Bihar Election 2025:BJP पर भारी पड़ रही RJD? क्या बदल रहा है बिहार का मूड? जानें इस बार किसका पलड़ा भारी

Bihar Election 2025: बिहार की राजनीति एक ऐसे रंगमंच की तरह है, जहां किरदार वही रहते हैं, मगर उनके संवाद और समीकरण हर चुनाव में नए हो जाते हैं। यह राज्य जातीय समीकरणों, जनांदोलनों और गठबंधनों की राजनीति का गढ़ रहा है।

Harsh Srivastava
Published on: 16 May 2025 3:54 PM IST
Bihar Election 2025
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Bihar Election 2025: बिहार की राजनीति एक ऐसे रंगमंच की तरह है, जहां किरदार वही रहते हैं, मगर उनके संवाद और समीकरण हर चुनाव में नए हो जाते हैं। यह राज्य जातीय समीकरणों, जनांदोलनों और गठबंधनों की राजनीति का गढ़ रहा है। यहां सत्ता तक पहुंचने के रास्ते जातियों की गलियों से होकर गुजरते हैं, और नेताओं के भाषणों में विकास से ज़्यादा वादों की गूंज होती है। लेकिन इस बार कुछ बदला-बदला सा है। जनता की आंखों में उम्मीदें हैं, ज़ुबानों पर सवाल हैं, और दिलों में संदेह भी। 2025 का विधानसभा चुनाव सिर्फ सत्ता की लड़ाई नहीं, बल्कि यह एक जनमत की परीक्षा है क्या बिहार पुराने ढर्रे पर चलेगा या कोई नई दिशा चुनेगा? इस बदलते परिदृश्य के केंद्र में है एक सवाल क्या वाकई आरजेडी इस बार भाजपा पर भारी पड़ रही है?

RJD की रणनीति: बदलाव की राजनीति या सत्ता की भूख?

राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) को कभी यादव-मुस्लिम समीकरण की पार्टी माना जाता था। लेकिन तेजस्वी यादव ने इस छवि को बदलने की ठानी है। अब पार्टी सिर्फ जातीय गोलबंदी नहीं, बल्कि युवाओं, बेरोजगारों, महिलाओं और किसानों की आकांक्षाओं को भी स्वर दे रही है। तेजस्वी की “10 लाख रोजगार” योजना से लेकर सरकारी भर्तियों में पारदर्शिता की मांग तक हर बयान अब सिर्फ जुमलों की राजनीति नहीं, बल्कि जमीनी सच्चाइयों से जुड़ा नजर आता है। यही कारण है कि गांव-देहात में भी अब तेजस्वी यादव का नाम केवल लालू के बेटे के तौर पर नहीं, बल्कि एक संभावित मुख्यमंत्री के रूप में लिया जा रहा है।

भाजपा की चुनौतियां: ‘मोदी मैजिक’ और संगठन के बीच फंसी रणनीति

भारतीय जनता पार्टी की सबसे बड़ी ताकत उसका कैडर, प्रधानमंत्री मोदी का चेहरा, और चुनावी मशीनरी है। लेकिन बिहार में ये मैजिक अब उतना असरदार नहीं दिख रहा। 2015 में महागठबंधन की जीत, 2020 में जेडीयू की गिरती लोकप्रियता, और अब नीतीश कुमार की बार-बार पाला बदलने की आदत ने भाजपा की स्थिरता और विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। इसके अलावा, भाजपा की रणनीति में स्थानीय नेतृत्व की भारी कमी है। राज्य में नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता भले ही बरकरार हो, लेकिन कोई स्थानीय चेहरा जो जनता के दर्द को साझा कर सके, वह दिखाई नहीं देता।

