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Tejashwi Yadav Biography: तेजस्वी यादव! क्रिकेट डगआउट से बिहार की सियासत के केंद्र तक
Tejashwi Yadav Political Journey: तेजस्वी प्रसाद यादव लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी के सबसे छोटे बेटे हैं। वह सात बहनें और एक भाई—तेज प्रताप—मिलाकर नौ भाई-बहनों में सबसे छोटे हैं।
Tejashwi Yadav Biography Political Journey 2025 Bihar Election
Tejashwi Yadav Political Journey: तेजस्वी प्रसाद यादव लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी के सबसे छोटे बेटे हैं। वह सात बहनें और एक भाई—तेज प्रताप—मिलाकर नौ भाई-बहनों में सबसे छोटे हैं। इनका जन्म 9 नवम्बर, 1989 को पटना में हुआ था। औपचारिक शिक्षा दिल्ली पब्लिक स्कूल (वी. वसंत विहार/आर.के. पुरम) में हुई। किशोरावस्था में ही पढ़ाई छोड़कर पेशेवर क्रिकेट की राह पकड़ी। दिल्ली अंडर-19, अंडर-17 टीमों तक खेले और इंडियन प्रीमियर लीग में 2008–2012 के बीच दिल्ली डेयरडेविल्स के स्क्वॉड का हिस्सा रहे। पर मैच खेलने का अवसर नहीं मिला ।क्रिकेट-पृष्ठभूमि और शुरुआती करियर की झलक आज भी उनकी जनभाषा, युवा-केंद्रित राजनीति और ‘नौकरियों’ के वादे में दिखाई देती है।
2000 के दशक के उत्तरार्ध में घर-परिवार की राजनीति का भार उनके कंधों पर आने लगा। आरजेडी, जिसे 1997 में लालू प्रसाद ने बनाया था, की विरासत और आलोचनाएँ, दोनों उत्तराधिकार में इन्हें साथ मिलीं।2015 में उन्होंने पहली बार चुनाव राघोपुर, वैशाली से चुनाव लड़ा और जीते। यह वही सीट है, जिससे लालू-राबड़ी कई बार जीत चुके थे। 2020 में फिर राघोपुर से जीते कर विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बने। 2015–17 और 2022–24 के बीच के दो कार्यावधियों में बिहार के उपमुख्यमंत्री भी रहे। राघोपुर का इतिहास-समाजशास्त्र और यादव-केंद्रित मतदान-व्यवहार ने उन्हें निरंतर दृश्यता दी। यहीं से उन्होंने अपन पिता के काल से चले आ रहे ‘ जंगल-राज’ के टैग के बरक्स ‘रोजगार-शासन’ की नई भाषा गढ़ने की कोशिश शुरु की
शिक्षा, परिवार और निजी जीवन
किशोरावस्था में क्रिकेट के लिए औपचारिक पढ़ाई छोड़ने का निर्णय आज भी उनके आलोचकों का प्रिय मुद्दा है। पर समर्थक इसे ‘स्किल-ओवर-डिग्री’ तर्क से बचाते हैं। 2021 में उन्होंने अपनी स्कूल-मित्र रैचेल (राजश्री) यादव से शादी की।
परिवार के स्तर पर आज की सबसे बड़ी राजनीतिक कहानी—बड़े भाई तेज प्रताप से तकरार—खुलकर सार्वजनिक मंचों और सोशल मीडिया तक आ चुकी है तेज प्रताप की आरजेडी से 2025 में निष्कासन एवं नई पार्टी की घोषणा, ‘अनफॉलो’ कवायद और बार-बार के तीखे बयान इस खाई को गहरा दिखाते हैं। आज के चुनावी समय में इसका असर भी माना जा रहा है।
चुनावी सफ़र: कब
तेजस्वी का विधायकी ग्राफ़ अभी तक सीमित मगर प्रभावी है। राघोपुर से 2015 में जीत, 2020 में दोबारा जीत। इस बार 2025 के चुनाव में वही परंपरागत गढ़ एक बार फिर उनकी प्रयोगशाला है। हालाँकि यहां जन सुराज के प्रत्याशी चंचल सिंह के साथ दिलचस्प मुक़ाबला बन रहा है।
प्रशांत किशोर ने ख़ुद मैदान में उतरने के संकेत दिए थे पर आखिर सूची में नाम नहीं दिखा। 2019 लोकसभा का चुनाव न लड़कर राज्य की राजनीति ही उनके चुनावी सफ़र का मुख्य धुरी है। यह जता दिया। 2015 में आरजेडी 80 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी। 2020 में उसने 75 सीटें जीत लीं। ये दोनों चुनाव तेजस्वी की अगुवाई में ही लड़े गये। मतलब, पार्टी का वास्तविक ‘ चेहरा’ अब तेजस्वी ही बन बैटों। भले फैसले अब भी कई बार पिता-नेतृत्व वाले होते हों।
