India – Pakistan War History: जानें भारत-पाक युद्धों के दौरान मीडिया सेंसरशिप और सूचना नियंत्रण का संपूर्ण इतिहास

India – Pakistan War History: भारत-पाक युद्धों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि सूचना केवल खबर नहीं होती, वह एक हथियार होती है , जो या तो राष्ट्र को जोड़ सकती है या तोड़ सकती है।

Shivani Jawanjal
Published on: 11 May 2025 8:24 AM IST
India – Pakistan War History
X

India – Pakistan War History (Image Credit-Social Media)

India – Pakistan War Update: भारत-पाक युद्धों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि सूचना केवल खबर नहीं होती, वह एक हथियार होती है — जो या तो राष्ट्र को जोड़ सकती है या तोड़ सकती है।भारत और पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध केवल सैन्य मोर्चों पर ही नहीं लड़े गए, बल्कि यह सूचना के नियंत्रण और मनोवैज्ञानिक प्रभाव के जटिल युद्ध भी रहे हैं। सीमाओं पर गोलियों की गूंज के साथ-साथ दिमाग़ी जंग भी चलती है, जिसमें सैनिकों के मनोबल को बनाए रखना, आम जनता की राय को दिशा देना, और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के समक्ष अपनी स्थिति मज़बूत करना शामिल होता है। ऐसे समय में मीडिया युद्ध का एक और अनदेखा मोर्चा बन जाता है, जहाँ हर खबर, हर चित्र, और हर शब्द रणनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल होता है। इसलिए, युद्धकाल में सरकारें अक्सर मीडिया की स्वतंत्रता को सीमित कर देती हैं, ताकि सूचनाओं का प्रवाह नियंत्रित रहे और राष्ट्रहित सुरक्षित रखा जा सके। यही नियंत्रण जब एक संगठित नीति का रूप ले लेता है, तो उसे मीडिया सेंसरशिप या सूचना नियंत्रण कहा जाता है।

मीडिया सेंसरशिप का अर्थ और उद्देश्य

मीडिया सेंसरशिप का अर्थ है - समाचारों, रिपोर्टों, फोटो, वीडियो या किसी भी प्रकार की जानकारी को प्रकाशित या प्रसारित करने से पहले सरकार द्वारा उसकी जांच और नियंत्रण करना। इसका मुख्य उद्देश्य होता है:

  • सैन्य गुप्त जानकारियों को लीक होने से रोकना
  • शत्रु देश को रणनीतिक लाभ न देना
  • जनता में डर या भ्रम फैलने से रोकना
  • राष्ट्रीय एकता और मनोबल बनाए रखना
  • भारत-पाक युद्ध 1947-48 के दौरान

सूचना नियंत्रण


1947-48 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुआ प्रथम कश्मीर युद्ध आज़ादी के बाद का पहला युद्ध था, जो कश्मीर के मुद्दे पर लड़ा गया। उस समय भारत में सूचना तकनीक और मीडिया नेटवर्क बहुत सीमित था, लेकिन केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए सूचनाओं के प्रसार पर नियंत्रण रखा। ऑल इंडिया रेडियो (AIR) उस दौर में सूचना प्रसारण का प्रमुख सरकारी माध्यम था, जिसके ज़रिए अधिकांश समाचार और सरकारी घोषणाएँ जनता तक पहुँचती थीं। युद्धकाल के दौरान सीमावर्ती क्षेत्रों से संबंधित समाचारों पर विशेष नियंत्रण रखा गया ताकि पाकिस्तान को भारतीय सेना की स्थिति या रणनीति का पता न चल सके। साथ ही, अखबारों को भी केवल सरकारी बुलेटिन या प्रेस नोट्स के आधार पर रिपोर्टिंग की अनुमति थी, जिससे असत्यापित या संवेदनशील जानकारी के लीक होने से बचा जा सके। यह सब उस समय की सामान्य और आवश्यक सैन्य तथा सरकारी रणनीति का हिस्सा था, जिसे ऐतिहासिक संदर्भ में सही और उपयुक्त माना जाता है।

