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Vice Presidential Election 2025: उपराष्ट्रपति चुनाव में असल परीक्षा तो चंद्रबाबू और स्टालिन की है
Vice Presidential Election 2025: उप राष्ट्रपति चुनाव में लोकसभा व राज्य सभा के नामित व चुने हुए दोनों तरह के सदस्य ही मतदान करते हैं।
Vice President Election 2025 NDA India Bloc Naidu Stalin Sudharshan Radhakrishnan
Vice Presidential Election 2025: इंडिया गठबंधन के उम्मीदवार के नामांकन के साथ ही उप राष्ट्रपति चुनाव की सरगर्मी तेज हो गई है। इस चुनाव में केवल इंडिया गठबंधन और एनडीए की ही परीक्षा नहीं होगी, बल्कि दोनों गठबंधनों के उम्मीदवारों के दक्षिण भारत से होने के चलते आंध्र प्रदेश व तेलंगाना में सियासत करने वाले चंद्र बाबू नायडू एवं तमिलनाडु में सियासत करने वाले एम. स्टालिन की भी परीक्षा की घड़ी है।
हालाँकि बीते दो तीन राष्ट्रपति व उप राष्ट्रपति चुनाव इस बात के गवाह हैं कि चंद्रबाबू नायडू का टीडीपी व स्टालिन का डीएमके हमेशा अपने अपने गठबंधन के दलों के साथ पूरी ईमानदारी से खड़े रहे हैं लेकिन यह भी सत्य है कि कभी ऐसा नहीं रहा कि दोनों गठबंधनों- के उम्मीदवार दक्षिण से ही हों। वे भी उसी राज्य से, जिस राज्य में उनकी सरकार हो। लिहाज़ा पहली बार सही तौर पर नायडू व स्टालिन की परीक्षा का समय है।
सुदर्शन बनाम राधाकृष्णन
ग़ौरतलब है कि इंडिया गठबंधन यानी साझा विपक्ष ने बी. सुदर्शन रेड्डी को मैदान में उतारा है। सुदर्शन सर्वोच्च अदालत के सेवानिवृत्त जज हैं। 1995 में आंध्र प्रदेश से जज के तौर पर उन्होंने अपना कैरियर शुरु किया था और वहां 2005 तक रहे। 2005 से 2007 के बीच वह गुवाहाटी हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के पद पर रहे, फिर 2007 से 2011 तक सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश रहे। सेवानिवृत्त होने के बाद इन्होंने 2013 में गोवा के लोकायुक्त के पद पर भी काम किया। सुदर्शन संविधान, सामाजिक न्याय और मौलिक अधिकारों के प्रबल समर्थक माने जाते हैं। सुदर्शन मूलतः आंध्र प्रदेश के हैं लेकिन राज्य का बँटवारा होने के चलते उनका गृह राज्य अब तेलंगाना हो गया है।
एनडीए गठबंधन यानी सत्तापक्ष ने महाराष्ट्र के राज्यपाल सी. पी. राधाकृष्णन को उम्मीदवार बनाया है। जो तमिलनाडु से आते हैं। महाराष्ट्र के पहले वह झारखंड में भी इसी पद पर रहे। तेलंगाना के कार्यवाह राज्यपाल का दायित्व भी उन्होंने निभाया है। राधाकृष्णन परी तरह राजनेता हैं। वह भाजपा के तमिलनाडु संगठन में विभिन्न पदों पर कार्यरत रहे हैं। 1998 से 2004 के दौरान कोयंबटूर से लोकसभा के सदस्य भी रहे हैं।1996 में तमिलनाडु भाजपा सचिव रहे, तमिलनाडु के भाजपा अध्यक्ष और केरल के प्रभारी भी रहे। तमिलनाडु भाजपा अध्यक्ष रहते हुए इन्होंने कई सामाजिक मुद्दों पर 19 हज़ार किलोमीटर की लंबी पदयात्रा की, जो 93 दिन चली। इनकी पहचान राजनीतिक अनुभव, प्रशासनिक कौशल और जमीनी पकड़ वाले नेता के रुप में होती है।
संसद में टीडीपी और डीएमके
इस चुनाव में लोकसभा व राज्य सभा के नामित व चुने हुए दोनों तरह के सदस्य ही मतदान करते हैं। मतदान 9 सितंबर, 2025 को होना तय है। आंध्र प्रदेश में लोकसभा के लिए 25 सांसद चुने जाते हैं। पर टीडीपी यानी नायडू के पास इस समय लोकसभा में 11 सांसद ही हैं। जबकि तमिलनाडु से 39 सांसद चुने जाते हैं। सभी के सभी सांसद डीएमके यानी स्टालिन के ही हैं। रही बात राज्य सभा की, तो तमिलनाडु से डीएमके ने 18 में से 10 सांसद सदन में भेज रखे हैं। आंध्र प्रदेश की बात की जाये तो सदन में कुल ग्यारह में से दो सांसद भाजपा के और दो सांसद टीडीपी के हैं।
