TRENDING TAGS :
जब अहिंसावादी गांधीजी ने दिए थे आवारा कुत्तों को मारने का आदेश! क्या है पूरा मामला? जानिए विस्तार से
Gandhiji Dog Controversy: 2001 में भारत सरकार ने पशु जन्म नियंत्रण (ABC) नियम लागू किया, जिसके तहत आवारा कुत्तों को मारने के बजाय उनकी नसबंदी (sterilization) और रेबीज सहित अन्य टीकाकरण के बाद उन्हें उनके मूल स्थान पर छोड़ने की नीति अपनाई गई।
Delhi Street Dog Controversy: अभी हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट द्वारा देश की राजधानी दिल्ली में सड़कों पर घूम रहे कुत्तों को हटाने का निर्देश दिया गया । जिसकारण देशभर के पशु प्रेमियों के बीच आक्रोश की लहर है । इसी विवाद के बिच एक विषय सामने आ रहा है जो गांधीजी से जुड़ा हुआ है । महात्मा गांधी जिन्हें अहिंसा के प्रतीक के रूप में जाना जाता है, एक ऐसा निर्णय लिया था जो आज भी विवादों का विषय है । इस निर्णय के तहत गांधीजी ने 1926 में 60 आवारा कुत्तों को मारने की अनुमति दी थी । लेकिन गांधीजी ने ऐसा निर्णय क्यों लिया था? और इसके पीछे ऐसी क्या वजह थी? आइये विस्तार से इस विषय को समझते है ।
कपड़ा मिल के इलाक़े में कुत्तों की दहशत
गांधीजी हमेशा से ही जीव हत्या के सख्त खिलाफ थे और अहिंसा को ही अपना धर्म मानते थे। किंतु 1926 में गांधीजी को भी एक कठोर निर्णय लेना पड़ा था ।और जब उनके इस फैसले पर विवाद खड़ा हो गया था तो उन्होंने इस हिंसावादी निर्णय पर स्पष्टीकरण भी दिया था । दरअसल 1926 में अहमदाबाद के एक कपड़ा मिल के इलाक़े में 60 आवारा कुत्तों की दहशत फ़ैल गई थी । यह कुत्ते पागल हो चुके थे आसपास के लोगों के लिए खतरा बन गए थे। जब कपड़ा मिल के मालिक अंबालाल साराभाई इन कुत्तों के बारे में जानकारी मिली थी तो उन्होंने इन कुत्तों को मारने का आदेश जारी कर दिया था । अंबालाल साराभाई का यह आदेश लोगों में विवाद का कारण बन गया।
गांधीजी से सलाह
अंबालाल साराभाई के निर्णय पर जब विवाद बढ़ा, तो अंबालाल साराभाई इस मामले में गांधीजी से सलाह लेने साबरमती आश्रम पहुंच गए थे ।अंबालाल साराभाई ने पूरी स्थिति गांधीजी को बताई । जिसके बाद गांधीजी ने अंबालाल साराभाई के उन आवारा कुत्तों को मारने का आदेश जारी रखते हुए अंबालाल साराभाई के निर्णय का समर्थन किया था। उनके इन समर्थन के बाद विवाद खड़ा हो गया और इस निर्णय से कई लोग नाराज हुए थे।
गांधीजी का इस पर तर्क
इस निर्णय का समर्थन करते हुए गांधीजी ने कहाँ था की, "अगर इन पागल कुत्तों को छोड़ दिया जाए तो वे लोगों को काटकर अधिक नुकसान पहुंचा सकते हैं जो कि बड़ा पाप होगा"। इसलिए उन्होंने इस मामले में कुत्तों को मारने की अनुमति दी थी । गांधीजी ने इसे एक आवश्यक कर्तव्य के रूप में देखा जो समाज की सुरक्षा के लिए जरूरी था।
गांधीजी की अहिंसा की व्याख्या
गांधीजी ने यह साफ कह दिया था कि उनका यह निर्णय पूरी तरह से मूर्खता या हिंसा की प्रेरणा से नहीं था, बल्कि एक गहन सोच और जिम्मेदारी से लिया गया कदम था। उन्होंने कहा कि अहिंसा का मतलब केवल प्राणों की रक्षा नहीं, बल्कि समाज की सुरक्षा और दूसरों के जीवन की रक्षा भी है। जब कोई प्राणी या मनुष्य समाज खतरा बन जाए, तो उसकी हत्या भी एक कर्तव्य बन जाता है। उन्होंने एक उदाहरण भी दिया था, कि जैसे कोई व्यक्ति बेतहाशा हिंसा करता हुआ सड़क पर दौड़ रहा हो और किसी को मार रहा हो तो समाज के लिए उससे खुद को और दूसरों को बचाना जरूरी हो जाता है। इसी प्रकार वह 60 पागल कुत्ते भी ऐसी स्थिति में आ गए थे जो अब समाज के लिए खतरा थे ।
