Shubhanshu Shukla Axiom Mission: एस्ट्रोनॉट कैसे बनते हैं? शुभांशु शुक्ला की ऐतिहासिक उड़ान से जानिए पूरी प्रक्रिया

Shubhanshu Shukla Axiom Mission: भारतीय वायुसेना के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला ने अमेरिका के फ्लोरिडा स्थित कैनेडी स्पेस सेंटर से स्पेसएक्स के फाल्कन 9 रॉकेट में सवार होकर अंतरिक्ष के लिए उड़ान भरी।

Ragini Sinha
Published on: 26 Jun 2025 3:22 PM IST
Shubhanshu Shukla Axiom Mission
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Shubhanshu Shukla Axiom Mission (Social media)

Shubhanshu Shukla Axiom Mission: भारत के लिए 25 जून 2025 एक ऐतिहासिक दिन बन गया जब भारतीय वायुसेना के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला ने अमेरिका के फ्लोरिडा स्थित कैनेडी स्पेस सेंटर से स्पेसएक्स के फाल्कन 9 रॉकेट में सवार होकर अंतरिक्ष के लिए उड़ान भरी। यह मिशन Axiom Space द्वारा संचालित किया गया है और इसे NASA और SpaceX का सहयोग प्राप्त है।

इस क्रू में शुभांशु शुक्ला के साथ चार अन्य अंतरिक्ष यात्री भी मौजूद हैं। लगभग चार दशक बाद, शुभांशु शुक्ला भारत के ऐसे दूसरे व्यक्ति बन गए हैं जिन्होंने अंतरिक्ष में कदम रखा है। उनसे पहले विंग कमांडर राकेश शर्मा ने 1984 में इतिहास रचा था।


कौन होता है एस्ट्रोनॉट?

एस्ट्रोनॉट वह व्यक्ति होता है, जिसे स्पेशनल ट्रेनिंग देकर अंतरिक्ष मिशन के लिए तैयार किया जाता है। ये वैज्ञानिक, इंजीनियर या फाइटर पायलट हो सकते हैं, जिन्हें अंतरिक्ष यान में सवार होकर पृथ्वी की कक्षा या उससे आगे भेजा जाता है। एस्ट्रोनॉट शब्द ग्रीक भाषा से आया है, जिसका मतलब है 'तारों का नाविक'। यह उपाधि उन लोगों को दी जाती है जो किसी देश की अंतरिक्ष एजेंसी द्वारा प्रशिक्षण प्राप्त कर अंतरिक्ष में जाते हैं।

ये लोग अत्यधिक चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में काम करने के लिए शारीरिक और मानसिक रूप से पूरी तरह फिट होते हैं। अंतरिक्ष में रहते हुए वह रिसर्च, टेक्निकल निरीक्षण और वैज्ञानिक प्रयोगों जैसे कार्यों को अंजाम देते हैं, जिससे अंतरिक्ष विज्ञान को नई दिशा मिलती है। NASA, ESA, JAXA , और ISRO जैसी संस्थाएं एस्ट्रोनॉट्स को ट्रेनिंग देती हैं और मिशन पर भेजती हैं।


एस्ट्रोनॉट कैसे बनें?

एस्ट्रोनॉट बनने के लिए साइंस बैकग्राउंड जरूरी होता है। उम्मीदवार के पास एयरोस्पेस इंजीनियरिंग, फिजिक्स, मैथ्स, बायोलॉजी या कंप्यूटर साइंस जैसे विषयों में कम से कम बैचलर डिग्री होनी चाहिए। मास्टर्स या पीएचडी होल्डर को प्राथमिकता मिलती है। इसके अलावा 2-3 साल का प्रोफेशनल एक्सपीरियंस भी जरूरी है। पायलट्स के लिए फ्लाइंग एक्सपीरियंस जरूरी होता है। शारीरिक रूप से फिट, मानसिक रूप से मजबूत और 18 से 35 वर्ष के बीच की उम्र वाले उम्मीदवार योग्य माने जाते हैं। सही स्किल्स और तैयारी के बाद ISRO, NASA जैसी स्पेस एजेंसियों के नोटिफिकेशन देखकर आवेदन किया जा सकता है।


ट्रेनिंग और चयन प्रक्रिया पास करें

एस्ट्रोनॉट की सैलरी उनके अनुभव, एजेंसी, पद और मिशन की जटिलता पर निर्भर करती है। अमेरिका में NASA के एस्ट्रोनॉट्स को सालाना लगभग 66,000 से 144,000 डॉलर तक सैलरी मिलती है। वहीं, भारत में ISRO के एस्ट्रोनॉट्स की सैलरी सरकारी वेतनमान के अनुसार तय होती है, जो करीब 80,000 से 2 लाख प्रति माह तक हो सकती है।

इसके अलावा उन्हें विशेष भत्ते, ट्रेनिंग इंसेंटिव और मिशन के दौरान अतिरिक्त लाभ भी दिए जाते हैं। सैलरी के साथ-साथ अंतरिक्ष यात्रा का गौरव और देश की सेवा का अवसर इसे एक अत्यंत प्रतिष्ठित और प्रेरणादायक करियर बनाता है।

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