TRENDING TAGS :
Jitan Ram Manjhi Profile: महादलित चेहरा, ज़मीन पर उतनी नहीं लेकिन गठबंधनों में अहमियत
Dalit Leader Jitan Ram Manjhi Profile: जीतन राम मांझी महादलित समाज के मुसहर जाति से आने वाले बिहार के वरिष्ठ नेता हैं। और 2014–15 में बिहार के 23वें मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं।
Dalit Leader Jitan Ram Manjhi Profile Political Journey Bihar Assembly Election 2025 Latest Update
Dalit Leader Jitan Ram Manjhi Profile: जीतन राम मांझी महादलित समाज के मुसहर जाति से आने वाले बिहार के वरिष्ठ नेता हैं। और 2014–15 में बिहार के 23वें मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं। मांझी का बचपन गया ज़िले के महाकर गाँव में अत्यंत साधारण परिवेश में बीता। उनका जन्म जन्म 6 अक्टूबर 1944 को बिहार के गया में हुआ। उन्होंने मगध विश्वविद्यालय से स्नातक किया। शुरुआती दिनों में गया टेलीफोन एक्सचेंज में नौकरी की। उनकी शादी शांति देवी से हुई। उनके सात बच्चे हैं। पुत्र संतोष सुमन वर्तमान MLC हैं। बाद में वे पूर्णकालिक राजनीति में आए और कांग्रेस, जनता दल, राजद और जेडीयू होते हुए 2015 में अपनी पार्टी हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (सेक्युलर)—HAM(S)—बनाई।
मांझी 1980 में कांग्रेस टिकट पर गया ज़िले की फतेहपुर विधानसभा सीट से जीते। 1985 में फिर जीते और 1990 में हारे। 1996 में जनता दल से राजद में आए और बराचट्टी उपचुनाव जीते। 2000 में भी राजद से वहीं से फिर जीते और मंत्री रहे। अक्टूबर, 2005 में जदयू में आए और फिर जीते। 2010 में जहानाबाद के मखदुमपुर से जीते। 2014 के लोकसभा चुनाव में गया से जदयू से चुनाव लड़े पर वे तीसरे स्थान पर रहे। लेकिन उसी वर्ष जदयू के कमजोर प्रदर्शन के बाद 20 मई, 2014 को वे मुख्यमंत्री बना दिये गये। फरवरी 2015 में राजनीतिक खींचतान के बाद पद छोड़ना पड़ा। 2015 में उन्होंने नई पार्टी HAM(S) बनाई और राजग के साथ इमामगंज से चुनाव लड़ा और जीतो। वे HAM का एकमात्र विधायक थे। 2020 में वे NDA में लौटे। HAM(S) ने 7 सीटों पर चुनाव लड़ा। 4 सीटें— टेकारी, इमामगंज, बराचट्टी, सिकंदरा जीतीं। यह उनकी पार्टी की सबसे बड़ी विधानसभा उपस्थिति थी। 2024 में लोकसभा में गया सीट से जीते और मोदी-3.0 सरकार में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSME) मंत्री बने।
बिहार जाति-सर्वे (2023) व अन्य स्रोतों के मुताबिक़ मुसहर आबादी ~3.08 फ़ीसदी मानी गई है। जबकि 19.6 फ़ीसदी दलित बिहार में हैं। बिहार के भूगोल में मुसहरों का सघन क्लस्टर मगध-गया अंचल गया, जहानाबाद, औरंगाबाद, अरवल और आसपास के शाहाबाद-रोहतास, कैमूर, नवादा तथा कुछ हिस्सों पटना ग्रामीण, मसौढ़ी बेल्ट में दिखता है। यही वजह है कि मांझी का नैसर्गिक प्रभाव-क्षेत्र इमामगंज-बराचट्टी-टेकारी-सिकंदरा जैसे विधानसभा सेगमेंट्स और गया लोकसभा में सबसे अधिक परिलक्षित होता है। सूबे की राजनीति में मुसहर वोट एकल निर्णायक कम और जोड़कर निर्णायक ज़्यादा होता है। त्रिकोणीय/चतुष्कोणीय मुकाबलों में यह किंगमेकर या कटिंग लेयर की तरह असर डालता है।
किसके साथ, कब, कितनी सीटें; क्या नतीजा?
