TRENDING TAGS :
India Pakistan War: क्या FATF में पाकिस्तान को ब्लैकलिस्ट करने की सिफारिश करेगा भारत? क्या होगा इसका असर?
India Pakistan War Update: यह लेख FATF की स्थापना, उद्देश्यों, कार्यप्रणाली और वैश्विक महत्व को विस्तार से समझाता है, साथ ही यह भी कि भारत की इसमें क्या भूमिका है और यह कदम आतंकवाद के विरुद्ध वैश्विक संघर्ष में कितना निर्णायक साबित हो सकता है।
India Pakistan War Update Effect if Pakistan Gets Blacklisted in FATF
India Pakistan War Update: आज की वैश्विक राजनीति में आतंकवाद केवल एक सुरक्षा चुनौती नहीं, बल्कि एक वैश्विक संकट बन चुका है, ऐसा संकट जो सीमाओं, सभ्यताओं और संस्कृतियों की परवाह किए बिना सब कुछ निगलने की ताक़त रखता है। भारत उन गिने-चुने देशों में शामिल रहा है, जिसने इस संकट की भयावहता को न सिर्फ समय रहते पहचाना, बल्कि उसके विरुद्ध लड़ाई में अग्रणी भूमिका भी निभाई। कश्मीर घाटी से लेकर मुंबई, उरी और पुलवामा जैसे हमलों तक भारत ने न केवल बार-बार आतंक का सामना किया, बल्कि हर बार वैश्विक समुदाय को भी इस खतरे के प्रति चेताया।
आज भारत आतंकवाद के खिलाफ केवल एक पीड़ित देश नहीं, बल्कि एक निर्णायक और सजग नेतृत्वकर्ता बनकर उभरा है। आतंक को पनाह देने वाले राष्ट्रों के खिलाफ भारत की नीति अब और अधिक कठोर होती जा रही है। इसी कड़ी में भारत अब FATF (Financial Action Task Force) के मंच पर पाकिस्तान को ब्लैकलिस्ट करवाने की दिशा में निर्णायक कदम उठाने की तैयारी में है।
FATF क्या है?
FATF (Financial Action Task Force) एक अंतरराष्ट्रीय संस्था है जिसकी स्थापना वर्ष 1989 में पेरिस में G-7 देशों द्वारा की गई थी। इसका मुख्य उद्देश्य मनी लॉन्ड्रिंग, आतंकवादी वित्तपोषण और हथियारों के प्रसार के वित्तपोषण को रोकना है। यह संस्था वैश्विक वित्तीय अपराधों के विरुद्ध मानक (Recommendations) तैयार करती है और देशों को उनके अनुपालन के लिए प्रेरित करती है। FATF का मूल उद्देश्य मनी लॉन्ड्रिंग, आतंकवाद की फंडिंग और अन्य वित्तीय अपराधों पर रोक लगाना है। शुरुआत में FATF का ध्यान केवल मनी लॉन्ड्रिंग (money laundering) रोकने पर था। 9/11 के आतंकी हमलों के बाद, 2001 में, FATF के कार्यक्षेत्र में आतंकवादी वित्तपोषण (terrorist financing) को भी शामिल किया गया। अप्रैल 2012 में, FATF ने सामूहिक विनाश के हथियारों (Weapons of Mass Destruction) के प्रसार के लिए हो रहे वित्तीय लेन-देन को रोकना भी अपने दायरे में शामिल किया।
वर्तमान में FATF के 39 सदस्य देश और 2 क्षेत्रीय संगठन (European Union और Gulf Cooperation Council) हैं। हालांकि, FATF की सिफारिशों का पालन 200 से अधिक जुरिस्डिक्शन द्वारा किया जाता है, जिनमें से कई FATF-स्टाइल रीजनल बॉडीज़ के सदस्य हैं। FATF प्रत्येक देश की वित्तीय प्रणाली का मूल्यांकन करता है और उसे "ग्रे लिस्ट" या "ब्लैक लिस्ट" में डाल सकता है। ग्रे लिस्ट में वे देश होते हैं, जो कुछ खामियों के बावजूद सुधार के लिए प्रतिबद्ध हैं, जबकि ब्लैक लिस्ट में वे देश आते हैं, जो FATF मानकों का पालन नहीं करते। FATF स्वयं किसी देश पर प्रतिबंध नहीं लगाता, लेकिन इसकी लिस्टिंग से उस देश की वैश्विक वित्तीय प्रणाली में भागीदारी पर गंभीर असर पड़ता है।
FATF कैसे करता है काम?
