सुप्रीम कोर्ट का TET पास करने का फैसला: भारतभर में शिक्षकों का विरोध, सोशल मीडिया पर 13 लाख ट्वीट्स!

सुप्रीम कोर्ट ने TET पास करने का फैसला दिया, जिससे भारतभर में शिक्षकों का विरोध बढ़ गया। सोशल मीडिया पर #काला कानून वापस लो हैशटैग के तहत 13 लाख से ज्यादा ट्वीट्स हुए।

Harsh Sharma
Published on: 6 Sept 2025 12:54 PM IST (Updated on: 6 Sept 2025 3:13 PM IST)
सुप्रीम कोर्ट का TET पास करने का फैसला: भारतभर में शिक्षकों का विरोध, सोशल मीडिया पर 13 लाख ट्वीट्स!
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TET Passing Decision: 1 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम आदेश दिया था, जिसके तहत सभी शिक्षकों को अपनी सेवा में बने रहने या प्रमोशन प्राप्त करने के लिए टीचर्स एलिजिबिलिटी टेस्ट (TET) पास करना अनिवार्य होगा। न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने कहा कि जिन शिक्षकों की सेवा में पांच साल से अधिक का समय बचा है, उन्हें TET पास करना होगा। इसके बाद यदि वे यह परीक्षा नहीं पास करते तो उन्हें इस्तीफा देना होगा या फिर कंपल्सरी रिटायरमेंट लेना होगा। हालांकि, जिन शिक्षकों की सेवा में केवल पांच साल बचे हैं, उन्हें इस आदेश से राहत दी गई है।

इस आदेश के बाद पूरे देश में टीचरों के बीच विरोध की लहर उठ खड़ी हुई है, और खासतौर पर सोशल मीडिया प्लेटफार्म X पर इसका विरोध देखने को मिल रहा है। '#काला कानून वापस लो हैशटैग के तहत अब तक 13 लाख से ज्यादा ट्वीट्स हो चुके हैं। ट्विटर पर टीचर्स अपनी असहमति जता रहे हैं और इस आदेश के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं।



क्या है पूरा मामला?

2009 में आए RTE (Right to Education) Act के तहत, NCTE (National Council for Teacher Education) ने यह आदेश दिया था कि कक्षा 1 से 8 तक शिक्षक बनने के लिए TET पास करना अनिवार्य होगा। NCTE ने शिक्षक पदों पर नियुक्ति के लिए 5 साल का वक्त दिया था, जिससे शिक्षकों को TET पास करने का समय मिला। बाद में यह समय सीमा बढ़ाकर 4 साल और कर दी गई।

2017 में एक संशोधन के बाद यह और भी स्पष्ट किया गया कि जिन शिक्षकों की नियुक्ति 2010 से पहले हुई थी, उन्हें TET पास करना जरूरी नहीं था। हालांकि, मद्रास हाई कोर्ट ने 2025 में कहा था कि 29 जुलाई 2011 से पहले नियुक्त शिक्षकों को सेवा में बने रहने के लिए TET पास करने की बाध्यता नहीं थी, लेकिन प्रमोशन के लिए यह अनिवार्य था।

क्या कहता है सुप्रीम कोर्ट का फैसला?

सुप्रीम कोर्ट ने अब इसे पूरी तरह से बदलते हुए TET को सेवा में बने रहने और प्रमोशन दोनों के लिए अनिवार्य कर दिया है। इससे वे शिक्षकों के लिए परेशानी बढ़ी है, जिनकी नियुक्ति 2010 से पहले हुई थी। इसके अलावा, यह निर्णय माइनॉरिटी इंस्टीट्यूशंस के लिए अभी तक स्पष्ट नहीं हुआ है, जिस पर आगे कोई आदेश जारी किया जाएगा।

शिक्षकों का विरोध और प्रतिक्रियाएँ

सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद शिक्षकों ने ट्विटर पर जमकर विरोध किया है। #काला कानून वापस लो के ट्रेंड में 13 लाख से ज्यादा ट्वीट्स हुए हैं, जिनमें टीचर्स ने इस आदेश के खिलाफ अपनी नाराजगी जताई है। टीचर्स का कहना है कि उन्हें NCTE के द्वारा 2010 से पहले नियुक्ति पाने वालों को TET की अनिवार्यता से बाहर रखा गया था, और अब अचानक इस नियम को लागू किया गया है, जो उनके साथ अन्याय है।

क्या कह रहे हैं विशेषज्ञ और टीचर्स?

टीचर्स और विशेषज्ञों का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में NCTE द्वारा दी गई छूट को समय सीमा (time-bound) मानकर गलती की है। TET पास करने के लिए दी गई छूट, विशेष रूप से 2010 से पहले नियुक्त शिक्षकों के लिए, निश्चित रूप से अभ्यस्त और उचित था, क्योंकि इसके लिए NCTE द्वारा कानूनी प्रावधान किए गए थे। वहीं, कुछ टीचर्स का कहना है कि यदि सरकार यह चाहती तो उसने 2021 के बाद शिक्षकों को TET के आधार पर सेवा से हटाने का कदम उठाया होता, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। यह स्पष्ट करता है कि सरकार का इरादा टीचर्स को प्रताड़ित करना नहीं था।

क्या हो सकता है अगला कदम?

टीचर्स इस पूरे फैसले पर स्पष्टीकरण की मांग कर रहे हैं और चाहते हैं कि सरकार इस फैसले को स्पष्ट करे। कई शिक्षक संघ और संगठन सरकार से एक बैठक बुलाकर इस फैसले को सुधारने की मांग कर रहे हैं, ताकि जिन शिक्षकों ने पहले से ही काम किया है, उन्हें अचानक परेशान न होना पड़े। अगर सरकार इस मुद्दे पर कोई कदम नहीं उठाती तो शिक्षक अंदोलन करने पर विचार कर सकते हैं। इस फैसले के बाद यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार और सुप्रीम कोर्ट इस मुद्दे को लेकर क्या कदम उठाते हैं और क्या शिक्षकों के इस विरोध को माना जाता है या नहीं।

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