वोटों का गणित
उपराष्ट्रपति चुनाव में विजयी होने के लिए 392 वोट चाहिए। सदन की गणित देखी जाये तो एनडीए के पास लोकसभा में 292 व राज्यसभा में 133 सांसद हैं। यानी कुल 425 हैं, जो स्पष्ट बहुमत से तकरीबन 33 ज़्यादा है। जबकि इंडिया गठबंधन के पास लोकसभा में 230 व राज्यसभा में 77 सांसद हैं, जो कुल 307 होते हैं। यह संख्या बहुमत से 85 कम है। एनडीए के सहयोगी दलों में - भाजपा, टीडीपी, जेडीयू, शिवसेना, एनसीपी (प्रफुल्ल) जेडीएस, एआईएडीएमके, आरएलडी, आरपीआई (ए) हैं। जबकि इंडिया गठबंधन का हिस्सा - कांग्रेस , डीएमके, टीएमसी, आरजेडी, सीपीआईएम, जेएमएम, सपा, सीपीआई, आरकेएसपी, आईयूएमएल आदि से बना है।
क्या रहा बीते चुनावों में
अब राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति के बीते कुछ चुनावों के पैटर्न पर नज़र डालें तो 2002 में राष्ट्रपति चुनाव-ए.पी.जे. अब्दुल कलाम बनाम लक्ष्मी सहगल के बीच हुआ था। उस समय टीडीपी ने एनडीए सरकार को बाहर से समर्थन दिया था। कलाम एनडीए समर्थित उम्मीदवार थे और टीडीपी ने एनडीए की लाइन पर वोट किया था। मतलब साफ़ है कि उसने गठबंधन को प्राथमिकता दी।
2007 का राष्ट्रपति चुनाव- प्रतिभा पाटिल बनाम भैरोंसिंह शेखावत का हुआ। टीडीपी ने तीसरे मोर्चे के साथ रहते हुए कांग्रेस विरोध को प्राथमिकता दी और प्रतिभा पाटिल का समर्थन नहीं किया। मतलब साफ़ है कि गठबंधन व राजनीतिक समीकरण प्राथमिक रहा।
2017 का राष्ट्रपति चुनाव रामनाथ कोविंद बनाम मीरा कुमार का रहा। उस समय टीडीपी एनडीए का हिस्सा थी। लिहाज़ा उसने एनडीए उम्मीदवार कोविंद का समर्थन किया। यानी उसने गठबंधन को प्राथमिकता दी।
2018 में उपराष्ट्रपति चुनाव, वेंकैया नायडू बनाम गोपालकृष्ण गांधी का हुआ। इस चुनाव में टीडीपी ने एनडीए में रहते हुए वेंकैया नायडू का समर्थन किया, जो आंध्र प्रदेश से आते हैं। यहां टीडीपी के हाथ राज्यीय अस्मिता और गठबंधन—दोनों एक साथ लग गये।
कहा जा सकता है कि टीडीपी का पैटर्न साफ़ है, जहाँ वह एनडीए के साथ होता है, वहीं एनडीए उम्मीदवार को समर्थन देता है। राज्यीय अस्मिता तभी उभरती है जब उम्मीदवार आंध्र प्रदेश/तेलंगाना से हो। इस बार यह संकट उसके सामने आन खड़ा हुआ है।
एम के स्टालिन के दल द्रविड़ मुनेत्र कड़गम यानी डीएमके के मतदान पैटर्न पर नज़र डाली जाये तो 2002 के चुनाव में डीएमके एनडीए का हिस्सा था। लिहाज़ा उसने अब्दुल कलाम का समर्थन किया। साफ़ है कि उसने गठबंधन को प्राथमिकता दी।
2007 के चुनाव में डीएमके कांग्रेस गठबंधन में थी। लिहाज़ा उसने कांग्रेस की उम्मीदवार प्रतिभा पाटिल का समर्थन किया। यहां भी गठबंधन को प्राथमिकता दी।
2017 के चुनाव में डीएमके कांग्रेस के साथ रही और उसने कांग्रेस-समर्थित मीरा कुमार का समर्थन किया।बीजेपी-विरोध उसके लिए बड़ा मुद्दा था।
2018 के उपराष्ट्रपति चुनाव में डीएमके यूपीए के साथ रही और गोपालकृष्ण गांधी का समर्थन किया। भले ही वेंकैया नायडू आंध्र प्रदेश (दक्षिण भारत) से थे, लेकिन डीएमके ने गठबंधन नहीं छोड़ा। साफ़ है कि डीएमके की रणनीति में भी हमेशा गठबंधन को प्राथमिकता देना रहा । भले ही राज्यीय उम्मीदवार विपक्ष में हो। दोनों दलों का ऐतिहासिक पैटर्न यही कहता है कि वे गठबंधन प्राथमिकता को मानेंगे, राज्यीय उम्मीदवार की भावनाओं से ऊपर।
क्या सन्देश निकलेगा?