1965 के युद्ध में मीडिया की भूमिका और सेंसरशिप


1965 के भारत-पाक युद्ध तक आते-आते देश में मीडिया, विशेषकर रेडियो और प्रिंट मीडिया, पहले की तुलना में अधिक विकसित हो चुका था, हालांकि टेलीविजन की पहुँच अब भी सीमित थी। इस दौर में ऑल इंडिया रेडियो (AIR) सूचना प्रसार का प्रमुख माध्यम था और यह पूरी तरह से सरकारी नियंत्रण में संचालित होता था। युद्ध के दौरान AIR का इस्तेमाल न केवल समाचार देने के लिए, बल्कि एक मनोवैज्ञानिक हथियार के रूप में भी किया गया। पाकिस्तान ने जहाँ 'रेडियो पाकिस्तान' के ज़रिए भारत के खिलाफ दुष्प्रचार शुरू किया, वहीं भारत ने भी AIR के माध्यम से उसका प्रभावी जवाब दिया। प्रेस सूचना ब्यूरो (PIB) युद्धकाल में नियमित प्रेस नोट्स जारी करता था और मीडिया को इन्हीं सरकारी बुलेटिन्स के आधार पर रिपोर्टिंग की अनुमति थी। 'Defence of India Rules' के अंतर्गत प्रेस पर कड़ा नियंत्रण रखा गया था - सेना की क्षति या रणनीति से जुड़ी जानकारी के प्रकाशन पर पूर्णतः रोक थी और सेंसरशिप सख्ती से लागू थी। इसके अलावा, युद्ध संवाददाताओं को भी सीमित क्षेत्रों तक ही जाने की अनुमति थी, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि केवल नियंत्रित और रणनीतिक रूप से उपयुक्त सूचनाएँ ही सार्वजनिक हों।

1971 का भारत-पाक युद्ध - सूचना युद्ध का चरम


1971 का युद्ध भारत और पाकिस्तान के बीच एक निर्णायक युद्ध था, जिसके बाद बांग्लादेश का जन्म हुआ। इस युद्ध में सूचना नियंत्रण और मीडिया सेंसरशिप अपने चरम पर थी, लेकिन साथ ही पहली बार सूचना युद्ध (Information Warfare) एक रणनीति के रूप में सामने आया।

  • भारत ने इस युद्ध में पाकिस्तान के झूठे प्रचारों का सफलतापूर्वक खंडन किया।
  • 'ऑल इंडिया रेडियो' ने 'सच्चाई की आवाज़' के नाम से विशेष कार्यक्रम चलाए, जिनमें पूर्वी पाकिस्तान की जनता को हकीकत से अवगत कराया गया।
  • पाकिस्तान के 'रेडियो पाकिस्तान' ने भारतीय सेना को लेकर गलत खबरें फैलाईं, लेकिन भारतीय मीडिया ने तथ्यों के साथ जवाब दिया।
  • भारत सरकार ने युद्ध के दौरान पत्रकारों की गतिविधियों पर नियंत्रण रखा और केवल वही जानकारी प्रसारित करने दी जो युद्ध नीति के अनुकूल थी।
  • युद्ध के विजुअल्स और फ़ोटो को भी सावधानी से चुना जाता था, ताकि सैनिकों के मनोबल और जनता की भावनाओं पर सकारात्मक असर पड़े।

