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Dhankhar resignation: "या तो इस्तीफा दे दीजिए, या हम...", 7:30 की वो कॉल जिसने हिला दी सत्ता! धनखड़ के इस्तीफे के पीछे की सच्चाई अब आई सामने
Dhankhar resignation controversy: 7:30 बजे की एक कॉल और उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का इस्तीफा! जानिए उस रात क्या हुआ जब सत्ता के गलियारों में मचा बवाल।
Dhankhar resignation controversy: राजनीति की दुनिया में हर दिन कुछ न कुछ होता है, लेकिन 21 जुलाई की शाम कुछ अलग थी। उस दिन सत्ता के सर्वोच्च गलियारों में एक ऐसी कॉल गई, जिसने पूरे देश को चौंका दिया। एक ऐसा नाम जिस पर सत्ता को नाज़ था वही शख्स अचानक पद से हट गया। और वजह? जो सामने आई, उसने देश की राजनीति को भीतर तक हिला दिया। शाम 7:30 बजे एक कॉल आता है। कॉल करने वाला कोई आम आदमी नहीं सरकार का सबसे ताकतवर मंत्री। कॉल रिसीव करते ही माहौल बदल जाता है। दूसरी तरफ थे उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और सामने एक अल्टीमेटम – "या तो इस्तीफा दे दीजिए, या हम आपके खिलाफ राज्यसभा में नो कॉन्फिडेंस मोशन लाएंगे।" बस, यहीं से शुरू होती है उस 'राजनीतिक भूकंप' की कहानी, जिसने सत्ता और संवैधानिक मर्यादाओं के बीच की रेखा को धुंधला कर दिया।
जहाँ संवाद होना था, वहां टकराव हुआ
जगदीप धनखड़ और केंद्र सरकार के बीच तनाव की खबरें महीनों से चल रही थीं, लेकिन कोई भी ये नहीं मान रहा था कि बात इतनी आगे बढ़ जाएगी। खबर है कि एक नहीं, कई मौकों पर धनखड़ ने केंद्रीय मंत्रियों को सार्वजनिक रूप से डांटा। एक मंत्री जब उनसे मिलने पहुंचे, तो वहां बैठे सचिवों के सामने उन्हें डांट पड़ी। उस मंत्री ने विनम्रता से कहा "आप जो भी कहना चाहते हैं, अकेले में कहिएसचिवों के सामने मत कहिए, इससे आपकी गरिमा पर भी सवाल उठेगा।" लेकिन धनखड़ अपने रुख पर अड़े रहे सिर्फ यही नहीं संसद के भीतर भी टकराव बढ़ता गया।
BAC मीटिंग बनी बम की चिंगारी
21 जुलाई की दोपहर 12:30 बजे एक और मोर्चा खुला। बिज़नेस एडवाइजरी कमेटी (BAC) की मीटिंग में जब धनखड़ ने कहा कि 'ऑपरेशन सिंदूर' पर चर्चा के दौरान प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और रक्षामंत्री को उपस्थित रहना चाहिए, तो केंद्रीय मंत्री किरें रिजिजू ने साफ कहा – "ये तय करना सरकार का अधिकार है, BAC केवल एजेंडा तय करती है।"
धनखड़ ने पलटकर जवाब दिया – “तो आप प्रधानमंत्री से पूछकर आइए।”
बस, यहीं से बात हाथ से निकल गई। उसी रात प्रधानमंत्री आवास पर हाई लेवल मीटिंग होती है जिसमें मोदी, शाह, जयशंकर, राजनाथ, नड्डा, सीतारमण जैसे दिग्गज शामिल होते हैं। तय होता है – “अब और नहीं।”
धनखड़ ने उठा लिया बड़ा कदम
