्यवस्था में एक मिसाल बना दिया।

गुलशन कुमार हत्याकांड - टी-सीरीज के संस्थापक गुलशन कुमार की हत्या के मामले में भी उज्ज्वल निकम ने विशेष सरकारी वकील के रूप में सक्रिय और निर्णायक भूमिका निभाई। उन्होंने अदालत में आरोपियों के खिलाफ ठोस सबूत पेश किए और न्याय दिलाने की दिशा में अहम कार्य किया।

जेजे अस्पताल नर्स गैंगरेप केस - इस बेहद संवेदनशील और दर्दनाक मामले में भी उज्जल निकम ने सरकारी वकील के रूप में न्याय के पक्ष में मजबूती से पैरवी की। पीड़िता को न्याय दिलाने के लिए उन्होंने आरोपियों के खिलाफ प्रभावी कानूनी रणनीति अपनाई और यह केस भी उनकी न्याय-समर्पित छवि को और सुदृढ़ करता है।

पेशेवर विशेषताएं और न्याय के प्रति समर्पण

उज्ज्वल निकम की वकालत केवल कानूनी ज्ञान तक सीमित नहीं रही बल्कि उनकी धैर्यशीलता, एकाग्रता और रणनीतिक सोच ने उन्हें देश के सबसे प्रभावशाली वकीलों में गिना जाने योग्य बनाया। 1993 मुंबई बम धमाका और 26/11 मुंबई आतंकी हमला जैसे मामलों में उन्होंने अदालत में घंटों तक बिना थके बहस की, जो उनकी पेशेवर दृढ़ता और मानसिक एकाग्रता का प्रमाण है। उनकी कानूनी शैली भावनात्मक अपील की बजाय तथ्यात्मक, वैज्ञानिक और विश्लेषणात्मक होती है। वे परिस्थितिजन्य साक्ष्यों, आंकड़ों और तार्किक तर्कों की ऐसी श्रृंखला प्रस्तुत करते हैं जिससे उनका पक्ष अदालत में बेहद सशक्त बन जाता है। उज्ज्वल निकम का मानना है कि वकील का कर्तव्य सिर्फ अपराधी को सजा दिलाना नहीं बल्कि पीड़ितों को न्याय दिलाना भी है। यही सोच उन्हें एक संवेदनशील और न्यायनिष्ठ वकील की श्रेणी में लाती है। जिनकी पैरवी से न सिर्फ अदालतों में न्याय हुआ बल्कि समाज में भी न्याय पर भरोसा और मजबूत हुआ।

निजी जीवन

उज्ज्वल निकम न सिर्फ एक कुशल वकील हैं, बल्कि उन्हें जानने वाले उन्हें एक अनुशासित, मेहनती और पारिवारिक व्यक्ति के रूप में भी पहचानते हैं। उन्होंने अपने पेशेवर और निजी जीवन के बीच संतुलन बनाए रखा है और हमेशा प्रचार से दूरी बनाए रखने की कोशिश की है। हालांकि वे हाई-प्रोफाइल मामलों के दौरान मीडिया से संवाद करते रहे हैं। लेकिन अपने निजी जीवन को सार्वजनिक मंचों से दूर ही रखते हैं। उनके पुत्र अनिकेत निकम भी एक प्रतिष्ठित वकील हैं, जो मुंबई में प्रैक्टिस करते हैं और कई महत्वपूर्ण मामलों में कानूनी भूमिका निभा चुके हैं। इस तरह उज्ज्वल निकम की पारिवारिक विरासत भी न्यायिक क्षेत्र में आगे बढ़ रही है।

सम्मान और पुरस्कार

उज्ज्वल निकम को उनके कानूनी क्षेत्र में असाधारण योगदान के लिए कई प्रतिष्ठित सम्मानों से नवाजा गया है। भारत सरकार ने वर्ष 2016 में उन्हें ‘पद्म श्री’ पुरस्कार से सम्मानित किया, जो देश का चौथा सर्वोच्च नागरिक सम्मान है। इसके अतिरिक्त उन्हें महाराष्ट्र सरकार और विभिन्न कानूनी व सामाजिक संस्थाओं द्वारा भी कई बार सम्मानित किया गया है, जिनमें 'महाराष्ट्र भूषण' जैसे सम्मान शामिल हैं।

विवाद और आलोचनाएँ

उज्ज्वल निकम के करियर में जहां एक ओर उपलब्धियों की लंबी फेहरिस्त है, वहीं उनका एक विवादास्पद बयान भी सुर्खियों में रहा। 26/11 हमले के आरोपी अजमल कसाब को लेकर उन्होंने मीडिया में यह कहा था कि कसाब ने जेल में बिरयानी की मांग की थी। बाद में खुद निकम ने स्वीकार किया कि यह बयान जानबूझकर गढ़ा गया था ताकि जनता के बढ़ते आक्रोश को एक दिशा दी जा सके और भावनात्मक असंतुलन से बचाया जा सके। इस स्वीकारोक्ति पर कुछ वर्गों ने उनकी आलोचना भी की और इसे नैतिक रूप से अनुचित बताया। लेकिन उज्ज्वल निकम ने इसे 'रणनीतिक संचार' का हिस्सा बताते हुए अपने पक्ष को यह कहते हुए स्पष्ट किया कि उनका उद्देश्य जनता की संवेदनाओं को संतुलित रखना और सामाजिक माहौल को नियंत्रित करना था। यह घटना उनके करियर का एक चर्चित लेकिन विवादास्पद अध्याय बन गई।

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