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चीन बना रहा है 'वॉटर बम'! भारत में कभी भी मच सकती है 'महा तबाही' – जानिए इसके खतरनाक संकेत
China Brahmaputra Dam Explained: चीन ने तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी पर विश्व का सबसे बड़ा बांध बनाने की तैयारी में जुट गया है। सवाल ये है कि इस बांध से भारत को किस तरह का खतरा है? और भारत चीन के इस कदम से निपटने के लिए क्या तैयारी कर रहा है?
China Brahmaputra Dam Explained
China Brahmaputra Dam Explained: चीन ने तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी पर विश्व का सबसे बड़ा बांध बनाने की तैयारी में जुट गया है। सवाल ये है कि इस बांध से भारत को किस तरह का खतरा है? और भारत चीन के इस कदम से निपटने के लिए क्या तैयारी कर रहा है? आईये जानते हैं इस लेख में विस्तार से...
चीन ने तिब्बत के मेदोग क्षेत्र में ब्रह्मपुत्र नदी पर विष का सबसे बड़ा बांध बनाने के कार्य में जुट गया है। चीन ब्रह्मपुत्र नदी को यारलुंग त्सांगपो नाम से पुकारता है और उसका दावा है कि यह हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट ‘थ्री गॉर्जेस डैम’ से भी तीन गुना अधिक बिजली पैदा करेगा। उसने इस बांध को पूरा बनाने का कार्य साल 2030 तक पूरा करने का लक्ष्य निश्चित कर लिया है।
चीन जहां इस परियोजना को ऊर्जा सुरक्षा और कार्बन न्यूट्रल लक्ष्य से जोड़कर पेश कर रहा है, वहीं, इस कदम से भारत और बांग्लादेश दोनों ही देशों की मुश्किलें बढ़ती दिख रही हैं। ऐसे में यह जानना सबसे महत्वपूर्ण हो गया है कि चीन आखिरकार इतना बड़ा बांध क्यों बना रहा है? इस बांध से भारत को किस तरह का खतरा है? और भारत चीन के इस कदम से निपटने के लिए क्या तैयारी कर रहा है? ये सभी सवाल उठ रहे हैं।
क्यों बना रहा चीन यह बांध?
चीन की दलील है कि वह साल 2060 तक ‘कार्बन न्यूट्रल’ बनने के मार्ग में तेजी से कार्य कर रहा है, और यह बांध उसी मार्ग में एक बड़ा कदम है। चीन का स्पष्ट रूप से ये मानना है कि इस हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट के माध्यम से न केवल ग्रीन एनर्जी पैदा होगी, बल्कि पेट्रोल-डीजल जैसे जीवाश्म ईंधन पर उसकी निर्भरता भी कम होगी। हालांकि इस प्रोजेक्ट पर विशेषज्ञों का मानना है कि इस प्रोजेक्ट के पीछे केवल ऊर्जा की आवश्यकता नहीं, बल्कि राजनीतिक और रणनीतिक मंशाएं भी छिपी हुई हैं।
तिब्बत क्षेत्र में ब्रह्मपुत्र पर कई छोटे-बड़े बांध पहले से बने हुए हैं, लेकिन यह प्रोजेक्ट न केवल आकार में सबसे बड़ा होगा, बल्कि यह ब्रह्मपुत्र के ऊपरी प्रवाह को नियंत्रित करने की चीन की एक नई रणनीति का महत्वपूर्ण हिस्सा माना जा रहा है।
भारत के लिए क्यों है मुश्किल की बात?
