राजेंद्र चोल प्रथम की 'दिग्विजयी गाथा जो स्कूल में नहीं पढ़ाई जाती

राजेंद्र चोल ने भारत को बनाया था समुद्री शक्ति, पढ़िए वो इतिहास जो किताबों से गायब है।

Shivam Srivastava
Published on: 27 July 2025 3:58 PM IST (Updated on: 27 July 2025 6:27 PM IST)
राजेंद्र चोल प्रथम की दिग्विजयी गाथा जो स्कूल में नहीं पढ़ाई जाती
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Rajendra Chola I: राजा राजेंद्र चोल प्रथम भारत के वो महान सम्राट थे, जिनकी नौसेना की ताकत से न सिर्फ़ दक्षिण भारत बल्कि दक्षिण-पूर्व एशिया तक कांपता था। 11वीं सदी में जब दुनिया समुद्र में व्यापार और शक्ति की कल्पना भी नहीं कर रही थी, तब चोल सम्राट ने समंदर के रास्ते विजय अभियान चलाया और श्रीलंका, म्यांमार, थाईलैंड, सुमात्रा, मलक्का जैसे क्षेत्रों तक भारतीय संस्कृति और प्रभाव को फैलाया।

राजेंद्र चोल ने केवल तलवार से नहीं, संस्कृति और धर्म के माध्यम से भी एशिया को जीता। उनकी यह समुद्री रणनीति भारत के इतिहास में एक स्वर्णिम अध्याय है जो आज भी गर्व का विषय है। आइए जानें उस ‘समुद्री सम्राट’ की कहानी जिसे इतिहास में वो पहचान नहीं मिली, जिसकी वो असल में हकदार है।

वे उन चुनिंदा महान सम्राटों में एक हैं जिन्होंने अपनी दिग्विजय नीति के माध्यम से भारत की भौगोलिक, सांस्कृतिक और व्यापारिक सीमाओं को सुदूर पूर्व तक विस्तारित किया। उनकी नौसेना ने समुद्रों की सीमायें लांघी, उनकी संस्कृति ने सीमाएं तोड़ी और उनके प्रशासन ने राज्य को समृद्ध बनाया। उनकी उपलब्धियां सिर्फ इतिहास नहीं बल्कि भारतीय आत्मा की वह शक्ति है, जो आज भी मंदिरों, व्यापार मार्गों, भाषाओं और सांस्कृतिक धरोहरों में आज भी जीवंत है।


राजेन्द्र चोल प्रथम चोल साम्राज्य का उदय और विस्तार

राजेन्द्र चोल प्रथम ने 1014 से 1044 तक शासन किया। वह चोल सम्राट राजाराज चोल प्रथम के पुत्र थे जिन्होंने तंजावुर में बृहदीश्वर मंदिर बनवाया था और एक मजबूत सैन्य एवं प्रशासनिक व्यवस्था की नींव रखी थी। राजेन्द्र ने अपने पिता की उपलब्धियों को और आगे बढ़ाया और चोल साम्राज्य को एशिया का एक प्रमुख शक्ति केंद्र बना दिया।

उनके शासनकाल में चोल साम्राज्य ने श्रीलंका, मालदीव, लक्षद्वीप, बंगाल (पाल साम्राज्य), ओडिशा (कलिंग), वेंगी, और पश्चिमी चालुक्यों पर विजय प्राप्त की। इसके अलावा, उन्होंने दक्षिण-पूर्व एशिया के कई हिस्सों, जैसे इंडोनेशिया (सुमात्रा), मलेशिया, थाईलैंड, कंबोडिया, वियतनाम और म्यांमार में समुद्री अभियान में जीत पाकर अपना प्रभुत्व स्थापित किया।


राजा राजेंद्र चोल I की महान उपलब्धियां जिसने उन्हें महानतम बनाया

1. दक्षिण भारत का एकीकरण और उत्तर विजय:

