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GST का महाविस्फोट! 1 साल में 22 लाख करोड़ की वसूली, देश की अर्थव्यवस्था ने पकड़ी रफ्तार, रचा इतिहास

GST collection India: गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (GST) के नाम से शुरू हुआ ये प्रयोग अब एक आर्थिक तूफान बन चुका है, जिसने पूरे देश की व्यापारिक और औद्योगिक व्यवस्था की धड़कनों को बदल कर रख दिया है।

Harsh Srivastava
Published on: 1 July 2025 7:44 PM IST
GST का महाविस्फोट! 1 साल में 22 लाख करोड़ की वसूली, देश की अर्थव्यवस्था ने पकड़ी रफ्तार, रचा इतिहास
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GST collection India: 8 साल पहले, जब आधी रात संसद में घंटी बजी थी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को "One Nation, One Tax" की सौगात दी थी, तब शायद ही किसी ने सोचा होगा कि ये टैक्स सिस्टम एक दिन 22 लाख करोड़ रुपये की दहाड़ मारकर सरकारी खजाने को गूंजा देगा। गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (GST) के नाम से शुरू हुआ ये प्रयोग अब एक आर्थिक तूफान बन चुका है, जिसने पूरे देश की व्यापारिक और औद्योगिक व्यवस्था की धड़कनों को बदल कर रख दिया है। पर क्या यह सिर्फ सरकार की जीत है या फिर जनता की जेब पर एक अदृश्य हथियार?

जीएसटी का आठवां साल: जश्न या चेतावनी?

साल 2017 में जिस टैक्स रिफॉर्म को लेकर देश दो हिस्सों में बंटा था — एक वो जो इसे अर्थव्यवस्था की संजीवनी मानते थे और दूसरे वो जो इसे व्यवसायियों पर बोझ और आम आदमी के लिए महंगाई का कारण — वही जीएसटी आज 8 साल का हो गया है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, वित्त वर्ष 2024-25 में जीएसटी कलेक्शन 22.08 लाख करोड़ रुपये रहा। यानी औसतन हर महीने सरकार ने 1.84 लाख करोड़ रुपये से ज़्यादा टैक्स वसूला। ये न सिर्फ अब तक का सबसे बड़ा कलेक्शन है, बल्कि 2020 के मुकाबले लगभग दोगुना भी है। पर सवाल उठता है — इस टैक्स बूस्ट का फायदा आखिर किसे मिला? सरकार को या जनता को?

अप्रैल-मई में कलेक्शन की सुनामी

साल की शुरुआत से ही GST वसूली में एक सुनामी आ गई। अप्रैल 2025 में GST कलेक्शन 2.37 लाख करोड़ रुपये रहा, जबकि मई में ये 2.01 लाख करोड़ पहुंच गया। ये आंकड़े साफ तौर पर दिखाते हैं कि डिजिटल टैक्स ट्रैकिंग और सख्ती ने कारोबारियों की कमर कस दी है। परंपरागत करों को हटाकर, GST को 'सिंपल टैक्स' कहने वाले नीति-निर्माता अब इसे "राजस्व का ब्लैकहोल" कह सकते हैं — क्योंकि एक बार जो पैसा इसमें गया, उसका जनता तक पहुंच पाना बेहद मुश्किल है।

टैक्सपेयर्स की बाढ़ — पर क्या जनता खुश है?

जब 2017 में GST आया था, तब सिर्फ 60 लाख एक्टिव टैक्सपेयर्स थे। अब यह संख्या 1.51 करोड़ के पार पहुंच चुकी है। यानी हर सेक्टर, हर गली, हर छोटी दुकान, हर वेंडर सरकार की टैक्स रडार में है। हालांकि एक हालिया सर्वे के अनुसार, 85% उद्योगों ने GST को समर्थन दिया है — पर इसके पीछे कारण क्या है? क्या यह समर्थन स्वेच्छा से है या सिस्टम की मजबूरी से? क्योंकि GST रिटर्न फाइल न करने पर भारी जुर्माना, ई-वे बिल की अनिवार्यता, इनपुट टैक्स क्रेडिट ब्लॉक, ये सब व्यापारियों को इस सिस्टम में घसीट रहे हैं — बिना किसी मोलभाव के।

किस स्लैब में कितना खिंचाव?

