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Vice President election: कौन बनेगा विपक्ष का 'मोहरा'? उपराष्ट्रपति चुनाव की बिसात पर INDIA अलायंस की बड़ी चुनौती!
Vice President election: दिल्ली की सियासी गलियों में इस वक्त सबसे ज़्यादा जो सवाल गूंज रहा है वो ये है, उपराष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष किसे अपना चेहरा बनाएगा? चुनाव आयोग ने जैसे ही उपराष्ट्रपति पद के चुनाव की तारीखों का ऐलान किया विपक्षी खेमे में हलचल मच गई।
Vice President election: दिल्ली की सियासी गलियों में इस वक्त सबसे ज़्यादा जो सवाल गूंज रहा है वो ये है उपराष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष किसे अपना चेहरा बनाएगा? चुनाव आयोग ने जैसे ही उपराष्ट्रपति पद के चुनाव की तारीखों का ऐलान किया विपक्षी खेमे में हलचल मच गई। संसद में संख्याबल की कमी विचारधारा में मतभेद और गठबंधन के भीतर उभरते असंतोष के बीच INDIA अलायंस अब एक ऐसे चेहरे की तलाश में जुट गया है जो न केवल भाजपा के उम्मीदवार को टक्कर दे सके बल्कि एक ठोस वैचारिक संदेश भी देश को दे।
संख्या की राजनीति में कमजोर विपक्ष
संसद का गणित विपक्ष के पक्ष में नहीं है। लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदनों में भाजपा और एनडीए के सांसदों का दबदबा है। ऐसे में ये साफ है कि अगर सिर्फ नंबर गेम की बात हो तो विपक्ष की हार तय मानी जा सकती है। लेकिन राजनीति सिर्फ जीत-हार की कहानी नहीं है यह संदेशों और प्रतीकों का भी खेल है। विपक्ष यह मौका नहीं गंवाना चाहता वह उपराष्ट्रपति पद की इस लड़ाई को एक वैचारिक टकराव में बदलना चाहता है जिसमें नतीजा चाहे जो हो लेकिन जनता के बीच एक मजबूत संदेश जाए।
सिर्फ चेहरा नहीं विचारधारा की जंग
INDIA अलायंस की रणनीति अब एक ऐसे उम्मीदवार की तलाश पर टिकी है जो सिर्फ एक व्यक्ति नहीं बल्कि पूरे गठबंधन की सोच उसके संघर्ष और भाजपा की राजनीति के खिलाफ खड़े होने के हौसले का प्रतीक हो। सूत्रों की मानें तो विपक्ष का जोर एक पिछड़े वर्ग अल्पसंख्यक या बुद्धिजीवी तबके के किसी ऐसे चेहरे पर है जो सामाजिक न्याय और संविधानिक मूल्यों की बात कर सके। ऐसा चेहरा जो भाजपा के राष्ट्रवाद और हिंदुत्व एजेंडे के मुकाबले एक वैकल्पिक नैरेटिव गढ़ सके।
राहुल गांधी की तैयारी में 'परमाणु' दस्तावेज?
7 अगस्त को INDIA गठबंधन की एक अहम बैठक प्रस्तावित है जिसमें इस विषय पर चर्चा होने की पूरी संभावना है। इस बैठक की एक और बड़ी वजह है राहुल गांधी का वो प्रजेंटेशन जिसे वो खुद ‘एटम बम’ बता चुके हैं। राहुल का दावा है कि कांग्रेस ने जो शोध किया है उससे यह साफ हो जाता है कि मतदाता सूचियों में जानबूझकर गड़बड़ियां की गई हैं और यह सब भाजपा को फायदा पहुंचाने के लिए हुआ है। अब इस बैठक में अगर राहुल गांधी न केवल इस रिसर्च को पेश करते हैं बल्कि उपराष्ट्रपति चुनाव को उसी संदर्भ में एक वैचारिक लड़ाई के रूप में फ्रेम करते हैं तो गठबंधन को एक नई धार मिल सकती है। खासकर तब जब हाल के चुनावों में विपक्ष की पकड़ लगातार कमजोर होती जा रही है और INDIA अलायंस को अब एक ठोस धार narrative की सख्त ज़रूरत है।
धनखड़ के इस्तीफे के बाद बदले समीकरण
इस पूरी राजनीतिक उठापटक की जड़ में है उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का अचानक इस्तीफा। राज्यसभा के सभापति और उपराष्ट्रपति के रूप में धनखड़ की भूमिका लगातार चर्चा में रही खासकर सरकार और न्यायपालिका के बीच हालिया विवाद में। जस्टिस शेखर यादव और जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव को लेकर उपजे टकराव के बाद उनका इस्तीफा राजनीति का मोर्चा और ज्यादा गर्म कर गया। अब जब चुनाव आयोग ने 9 सितंबर को उपराष्ट्रपति पद के लिए मतदान की घोषणा कर दी है तो INDIA अलायंस के पास बहुत कम वक्त बचा है। उन्हें जल्दी से जल्दी किसी ऐसे उम्मीदवार को सामने लाना होगा जो सिर्फ एक नाम न होकर पूरे विपक्ष का चेहरा और उसकी राजनीति का प्रतिबिंब हो।
क्या विपक्ष फिर से एकजुट हो पाएगा?
सवाल सिर्फ उम्मीदवार के चयन का नहीं है बल्कि विपक्षी दलों की आपसी एकजुटता और विश्वास का भी है। हाल ही में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी जैसे कुछ दलों की बयानबाज़ी से यह साफ हो गया है कि INDIA अलायंस के भीतर भी सब कुछ ठीक नहीं चल रहा। ऐसे में क्या राहुल गांधी की अगुवाई में विपक्ष एक बार फिर खुद को एकजुट कर पाएगा? क्या वे एक ऐसा चेहरा ला पाएंगे जो 2024 की बड़ी लड़ाई से पहले देश की जनता को विपक्षी विकल्प के तौर पर प्रेरित कर सके?
नतीजे से ज़्यादा संदेश है अहम
भले ही उपराष्ट्रपति पद की ये लड़ाई विपक्ष के लिए जीतने लायक न हो लेकिन यह लड़ाई लड़ना खुद में एक बड़ा प्रतीक बन सकता है। यह चुनाव विपक्ष को जनता के सामने खुद को फिर से स्थापित करने का मौका दे सकता है एक ऐसी ताकत के रूप में जो सिर्फ आलोचना नहीं करती बल्कि विचारधारा के स्तर पर भी सत्ता से मुकाबला करने का माद्दा रखती है। अब देखना यह होगा कि 7 अगस्त की बैठक से विपक्ष क्या संकेत देता है। क्या INDIA अलायंस एक दमदार वैचारिक और प्रेरक नाम लेकर सामने आता है? या फिर यह मौका भी उसकी आंतरिक कलह की भेंट चढ़ जाएगा? सवाल बड़ा है लेकिन वक्त बहुत कम।
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