FATF की निगरानी और मूल्यांकन प्रक्रिया वैश्विक वित्तीय प्रणाली को पारदर्शी और सुरक्षित बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह संस्था अपने सदस्य और संबद्ध देशों का मूल्यांकन "म्यूचुअल इवैल्युएशन रिपोर्ट्स" के माध्यम से करती है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे मनी लॉन्ड्रिंग (AML) और आतंकवाद वित्तपोषण (CTF) के खिलाफ FATF द्वारा निर्धारित मानकों का पालन कर रहे हैं। मूल्यांकन के आधार पर FATF देशों को "ग्रे लिस्ट" या "ब्लैक लिस्ट" में शामिल करता है। ग्रे लिस्ट, जिसे "Increased Monitoring List" भी कहा जाता है, उन देशों की सूची होती है जिनमें रणनीतिक कमियां तो होती हैं, लेकिन वे FATF के साथ मिलकर सुधार की दिशा में काम कर रहे होते हैं। इस लिस्ट में आने से उन देशों पर अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों का दबाव बढ़ जाता है और उन्हें समयबद्ध कार्ययोजना के तहत सुधार करना होता है। वहीं, ब्लैक लिस्ट में वे देश आते हैं जो FATF के मानकों का पालन नहीं करते और सुधार की दिशा में कोई सार्थक प्रयास नहीं करते। इन्हें "High-Risk and Non-Cooperative Jurisdictions" कहा जाता है और इन पर कड़े वित्तीय प्रतिबंध लगाए जाते हैं, जिससे इनकी वैश्विक वित्तीय प्रणाली में भागीदारी लगभग समाप्त हो जाती है।
ग्रे लिस्ट और ब्लैक लिस्ट में क्या फर्क है?
ग्रे लिस्ट - ऐसे देश जो आतंकवाद और मनी लॉन्ड्रिंग के खिलाफ पर्याप्त कदम नहीं उठा रहे, लेकिन सुधार के लिए सहमत हैं। इन पर अंतरराष्ट्रीय निगरानी रखी जाती है।
ब्लैक लिस्ट - ऐसे देश जो FATF की सिफारिशों को बार-बार नजरअंदाज करते हैं, या जो आतंकवादियों की खुलकर मदद करते हैं। इन पर कड़े वित्तीय प्रतिबंध लगाए जाते हैं और वैश्विक निवेश रुक जाता है।
एफएटीएफ में (FATF) पाकिस्तान की अब तक की स्थिति
पाकिस्तान को लंबे समय से आतंकवाद को समर्थन देने और आतंकी संगठनों जैसे जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा, और हक्कानी नेटवर्क को फंडिंग और संरक्षण देने के लिए वैश्विक आलोचना का सामना करना पड़ रहा है। पुलवामा और उरी हमलों में इन संगठनों का हाथ था। FATF ने पाकिस्तान को 2008, 2012, और 2018 में ग्रे लिस्ट में डाला और उसे आतंकवाद वित्तपोषण और मनी लॉन्ड्रिंग रोकने के लिए कई बार चेतावनी दी। FATF ने पाकिस्तान के लिए सुधार की योजना में 27 से बढ़ाकर 34 बिंदु दिए, लेकिन पाकिस्तान ने इन पर केवल आंशिक और प्रतीकात्मक कदम उठाए, जिससे उसकी मंशा पर सवाल उठे। अक्टूबर 2022 में FATF ने पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट से बाहर किया, यह कहते हुए कि उसने सुधार प्रक्रिया पूरी की है। हालांकि, भारत और अन्य देशों को संदेह है कि पाकिस्तान की कार्रवाई स्थायी और प्रभावी नहीं है, और FATF का यह कदम राजनीतिक दबाव के कारण लिया गया हो सकता है। भारत ने FATF से पाकिस्तान को फिर से ग्रे लिस्ट में डालने की मांग की है, यह तर्क देते हुए कि पाकिस्तान आतंकवाद के खिलाफ ठोस और स्थिर कदम नहीं उठा रहा है।
