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SC Stray Dog Order: मनुष्य और कुत्तों के बीच सभ्यतागत संबंध, सर्वोच्च न्यायालय के विवादास्पद निर्देश पर चिंतन
Supreme Court Stray Dog Order: सर्वोच्च न्यायालय का निर्देश: जनसुरक्षा और पशु-अधिकारों के बीच टकराव
Supreme Court Stray Dog Order (Image Credit-Social Media)
Supreme Court Stray Dog Order: भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में आवारा कुत्तों को लेकर एक महत्वपूर्ण निर्देश जारी किया है। बढ़ते कुत्ते के काटने की घटनाओं पर सुओ मोटू संज्ञान लेते हुए अदालत ने दिल्ली सरकार और स्थानीय निकायों को आदेश दिया है कि आवारा कुत्तों को मोहल्लों से उठाकर शेल्टर में रखा जाए।
निर्देश में स्पष्ट कहा गया है कि शेल्टर में ले जाए जाने के बाद कुत्तों को वापस सड़कों पर नहीं छोड़ा जाएगा। अदालत ने इस निर्णय को “बड़े जनहित” का मामला बताया है, विशेष रूप से शिशुओं और बच्चों को कुत्ते के काटने और रेबीज़ के ख़तरे से बचाने के लिए।
प्रशासन को बड़े पैमाने पर शेल्टर बनाने का आदेश दिया गया है, जिनकी शुरुआती क्षमता लगभग 5,000 कुत्तों की होगी। इनके लिए पर्याप्त कर्मचारी नियुक्त करने होंगे, जो नसबंदी, टीकाकरण और देखभाल का काम संभालें। एक हेल्पलाइन भी बनाई जाएगी, जिस पर कुत्ते के काटने की घटना की सूचना मिलने पर कुछ घंटों के भीतर कार्रवाई करनी होगी।
हालांकि, यह आदेश गहन विवाद का कारण बन गया है क्योंकि यह एनिमल बर्थ कंट्रोल (ABC) नियम, 2023 से टकराता है, जिसके तहत आवारा कुत्तों की नसबंदी और टीकाकरण के बाद उन्हें उनके मूल स्थान पर छोड़ने का प्रावधान है। कुछ लोग इस आदेश को जनसुरक्षा के लिए आवश्यक मानते हैं, जबकि पशु-अधिकार कार्यकर्ता और कई राजनीतिक नेता इसे “अमानवीय,” “अवैज्ञानिक” और अव्यावहारिक करार दे रहे हैं।
मनुष्य-कुत्ते संबंध का विकास
मनुष्य और कुत्ते का रिश्ता पशु-जगत का सबसे अद्भुत और प्राचीन उदाहरण है। माना जाता है कि यह संबंध 15,000 से 40,000 वर्ष पहले शुरू हुआ, जब अनुकूल और मिलनसार भेड़िये धीरे-धीरे मनुष्यों के साथ सहजीवी संबंध में बंधने लगे।
शुरुआत में ये कुत्ते मानव बस्तियों के आसपास भोजन की तलाश करते थे। बदले में, मनुष्य उनकी चौकसी की क्षमता को महत्व देने लगे, क्योंकि वे उन्हें शिकारियों और हमलावरों से सचेत करते थे। यह रिश्ता धीरे-धीरे शिकार, चराई और पहरेदारी तक विकसित हुआ।
पुरातात्त्विक साक्ष्य बताते हैं कि जर्मनी में 14,000 वर्ष पुराने एक कब्रिस्तान में दो मनुष्यों के साथ एक विकलांग कुत्ते को दफनाया गया था। इससे यह प्रमाणित होता है कि कुत्तों को केवल उपयोगिता के लिए नहीं, बल्कि साथी के रूप में भी सम्मानित किया जाता था।
प्राचीन भारतीय संस्कृति और पौराणिक कथाओं में कुत्ते
भारतीय परंपराओं में कुत्तों को बहुआयामी भूमिकाओं में देखा गया है। ऋग्वेद में सरमा का उल्लेख है—इंद्र की दूत एक दिव्य कुतिया। उसके संतान शरवर और श्याम चार-नेत्री कुत्ते हैं, जो यमलोक के द्वार की रक्षा करते हैं और मृतात्माओं का मार्गदर्शन करते हैं।
महाभारत में युधिष्ठिर और कुत्ते की कथा सबसे भावुक उदाहरण है। स्वर्गारोहण यात्रा के अंत में युधिष्ठिर के साथ केवल एक वफादार कुत्ता ही बचता है। इंद्र उससे कहता है कि स्वर्ग में प्रवेश के लिए उसे इस “अपवित्र” कुत्ते को त्यागना होगा। युधिष्ठिर मना कर देता है और कहता है कि वह स्वर्ग त्याग सकता है, लेकिन एक वफादार जीव का साथ नहीं छोड़ेगा। तब इंद्र प्रकट करता है कि वह कुत्ता वास्तव में धर्मदेव था, जिसने युधिष्ठिर की परीक्षा ली थी। यह कथा वफ़ादारी और करुणा को स्वर्ग से भी श्रेष्ठ मानती है।
