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Indian Army Myanmar secret operation: सीमा पार ‘सीक्रेट वार’! भारत ने म्यांमार में मचाई तबाही या ULFA फैला रहा है झूठ?
Indian Army Myanmar secret operation: ULFA (I) यानी यूनाइटेड लिब्रेशन फ्रंट ऑफ असम (इंडिपेंडेंट) ने एक सनसनीखेज बयान जारी करते हुए दावा किया है कि भारत-म्यांमार सीमा पर भारतीय सेना ने उनके मोबाइल शिविरों को तड़के ड्रोन से निशाना बनाया।
Indian Army Myanmar secret operation: पूर्वोत्तर की सीमा पर इस वक्त एक ऐसा धुआँ उठ रहा है जिसकी न आग दिख रही है, न जिम्मेदारी का चेहरा। म्यांमार के सागिंग क्षेत्र में एक रहस्यमयी ड्रोन हमला, एक वरिष्ठ आतंकवादी की मौत, 19 घायल, लेकिन भारतीय सेना की तरफ से पूरी ‘अनभिज्ञता’? उल्फा (I) के इस चौंकाने वाले दावे ने न सिर्फ सुरक्षा एजेंसियों को चौंकाया है, बल्कि भारत-म्यांमार सीमा पर चल रही साज़िशों की परतें भी खोल दी हैं।
उड़ते ड्रोन और जलते कैंप, क्या म्यांमार में हुआ 'गुप्त युद्ध'?
ULFA (I) यानी यूनाइटेड लिब्रेशन फ्रंट ऑफ असम (इंडिपेंडेंट) ने एक सनसनीखेज बयान जारी करते हुए दावा किया है कि भारत-म्यांमार सीमा पर भारतीय सेना ने उनके मोबाइल शिविरों को तड़के ड्रोन से निशाना बनाया। इस हमले में संगठन के मुताबिक एक वरिष्ठ नेता की मौत हो गई है और करीब 19 कैडर घायल हुए हैं। हालांकि सेना की तरफ से आए बयान में कहा गया है कि "ऐसे किसी ऑपरेशन की कोई जानकारी नहीं है", लेकिन क्या वास्तव में ये कोई साजिशन छुपाया गया सीमापार ऑपरेशन था या फिर ULFA(I) खुद एक 'सहानुभूति युद्ध' छेड़ने की तैयारी में है?
सर्जिकल स्ट्राइक पार्ट-2 या खुफिया साज़िश?
सवाल उठता है कि भारतीय सेना जिस हमले से अनजान है, उसकी इतनी सटीक जानकारी उल्फा (I) को कैसे है? क्या यह वही रणनीति है जिसे भारत ने 2015 में म्यांमार में एनएससीएन (K) पर चलाया था,सीक्रेट क्रॉस-बॉर्डर स्ट्राइक? सूत्रों की मानें तो इस हमले में केवल उल्फा ही नहीं, बल्कि एनएससीएन-के के ठिकानों को भी निशाना बनाया गया। दोनों ही संगठन लंबे समय से म्यांमार सीमा पर एक्टिव हैं और भारत विरोधी गतिविधियों में लिप्त रहे हैं। यह संभव है कि भारत सरकार और सेना ने "पॉलिटिकल साइलेंस" बनाए रखते हुए एक नॉन-ओफिशियल क्लीन-अप ऑपरेशन किया हो,जिसका मकसद था आतंक के इन साए को चुपचाप खत्म करना।
उल्फा(I): एक पुराना ज़हर, जो फिर से सिर उठा रहा है?
1979 में अस्तित्व में आया ULFA(I) पूर्वोत्तर भारत की सबसे खूंखार उग्रवादी ताकतों में से एक रहा है। इसका घोषित एजेंडा है: "असम को भारत से अलग कर स्वतंत्र राष्ट्र बनाना।" इसके संस्थापक परेश बरुआ, आज भी अंडरग्राउंड हैं और माना जाता है कि वे म्यांमार की सीमा के भीतर चीनी मदद से एक नए नेटवर्क को फिर से खड़ा करने में जुटे थे। ULFA का अतीत खून, फिरौती, बम धमाकों और अपहरण की दास्तानों से भरा है। 2008 में जब इसके नेता अरबिंद राजखोवा को बांग्लादेश से गिरफ्तार कर भारत लाया गया, तो लगा कि ULFA की कमर टूट गई है। लेकिन अब यह हालिया ड्रोन हमला, और संगठन की सक्रियता के संकेत, एक बार फिर खतरे की घंटी बजा रहे हैं।
चाय बागान छोड़ने पर मजबूर हुए थे कारोबारी, फिर वही डर?
एक दौर था जब ULFA के खौफ से असम के चाय बागान सूने हो गए थे, व्यापारी भागने लगे थे। क्या वही दौर फिर लौट रहा है? या सरकार अब पहले से ज़्यादा आक्रामक है? तेजी से बदलते घटनाक्रम में भारत सरकार और सेना की चुप्पी ज्यादा खतरनाक है। यह संकेत है कि कुछ बड़ा चल रहा है, या चल चुका है... बस, उसकी आधिकारिक पुष्टि का इंतजार है।
म्यांमार की धरती, आतंकियों का नया ‘सेफ हाउस’?
ULFA (I) और NSCN(K) जैसे संगठन म्यांमार की जंगली सीमा पर अपने अड्डे बना चुके हैं। वहां से ये भारत के खिलाफ योजनाएं बनाते हैं और फिर ग़ायब हो जाते हैं। क्या भारत अब इस ‘नो मैन्स लैंड’ में अपनी सैन्य ताकत आज़मा रहा है? अगर हाँ, तो यह भारत की नई विदेश-रक्षा नीति की झलक है,जिसमें "सीमाओं के पार जाकर खतरे को वहीं खत्म करना" अब विकल्प नहीं, रणनीति बन चुका है।
सरकार की चुप्पी, सेना की अनभिज्ञता और साज़िश की सुगबुगाहट
लेफ्टिनेंट कर्नल महेंद्र रावत ने ULFA(I) के दावे को यह कहकर नकारा कि “भारतीय सेना को इस तरह के किसी ऑपरेशन की जानकारी नहीं है।” लेकिन क्या यह वही "डिनायल डिप्लोमेसी" है जो भारत 2016 की उरी सर्जिकल स्ट्राइक से लेकर बालाकोट तक अपनाता रहा है? कई बार सच्चाई तब तक नहीं सामने आती, जब तक उसका राजनीतिक लाभ उठाने का वक़्त नहीं आता। सवाल है,क्या म्यांमार बॉर्डर पर वाकई कोई ऑपरेशन हुआ? अगर हाँ, तो क्यों छुपाया जा रहा है? और अगर नहीं हुआ, तो ULFA(I) इतने बड़े दावे क्यों कर रहा है?
भारत की चुप्पी ज्यादा गूंजती है…
ULFA(I) का यह दावा और सेना की खामोशी, मिलकर एक बहुत बड़ा संकेत दे रहे हैं,कुछ पक रहा है, कुछ छुपाया जा रहा है और शायद कुछ होने वाला है। क्या यह भविष्य की ‘नॉर्थ-ईस्ट स्ट्राइक पॉलिसी’ का ट्रेलर है? क्या भारत अब आतंक के ठिकानों को चुपचाप खत्म कर दुनिया को चौंकाना चाहता है? सवाल बहुत हैं, जवाब नहीं। लेकिन एक बात तय है,म्यांमार की जंगलों से उठता धुआँ अब सिर्फ ULFA का नहीं, बल्कि आने वाले समय में एक बड़ी सियासी और रणनीतिक आग बन सकता है।
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