उपमुख्यमंत्री/मंत्री रहते हुए क्या किया
2015–17 की अल्पकालिक लेकिन हाई-विज़िबल पारी में सड़क शिकायतों पर व्हाट्सऐप हेल्पलाइन शुरू करके उन्होंने ‘फास्ट-रिस्पॉन्स’ के मार्फ़त अपना ब्रांडिंग की। यही वह प्रकरण है जब हेल्पलाइन पर शिकायतों से कहीं ज़्यादा 44 हज़ार विवाह प्रस्ताव आने की खबर ने उन्हें राष्ट्रीय सुर्खियों में ला दिया।
बुनियादी ढांचे—विशेषकर सड़कों—पर यह फोकस उस दौर में ‘जंगल-राज’ के तीखे नैरेटिव से व्यवहारिक दूरी बनाता दिखा। इसकी वजह यह भी बनी क्योंकि लालू के राज में सड़क न बनने के जो कारण लालू गिनाते थे। तेजस्वी का काम उसके ठीक उलट था।
2022–24 की पारी में महागठबंधन सरकार के दौरान वह ।रोज़गार को केन्द्रीय मुद्दा बनाकर उभरे। 2020 में 10 लाख नौकरियाँ के नारे से लेकर 2025 में ‘हर परिवार को एक सरकारी नौकरी’ के क़ानून तक का वादा भी तेजस्वी की छवि को जंगल राज से बाहर लाने में कामयाब रहा। हालाँकि विपक्ष इसे अव्यावहारिक बताता है। मगर यह उनकी युवा-समर्थक पोज़िशनिंग को धार देता है। डिप्टी-सीएम के रूप में उन्होंने भर्ती व रिक्तियों की गति तेज होने का श्रेय भी सार्वजनिक मंचों पर लिया। जिसे 2024 में नीतीश ने सार्वजनिक रूप से चुनौती दी कि—“इनका कोई रोल नहीं था।” यानी उपलब्धि-बनाम-श्रेय का राजनीतिक घर्षण यहाँ सामने आया।
तेजस्वी की जवाबी राजनीति
लालू-राज की छवि, क़ानून-व्यवस्था, अपहरण, जातीय ध्रुवीकरण—आज भी आरजेडी के आलोचकों का स्थायी तर्क है। तेजस्वी ने इस विरासत से दूरी बनाने के लिए तीन रणनीतियाँ अपनाईं—
(1) रोज़गार-केंद्रित एजेंडा, ताकि युवाओं का विमर्श ‘क़ानून-व्यवस्था’से हटकर मौक़ों पर आए।
(2) इन्फ्रास्ट्रक्चर/सड़क पर शिकायत-समाधान और तत्काल कार्रवाई की छवि।
(3) परिवारव पार्टी में नई पीढ़ी की निर्णयकारी भूमिका का संकेत।
2025 में जब वे ‘जॉब-ऐक्ट’ का वादा कर रहे हैं और एनडीए उसे ‘अतिशयोक्ति’ कह रहा है, तो असल दाँव यही है। क्या बेरोज़गारी का दर्द “भ्रष्टाचार, जंगल-राज” के नैरेटिव से बड़ा मुद्दा बन सकता है? यही चुनावी सवाल है।
2020 के चुनावी एफ़िडेविट के अनुसार तेजस्वी की कुल चल-अचल संपत्तियाँ लगभग ₹4.74 करोड़ की हैं। इसमें चल संपत्तियाँ ~₹4.73 करोड़ की तथा अचल संपत्तियां ~₹1.16 करोड़ की बिताई जाती है। इसमें कृषि, गैर-कृषि, कॉमर्शियल, आवासीय संपत्तियाँ; 100 ग्राम सोना, 4.25 लाख रुपये का फिक्स्ड डिपॉज़िट तथा बैंक बैलेंस शामिल है। बीते चुनाव के उनके एफिडेविट में 4.10 करोड़ का व्यक्तिगत ऋण, अग्रिम दिया हुआ दर्शाया गया हैं। दायित्वों में निर्धारित कर-बकाया 17,578 का ज़िक्र है। यह 2020 का आत्मघोषित डेटा है।
आरोप-विवाद
2025 में दिल्ली की राउस एवेन्यू कोर्ट ने लालू प्रसाद, राबड़ी देवी और तेजस्वी यादव सहित अन्य पर धोखाधड़ी (IPC 420), आपराधिक साज़िश (120B) इत्यादि धाराओं में आरोप तय किये। अदालत ने कुछ टिप्पणियों में सौदे तथा शेयर वैल्यूएशन पर “grave suspicion” दर्ज किया। यह ट्रायल-स्टेज का मसला है। दोषसिद्धि अथवा बरी—कुछ भी अभी नहीं कहा जा सकता। राजनीतिक संदेश में, यह तेजस्वी पर भ्रष्टाचार की धार तेज करता है। दूसरी ओर, वे और आरजेडी इसे राजनीतिक प्रतिशोध बताते हुए जनता से मुख़ातिब होंगे।
