Supreme Court Guidelines: छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य पर सुप्रीम कोर्ट के विस्तृत दिशानिर्देश

Mental Health of Students in India : सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम दिशानिर्देशों को लागू करते हुए भारत में छात्र आत्महत्याओं को “महामारी” की संज्ञा दी।

Neel Mani Lal
Published on: 28 July 2025 9:40 AM IST
Supreme Court Guidelines For Students in India
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Supreme Court Guidelines For Students in India (Image Credit-Social Media)

Supreme Court Guidelines: भारत में छात्रों के बीच आत्महत्या की बढ़ती घटनाओं को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 25 जुलाई 2025 को एक ऐतिहासिक निर्णय में स्कूलों, कॉलेजों और कोचिंग संस्थानों में छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य की रक्षा के लिए 15 बाध्यकारी दिशानिर्देश जारी किए हैं। यह फैसला न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने उस याचिका के जवाब में दिया जिसमें विजयवाड़ा में एक 17 वर्षीय नीट छात्रा की संदिग्ध परिस्थितियों में हॉस्टल की छत से गिरकर मृत्यु का मामला उठाया गया था।

मानसिक स्वास्थ्य को लेकर बढ़ती चिंता, संस्थागत जवाबदेही और छात्रों पर शैक्षणिक दबाव को कम करने के लिए उठाए गए इन उपायों का उद्देश्य एक सहायक और सुरक्षित शैक्षणिक माहौल बनाना है। सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 32 (मूल अधिकारों के प्रवर्तन) और अनुच्छेद 141 (न्यायालय के आदेशों को कानून मानने) के तहत अंतरिम दिशानिर्देशों को लागू करते हुए भारत में छात्र आत्महत्याओं को “महामारी” की संज्ञा दी।

मानसिक स्वास्थ्य संकट की भयावहता

यह मामला दर्शाता है कि प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्रों, विशेष रूप से NEET जैसे कठिन परीक्षाओं के लिए तैयारी करने वाले युवाओं में मानसिक तनाव और आत्मघाती प्रवृत्ति तेजी से बढ़ रही है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी दिशानिर्देशों में काउंसलिंग सेवाएं, अभिभावकों की भागीदारी, और ऐसे शैक्षणिक व्यवहारों पर रोक शामिल है जो छात्रों पर अनावश्यक मानसिक दबाव डालते हैं।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के अनुसार, पिछले कुछ वर्षों में हर साल 10,000 से अधिक छात्र आत्महत्या कर रहे हैं। यह फैसला शिक्षा नीति में दूरगामी बदलाव लाने की क्षमता रखता है।

सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी 15 बाध्यकारी दिशानिर्देश

1. अनिवार्य काउंसलिंग सेवाएं:

जिन संस्थानों में 100 या उससे अधिक छात्र हैं, वहां कम से कम एक प्रशिक्षित काउंसलर/मनोवैज्ञानिक/सामाजिक कार्यकर्ता की नियुक्ति अनिवार्य होगी। छोटे संस्थान बाहरी विशेषज्ञों से संपर्क स्थापित करें।

2. मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता कार्यक्रम:

छात्रों, शिक्षकों और अभिभावकों के लिए मानसिक स्वास्थ्य, तनाव प्रबंधन और खतरे के संकेतों पर नियमित कार्यशालाएं आयोजित की जाएं।

3. अभिभावकों की भागीदारी:

स्कूलों और कोचिंग संस्थानों को शैक्षणिक और भावनात्मक मुद्दों पर अभिभावकों को शामिल करना होगा, जिसमें मानसिक स्वास्थ्य पर आधारित पेरेंट-टीचर मीटिंग्स अनिवार्य हैं।

4. शैक्षणिक दबाव का नियमन:

पाठ्यक्रम समयसारणी की समीक्षा कर अत्यधिक पढ़ाई और अनावश्यक तनाव से छात्रों को राहत दी जाए, साथ ही पर्याप्त विश्राम और अवकाश सुनिश्चित करें।

5. कठोर अनुशासनात्मक उपायों पर प्रतिबंध:

सार्वजनिक रूप से अपमान या अत्यधिक दंड जैसे मनोवैज्ञानिक रूप से हानिकारक तरीकों पर पूरी तरह रोक लगाई जाए।

6. सुरक्षित शिकायत तंत्र:

छात्रों के लिए गुमनाम शिकायत प्रणालियों की स्थापना की जाए ताकि वे मानसिक तनाव, बुलिंग या संस्थागत दबावों की शिकायत बिना डर के कर सकें।

7. शिक्षकों का प्रशिक्षण:

शिक्षकों को मानसिक स्वास्थ्य के लक्षणों की पहचान और उचित प्रतिक्रिया देने के लिए अनिवार्य प्रशिक्षण दिया जाए।

8. एंटी-बुलिंग नीतियां:

कठोर एंटी-बुलिंग नीति लागू हो, जिसके उल्लंघन पर साफ सजा निर्धारित हो।

9. उच्च जोखिम वाले छात्रों की निगरानी:

तनाव या आत्मघाती प्रवृत्ति दिखाने वाले छात्रों की पहचान और समय पर हस्तक्षेप अनिवार्य किया जाए।

10. प्रतियोगी परीक्षा के दबाव को सीमित करना:

कोचिंग संस्थान छात्रों की सार्वजनिक रैंकिंग या अवास्तविक लक्ष्य निर्धारण जैसे अनुचित प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने वाले तरीकों से बचें।

11. हेल्पलाइन तक पहुंच:

राष्ट्रीय और स्थानीय मानसिक स्वास्थ्य हेल्पलाइन नंबर प्रमुखता से प्रदर्शित किए जाएं और छात्रों को इनका उपयोग समझाया जाए।

12. मानसिक स्वास्थ्य के लिए अवसंरचना:

संस्थानों में काउंसलिंग और विश्राम के लिए विशेष स्थान की व्यवस्था हो।

13. नियमित मानसिक स्वास्थ्य मूल्यांकन:

छात्रों की स्वेच्छा से मानसिक स्वास्थ्य जांच की जाए, अभिभावक या छात्र की सहमति से।

14. NGO के साथ सहयोग:

स्कूल/कॉलेज मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित NGOs के साथ सहयोग करें ताकि और संसाधन व विशेषज्ञता प्राप्त हो सके।

15. जवाबदेही और अनुपालन निगरानी:

राज्य शिक्षा बोर्ड जैसे नियामक निकायों को अनुपालन की निगरानी करनी होगी, और उल्लंघन पर दंडात्मक कार्रवाई होनी चाहिए।

क्रियान्वयन की चुनौतियां

हालांकि इन दिशानिर्देशों का उद्देश्य सराहनीय है, लेकिन भारत की विशाल और विविध शैक्षणिक व्यवस्था में लागू करना कठिन हो सकता है।

• छोटे स्कूल और कोचिंग संस्थान प्रशिक्षित काउंसलर नियुक्त करने या प्रशिक्षण देने के लिए वित्तीय रूप से सक्षम नहीं हो सकते।

• भारत में मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों की भारी कमी है — WHO के अनुसार प्रति 1 लाख लोगों पर मात्र 0.3 मनोचिकित्सक उपलब्ध हैं।

• साथ ही, मानसिक स्वास्थ्य को लेकर सामाजिक कलंक अब भी छात्रों और अभिभावकों को मदद लेने से रोक सकता है।

इसलिए, इन दिशानिर्देशों की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि सरकार इन्हें कितनी सख्ती से लागू करती है, उचित फंडिंग सुनिश्चित करती है और जन-जागरूकता अभियान चलाकर सामाजिक सोच में बदलाव लाती है।

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