2015 के विधानसभा चुनाव में HAM(S) ने राजग के साथ ~20–21 सीटों में भागीदारी ली। परिणाम—1 सीट (इमामगंज)। जदयू तब महागठबंधन में था।
2018–19 में मांझी राजग से अलग होकर महागठबंधन की ओर गए; 2019 लोकसभा में खुद नहीं जीते।
2020 के विधानसभा चुनाव में वे फिर NDA में लौटे। HAM(S) ने 7 सीटों पर लड़कर 4 जीतीं—टेकारी, इमामगंज, बराचट्टी, सिकंदरा—और सरकार में भागीदारी मिली (पुत्र संतोष सुमन मंत्री बने)।
2024 के लोकसभा चुनाव में HAM(S)-तालमेल। मांझी गया (SC) से जीते और केंद्र में MSME मंत्री बने।
2025 विधानसभा में राजग के साझा फार्मूले में HAM(S) को 6 सीटें मिलीं। पार्टी ने सभी 6 उम्मीदवार घोषित किए—टेकारी, इमामगंज, बराचट्टी, सिकंदरा में सीटिंग विधायकों को टिकट दे दिये। कुटुंबा व अत्री सीट पर यह 2020 की पटकथा को आगे बढ़ाने की कोशिश है।
मांझी का कोर-बेस मुसहर है। मगर 2014 में CM बनना, 2020 में NDA के साथ 4/7 और 2024 में लोकसभा-जीत व केंद्रीय मंत्री बनना—इन सबने उन्हें महादलित-चेहरे से आगे एक राज्यव्यापी पहचान दी है। मगध में गैर-SC वोट, खासकर कुछ OBC क्लस्टर, में उनका सॉफ्ट-इन्फ्लुएंस दिखाई देता है। कारण स्थानीयता, गया-केंद्रित नेटवर्क और गठबंधन-राजनीति में उनकी नैविगेशन क्षमता है। फिर भी, जाति-पार वोट का स्थायी और बड़े पैमाने पर ट्रांसफर उनकी पार्टी-स्केल और संगठन पर निर्भर रहता है। यही 2015 में 1 सीट बनाम 2020 में 4 सीट के अंतर से स्पष्ट है।
2024 में गया सीट नामांकन के समय दिये गये हलफ़नामें में मांझी के नाम पर 6 आपराधिक मामले लंबित दर्शाए गए है। जिनमें IPC 171H/188 (चुनाव/धारा-उल्लंघन) जैसे प्रावधान, कुछ दफ़ाएँ दंगा व हाज़िरी-नाजायज़ जमाव व गलत तरीके से रोकने-बंधक बनाने एवं धारा-506 (क्रिमिनल इंटिमिडेशन) सम्मिलित हैं।कोई सज़ा या दोषसिद्धि दर्ज नहीं।
1990 के दशक में शिक्षा-मंत्री रहते फर्जी B.Ed. कॉलेज परमिशन प्रकरण में उनका नाम उछला। बाद में वे निर्दोष व अभ्यारोप-मुक्त बताए गए और 2008 में फिर मंत्रिमंडल में लिए गए। यह प्रकरण आज अक्सर उनकी विवाद-सूची में उद्धृत होता है, पर कानूनी रूप से सज़ा-रहित रहा।
महादलित में सबसे पहचाना चेहरा।मगध-गया अंचल में जमीनी पकड़। राजग और महागठबंधन—दोनों ध्रुवों में काम करने का अनुभव। 2020 में 4 सीट, 2024 में लोकसभा-जीत और केंद्रीय MSME मंत्री—सत्ता-सर्किट में प्रभाव को दर्शाता है। गया-केन्द्रित माइक्रो-नेटवर्क साथ ही दिल्ली में कैबिनेट पोज़िशन—दोनों स्तरों पर दृश्यता।अब भी राजग के सहयोग पर निर्भर। बार-बार ध्रुव बदलने की छवि को आलोचक इसे अवसरवाद कहते हैं। हालाँकि 2024 के बाद केंद्र में भूमिका ने स्थिरता का संकेत भी दिया है। जाति-पार स्थायी वोट-ट्रांसफर अभी भी चुनौती; मगध के बाहर प्रभाव पतला।
मांझी का असर गया, जहानाबाद, औरंगाबाद, अरवल की रिंग में सबसे घना दिखता है। 2020 में इमामगंज, बराचट्टी, टेकारी, सिकंदरा का जीता जाना इसी भूगोल की पुष्टि करता है। रोहतास, कैमूर, नवादा और पटना ग्रामीण के कुछ हिस्सों में मुसहर वोट जोड़कर निर्णायक बनता है। इसीलिए 2025 में HAM(S) को NDA में 6 सीटों का कोटा उसी बेल्ट में मिला और पार्टी ने वहीँ फ़ोकस्ड नामांकन किए हैं।
2014 में मुख्यमंत्री 2024 में केंद्रीय मंत्री (MSME) तक की यात्रा की यह बताती है कि सीमित संगठन के बावजूद गठबंधन राजनीति में उनका वज़न बना रहता है। 2015 की 1/20 से 2020 की 4/7 तक का उछाल HAM(S) की कार्यक्षमता में सुधार दिखाता है। 2025 में चुनौती है कि वे 6 टिकटों में कम-से-कम 3–4 निर्णायक जीतें दें, ताकि पार्टी सिर्फ़ सहयोगी नहीं, राजग के भीतर अनिवार्य घटक की तरह दिखे। मुसहर-कोर से बाहर जाति-पार असर बढ़ाना और मगध से आगे शाहाबाद, सीमांचल में असरदार उपस्थिति बनाना—यही उनकी अगली मंज़िल है।
AI Assistant
Online👋 Welcome!
I'm your AI assistant. Feel free to ask me anything!