2019 में उन्होंने सार्वजनिक ट्वीट में प्रधानमंत्री को “fake backward” कहा था। 2025 में महाराष्ट्र के गढ़चिरोली में एक पोस्ट को लेकर उन पर एफ़आईआर दर्ज हुई। ये प्रसंग दिखाते हैं कि वे टकराव की संचार-रणनीति अपनाते हैं और भाजपा इन्हें चुनावी मुद्दे में बदलती है।
राजनीतिक रिश्तों का उतार-चढ़ाव
धोखा राजनीतिक भाषा है। तथ्यों में इसे गठबंधन, टिकट, सीट-समझौतों की उथल-पुथल कहना बेहतर है। आरजेडी-कांग्रेस-लेफ्ट के साथ 2020 में तालमेल अच्छा चला। किन्तु 2025 में सीट-बँटवारे पर खींचतान, तथा हाल के दिनों में लालू द्वारा टिकट बाँटना और तेजस्वी द्वारा रातों-रात कुछ बदलाव। इन असहमतियों को भाजपा ‘परिवार में ही अपमान व धोखा’ बताकर भुना रही है। दूसरी ओर, तेजस्वी-समर्थक इसे ‘रणनीतिक सुधार’ और ‘विनिंग-कैलकुलस’ कहते हैं। परिवार-पार्टी के भीतर तेज प्रताप की खुली बगावत (नयी पार्टी/जेडीजे जिहाज़) और रोहिणी आचार्य के क्रिप्टिक पोस्ट—ये सब मिलकर नेतृत्व पर दबाव बनाते हैं। पर यही दबाव तेजस्वी के ‘एकमात्र उत्तराधिकारी’ नैरेटिव को भी मज़बूत करता है। क्योंकि मैदान में वे ही मुख्य फेस हैं।
आरजेडी का गठन और प्रदर्शन
आरजेडी 1997 में बनी और 2015 में 80 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी रही। 2020 में 75 सीटों के साथ फिर भी गठबंधन में धुरी बन कर उभरी। 2025 में दाँव सीधे तेजस्वी के नाम पर है। यह परफॉर्मेंस बताता है कि मतदाता-समाज में पार्टी की जड़ें अब भी गहरी हैं, मगर सत्ता तक पहुँचने के लिए ‘जॉब्स-गवर्नेंस’ जैसा नया एजेंडा ज़रूरी हो चुका है।
2025 की चुनावी पहेली
तेजस्वी की राजनीति का एक तीखा पहलू—मोदी/एनडीए पर सीधी चोट है । जो तेजस्वी की भीड़ में ऊर्जा लाती है। पर कानूनी व सांस्कृतिक जोखिम भी जोड़ती है। जहाँ नीतीश पर बड़े आर्थिक भ्रष्टाचार का दोषसिद्ध मामला नहीं है। वहीं तेजस्वी और परिवार के विरुद्ध अदालती अभियोजन विपक्ष को बड़ा हथियार देता है। क्या इसके बावजूद तेजस्वी मुकाबला कर सकते हैं?इसका हां में उत्तर देने वालों के तर्क हैं कि अगर वे ‘रोज़गार, क़ीमत, माइग्रेशन’ जैसे ठोस मुद्दों पर मतदाता का मन लगातार और विश्वसनीय तरीके से पकड़ पाएँ। लेकिन नहीं कहने वाले बताते हैं कि अगर ट्रायल/चार्ज-फ्रेमिंग की सुर्खियाँ और पारिवारिक कलह—दोनों मिलकर ‘अस्थिरता व भ्रष्टाचार’ की छवि को भारी बना देंगे। अभी के संकेत बताते हैं कि वे ‘वन-फैमिली-वन-जॉब’ के बड़े वादे पर पूरा चुनाव टिका रहे हैं। एनडीए इसे असंभव अतिशयोक्ति कहकर काटने में जुटा है। यह चुनाव ‘नौकरी बनाम नैरेटिव’ की सीधी लड़ाई बनता दिख रहा है।
एक कम-औपचारिक शिक्षित, क्रिकेट-पृष्ठभूमि वाला युवा राजनेता जिसने अपने परिवार की सबसे कठिन विरासत—‘जंगल-राज’ के आरोपों से बाहर निकलने के लिए नौकरी-केंद्रित शासन-एजेंडा को अपना हथियार बनाया। उनकी ताक़त—कनेक्ट, ऊर्जा, भाषाई स्फूर्ति और बेरोज़गार युवाओं की धड़कन को पकड़ने की क़ाबिलियत है। उनकी कमजोरियाँ—परिवार-केंद्रित विवाद, अदालती अभियोजन की तलवार और प्रशासनिक डिलिवरी पर प्रतिद्वंद्वियों की चोट है। 2025 में अगर वह यह दिखा पाए कि “जॉब-ऐक्ट” जैसे विचार कार्यान्वयन-योग्य हैं। और परिवार-पार्टी की कलह फ्रेम के बाहर रखी जा सकती है—तो वे बिहार की सत्ता-राजनीति की धुरी बदल सकते हैं; वरना यह चुनाव भी वादे बनाम विश्वसनीयता के तराज़ू पर तौल देगा।
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