शाम 4:30 बजे BAC की अगली मीटिंग शुरू होती है, लेकिन इससे पहले ही धनखड़ 63 विपक्षी सांसदों द्वारा लाए गए जस्टिस वर्मा के खिलाफ रिमूवल मोशन को स्वीकार कर लेते हैं। यह सरकार के लिए सीधी चुनौती थी। गृह मंत्री, रक्षा मंत्री, संसदीय कार्यमंत्री सभी को लगता है कि अब पानी सिर के ऊपर जा चुका है। जब धनखड़ ने उस प्रस्ताव को आगे बढ़ाया तो पीएम मोदी को पूरी स्थिति की ब्रीफिंग दी जाती है। बताया जाता है कि उपराष्ट्रपति ने मोशन स्वीकार कर लिया है। ये वही प्रस्ताव है जिसे सरकार लोकसभा में लाना चाहती थी, विपक्ष के साथ मिलकर। लेकिन धनखड़ ने सीधे राज्यसभा से ही चाल चल दी।
मनाने की नाकाम कोशिश और धमाका
जेपी नड्डा और किरेन रिजिजू धनखड़ से मिलने जाते हैं, समझाने की कोशिश करते हैं। फिर अर्जुन मेघवाल भेजे जाते हैं, लेकिन वहां भी बात नहीं बनती। मेघवाल कहते हैं "अगर आपने पहले बता दिया होता तो ये प्रस्ताव हम साथ ला सकते थे।" इसी बीच किरेन रिजिजू पूर्व राष्ट्रपति से भी मिलते हैं और बताते हैं कि सरकार का इरादा है – "हम सबको साथ लेकर चलना चाहते हैं लेकिन धनखड़ साथ नहीं दे रहे हैं।"
फिर आता है वो कॉल...7:30 PM: 'या तो इस्तीफा, या अविश्वास प्रस्ताव'
अंततः सरकार के एक बड़े मंत्री धनखड़ को कॉल करते हैं और कहते हैं "या तो इस्तीफा दे दीजिए, नहीं तो हम राज्यसभा में नो कॉन्फिडेंस मोशन लाएंगे।" कोई महाभियोग नहीं, सीधे अविश्वास प्रस्ताव। इस प्रस्ताव पर 90 सांसदों के हस्ताक्षर हो चुके थे जिनमें बीजेपी और एनडीए के सांसद भी शामिल थे। संसद खत्म होने के बाद हर मंत्री को 10-10 सांसदों को बुलाकर ब्रीफ करने का आदेश दिया गया “धनखड़ नहीं माने तो उन्हें हटाना ही पड़ेगा।”
इस्तीफे से पहले राष्ट्रपति भवन की कहानी
फोन कॉल के बाद धनखड़ सीधे राष्ट्रपति भवन पहुंचते हैं। वहां उन्हें इंतजार करना पड़ता है। राष्ट्रपति 25 मिनट बाद आती हैं। एक फॉर्मल प्रक्रिया के तहत धनखड़ उन्हें इस्तीफा सौंपते हैं। 9:25 PM पर जगदीप धनखड़ X पर पोस्ट करते हैं "स्वास्थ्य कारणों से, डॉक्टरों की सलाह पर मैं तत्काल प्रभाव से भारत के उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे रहा हूं।" लेकिन ये सच नहीं था। देश को जो बताया गया वो आधा सच था। दरअसल मामला सिर्फ स्वास्थ्य का नहीं था, मामला था सत्ता और संवैधानिक अधिकारों की जंग का। धनखड़ ने वो किया जो शायद सत्ता को नागवार गुज़रा। उन्होंने सरकार की नीतियों पर सवाल उठाए अपनी संवैधानिक भूमिका निभाई लेकिन नतीजा ये निकला कि उनकी कुर्सी चली गई।
कहानी यहीं खत्म नहीं होती
धनखड़ के इस्तीफे के बाद से ही राजनीति में हलचल तेज हो चुकी है। कई पॉलिटिकल थ्योरीज सामने आ रही हैं,क्या बीजेपी खुद बगावत से डरी? क्या विपक्ष को एक नया चेहरा मिल गया है? क्या सरकार और संवैधानिक पदों के बीच की दूरी अब खाई बन चुकी है? सवाल कई हैं, जवाब बहुत कम। लेकिन एक बात साफ है 7:30 की वो कॉल इतिहास में दर्ज हो गई है।
अब आगे क्या?
राजनीति की इस पटकथा में अगला पन्ना क्या होगा, ये देखना बाकी है। लेकिन इतना तय है कि ये घटना एक मिसाल बन चुकी है, कि जब संवैधानिक गरिमा और सत्तात्मक अहंकार टकराते हैं, तो परिणाम सिर्फ इस्तीफा नहीं, इतिहास बनता है।और शायद नई राजनीति की नींव भी।
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