भारत में GST को चार स्लैब्स में बांटा गया है — 5%, 12%, 18% और 28%। लेकिन हकीकत में इतने स्लैब्स में चीज़ें बंटी हैं कि आम आदमी का दिमाग ही स्लैब बन गया है। 5% में आटा और चावल तो हैं, पर उसी के साथ 28% टैक्स में मोटरसाइकिल, एसी और यहां तक कि मिठाइयों पर भी बमबारी है। सोने पर 3%, हीरों पर 0.25%, पेट्रोल और डीज़ल अब भी GST के बाहर हैं — यानी "एक देश, एक टैक्स" आज भी अधूरा सपना है।

क्या जीएसटी ने महंगाई को बढ़ाया?

जब भी GST कलेक्शन बढ़ता है, सरकार उसे आर्थिक मजबूती का संकेत बताती है। लेकिन क्या इसका सीधा अर्थ ये नहीं कि जनता ने महंगे दाम चुकाए हैं?पेट्रोल-डीजल आज भी GST के दायरे में नहीं हैं, पर फूड डिलीवरी, मोबाइल, इंटरनेट, होटलों में ठहरना — सब पर GST की लूट मची है। टैक्स इतना जटिल हो गया है कि आज भी कई छोटे व्यापारी सिर्फ कंप्लायंस से बचने के लिए बिजनेस ही बंद कर चुके हैं।

क्या सच में ये 'एक राष्ट्र, एक टैक्स' है?

GST को लाकर केंद्र सरकार ने एक बड़ा राजस्व नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया है। राज्य सरकारें जो कभी अपने हिसाब से टैक्स लगाती थीं, अब GST काउंसिल की मोहताज हो गई हैं। और यही वजह है कि कई राज्यों ने केंद्र पर जीएसटी रेवेन्यू शेयरिंग में देरी का आरोप भी लगाया है। 2024 में कई राज्यों ने इस मुद्दे को चुनावी मंच तक ले गए थे। यानी 'एक राष्ट्र, एक टैक्स' का नारा आज राजनीतिक हथियार बन चुका है।

फ्यूचर क्या है GST का?

सरकार अब GST को और ज्यादा डिजिटाइज करने की योजना बना रही है। AI से टैक्स चोरी पकड़ना, ई-इनवॉइस को छोटे व्यापारियों पर लागू करना और नई दरों की समीक्षा जैसे कई बड़े बदलाव प्रस्तावित हैं। पर इस सब के बीच सबसे बड़ा सवाल यही है — क्या GST आम आदमी के लिए सरल होगा या और ज्यादा जटिल?

टैक्स संग्रह का अंधा यश या छुपी हुई पीड़ा?

22 लाख करोड़ रुपये का कलेक्शन निश्चित तौर पर सरकार की राजकोषीय विजय है। पर ये भी तय है कि ये विजय उपभोक्ताओं, व्यापारियों और छोटे कारोबारियों की जेब से निकली है। GST ने टैक्स सिस्टम को आधुनिक और संगठित तो किया है, लेकिन इसे जनतंत्रात्मक और सरल बनाना अभी भी अधूरा सपना है। और जब तक हर टैक्सपेयिंग भारतीय को ये भरोसा नहीं होगा कि उसके पैसे का सही उपयोग हो रहा है — तब तक GST सिर्फ एक टैक्स नहीं, एक सवाल बना रहेगा।

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Harsh Srivastava

News Coordinator and News Writer

Harsh Shrivastava is an enthusiastic journalist who has been actively writing content for the past one year. He has a special interest in crime, politics and entertainment news. With his deep understanding and research approach, he strives to uncover ground realities and deliver accurate information to readers. His articles reflect objectivity and factual analysis, which make him a credible journalist.

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