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ड्रीमलाइनर गिरा या गिराया गया? मोदी सरकार ने प्लेन क्रैश जांच में UN को दिखाया बाहर का रास्ता, आखिर क्या छुपा रही है सरकार?
Dreamliner Plane crash investigation: संयुक्त राष्ट्र की एविएशन एजेंसी ICAO ने भारत को इस भीषण विमान हादसे की जांच में मदद देने की पेशकश की थी। एक अनुभवी जांचकर्ता को भेजने की बात कही गई थी, लेकिन भारत सरकार ने इस प्रस्ताव को सिरे से खारिज कर दिया।
Dreamliner Plane crash investigation: देश जब इस चिलचिलाती गर्मी में सांस ले रहा था आम दिनों की तरह, तब 12 जून की दोपहर अचानक एक धमाका हुआ। एयर इंडिया की फ्लाइट AI-388, जो अहमदाबाद से लंदन जा रही थी, उड़ान भरते ही कुछ ही मिनटों में ज़मीन पर आ गिरी। बोइंग 787-8 ड्रीमलाइनर की इस खौफनाक दुर्घटना में 274 यात्रियों ने अपनी जान गंवा दी। पूरा देश सन्न रह गया, सोशल मीडिया पर मातम और गुस्से की लहर दौड़ गई। लेकिन हादसे के दो हफ्ते बाद जो हुआ, उसने देश और दुनिया दोनों को चौंका दिया।
सरकार ने ठुकरा दी यूएन की मदद!
संयुक्त राष्ट्र की एविएशन एजेंसी ICAO ने भारत को इस भीषण विमान हादसे की जांच में मदद देने की पेशकश की थी। एक अनुभवी जांचकर्ता को भेजने की बात कही गई थी, लेकिन भारत सरकार ने इस प्रस्ताव को सिरे से खारिज कर दिया। हां, ठीक सुना आपने—भारत ने यूएन को इस संवेदनशील जांच से बाहर कर दिया। अब सवाल यह है कि जब दुनियाभर में विमान दुर्घटनाओं की जांच में अंतरराष्ट्रीय सहयोग आम बात है, तो फिर भारत ने इतना बड़ा फैसला क्यों लिया? क्या सरकार किसी सच्चाई को छिपाना चाहती है? क्या ब्लैक बॉक्स में ऐसा कुछ रिकॉर्ड हुआ है जो सामने आने पर सरकार की नींव हिला सकता है?
ब्लैक बॉक्स की कहानी में उलझन ही उलझन
सरकार दावा कर रही है कि फ्लाइट रिकॉर्डर के डेटा को डाउनलोड कर लिया गया है, लेकिन सुरक्षा विशेषज्ञ कुछ और ही इशारा कर रहे हैं। उनका आरोप है कि जांच की प्रक्रिया में पारदर्शिता की घोर कमी है। ब्लैक बॉक्स 13 जून को मिला, लेकिन डेटा को डिकोड करने की प्रक्रिया को लेकर सरकार ने चुप्पी साध ली। 16 जून को दूसरा रिकॉर्डर मिलने के बाद भी नागरिक उड्डयन मंत्रालय की तरफ से कोई तकनीकी ब्योरा नहीं दिया गया। यहां तक कि प्रेस कॉन्फ्रेंस भी बगैर किसी सवाल-जवाब के निपटा दी गई। क्या यह उस लोकतंत्र में हो रहा है जो पारदर्शिता की दुहाई देता है?
'Annex 13' भी बन गया सवाल
ICAO का एक स्पष्ट नियम है—Annex 13—जिसमें कहा गया है कि ब्लैक बॉक्स को बिना देरी के पढ़ा जाना चाहिए और जांच में अगर जरूरत हो तो विशेषज्ञों को शामिल किया जाए। लेकिन भारत ने न केवल यूएन की मदद को नकार दिया, बल्कि यह भी स्पष्ट नहीं किया कि रिकॉर्डर की जांच भारत में होगी या अमेरिका में, जहां NTSB भी सहयोग दे रहा है। ऐसे में सवाल उठता है—क्या सरकार किसी "असहज सच्चाई" से भाग रही है?
साजिश की बू या सिस्टम की चूक?
274 निर्दोष लोगों की मौत... क्या यह सिर्फ तकनीकी खराबी थी या कुछ बड़ा छिपा हुआ है? एयरक्राफ्ट के इंजनों में गड़बड़ी, एयर ट्रैफिक कंट्रोल की लापरवाही या पायलट की थकान? इन सभी संभावनाओं पर अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। जो बात और खटकने वाली है, वो ये कि ICAO जैसी संस्था, जिसने MH-17 (2014) और यूक्रेनी जेटलाइनर (2020) जैसे बड़े हादसों की जांच में निर्णायक भूमिका निभाई, उसकी मदद को भारत ने क्यों ठुकराया? क्या मोदी सरकार इस हादसे की जांच को 'घरेलू मामला' बता कर अंतरराष्ट्रीय निगाहों से बचाना चाहती है? या फिर कहीं यह जांच सिर्फ दिखावे की कवायद बनकर न रह जाए?
'ड्रीमलाइनर' बन गया 'डेडलाइनर'?
एयर इंडिया की ड्रीमलाइनर फ्लाइट अब देश के लिए एक दुःस्वप्न बन चुकी है। यह हादसा पिछले एक दशक की सबसे घातक विमान दुर्घटना है। लेकिन जितनी बड़ी यह त्रासदी है, उससे भी बड़ा सवाल यह है—क्या इस मामले की जांच इतनी ही रहस्यमयी और एकतरफा होगी? सरकार का कहना है कि जांच एजेंसी AAIB काम कर रही है, लेकिन जब तक जांच में पारदर्शिता नहीं होगी, तब तक हर भारतीय के मन में यही गूंजता रहेगा, "आख़िर ड्रीमलाइनर के मलबे में कौन-सी सच्चाई दबी है, जिसे यूएन से भी छुपाया जा रहा है?"पूरा देश आज एक ही सवाल पूछ रहा है—क्या सरकार कुछ छिपा रही है? या फिर जांच की आड़ में कोई बड़ी राजनीतिक चाल चल रही है?
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