FATF की वैश्विक महत्ता
FATF की रिपोर्ट और निर्णयों का वैश्विक वित्तीय प्रणाली पर गहरा प्रभाव पड़ता है। किसी देश को FATF की ब्लैक लिस्ट में डालने का मतलब है कि उस देश पर कड़े अंतरराष्ट्रीय वित्तीय प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं, जिससे विदेशी निवेश, व्यापारिक संबंध और आर्थिक लेन-देन लगभग ठप हो जाते हैं। ऐसे देशों से IMF, विश्व बैंक, और एशियाई विकास बैंक जैसी संस्थाएं भी दूरी बना लेती हैं, जिसके कारण उनकी अर्थव्यवस्था पर गंभीर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। वहीं, ग्रे लिस्ट में शामिल देशों को भी वित्तीय संस्थानों और अंतरराष्ट्रीय निवेशकों द्वारा कड़ी निगरानी का सामना करना पड़ता है, जिससे विदेशी निवेश, ऋण और व्यापार में समस्याएं उत्पन्न होती हैं और देश की क्रेडिट रेटिंग पर भी नकारात्मक असर हो सकता है। FATF ने मनी लॉन्ड्रिंग, आतंकवाद की फंडिंग और अन्य वित्तीय अपराधों के खिलाफ वैश्विक मानक तय करने के लिए 40 Recommendations और 9 Special Recommendations जारी की हैं, जो देशों को वित्तीय सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए मार्गदर्शन प्रदान करती हैं।
भारत की आपत्ति, क्यों जरूरी है ब्लैकलिस्ट की मांग?
आतंकी संगठनों को संरक्षण - भारत का आरोप है कि पाकिस्तान अभी भी लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी संगठनों को संरक्षण और समर्थन देता है। यह भारत ने बार-बार अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाया है।
दिखावटी कार्रवाई - भारत का यह भी कहना है कि पाकिस्तान 26/11 के मास्टरमाइंड हाफिज सईद जैसे आतंकियों पर केवल दिखावटी कार्रवाई करता है, जबकि असल में वे पाकिस्तान में खुलेआम रहते हैं और सक्रिय रहते हैं।
आतंकियों की संपत्ति जब्ती में विफलता - भारत ने यह भी आरोप लगाया है कि पाकिस्तान आतंकियों की संपत्ति जब्त करने, उनके बैंक खाते सील करने और फंडिंग चैनलों पर रोक लगाने में असफल रहा है।
FATF नियमों का केवल कागजी पालन- भारत का तर्क है कि पाकिस्तान ने FATF के नियमों और कार्ययोजनाओं को केवल कागजों पर लागू किया है, लेकिन जमीनी स्तर पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है।
अंतरराष्ट्रीय मंचों पर प्रमाण - भारत ने इन सभी आरोपों के प्रमाण FATF सहित कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर प्रस्तुत किए हैं और बार-बार पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट या ब्लैकलिस्ट में डालने की मांग की है।
ब्लैकलिस्ट होने के कारण पाकिस्तान पर क्या असर पड़ेगा?