धार्मिक प्रतीकों में भी कुत्ते को विशेष स्थान मिला। भगवान भैरव, जो शिव का उग्र रूप हैं, कुत्ते पर आरूढ़ होते हैं—यह उसकी निष्ठा और रक्षक-भावना का प्रतीक है। भगवान दत्तात्रेय के साथ चार कुत्ते दिखाए जाते हैं, जो चार वेदों का प्रतिनिधित्व करते हैं। भीमबेटका जैसी गुफा-चित्रकारी और रूपनगर व बुरज़हॉम जैसे पुरातात्त्विक स्थलों पर मिले अवशेष कुत्तों की प्राचीन और सम्मानजनक स्थिति को दर्शाते हैं।
दार्शनिक दृष्टिकोण: प्लेटो और कुत्ते
भारतीय परंपरा के अलावा ग्रीक दार्शनिक प्लेटो ने भी कुत्तों को गहरा महत्व दिया। रिपब्लिक में उन्होंने आदर्श राज्य के रक्षकों की तुलना अच्छे कुत्तों से की। एक अच्छे कुत्ते की तरह रक्षक को अजनबियों और शत्रुओं के प्रति उग्र लेकिन अपने नागरिकों के प्रति कोमल और स्नेही होना चाहिए।
प्लेटो ने कुत्तों को “ज्ञान-प्रेमी” भी कहा। उनका मानना था कि कुत्ता मित्र और शत्रु की पहचान ज्ञान और अज्ञान के आधार पर करता है। यही गुण उसे दार्शनिक दृष्टि से विशिष्ट बनाता है। प्लेटो के लिए यही वह आधार था, जिस पर आगे चलकर दार्शनिक-राजाओं की अवधारणा विकसित हुई।
आधुनिक युग में मनुष्य-कुत्ता संबंध
आज कुत्ते मुख्य रूप से साथी और परिवार के सदस्य के रूप में देखे जाते हैं। वे बिना शर्त प्यार, सुरक्षा और भावनात्मक सहारा प्रदान करते हैं। वैज्ञानिक दृष्टि से कुत्तों के साथ समय बिताने से तनाव और चिंता कम होती है, कोर्टिसोल का स्तर घटता है और ऑक्सिटोसिन का उत्पादन बढ़ता है।
कुत्तों के साथ सैर, दौड़ और खेल इंसानों को सक्रिय जीवनशैली अपनाने के लिए प्रेरित करते हैं, जिससे हृदय स्वास्थ्य बेहतर होता है और मोटापा कम होता है। वहीं कुत्तों को भोजन, सुरक्षा और सामाजिकता मिलती है, जो उनकी मानसिक और शारीरिक भलाई के लिए ज़रूरी है। आधुनिक पालतू मालिक पशु-चिकित्सा, पोषण और प्रशिक्षण पर भारी निवेश करते हैं, जिससे यह रिश्ता और गहरा हो गया है।
आदेश की आलोचना और आगे का रास्ता
11 अगस्त का आदेश कई लोगों के गले नहीं उतरा। राहुल गांधी ने इसे “मानवीय और वैज्ञानिक नीतियों से पीछे हटना” बताया। उन्होंने कहा कि आवारा कुत्ते “समस्या” नहीं, बल्कि हमारे समाज का हिस्सा हैं, और उनका सामूहिक हटाना क्रूर और अल्पदृष्टि है।
पूर्व केंद्रीय मंत्री और पशु-अधिकार कार्यकर्ता मेनका गांधी ने इसे “अव्यावहारिक,” “वित्तीय रूप से असंभव” और “पारिस्थितिक संतुलन के लिए हानिकारक” कहा। उन्होंने चेतावनी दी कि कुत्तों को हटाने से बंदरों और अन्य जानवरों की समस्या बढ़ जाएगी।
मामले की गंभीरता को देखते हुए सीजेआई गवई ने इसे बड़ी तीन-न्यायाधीशों की पीठ को सौंप दिया है। अब जस्टिस विक्रम नाथ की अध्यक्षता वाली पीठ ने आदेश सुरक्षित रख लिया है। दिल्ली और एनसीआर के कुत्ता-प्रेमी एक मानवीय और संतुलित समाधान की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
एक शाश्वत बंधन
मनुष्य और कुत्ते का रिश्ता हजारों वर्षों की साझा यात्रा का प्रतीक है। यह केवल साथीपन या सुरक्षा का प्रश्न नहीं, बल्कि करुणा, निष्ठा और विश्वास का प्रतीक है। अदालतों और सरकारों के सामने चुनौती यही है कि जनसुरक्षा और पशु-कल्याण दोनों को संतुलित रखते हुए ऐसा रास्ता निकाला जाए, जिसमें करुणा और जिम्मेदारी साथ-साथ चलें।
(लेखक डॉ. शशि दुबे, भारतीय प्राकृतिक एवं आध्यात्मिक विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली के संस्थापक अध्यक्ष और जीवन-मार्गदर्शक हैं।)
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