कारगिल युद्ध 1999 - सेंसरशिप से पारदर्शिता की ओर


कारगिल युद्ध भारत का पहला ऐसा युद्ध था जिसे प्राइवेट न्यूज़ चैनलों द्वारा व्यापक रूप से ‘टेलीवाइज़्ड’ किया गया। NDTV, आज तक, ज़ी न्यूज़ जैसे चैनलों ने 24x7 लाइव रिपोर्टिंग की, जिससे यह युद्ध आम जनता तक तत्काल और व्यापक रूप से पहुँचा। तकनीकी प्रगति और मीडिया की बढ़ी हुई पहुँच ने इसे भारतीय मीडिया इतिहास में एक निर्णायक मोड़ बना दिया। पहली बार देशवासियों ने युद्ध की घटनाओं को टीवी पर सीधे देखा, जिससे जनमत निर्माण, राष्ट्रवादी भावना और सेना के प्रति समर्थन को बल मिला। हालांकि युद्ध के आरंभिक चरण में सरकार ने पाकिस्तान के चैनलों और ऑनलाइन समाचार स्रोतों पर अस्थायी प्रतिबंध लगाकर सूचना नियंत्रण का प्रयास किया, लेकिन मीडिया की सक्रियता के चलते सेंसरशिप की सीमाएँ स्पष्ट हो गईं। मीडिया ने सैनिकों की वीरता, शहीदों के परिवारों की पीड़ा और देशभक्ति की भावना को उजागर कर जनसमर्थन और सैनिकों का मनोबल बढ़ाया। हालांकि, कुछ रिपोर्टिंग, जैसे टाइगर हिल ऑपरेशन की लाइव कवरेज, को लेकर आलोचना भी हुई, लेकिन संपूर्ण दृष्टि से मीडिया ने जिम्मेदारी और संतुलन का परिचय दिया। राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सरकार ने ‘मीडिया एडवाइजरी’ और सीमित प्रतिबंध जैसे उपाय भी अपनाए।

सूचना सेंसरशिप के छिपे रहस्य और टालमटोल

कई बार सेंसरशिप के चलते महत्त्वपूर्ण तथ्य समय पर सामने नहीं आए। उदाहरणतः 1965 की वार हिस्ट्री रिपोर्ट में भारत की रणनीतिक चूकों का जिक्र था, जिसे दशकों तक प्रकाशित नहीं किया गया। करगिल में 27 मई 1999 को भारतीय वायुसेना के दो विमानों के नुकसान की जानकारी आधिकारिक रूप से शाम तक रोकी गई, जिससे पाकिस्तान को प्रचार में बढ़त मिली।


पत्रकारों की चुनौतियाँ और सरकार से संघर्ष

युद्ध के दौरान रिपोर्टिंग करना पत्रकारों के लिए जोखिम भरा रहा। सेंसरशिप, फील्ड एक्सेस, और सरकारी दबाव ने रिपोर्टिंग को कठिन बना दिया। 1971 में प्रेस को सीमित स्वतंत्रता मिली थी, लेकिन 1999 में पत्रकारों को ‘कंट्रोल्ड टूर’ में ही ले जाया गया। कुछ वरिष्ठ पत्रकारों ने सरकारी सूचना नीतियों की आलोचना की और चेताया कि मीडिया को दुश्मन मानना लोकतंत्र के लिए खतरा हो सकता है।

पाकिस्तान की सूचना नीति

पाकिस्तान ने भी युद्ध के समय मीडिया पर कठोर नियंत्रण रखा। 1963 के प्रेस एंड पब्लिकेशन्स ऑर्डिनेंस और बाद में सेना शासन के अंतर्गत समाचारपत्रों और पत्रकारों को डराकर शांत किया गया। 1971 में ढाका के तीन प्रमुख अखबारों को बंद कर दिया गया। लेकिन पत्रकार एंथनी मास्करेनहास ने लंदन जाकर बांग्लादेश में हो रहे नरसंहार को उजागर किया, जिससे पाकिस्तान की छवि को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर धक्का लगा।

