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India-Pakistan War: हमें अपने घर में खुश रहने दो! छेड़ोगे तो छोड़ेंगें नहीं
India-Pakistan War: भारत देश वसुधैव कुटुम्बकम् को मानता है लेकिन पाकिस्तान को उसी की भाषा में जवाब देना भी अब उसे आता है। ऐसे में देश ने बता दिया कि छेड़ोगे तो छोड़ेंगें नहीं।
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India-Pakistan War: कई वर्षों तक शांति का दौर रहने से लगने लगा था कि अब दुर्भावनाओं और आशंकाओं का समय गुजर चुका है और उम्मीदों के रास्ते पर हमारा सफर अब यूँ ही चलता रहेगा। लेकिन पहलगाम की घटना ने न सिर्फ हमें झकझोर के जगा दिया बल्कि आक्रोश और आशंका में धकेल भी दिया। इस आक्रोश को हमने न सिर्फ बखूबी प्रकट किया बल्कि हमें झकझोरने वालों को हमने गहरा जवाब भी दिया और सभी आशंकाओं को गलत साबित भी कर दिया।
पहलगाम की परिणीति पूर्ण युद्ध की कगार तक पहुंचने तक हुई। हम चाहते तो एक पूर्ण, विध्वंसकारी, विनाशकारी और निर्णायक युद्ध करके दुश्मन को सदा के लिए एक स्थायी समाधान दे सकते थे । लेकिन ऐसा नहीं किया, जिस पर सवाल भी उठाए जा रहे हैं। इन सवालों का जवाब हमारे अपने इतिहास में मौजूद है। हमारी सरजमीं पर एक से एक पराक्रमी चक्रवर्ती सम्राट रहे, राजवंश रहे। लेकिन किसी ने भी कभी किसी अन्य देश पर न चढ़ाई की और न साम्रज्य विस्तार किया। भारत की सीमाएं वही रहीं जो अनादि काल से रही थीं। मौर्य साम्रज्य हो या गुप्त साम्रज्य, सम्राट अशोक रहे हों या विजयनगर साम्रज्य, सब भारत के भीतर ही रहे। भले ही इनका प्रभाव दूर दूर तक फैला हो। यहां तक कि लंका विजय के बाद भी लंका अलग ही रही।
अखंड भारत की हमारी सीमाएं बढ़ने की बजाए घटी ही हैं, वह भी गलत तथा कृत्रिम बंटवारों के चलते। हमने उन सीमांकनों का भी सम्मान किया। आधुनिक काल में ही भारत ने कई हमले झेले हैं, युद्ध लड़े हैं। सभी में अपनी श्रेष्ठता साबित कर दिखाई है। हम तो ऐसे गृहस्वामी हैं, जिसने बस अपने घर की रक्षा में हाथ और हथियार उठाये हैं। हमने कभी दूसरे के घर की तरफ न नजर उठाई न उसमें घुसने की कोशिश की। ऐसा नहीं कि हमें मौके न मिले हों। मौके तो हर आक्रमण में मिले। हमारी सेनाएं तो लाहौर से लेकर ढाका तक पहुंच चुकी हैं। लेकिन हमने अपनी सीमा से आगे एक इंच जमीन पर कब्जा नहीं किया बल्कि जो जीता था उसे भी छोड़ दिया, माफ कर दिया। ये हमारी महानता रही है। सन 71 की लड़ाई में हम चाहते तो कितने ही दूर तक विस्तार कर लेते। चाहते तो 93 हजार युद्धबंदियों के बदले क्या कुछ सौदेबाजी न कर लेते। चाहते तो पूर्वोत्तर के जिस ‘चिकेन नेक’ पर अब बांग्लादेश धमकी देता है उस चिकेन नेक क्या, पूरे चिकेन को ही दड़बे में बन्द कर देते।
हमने ऐसा कुछ नहीं किया। ये हमारी कमजोरी नहीं, बल्कि हमारी सदाशयता, हमारी महानता रही है। हम अपने दायरे,अपने घर की चारदीवारी में खुश हैं। लेकिन यही खुशी बार बार खंडित की जाती है। हमारे धैर्य की परीक्षा ली जाती है। हमें जवाब देने को मजबूर किया जाता है। ऐसा कुछ हो गया है कि हमारे घर में खलल डालने वाले अपनी सारी ऊर्जा इन्हीं सबमें लगाए रहते हैं।
हमने वर्तमान संकट का बखूबी जवाब तो दे दिया है । लेकिन इसे स्थायी शांति नहीं मान लेना चाहिए। जिनकी पूरी राजनीति, पूरा ध्यान सिर्फ परेशान करने, हमें गिराने, हमारी प्रगति को बाधित करने और विकास को रोकने में लगा हुआ है, वे हमेशा ऐसा ही करते रहेंगे। उनसे बदलाव की उम्मीद बेमानी है। पाकिस्तान कहने को लोकतांत्रिक देश है । लेकिन जगजाहिर है कि इस कृत्रिम लोकतांत्रिक मुल्क को वहां की सेना के घोर कट्टरपंथी जनरल चलाते हैं। ये मुल्क की सेना नहीं बल्कि धर्मांध सेना का मुल्क है। जब तक ऐसा रहेगा, किसी बदलाव की उम्मीद नहीं होनी चाहिये।
अपने पड़ोसी हम बदल नहीं सकते। वो वैसे ही रहेंगे। बदलना हमें अपने को होगा। ये बदलाव हमें अपनी ताकत में लाना होगा। आज सुपर पावर देशों की चौधराहट सिर्फ उनकी जेबों की ताकत के चलते है। यही ताकत हमें हासिल करनी होगी तभी हम चौधरी बन सकेंगे, अपना अलग गुट बना सकेंगे। हमने मौजूदा संकट के दौर में अपने दोस्त भी परख लिए और दुश्मन भी। यह तय है कि वर्तमान जगत में दोस्त कम हैं और मौके का फायदा उठाने वाले ज्यादा हैं। लड़ाइयां चाहे जैसी हों, दूसरों के भरोसे न लड़ी जाती हैं, न जीती जाती हैं। दुनिया की तमाम लड़ाइयां इसकी उदाहरण हैं। सबको अपनी लड़ाई खुद लड़नी होती है,अपने दम पर। हम हर तरह से मजबूत होंगे, एक होंगे तभी लड़ भी पाएंगे, यह ध्यान रखना बेहद जरूरी है। यह तैयार रहने का सबक है, जिसे सबको सीखना होगा।
सीखना यह भी होगा कि युद्ध जश्न की चीज नहीं होती। हमने बहुत युद्ध देखे हैं। हम युद्ध की विभीषका जानते - समझते हैं । तभी हम युद्ध का जश्न नहीं मनाते। लेकिन हमने देखा कि किस तरह पिटने के बावजूद गुमराह देश की गुमराह जमात ने जश्न मनाया। इसे क्या कहेंगे? पागलपन, मूर्खता या धर्मांधता? आंखों पर यह कैसी पट्टी बांध रखी है? युद्ध, हिंसा, मौतें भला क्या जश्न की चीज होती है? जरा उन देशों पर नजर डालें जो बेशुमार निर्दोष जानें गंवा चुके हैं।
हम अपने घर की हिफाज़त करते आये हैं और करते रहेंगे। हमें दूसरों के घर फूंकने का न शौक है न जरूरत। हमको जो संदेश देना था, वह दे दिया है, दुश्मन को, उसके पैरोकारों को और दुनिया के चौधरियों को भी। उम्मीद ही नहीं, दुआ भी करनी चाहिए कि हमारे संदेश उनके समझ में आ जाएंगे।
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