जमीनी हकीकत: गांवों का मूड और युवाओं की बेचैनी

बिहार के गांवों में इस बार की चर्चा कुछ अलग है। जहां पहले जाति ही मुख्य आधार होती थी, अब बेरोजगारी, शिक्षा, स्वास्थ्य और पलायन जैसे मुद्दे भी चर्चा का हिस्सा बन चुके हैं। बेरोजगार युवाओं में तेजस्वी यादव की अपील बढ़ी है। एक तरफ वे भाजपा की ‘अग्निपथ योजना’ से नाराज़ हैं, तो दूसरी ओर उन्हें तेजस्वी की ‘रोजगार केंद्रित राजनीति’ में एक आशा की किरण दिखती है। महिलाएं, जो अब तक चुपचाप वोट डालती थीं, शिक्षा, सुरक्षा और महंगाई के मुद्दों पर अब खुलकर चर्चा कर रही हैं। आरजेडी इन वोटरों तक पहुंचने की पुरजोर कोशिश कर रही है।

महागठबंधन को मिल रहा है नया जीवन?

कांग्रेस, वाम दल और छोटे क्षेत्रीय दलों के साथ मिलकर आरजेडी एक बार फिर महागठबंधन को मज़बूती से गढ़ने की कोशिश कर रही है। 2024 के लोकसभा चुनावों में जिस तरह से गठबंधन ने कुछ क्षेत्रों में मजबूत प्रदर्शन किया, उसने विपक्षी दलों को नई ऊर्जा दी है। आरजेडी अब सिर्फ “यादव-मुस्लिम” पार्टी नहीं रहना चाहती। वह दलित, अति पिछड़ा और महिला मतदाताओं को साथ जोड़ने में लगी है। अगर ये वर्ग साथ आए, तो भाजपा के लिए यह बहुत बड़ी चुनौती साबित हो सकती है।

भाजपा की अंदरूनी समस्याएं

भाजपा के भीतर भी सब कुछ ठीक नहीं चल रहा। कई पुराने नेता दरकिनार किए जा चुके हैं, और जमीनी कार्यकर्ता निराश हैं। जेडीयू और भाजपा के गठबंधन के बावजूद तालमेल की कमी साफ दिखती है। इसके अलावा, कई इलाकों में आरएसएस और भाजपा के बीच की दूरी भी साफ झलक रही है। अगर संगठन का साथ कमजोर पड़ता है, तो भाजपा की चुनावी रणनीति को गहरा झटका लग सकता है।

जनता का मूड: बदलाव की हवा या सिर्फ चुनावी शोर?

बिहार की जनता ने हमेशा बदलाव का साथ दिया है। चाहे वह 1990 में लालू यादव का उभार हो, 2005 में नीतीश कुमार की क्रांति हो या 2015 का महागठबंधन बिहार ने हमेशा उम्मीदों के साथ वोट दिया है। इस बार भी हवा में बदलाव की सुगबुगाहट है। लोग पुराने नारों से ऊब चुके हैं, और नई राजनीति की तलाश में हैं। अगर आरजेडी इस भावना को ठीक से भुना पाई, तो भाजपा को बड़ा नुकसान हो सकता है।

2025 की जंग सिर्फ चुनाव नहीं, बिहार की दिशा का फैसला

बिहार का विधानसभा चुनाव 2025 सिर्फ सरकार बदलने की कवायद नहीं, बल्कि यह राजनीति की भाषा, मुद्दों और प्राथमिकताओं को बदलने की लड़ाई है। भाजपा, जो अब तक “डबल इंजन सरकार” और “मोदी नाम” के सहारे सत्ता पर काबिज थी, उसे इस बार आरजेडी की बदली रणनीति और जनता की नई अपेक्षाओं से चुनौती मिल रही है। तेजस्वी यादव के नेतृत्व में आरजेडी ने अपने इमेज को बदला है, नए मतदाताओं को जोड़ा है और खुद को सत्ता का सबसे बड़ा दावेदार बनाया है। अब देखना ये है कि बिहार की जनता जाति और चेहरों के जाल में फंसी रहती है या मुद्दों और विकास के आधार पर अपना अगला नेता चुनती है*।

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News Cordinator and News Writer

Harsh Shrivastava is an enthusiastic journalist who has been actively writing content for the past one year. He has a special interest in crime, politics and entertainment news. With his deep understanding and research approach, he strives to uncover ground realities and deliver accurate information to readers. His articles reflect objectivity and factual analysis, which make him a credible journalist.

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