राष्ट्रहित बनाम प्रेस की स्वतंत्रता

युद्धकाल में यह प्रश्न हमेशा चर्चा में रहता है कि मीडिया को कितनी स्वतंत्रता दी जानी चाहिए और कहाँ उस पर नियंत्रण जरूरी हो जाता है। एक ओर मीडिया की स्वतंत्रता लोकतंत्र की आधारशिला मानी जाती है, वहीं दूसरी ओर राष्ट्रीय सुरक्षा सर्वोपरि होती है। युद्ध के दौरान यदि कोई रिपोर्ट सेना की रणनीति या सैनिकों की सुरक्षा को खतरे में डालती है, तो उस पर नियंत्रण आवश्यक हो जाता है। हालांकि, इसके साथ यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि सेंसरशिप का दुरुपयोग न हो और लोकतंत्र की पारदर्शिता बनी रहे। सरकार का यह तर्क होता है कि संवेदनशील सूचनाओं का लीक होना रणनीतिक नुकसान पहुँचा सकता है, जबकि आलोचकों का मानना है कि पारदर्शिता लोकतंत्र की आत्मा है। विशेषज्ञों का भी मत है कि जब तक मीडिया स्वतंत्र, जिम्मेदार और जवाबदेह बना रहता है, तब तक वह राष्ट्रहित के लिए सहयोगी की भूमिका निभा सकता है, न कि बाधक की।


आधुनिक युग में सूचना नियंत्रण के नए रूप

आज के डिजिटल युग में सेंसरशिप केवल टीवी और अखबार तक सीमित नहीं रह गई है। सोशल मीडिया, ब्लॉग, यूट्यूब जैसे माध्यमों ने युद्धकालीन सूचना को तुरंत फैलाने की शक्ति प्रदान की है। ऐसे में सरकारें अब निम्नलिखित तरीकों से सूचना नियंत्रण करती हैं:

  • सोशल मीडिया ब्लैकआउट - संघर्ष क्षेत्र में इंटरनेट बंद कर देना।
  • डिजिटल कंटेंट मॉनिटरिंग - ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफार्म से भ्रामक या गोपनीय जानकारी हटाना।
  • फैक्ट-चेक यूनिट्स - गलत सूचनाओं को रोकने के लिए PIB फैक्ट चेक जैसे निकाय सक्रिय होते हैं।
  • प्रेस ब्रीफिंग के जरिए सूचना प्रबंधन।

सूचना युद्ध के युग में संतुलन की आवश्यकता

इतिहास से यह स्पष्ट है कि सूचना का संचार युद्ध का एक निर्णायक हथियार बन चुका है। मीडिया को पूरी तरह नियंत्रित करना संभव नहीं, और न ही उचित है। भारत जैसे लोकतंत्र में मीडिया और सैन्य तंत्र को सहयोगी बनकर काम करना चाहिए। युद्ध केवल जीतने का नहीं, बल्कि अपनी छवि, न्याय और मानवीय मूल्यों की रक्षा करने का भी प्रश्न होता है।

आज के डिजिटल युग में, जब एक ट्वीट से पूरा देश हिल सकता है, मीडिया और सरकार को यह समझना आवश्यक है कि सूचना को दबाना नहीं, बल्कि संयमित पारदर्शिता ही दीर्घकालिक हित में है।

Start Quiz

This Quiz helps us to increase our knowledge

Shweta Srivastava

Shweta Srivastava

Content Writer

मैं श्वेता श्रीवास्तव 15 साल का मीडिया इंडस्ट्री में अनुभव रखतीं हूँ। मैंने अपने करियर की शुरुआत एक रिपोर्टर के तौर पर की थी। पिछले 9 सालों से डिजिटल कंटेंट इंडस्ट्री में कार्यरत हूँ। इस दौरान मैंने मनोरंजन, टूरिज्म और लाइफस्टाइल डेस्क के लिए काम किया है। इसके पहले मैंने aajkikhabar.com और thenewbond.com के लिए भी काम किया है। साथ ही दूरदर्शन लखनऊ में बतौर एंकर भी काम किया है। मैंने लखनऊ यूनिवर्सिटी से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया एंड फिल्म प्रोडक्शन में मास्टर्स की डिग्री हासिल की है। न्यूज़ट्रैक में मैं लाइफस्टाइल और टूरिज्म सेक्शेन देख रहीं हूँ।

Next Story