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भारत का मास्टरस्ट्रोक! जर्मन टेक्नोलॉजी से भारतीय पनडुब्बियां बनेंगी घातक, हिंद महासागर में चीन की दबंगई होगी खत्म
भारतीय नौसेना P-75I प्रोजेक्ट के तहत छह अत्याधुनिक पनडुब्बियों की खरीदारी कर रही है, जिसमें जर्मन AIP तकनीक का इस्तेमाल होगा, जिससे पानी के नीचे रहने की क्षमता बढ़ेगी और स्वदेशी निर्माण को बढ़ावा मिलेगा।
सरकार ने रक्षा मंत्रालय और मजगांव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड (MDL) को 'प्रोजेक्ट 75 इंडिया' (P-75I) के तहत छह अत्याधुनिक पनडुब्बियों की खरीद के लिए औपचारिक वार्ताओं की शुरुआत करने की मंजूरी दे दी है, जिसमें जर्मनी से महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकी सहायता प्राप्त होगी।
वरिष्ठ रक्षा अधिकारियों के अनुसार, यह मंजूरी एक उच्च-स्तरीय बैठक के बाद दी गई, जिसमें रक्षा और राष्ट्रीय सुरक्षा के शीर्ष अधिकारी शामिल थे, जिन्होंने भारत की पनडुब्बी बेड़े के दीर्घकालिक रोडमैप पर चर्चा की। रक्षा मंत्रालय, MDL और चयनित जर्मन साझेदार के बीच वार्ताओं की प्रक्रिया इस महीने के अंत तक शुरू होने की उम्मीद है।
P-75I के तहत भारतीय नौसेना छह नई पीढ़ी की पारंपरिक पनडुब्बियों की खरीदारी का लक्ष्य बना रही है जिनमें एयर इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन सिस्टम होगा। इस टेकनीक से इन पनडुब्बियों की पानी के नीचे रहने की क्षमता में काफी सुधार होगा जिससे वे लगभग तीन हफ्ते तक पानी के नीचे रह सकेंगी।
रक्षा मंत्रालय की योजना है कि अगले छह से आठ महीनों के भीतर वार्ताओं को समाप्त कर दिया जाए और इसके बाद अंतिम सरकारी मंजूरी प्राप्त की जाएगी। हालांकि, इस सौदे का उद्देश्य सिर्फ पनडुब्बियों की खरीद तक सीमित नहीं है। इसका असल मकसद स्वदेशी क्षमताओं को बढ़ावा देना है, ताकि भारत पारंपरिक पनडुब्बियों के निर्माण और डिजाइन में आत्मनिर्भर हो सके और विदेशी आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भरता कम हो सके।
सौदा पूरा होने के बाद निर्माण की प्रक्रिया को तेज करने के लिए भी कदम उठाए जा रहे हैं। जर्मनी तकनीक भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण है खासकर इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में रणनीतिक जरूरतों को पूरा करने के लिए।
साथ ही, भारत अपनी पानी के नीचे की युद्धक क्षमताओं को अन्य कार्यक्रमों के जरिए भी मजबूत कर रहा है। इस समय दो न्यूक्लियर पावर्ड अटैक पनडुब्बियों (SSNs) का विकास चल रहा है, जिसमें निजी क्षेत्र, खासकर लार्सन एंड टुब्रो, का बड़ा योगदान है। यह पनडुब्बी निर्माण केंद्र के साथ मिलकर काम कर रहा है, ताकि स्वदेशी निर्माण में और भी तेजी लाई जा सके।
यह कदम चीन की तेजी से बढ़ती नौसैनिक ताकत और समुद्री क्षेत्र में उसकी बढ़ती आक्रामकता के जवाब में उठाया गया है। इसके अलावा, भारत पाकिस्तान के साथ अपनी रणनीतिक प्रतिस्पर्धा को भी ध्यान में रखते हुए अपनी अंडरसी युद्धक क्षमता को आधुनिक बना रहा है।
अगले दशक में, भारतीय नौसेना लगभग 10 पुरानी पनडुब्बियों को सेवा से बाहर करने की योजना बना रही है, जिसके कारण उनका समय पर प्रतिस्थापन भारत की ऑपरेशनल तत्परता और निरोधक क्षमता बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है।
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