लोगों की प्रतिक्रिया
गांधीजी के इस निर्णय पर समाज में हलचल मच गई थी । गांधीजी के इस निर्णय से कई लोग नाराज हुए और इस निर्णय को गांधीजी के अहिंसावादी सिद्धांतों के विरोध में बताने लगे । गांधीजी पर तीखे आरोप लगे और उन्हें कई कठोर आलोचनाओं का सामना करना पड़ा। जब जीव दया समिति ने गांधीजी को पत्र लिखा, तब उन्होंने इसका जवाब अपने साप्ताहिक पत्रिका 'यंग इंडिया' में विस्तार से दिया। उन्होंने कई पन्नों तक इस पर तर्क दिया और समझाया कि कभी-कभी प्राण हरण कर्तव्य बन जाता है।
इस घटना का महत्त्व
गांधीजी का यह निर्णय उनके व्यक्तित्व के जटिल पहलुओं को दर्शाता है । एक ओर वे जीवन की रक्षा और अहिंसा के लिए प्रतिबद्ध थे, वहीं वे दृढ़ता से समाज की सुरक्षा और जिम्मेदारी भी लेते थे। उन्होंने यह माना कि कभी-कभी ऐसी परिस्थितियां आती हैं कि हमें अपने सिद्धांतों में पीछे छोड़ना पड़ता है ताकि समाज को बड़े कष्ट और अपराध से बचाया जा सके । यह घटना आज भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह इस बात की याद दिलाती है कि समाज और कानून की रक्षा में कभी - कभी कठोर कदम उठाना पड़ सकता है तथा सत्य, न्याय और सुरक्षा के बीच संतुलन बनाना पड़ता है।
इससे पहले सरकारी आदेश और जानवरों का संहार
बॉम्बे कुत्ता दंगों (Bombay Dog Riots), 1832 - 19वीं शताब्दी में ब्रिटिश सरकार ने बॉम्बे में आवारा कुत्तों को मारने की नीति शुरू की, जिसमें कुत्ते पकड़ने वालों को प्रत्येक कुत्ते के लिए पैसे दिए जाते थे। हालाँकि पारसी समुदाय ने इसे धार्मिक अपमान माना और विरोध प्रदर्शन के रूप में शहर में दंगे हो गए। जिसे बॉम्बे डॉग राइट्स (Bombay Dog Riots) के नाम से जाना जाता है । अंततः ब्रिटिश प्रशासन ने कुत्तों को मारने की बजाय शहर से बाहर ले जाने का आदेश दिया। यह पहला ऐसा सामूहिक विरोध था जिसने अधिकारियों को नीति बदलने पर मजबूर किया।
ब्रिटिश इंडिया में वाइल्ड जानवरों का सफाया - ब्रिटिश शासन के समय भारत में बाघों और कई जंगली जानवरों को 'हानिकारक जीव' समझा जाता था। उस दौर में औपनिवेशिक सरकार ने इन जानवरों के सफाए की नीति अपनाई और जगह-जगह बाघों को मारने के लिए इनाम घोषित किए थे । इससे बाघों का शिकार बढ़ गया और उनकी संख्या तेजी से घटने लगी। 19वीं और 20वीं सदी की शुरुआत में बाघों को न सिर्फ प्रशासनिक कारणों से, बल्कि अंग्रेज अधिकारियों और रजवाड़ों के शिकार के शौक के लिए भी बड़ी संख्या में मारा गया।
मद्रास में कुत्तों की हत्या (1970-1990) - मद्रास (अब चेन्नई) में एक समय में सड़क के कुत्तों की बड़े पैमाने पर और बेहद क्रूर तरीकों से हत्या की जाती थी।इन कुत्तों को कभी बिजली का करंट दिया जाता था तो कभी जहर देकर या पीटकर उनकी जान ली जाती थी । 1964 तक हर साल करीब 16,000 कुत्ते मारे जाते थे और 1990 के दशक में भी रोज़ सैकड़ों कुत्तों की जान ली जाती थी। जिसके बाद 1995 में ब्लू क्रॉस ऑफ इंडिया ने 'पशु जन्म नियंत्रण–रेबीज़ विरोधी' (ABC -AR) कार्यक्रम शुरू किया जिसे बाद में नगर निगम द्वारा अपनाया गया । इस योजना से चेन्नई में कुत्तों की हत्या में कमी आई और 2009 तक रेबीज़ के मामलों में काफी नियंत्रण पाया गया।
