TRENDING TAGS :
Nepal Border Politic: नेपाल की सीमाई राजनीति का सच
Nepal Border Politic: ज़िले का कृष्णानगर क्षेत्र, जहां भारत-नेपाल सीमा सिर्फ एक रेखा नहीं, बल्कि राजनीति, सुरक्षा, और रणनीति का केंद्र बन चुकी है। इस सीमाई शहर की राजनीति ने बीते तीन दशकों में कई बड़े और चौंकाने वाले मोड़ देखे हैं।
Nepal border politics
Nepal Border Politic: नेपाल के रूपनदेही ज़िले का कृष्णानगर क्षेत्र, जहां भारत-नेपाल सीमा सिर्फ एक रेखा नहीं, बल्कि राजनीति, सुरक्षा, और रणनीति का केंद्र बन चुकी है। इस सीमाई शहर की राजनीति ने बीते तीन दशकों में कई बड़े और चौंकाने वाले मोड़ देखे हैं। एक ओर थे पूर्व सांसद दिलशाद बेग मिर्ज़ा, जिन पर पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई से संबंध होने के गंभीर आरोप लगे, तो दूसरी ओर उभरा शाह परिवार, जिसने विकास की राजनीति के बल पर क्षेत्र में अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज की।
दिलशाद बेग मिर्ज़ा, नेपाल के कृष्णानगर क्षेत्र से 1990 के दशक में सांसद रहे। हालांकि, मिर्जा की पहचान सिर्फ एक जनप्रतिनिधि तक सीमित नहीं रही। कई रिपोर्ट्स और खुफिया सूत्रों के अनुसार, मिर्ज़ा पर आरोप था कि वे पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के एजेंडे को नेपाल में आगे बढ़ा रहे थे। भारत की खुफिया एजेंसियों को यह शक लंबे समय से था कि आईएसआई नेपाल के ज़रिए भारत में आतंकवाद को बढ़ावा देने की रणनीति बना रही है, और इसमें दिलशाद बेग की भूमिका संदिग्ध रही। बताया जाता है कि मिर्ज़ा भारत-विरोधी तत्वों को नेपाल में पनाह और रसद उपलब्ध कराते थे, यही नहीं, वह नेपाल की सीमाओं का दुरुपयोग करते हुए आतंकवादियों को भारत में घुसपैठ कराने में भी मदद करते थे। भारत सरकार ने इस बारे में नेपाल सरकार से कई बार संवाद किया और मिर्ज़ा की गतिविधियों पर नजर रखने की मांग की।
हालांकि नेपाल की राजनीतिक व्यवस्था और कानून के दायरे में तत्काल कोई बड़ी कार्रवाई नहीं हो सकी, लेकिन मिर्ज़ा पर लगातार देशविरोधी छवि का साया मंडराता रहा। उसकी राजनीतिक पकड़ कमजोर होती गई, और अंततः यह विवाद उसके राजनीतिक और व्यक्तिगत जीवन के अंत की ओर ले गया।
हत्या या रणनीति?
वर्ष 1998 में काठमांडू में दिलशाद बेग मिर्ज़ा की हत्या हो गई, जो नेपाल और भारत की राजनीति में हलचल का कारण बनी। इस हत्या के पीछे भारत के कुख्यात अंडरवर्ल्ड डॉन छोटा राजन गैंग का नाम सामने आया। कहा जाता है कि छोटा राजन और दाउद इब्राहीम की रंजिश में मिर्जा मारा गया था। मिर्जा को नेपाल में दाउद इब्राहिम के ख़ास मददगार के तौर पर जाना जाता था। वहीं कुछ अटकलें यह भी कहती हैं कि इस हत्या में खुफिया एजेंसियों की अप्रत्यक्ष भूमिका हो सकती है। लेकिन यह हत्या सिर्फ एक व्यक्ति का अंत नहीं थी, बल्कि कृष्णानगर की राजनीति में उथलपुथल भरे युग का अंत थी, एक ऐसा युग जो दहशत, अविश्वास और साजिशों से भरा था।
शाह परिवार का उदय
जहां दिलशाद बेग मिर्ज़ा की राजनीति साजिश और संदेह से घिरी रही, वहीं शाह परिवार ने जनता के बीच पैठ बना कर अपनी पहचान बनाई। यह परिवार 1902 से नेपाल की राजनीति में सक्रिय रहा है, जब ठाकुर गया प्रसाद शाह नेपाल के खाद्यान्न मंत्री बने थे। उन्होंने ही कृष्णानगर बसाया, साथ ही भारत में बढ़नी रेलवे स्टेशन, शुगर मिल और शैक्षिक संस्थानों के विकास में भी अहम भूमिका निभाई। गया प्रसाद के बाद उनके पुत्र शिव प्रताप शाह, फिर राघवेंद्र प्रताप शाह ने राजनीति की कमान संभाली। राघवेंद्र शाह नेपाल के दूरसंचार और कृषि मंत्री रहे, वे कपिलवस्तु ज़िला पंचायत से चार बार निर्वाचित हुए। बाद में शाह परिवार की राजनीतिक विरासत को डॉ. रुद्र प्रताप शाह ने आगे बढ़ाया। वे नेपाली कांग्रेस के सक्रिय सदस्य और राज्य परिषद के सदस्य रहे।
शाह बनाम मिर्ज़ा
कृष्णानगर की राजनीति में मिर्ज़ा और शाह परिवार के बीच लंबे समय तक राजनीतिक संघर्ष चलता रहा। जहां मिर्ज़ा बाहरी ताकतों और दबदबे से सत्ता कायम रखना चाहते थे, वहीं शाह परिवार स्थानीय जुड़ाव, सामाजिक प्रतिष्ठा और जन सरोकार पर आधारित राजनीति करता रहा। हालांकि शुरुआत में डॉ. रुद्र प्रताप शाह और अजय प्रताप शाह मिर्ज़ा को चुनावी तौर पर हरा नहीं सके, लेकिन 1998 में मिर्ज़ा की हत्या के बाद जब चुनाव हुए तो अजय प्रताप शाह सांसद बने और अगले 9 वर्षों तक लगातार इस पद पर रहे। माओवादी आंदोलन के कारण चुनावों में व्यवधान ज़रूर आया, लेकिन शाह परिवार की पकड़ लगातार मजबूत होती गई।
वर्तमान परिदृश्य
वर्तमान समय में भी शाह परिवार का राजनीति में गहरा प्रभाव है। अलग अलग राजनीतिक दलों में शह परिवार का दखल है। अभिषेक प्रताप शाह (अजय शाह के पुत्र) तीन बार सांसद चुने जा चुके हैं और एक बार मनोनीत सांसद भी रह चुके हैं। राघवेन्द्र शाह के छोटे पुत्र रजत प्रताप शाह दूसरी बार कृष्णानगर के मेयर चुने गए हैं और नेपाली कांग्रेस से जुड़े हैं। वहीँ डॉ रूद्र प्रताप के पौत्र कुणाल प्रताप शाह कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़कर सक्रिय राजनीति में हैं और मेयर का चुनाव भी लड़ चुके हैं। उनके चचेरे भाई वैभव प्रताप शाह भी अब राजनीतिक सफर की शुरुआत कर चुके हैं। पूर्व में अभय प्रताप शाह, राजीव प्रताप शाह और गौरव प्रताप शाह जिला पंचायत के सदस्य रहे हैं। साफ़ है कि यह पूरा खानदान परिवार राजनीति में दबदबा बनाए हुए है।
AI Assistant
Online👋 Welcome!
I'm your AI assistant. Feel free to ask me anything!