राजा राजेंद्र चोल ने श्रीलंका पर पूर्ण अधिकार स्थापित कर ‘चोलों का लंका अधिपति’ उपाधि धारण की। उन्होंने कलिंग, वेंगी, और बंगाल के पाल राजाओं को भी पराजित किया। गंगा के किनारे विजय पाने के उपलक्ष्य में उन्होंने ‘गंगैकोंड चोल’ की उपाधि ली और एक नई राजधानी ‘गंगैकोंड चोलपुरम’ बसाई।

2. समुद्री विजय और दक्षिण-पूर्व एशिया में प्रभाव:

राजेंद्र चोल प्रथम की सबसे ऐतिहासिक उपलब्धि उनकी नौसैनिक विजय रही। उन्होंने श्रीविजय साम्राज्य (वर्तमान में इंडोनेशिया), मलय प्रायद्वीप, थाईलैंड, म्यांमार, कम्बोडिया, और वियतनाम के अनेक बंदरगाहों पर अपना अधिपत्य स्थापित किया। उन्होंने कदरम (सुमात्रा), पन्नै, मलैयूर जैसे प्रमुख शहरों पर विजय पाई। जिससे चोलों की सैन्य शक्ति समुद्र पार तक स्थापित हो गई।

3. भारतीय संस्कृति और व्यापार का प्रसार:

इन समुद्री विजय अभियानों का उद्देश्य केवल सैन्य वर्चस्व नहीं था। इसके साथ भारतीय संस्कृति, धर्म और व्यापार को नए भूभागों में पहुंचाना भी था। तमिल व्यापारी गिल्ड जैसे मणिग्रामम, ऐनूर्रुवर, और अय्यावोल इन क्षेत्रों में व्यापार स्थापित करने लगे। दक्षिण-पूर्व एशिया में भारतीय स्थापत्य, तमिल भाषा, शिव भक्ति, और मंदिर निर्माण की परंपरा स्थापित हुई। आज भी इंडोनेशिया, मलेशिया और थाईलैंड में चोल कालीन मंदिर और तमिल अभिलेख मिलते हैं।


4. शिव भक्ति और सांस्कृतिक पुनर्जागरण:

राजेंद्र चोल प्रथम ने अपने पिता के पदचिह्नों पर चलते हुए शैव परंपरा को संरक्षण दिया। नटराज की मूर्ति को दिव्य सत्ता का प्रतीक बनाया गया और चोल काल के कांस्य नटराज आज भी भारतीय कला का वैश्विक प्रतीक हैं। गंगैकोंड चोलपुरम मंदिर, जो UNESCO विश्व धरोहर स्थल है न केवल स्थापत्य की मिसाल है बल्कि उस समय के भक्ति आंदोलन का भी केंद्र रहा।

5. प्रशासन और न्याय प्रणाली:

चोल शासन व्यवस्था अत्यंत संगठित और प्रगतिशील थी। स्थानीय स्वशासन, भूमि सुधार, सिंचाई योजनाएं और न्यायिक प्रशासन ने चोलों को जनता का प्रिय शासक बना दिया। इतिहासकारों के अनुसार, चोल सम्राटों के राजप्रासादों में सैकड़ों दासियाँ, हाथी, सजे धजे सैनिक और समृद्ध भंडार हुआ करते थे। जिससे उनकी शक्ति और वैभव का पता चलता है।

धर्म को अपने शासनाकाल में राजेंद्र चोल ने दी थी प्राथमिकता

राजेन्द्र चोल और उनके वंशजों ने शैव धर्म और तमिल भक्ति परंपरा (नायनमारों) को संरक्षण दिया। आदि तिरुवाथिरै जैसे उत्सव आज भी तमिलनाडु में मनाए जाते हैं और यह शैव भक्ति की जड़ों को राजेन्द्र के काल से जोड़ता है।

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Shivam Srivastava is a multimedia journalist with over 4 years of experience, having worked with ANI (Asian News International) and India Today Group. He holds a strong interest in politics, sports and Indian history.

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