'राष्ट्रपति राय मांगें तो इसमें गलत क्या है?' SC ने केरल-तमिलनाडु सरकार को लगाई फटकार

Supreme Court News: सुप्रीम कोर्ट ने केरल और तमिलनाडु सरकारों को फटकार लगाते हुए कहा कि अगर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू अदालत से राय मांगती हैं तो इसमें गलत क्या है।

Harsh Srivastava
Published on: 19 Aug 2025 3:31 PM IST
राष्ट्रपति राय मांगें तो इसमें गलत क्या है? SC ने केरल-तमिलनाडु सरकार को लगाई फटकार
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Supreme Court News: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा सुप्रीम कोर्ट से राय मांगे जाने के खिलाफ दायर याचिकाओं पर आज सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है। शीर्ष अदालत ने केरल और तमिलनाडु सरकारों से सीधा सवाल किया, "यदि महामहिम राष्ट्रपति अदालत की राय जानना चाहती हैं, तो इसमें गलत क्या है?" इस सवाल के बाद दोनों राज्यों की दलीलें कमजोर पड़ गईं और राज्यपालों के अधिकारों पर एक नई बहस शुरू हो गई है।

क्या है पूरा मामला?

पूरा विवाद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत सुप्रीम कोर्ट में दायर एक रेफरेंस से शुरू हुआ। इस रेफरेंस में राष्ट्रपति ने पूछा है कि क्या सुप्रीम कोर्ट राज्यपालों और खुद राष्ट्रपति को किसी विधेयक पर फैसला लेने के लिए कोई निश्चित समय सीमा दे सकता है। राष्ट्रपति का यह कदम सुप्रीम कोर्ट के अप्रैल में दिए गए उस फैसले के जवाब में था, जिसमें कोर्ट ने राज्यपालों और राष्ट्रपति से कहा था कि वे तय समय के भीतर विधेयकों पर फैसला लें। केरल और तमिलनाडु ने राष्ट्रपति के इस रेफरेंस का यह कहते हुए विरोध किया है कि यह सुनवाई के लायक नहीं है।

जजों की बेंच ने लगाई फटकार

चीफ जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस सूर्यकांत समेत पांच जजों की बेंच ने इस मामले पर सुनवाई करते हुए दोनों राज्यों की दलीलों पर कड़ी आपत्ति जताई। चीफ जस्टिस ने कहा, "क्या आप अपनी बात को गंभीरता से कह भी रहे हैं?" कोर्ट ने स्पष्ट किया कि वे यहां सिर्फ सलाह देने की स्थिति में हैं, किसी फैसले को बदलने के लिए नहीं।जब सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी कि कोर्ट किसी खामी वाले फैसले को पलट भी सकता है, तो चीफ जस्टिस ने कहा, "हम राय को पलट सकते हैं, लेकिन फैसला नहीं बदल सकते।"

क्यों है यह मामला इतना अहम?

यह मामला सिर्फ कानूनी नहीं, बल्कि राजनीतिक भी है। विपक्षी पार्टियों द्वारा शासित राज्य सरकारें राज्यपालों पर केंद्र के एजेंट के रूप में काम करने और विधेयकों को बेवजह रोकने का आरोप लगाती रही हैं। वहीं, राज्यपालों का कहना है कि उनके काम में सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप संवैधानिक मर्यादाओं का उल्लंघन है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए यह साफ कर दिया है कि वह संविधान के प्रावधानों के तहत ही काम करेगा। अब सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में क्या राय देता है, और क्या राज्यपालों के अधिकारों पर कोई नई संवैधानिक सीमा तय होती है।

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Harsh Srivastava

Harsh Srivastava

News Coordinator and News Writer

Harsh Shrivastava is an enthusiastic journalist who has been actively writing content for the past one year. He has a special interest in crime, politics and entertainment news. With his deep understanding and research approach, he strives to uncover ground realities and deliver accurate information to readers. His articles reflect objectivity and factual analysis, which make him a credible journalist.

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