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महिलाये बनीं खेवनहार, इस पार्टी के साथ हो गया खेला, बंपर वोटिंग बना सिरदर्द
बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण में बंपर मतदान, महिला वोटरों में बढ़ा उत्साह, एनडीए को मिल सकता है लाभ, विपक्ष चिंतित। 2025 के मुकाबले 8.3% अधिक वोटिंग, दस हजार की योजना ने बढ़ाई महिला भागीदारी।
बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण में 121 सीटों पर हुई जबरदस्त मतदान ने राजनीतिक परिदृश्य में कई नए समीकरण बनाये और बिगाड़े हैं। 2020 के मुकाबले इस बार मतदाताओं में खासी उत्सुकता देखने को मिली है। शाम पांच बजे तक 60.1 प्रतिशत वोट गिर चुके हैं, जो 2020 की 51.1 प्रतिशत की तुलना में 8.3 प्रतिशत अधिक है। यह आंकड़ा अभी और भी बढ़ने की संभावना है। सुबह से ही वोटरों का उत्साह नजर आ रहा था, दोपहर 1 बजे तक 42.3 प्रतिशत और तीन बजे तक 53.8 प्रतिशत मतदान हो चुका था। 2020 के पूरे विधानसभा चुनाव में कुल मतदान प्रतिशत 55.89 प्रतिशत था।
इस बंपर वोटिंग का मतलब कई मायनों में राजनीतिक हलकों के लिए अलग-अलग है। सामान्यत: अधिक मतदान को सत्ता विरोधी लहर माना जाता रहा है, लेकिन इस बार बिहार की राजनीति में स्थिति थोड़ी अलग है। तीन मुख्य कारण इस बढ़े हुए मतदान प्रतिशत के पीछे माने जा रहे हैं:
• क्या 10 हजार की स्कीम ने एडीए (एनडीए) की कोर महिला वोटरों में जोश भरा है और वे बड़ी संख्या में पोलिंग बूथ तक पहुंच रही हैं?
• क्या इस बार मतदान प्रतिशत में वृद्धि बिहार में से 65 लाख वोट कटने के प्रभाव के कारण है?
• क्या चुनाव आयोग द्वारा विपक्ष के आरोपों के बाद मतदान प्रतिशत का रियल टाइम डेटा सार्वजनिक करने से यह बढ़ोतरी हुई है?
चुनाव विश्लेषक के मुताबिक, 10 हजार की स्कीम ने एनडीए की कोर महिला वोटरों में उत्साह बढ़ाने का काम किया है। बिहार में per capita आय लगभग साढ़े पांच हजार के आसपास है और सरकार ने डेढ़ करोड़ महिलाओं के खाते में दस हजार रुपये सीधे डाल दिए हैं। यह लगभग 40 प्रतिशत महिला मतदाताओं के बराबर है। यदि प्रति परिवार औसतन चार सदस्य माने जाएं, तो इसका प्रभाव साढ़े चार करोड़ वोटरों तक पड़ने की संभावना है।
तिवारी बताते हैं कि एनडीए के कोर वोटर इस योजना से अधिक मतदान करेंगे। पिछले चुनाव में महिलाओं की बंपर वोटिंग 167 सीटों पर हुई थी, जिनमें से 99 सीटें एनडीए के खाते में आई थीं। जबकि पुरुषों की बंपर वोटिंग के साथ एनडीए के विजयी होने वाले क्षेत्र इस से कम थे। यह साफ दिखाता है कि महिला वोटिंग एनडीए के लिए निर्णायक साबित हो रही है।
वरिष्ठ चुनावी विशेषज्ञ का मानना है कि 10 हजार की स्कीम पार्टी को चुनावी लाभ दे रही है और मैदान पर इसका असर है। तेजस्वी यादव और प्रियंका गांधी भी इसी योजना पर लगातार आरोप-प्रत्यारोप कर रहे हैं, जो विपक्ष की बेचैनी को दर्शाता है। उन्होंने बताया कि नीतीश कुमार की पुरानी रूट महिलाओं के बीच अच्छी तरह से स्थापित है, जो 2005-2010 के उनके पहले कार्यकाल से शुरू हुई थी। इस दौरान साइकिल वितरण, कानून व्यवस्था सुधार और शराबबंदी जैसे फैसलों ने महिलाओं में नीतीश की लोकप्रियता बढ़ाई। बिहार में महिला मतदाताओं के बीच उनकी लोकप्रियता प्रधानमंत्री मोदी से भी अधिक मानी जाती है, जो अन्य राज्यों में कम दिखती है।
चुनावी एक्सपर्ट के अनुसार, बिहार के इस चुनाव में 10 हजार की स्कीम का बड़ा प्रभाव देखने को मिल सकता है। यह पीएम मोदी के किसानों के लिए छह हजार की योजना की तरह असरदार हो सकता है, जिसने किसान आंदोलन को शांत करने में मदद की थी। नीतीश सरकार ने महिलाओं को सुरक्षित वातावरण प्रदान करने और कई योजनाओं के जरिए उनके लिए काम किया है। शराबबंदी इसका बड़ा पहलू है। ऐसे में दस हजार रुपये की इस योजना को महिलाओं के लिए "सोने पर सुहागा" माना जा रहा है। एक सर्वे के मुताबिक, महिला मतदाताओं में नीतीश कुमार को तेजस्वी यादव से 32 प्रतिशत की बढ़त हासिल है।
इस प्रकार बिहार के पहले चरण में बढ़ा हुआ मतदान प्रतिशत एनडीए के लिए एक सकारात्मक संदेश है, जबकि विपक्ष इसे चुनौती के रूप में देख रहा है। आने वाले चरणों में भी यह उत्साह और मतदान प्रतिशत एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।
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