ब्रह्मपुत्र नदी भारत के उत्तर पूर्वी राज्यों के लिए एक जीवनरेखा के रूप में देखी जाती है। यह नदी असम, अरुणाचल और मिजोरम में कृषि, सिंचाई और पेयजल की आवश्यकताओं को पूरा करती है। यदि चीन इस पर एक विशाल बांध बनाकर जल के प्रवाह को नियंत्रित करने में सक्षम हो जाता है, तो यह भारत के लिए ‘वाटर वेपन’ के रूप में काम आ सकता है। विशेषज्ञों ने इसे ‘वॉटर बम’ तक करार दिया है, जिसके माध्यम से चीन आवश्यकता पड़ने पर भारत के हिस्से में जल संकट या बाढ़ की स्थिति पैदा कर सकता है।
अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने हाल ही में इस परियोजना को ‘चलता-फिरता वाटर बम’ कहा था। उनका सपष्ट रूप से कहना था कि यदि चीन एकतरफा निर्णय लेते हुए एकाएक ब्रह्मपुत्र में पानी छोड़ देता है, तो यह अरुणाचल और असम में बाढ़ का बड़ा कारण बन सकता है। इसके विपरीत, यदि चीन पानी रोक लेता है, तो सूखे की स्थिति पैदा हो सकती है।
भूकंप का भी बड़ा मंडरा सकता है 'महा खतरा'
यह बांध जिस इलाके में बनाया जा रहा है, वह भूकंप के लिये बहुत ही संवेदनशील है। हिमालयी क्षेत्र की फॉल्ट लाइन के पास निर्मित यह बांध, यदि किसी आपदा की चपेट में आता है, तो इससे भयंकर तबाही हो सकती है। विशेषज्ञों ने सतर्क किया है कि एक छोटी सी दरार भी इस मेगाप्रोजेक्ट को बड़े संकट में डाल सकती है साथ ही इस क्षेत्र की जैव विविधता पर भी गंभीर रूप से प्रभाव पड़ने की संभावना बनी हुई है।
इसकी काट के लिए क्या कर रहा है भारत?
भारत ने इस बड़े संकट को गहनता से समझते हुए अपनी कूटनीतिक रणनीति के अंतर्गत चीन से बातचीत की कोशिश भी की है। जनवरी 2025 में भारत सरकार ने आधिकारिक रूप से चीन के सामने इस मुद्दे को उठाने का प्रयास किया था। साथ ही एक दीर्घकालिक समाधान के अन्तर्गत भारत ने अरुणाचल प्रदेश के सियांग जिले में ‘सियांग मल्टीपर्पस प्रोजेक्ट’ की योजना को आगे बढ़ाया है।
यह परियोजना एक प्रकार का ‘बफर बांध’ होगा, जिसमें 9 अरब घन मीटर पानी संग्रहित करने की क्षमता होगी और यह करीब 11,000 मेगावॉट बिजली भी पैदा करने में सक्षम होगा। इसका मुख्य उद्देश्य चीन की तरफ से पानी के बहाव में किसी भी तरह के परिवर्तन को नियंत्रित करना है… चाहे वह अचानक पानी छोड़ने का मामला हो या बहाव को रोकने का।
हालांकि, यह परियोजना अब तक स्थानीय विरोध और नौकरशाही मुश्किलों के चलते धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा है। लेकिन सरकार का लक्ष्य है कि इसे राष्ट्रीय सुरक्षा और पूर्वोत्तर की जीवनरेखा के रूप में बहुत जल्द साकार किया जाए।
भारत को भी तेजी से बढ़ाने होंगे कदम
ब्रह्मपुत्र नदी पर चीन का यह विशाल बांध केव अल एक इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजना नहीं है, बल्कि यह दक्षिण एशिया की जल-राजनीति में एक बड़ा मोड़ हो सकता है। भारत के लिए यह न केवल पर्यावरणीय और मानवीय खतरे का संकेत है, बल्कि एक रणनीतिक चेतावनी भी है कि उसे पूर्वोत्तर की सुरक्षा को लेकर और अधिक सक्रिय होना पड़ेगा।
भारत की तरफ से सियांग परियोजना का प्रस्ताव इस मार्ग में एक सार्थक कोशिश है, लेकिन इसे ज़मीन पर उतारने की रफ्तार और राजनीतिक इच्छाशक्ति बेहद अहम होगी। चीन की आक्रामक और एकतरफा जलनीति के सामने भारत को एक संतुलित, पर्यावरण-संवेदनशील और रणनीतिक जवाब देने की आवश्यकता है, ताकि पूर्वोत्तर का आने वाला समय सुरक्षित रह सके।
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