यदि FATF पाकिस्तान को ब्लैकलिस्ट करता है, तो इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं:
वैश्विक निवेश घटेगा - विदेशी कंपनियां और निवेशक पाकिस्तान से दूरी बना लेंगे।
IMF, World Bank से फंडिंग रुक सकती है - आर्थिक संकट और गहराएगा।
रुपये पर दबाव बढ़ेगा - मुद्रास्फीति और महंगाई में वृद्धि होगी।
ब्याज दरें बढ़ेंगी - बाहरी कर्ज और महंगा हो जाएगा।
वैश्विक बदनामी - एक आतंकी समर्थक देश की छवि मजबूत होगी।
पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पहले ही डगमगाई हुई है, और ब्लैकलिस्टिंग से वह और बदतर हो जाएगी।
भारत की रणनीति और वैश्विक समर्थन
भारत इस बार FATF की अगली बैठक में पाकिस्तान के खिलाफ अपनी दलील को पहले से कहीं अधिक मजबूती से रखने की तैयारी कर रहा है। इसके लिए भारत कई ठोस रणनीतियाँ अपना रहा है, जिनमें आतंकवाद से जुड़े वीडियो, बैंकिंग ट्रेल, और NGO डोनर्स का डेटा प्रस्तुत करना शामिल है। इसके अलावा, भारत अफगानिस्तान में पाकिस्तान-प्रायोजित आतंकियों की गतिविधियों और POK (पाक अधिकृत कश्मीर) में चल रहे आतंकी शिविरों की उपग्रह छवियाँ भी FATF के समक्ष रखेगा, ताकि पाकिस्तान की भूमिका स्पष्ट रूप से उजागर की जा सके। भारत अमेरिका, फ्रांस और जर्मनी जैसे प्रमुख देशों का समर्थन भी जुटा रहा है, जिससे उसकी बात को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर और अधिक प्रभावशाली बनाया जा सके। हालांकि चीन, तुर्की और मलेशिया जैसे देश पाकिस्तान के पक्ष में खड़े हो सकते हैं, लेकिन वर्तमान वैश्विक परिप्रेक्ष्य में भारत की दलील कहीं अधिक सशक्त और विश्वसनीय मानी जा रही है।
क्या FATF वास्तव में निष्पक्ष है?
FATF की निष्पक्षता और पारदर्शिता को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समय-समय पर सवाल उठते रहे हैं। पाकिस्तान को बार-बार छूट दिए जाने, चीन जैसे देशों के प्रभाव और राजनीतिक समीकरणों के चलते FATF की छवि पर असर पड़ा है। कई बार देखा गया है कि पाकिस्तान ने FATF की शर्तों का आंशिक पालन किया, फिर भी उसे ग्रे लिस्ट से बाहर कर दिया गया या उसे अतिरिक्त समय दिया गया, जिससे निष्पक्षता पर प्रश्नचिह्न लगे हैं।
भारत ने भी FATF से अधिक पारदर्शिता और जवाबदेही की मांग की है। भारत का तर्क रहा है कि FATF को केवल तकनीकी आधार पर ही नहीं, बल्कि जमीनी सच्चाई के आधार पर फैसले लेने चाहिए और राजनीतिक प्रभाव से बचना चाहिए। भारत ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर FATF की कार्यप्रणाली में सुधार, पारदर्शिता और जवाबदेही की आवश्यकता को बार-बार उठाया है।
खुद को निर्दोष बताने की पाकिस्तान की कोशिश
पाकिस्तान ने FATF और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को आश्वस्त करने का प्रयास किया है कि उसने आतंकियों की संपत्ति जब्त की है, आतंकवाद वित्तपोषण (CFT) और मनी लॉन्ड्रिंग (AML) से संबंधित कानून पारित किए हैं, और कई मामलों में केस दर्ज किए हैं। इसके अलावा, पाकिस्तान की राजस्व और निगरानी एजेंसियों ने AML/CFT के तहत आंतरिक नियंत्रण और नियम लागू करने का दावा भी किया है। हालांकि, भारत और कुछ अन्य देशों का मानना है कि ये सभी सुधार केवल दिखावटी हैं और इनका जमीनी स्तर पर कोई ठोस प्रभाव नहीं दिखता। भारत का आरोप है कि पाकिस्तान को मिलने वाली अंतरराष्ट्रीय सहायता का इस्तेमाल अब भी आतंकवादी गतिविधियों में हो रहा है, और कई फंडिंग चैनल्स अब भी सक्रिय हैं। भारत ने FATF को ऐसे नए सबूत भी सौंपे हैं, जो आतंकवाद को पाकिस्तान की जमीन पर पनाह मिलने की पुष्टि करते हैं। 2022 में FATF ने पाकिस्तान की ऑनसाइट जांच के बाद पाया कि कई मामलों में उसने अपनी शर्तों को पूरी तरह नहीं निभाया था। भारत लगातार FATF से आग्रह करता रहा है कि वह केवल कागजी सुधारों पर न जाकर जमीनी सच्चाई को आधार बनाकर निर्णय ले।
Start Quiz
This Quiz helps us to increase our knowledge