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82 दिन की चुप्पी के बाद फूटा सच! मनोज सिन्हा ने पहलगाम हमले की ली पूरी ज़िम्मेदारी, कहा– 'हाँ, यह मेरी ज़िम्मेदारी थी।'
Manoj Sinha Pahalgam attack responsibility: पूरे देश को हिला देने वाला पहलगाम आतंकी हमला, जिसमें निर्दोष श्रद्धालुओं और पर्यटकों पर गोलियों की बौछार की गई थी, अब एक नए मोड़ पर है।
Manoj Sinha Pahalgam attack responsibility: पूरे देश को हिला देने वाला पहलगाम आतंकी हमला, जिसमें निर्दोष श्रद्धालुओं और पर्यटकों पर गोलियों की बौछार की गई थी, अब एक नए मोड़ पर है। जिस सवाल का जवाब 82 दिनों तक टाल दिया गया, वह अब खुद जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने अपने मुंह से दिया है—"हाँ, यह मेरी ज़िम्मेदारी थी।" सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं कि जिस हमले ने देश को झकझोर दिया, वह सिर्फ सुरक्षा चूक नहीं, बल्कि भारत की आत्मा पर हमला था। और ये कहना किसी विपक्षी नेता ने नहीं, खुद उपराज्यपाल ने खुले मंच पर स्वीकार किया।
कबूलनामे ने खोली कई परतें
मनोज सिन्हा के इस इंटरव्यू ने जैसे एक बंद कमरे का दरवाज़ा तोड़ दिया हो, जहां सच कैद था और सवाल धूल खा रहे थे। उन्होंने स्वीकार किया कि जहां हमला हुआ वह इलाका खुला मैदान था, बिना किसी सुरक्षा इंतज़ाम के, और उसी कमजोरी का फायदा उठाकर आतंकवादियों ने हमला किया।
क्या ये सिर्फ लापरवाही थी? या फिर जानबूझकर नजरअंदाज किया गया खतरा?
मनोज सिन्हा ने स्पष्ट कहा कि यह हमला पर्यटकों पर नहीं, बल्कि भारत की आत्मा पर किया गया। आतंकियों का मकसद साफ था—जम्मू-कश्मीर में शांति और समृद्धि की ओर बढ़ते माहौल को तोड़ना, आर्थिक स्थिति को झटका देना और पूरे देश में सांप्रदायिक विभाजन पैदा करना।
"कश्मीर की अर्थव्यवस्था दुगुनी हो गई थी... और यही पाकिस्तान को चुभ गया"
जब सिन्हा ने यह कहा कि राज्य की अर्थव्यवस्था पिछले कुछ वर्षों में दुगुनी हो चुकी थी, तो यह बात अपने आप में बहुत कुछ बयां करती है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान और उसके पाले हुए आतंकी संगठनों को यह सहन नहीं हो रहा था कि कश्मीर में अमन हो, पर्यटन फले-फूले और लोग खुशहाल हों। इसलिए उन्होंने हमला किया। लेकिन निशाना सिर्फ लोग नहीं थे, निशाना था भारत का आत्मविश्वास, उसकी एकता और अखंडता।
"स्थानीय लोग भी थे हमले में शामिल" – एनआईए की जांच का खौफनाक खुलासा
इस हमले ने एक और डरावना सच उजागर किया—कुछ स्थानीय लोग आतंकियों के साथ मिले हुए थे। एनआईए की रिपोर्ट के हवाले से सिन्हा ने बताया कि इस साल सिर्फ एक स्थानीय की संलिप्तता पाई गई, जबकि पिछले साल ये संख्या 6 से 7 थी और एक समय पर ये आंकड़ा 100 से ऊपर पहुंच चुका था। इससे पता चलता है कि हालात सुधर रहे हैं, लेकिन खतरा अभी टला नहीं है। पाकिस्तान की ओर से घुसपैठ की कोशिशें अभी भी जारी हैं, और जम्मू-कश्मीर अभी भी आतंक के निशाने पर है।
"ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान कांप उठा है"
मनोज सिन्हा ने एक और बड़ा बयान दिया उन्होंने कहा कि भारतीय सेना द्वारा किया गया ऑपरेशन सिंदूर, पाकिस्तान के लिए एक साफ संदेश था: "अब कोई आतंकी हमला बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।" इस ऑपरेशन में भारतीय सेना ने सीमा पार जाकर पाकिस्तान के एयरबेस को तबाह किया, और दुनिया को दिखा दिया कि भारत अब जवाब नहीं देता, बल्कि वार करता है। उन्होंने यह भी कहा कि इसके बाद से जम्मू-कश्मीर में कोई बड़ा आतंकी हमला नहीं हुआ, और इस शांति को बरकरार रखने के लिए गृह मंत्रालय, रक्षा मंत्रालय और खुफिया एजेंसियां दिन-रात सतर्क हैं।
"अमरनाथ यात्रा बनेगी बदलाव की नयी शुरुआत"
पहलगाम हमले के बाद पर्यटकों की संख्या में गिरावट दर्ज की गई है। लेकिन उपराज्यपाल को उम्मीद है कि अमरनाथ यात्रा एक नया मोड़ साबित होगी। उन्होंने कहा कि सभी जरूरी सुरक्षा उपायों को लागू कर दिया गया है और अब पर्यटक निडर होकर कश्मीर आ सकते हैं।
लेकिन क्या सिर्फ ज़िम्मेदारी लेना काफी है?
इसी बीच कांग्रेस नेता पवन खेड़ा का बयान नई बहस को जन्म देता है। उन्होंने कहा—"82 दिन बाद जिम्मेदारी कबूल करना क्या काफी है? क्या ये सिर्फ बयान था या इस्तीफे की भूमिका?" खेड़ा ने सवाल उठाया कि यदि मनोज सिन्हा ने सुरक्षा चूक की जिम्मेदारी ली है, तो फिर क्या उन्हें बर्खास्त नहीं किया जाना चाहिए? या फिर प्रधानमंत्री कार्यालय उन्हें बचा रहा है?
असली सवाल अब भी बाकी है…
मनोज सिन्हा का बयान भले ही ईमानदारी से भरा हो, लेकिन सवालों की बाढ़ अब भी थमी नहीं है। इतने दिन चुप्पी क्यों साधी गई? हमले से पहले सुरक्षा एजेंसियां क्या कर रही थीं? क्या और भी हमलों की साजिशें चल रही हैं? और सबसे बड़ा सवाल—क्या अब कोई और पहलगाम न हो? क्योंकि अब लोग सिर्फ जवाब नहीं चाहते, कार्यवाही चाहते हैं। अब देश पूछ रहा है—“कब तक चुप रहोगे?” और शायद अगला हमला किसी जवाब का इंतज़ार नहीं करेगा।
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