जब नतीजे तय हैं तब यह सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर इस चुनाव से निकले संदेश क्या होंगे? यह चुनाव विपक्ष और सत्तापक्ष दोनों को राज्यीय दलों की वफ़ादारी और प्राथमिकताओं की असली परीक्षा की तरह होगा। इंडिया और एनडीए दोनों ही बाद में इन वोटिंग पैटर्न को चुनावी प्रचार में इस्तेमाल करेंगे। इंडिया गठबंधन कहेगा कि “एनडीए की क्षेत्रीय पार्टियाँ दिल्ली के दबाव में अपने ही राज्य के लोगों को धोखा देती हैं।” एनडीए यह कहेगा कि,”इंडिया गठबंधन के दल अपनी ही राज्यीय अस्मिता छोड़कर दिल्ली की सत्ता के लिए मजबूर हैं।” लेकिन यह तोहमत केवल दो नेताओं नायडू व स्टालिन पर आने वाली है क्यों कि टीडीपी अभी एनडीए का हिस्सा है और केंद्र में मोदी सरकार का सहयोगी है।
लेकिन समस्या विपक्ष का उम्मीदवार तेलंगाना की है। तेलंगाना और आंध्रप्रदेश की राजनीति आपस में गहराई से जुड़ी हुई है। ऐसे में अगर टीडीपी, एनडीए लाइन पर वोट करता है, तो विपक्ष यह प्रचार करेगा कि नायडू ने “अपने ही क्षेत्रीय हितों और पड़ोसी तेलंगाना के प्रतिनिधि” को नकार दिया। विपक्ष खासकर वाईएसआरसीपी और कांग्रेस को मौका मिलेगा कि वे टीडीपी को ‘दिल्ली के दबाव में झुकने वाला’ और ‘दक्षिण के मुद्दों को न समझने वाला’ करार दें। लेकिन अगर टीडीपी एनडीए उम्मीदवार को वोट न करे तो केंद्र की स्थिरता में उसकी भूमिका संदिग्ध हो जाएगी। इससे मोदी सरकार और पार्टी के साथ रिश्ते बिगड़ सकते हैं।
डीएमके इंडिया गठबंधन का बड़ा स्तंभ है। उसका आधार तमिलनाडु है। एनडीए के उम्मीदवार तमिलनाडु से हैं। ऐसे में डीएमके के सामने ‘राज्यीय बनाम गठबंधन’ का संकट खड़ा होता है। अगर डीएमके एनडीए उम्मीदवार को वोट करता है तो वह गठबंधन की एकता तोड़ देगा और इंडिया गठबंधन का भरोसा डगमगा जाएगा। अगर डीएमके विपक्षी उम्मीदवार सुदर्शन को वोट करता है, तो बीजेपी यह प्रचार करेगी कि डीएमके ने ‘अपने ही राज्य के उम्मीदवार’ के खिलाफ़ जाकर दिल्ली के गठबंधन की मजबूरी में वोट दिया। तमिलनाडु में क्षेत्रीय मुद्दा बहुत संवेदनशील है क्योंकि जनता अक्सर ‘स्थानीय गौरव’ पर वोट करती है।
बहरहाल, दोनों ही दलों के लिए यह इमेज और जनभावना का संकट है और भविष्य में राज्यीय राजनीति पर गहरा असर छोड़ सकता है। दोनों के लिए यह स्थिति दोधारी तलवार पर चलने जैसी है। टीडीपी एक ओर केंद्र की सत्ता में साझेदारी है, दूसरी ओर दक्षिण की राजनीतिक भावनाएँ हैं। नायडू को सावधानी से यह संतुलन साधना होगा, वरना वाईएसआरसीपी और कांग्रेस उसे दक्षिण-विरोधी दिखाने की कोशिश करेंगे। डीएमके अगर इंडिया गठबंधन की एकता को प्राथमिकता देगा तो तमिलनाडु में बीजेपी और अन्नाद्रमुक यह मुद्दा उछालेंगे कि “स्टालिन ने अपने ही राज्य के उम्मीदवार के साथ विश्वासघात किया।”
चुनाव दिलचस्प हो गया है और सस्पेंस इस बात का है कि चंद्रबाबू नायडू कौन सा रास्ता अख्तियार करते हैं और उसे वो कैसे जायज ठहराएंगे। दो दक्षिणी प्रत्याशियों के मुकाबले से आगे की राजनीति और गठबंधन के समीकरण तय होंगे।
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