घातक नरभक्षी बाघ अवनि - महाराष्ट्र की ‘अवनी’ या ‘T1’ नाम की बाघिन पर आरोप था कि वह कई ग्रामीणों की मौत की वजह बनी थी। नवंबर 2018 में वन विभाग के आदेश पर एक शिकारी ने उसे गोली मार दी गई । इस घटना ने नैतिक, कानूनी और वन्यजीव संरक्षण से जुड़ी तीखी बहस खड़ी कर दी। कुछ लोगों ने इसे ज़रूरी कदम माना, जबकि कईयों ने इसे ‘नरसंहार’ कहा। मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा, जहां डीएनए जांच से पता चला कि उस पर लगाए गए सभी मानव-हत्या के आरोप पूरी तरह सही नहीं थे।
नीलगायों का उपद्रव और सरकारी प्रतिक्रिया - बिहार, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में नीलगायों की संख्या बढ़ने से किसानों की फसलों को भारी नुकसान हो रहा है। गेहूं, मसूर, मक्का, सरसों, आलू और हरी सब्जियों जैसी फसलें नीलगाय और जंगली सूअर बड़े पैमाने पर नष्ट कर देते हैं। किसान प्रशासन और वन विभाग से नीलगायों से सुरक्षा और उनकी संख्या नियंत्रित करने के उपाय की मांग कर रहे हैं। बिहार में नीलगायों को मारने और गोली मारने की नीति अपनाई गई है, साथ ही उन्हें पकड़कर सुरक्षित स्थानों पर ले जाने की कोशिशें भी हो रही हैं। कई जगह किसान जाल, आवाज़ या अन्य तरीकों से इन्हें रोकने की कोशिश करते हैं, लेकिन नीलगाय अक्सर जाल तोड़कर फसल नष्ट कर देते हैं। कुछ क्षेत्रों से यह शिकायत भी आई है कि नीलगायों को मारने में क्रूर तरीके, जैसे जिंदा दफनाना, अपनाए जा रहे हैं।
क्या है हाल का मामला ?
दिल्ली में हाल ही में आवारा कुत्तों को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। सुप्रीम कोर्ट ने 28 जुलाई 2025 को एक आदेश दिया है कि दिल्ली-एनसीआर की सड़कों से सभी आवारा कुत्तों को पकड़कर दो महीने के भीतर उनकी नसबंदी की जाए और उन्हें डॉग शेल्टर्स में रखा जाए। कोर्ट ने स्थानीय प्रशासन को निर्देश दिया है कि आवारा कुत्तों को सड़क पर न छोड़ा जाए और हर दिन इस कार्रवाई का रिकॉर्ड रखा जाए। साथ ही, शिकायत मिलने पर चार घंटे के भीतर कार्रवाई करना अनिवार्य होगा।
यह आदेश कुत्तों के हमलों, रेबीज के बढ़ते मामलों और इससे होने वाली मौतों के कारण लिया गया है। पिछले वर्षों में दिल्ली में कुत्तों के काटने की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं, जिससे लोगों में भय और असुरक्षा व्याप्त है।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का समाज में दो तरह का प्रभाव देखने को मिल रहा है । एक ओर कई लोग इसे जनता की सुरक्षा के लिए जरूरी मान रहे हैं, जबकि पशूप्रेमी और पशु अधिकार समर्थक इसे आवारा कुत्तों के प्रति अमानवीय और कठोर कदम बता रहे हैं। पशूप्रेमी इस फैसले के खिलाफ दिल्ली के कर्तव्य पथ पर बड़े विरोध प्रदर्शन भी कर चुके हैं।
स्थानीय नगर निगम अब डॉग शेल्टर्स बनाने, नसबंदी अभियान चलाने और आवारा कुत्तों से जुड़ी शिकायतों के लिए हेल्पलाइन शुरू करने जैसी तैयारी कर रहे हैं। वहीं, विरोध करने वालों पर भी कानूनी कार्रवाई के निर्देश भी सुप्रीम कोर्ट ने दिए हैं।
इस विवाद ने यह सवाल उठाया है कि जन सुरक्षा और पशु अधिकारों के बीच संतुलन कैसे बनाया जाए, जिससे मानव जीवन सुरक्षित रहे और जीवों के प्रति दया और जिम्मेदारी भी बनी रहे। इस प्रकार दिल्ली की सड़कों से आवारा कुत्तों को हटाने का निर्णय अब एक सामाजिक, कानूनी और राजनीतिक चर्चा का विषय बन गया है।
AI Assistant
Online👋 Welcome!
I'm your AI assistant. Feel free to ask me anything!