Bihar Elections 2025: महिला मतदाता क्यों बन गई हैं राजनीतिक दलों की सबसे बड़ी ताक

Bihar Elections 2025: आज हालत यह है कि अगर कोई पार्टी सत्ता में वापसी का ख्वाब देख रही है तो उसे महिला वोटरों का भरोसा जीतना ही होगा।

Jyotsna Singh
Published on: 6 Sept 2025 9:00 AM IST
Bihar Elections 2025
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Bihar Elections 2025 (Image Credit-Social Media)

Bihar Elections 2025: बिहार की राजनीति हमेशा से जातीय समीकरणों और गठबंधनों के इर्द-गिर्द घूमती रही है। यादव, कुर्मी, ब्राह्मण, दलित-महादलित और मुस्लिम वोट बैंक ने यहां हर चुनाव में सत्ता की दिशा तय की है। लेकिन अब तस्वीर बदल रही है। पिछले एक दशक में धीरे-धीरे एक नई ताकत उभरकर सामने आई है महिलाएं। आज हालत यह है कि अगर कोई पार्टी सत्ता में वापसी का ख्वाब देख रही है तो उसे महिला वोटरों का भरोसा जीतना ही होगा। वजह भी साफ है महिलाएं अब सिर्फ वोटर लिस्ट में दर्ज नाम नहीं हैं, बल्कि नतीजे पलटने वाली निर्णायक ताकत बन चुकी हैं। आइए जानते हैं इस बारे में विस्तार से -

महिला वोटरों की ताकत कितनी बड़ी है?

बिहार में कुल मतदाताओं की संख्या लगभग 7.64 करोड़ है, जिनमें से करीब 3.64 करोड़ महिलाएं हैं। यानी आधी आबादी से भी ज्यादा असर रखने वाला यह वर्ग किसी भी दल की तकदीर लिख सकता है। आंकड़े गवाह हैं कि यह ताकत लगातार बढ़ रही है।


2020 के विधानसभा चुनाव में 243 सीटों में से 167 सीटों पर महिलाओं ने पुरुषों से ज्यादा वोट डाले। 2015 में भी 202 सीटों पर यही तस्वीर रही। 2024 के लोकसभा चुनाव में महिलाओं ने पुरुषों से करीब 3% अधिक मतदान किया। यानी अब महिलाएं सिर्फ बूथ तक पहुंचने वाली भीड़ नहीं, बल्कि राजनीतिक दलों की रणनीति को नया मोड़ देने वाली असली शक्ति बन गई हैं।

महिलाएं क्यों कहलाती हैं ‘साइलेंट वोटर’?

बिहार की राजनीति जाति और समुदायों के जोड़-घटाव से तय होती रही है, लेकिन महिलाएं इस ढांचे को तोड़ देती हैं। वोट देते समय वे कई बार जाति, बिरादरी या पारिवारिक दबाव से ऊपर उठकर फैसला करती हैं। खास बात यह है कि महिलाएं पहले से यह जाहिर नहीं करतीं कि किसे वोट देंगी। यही वजह है कि इन्हें 'साइलेंट वोटर' कहा जाता है। राजनीतिक पंडित मानते हैं कि यही खामोशी कई बार चुनाव के पूरे नतीजे बदल देती है।

नीतीश कुमार का महिला वोट बैंक कार्ड

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने महिलाओं की ताकत को सबसे पहले पहचाना। यही वजह है कि उनकी राजनीति का सबसे मजबूत आधार हमेशा महिलाएं रही हैं।


सरकारी नौकरियों में 35% आरक्षण देकर उन्होंने महिलाओं को रोजगार और आत्मनिर्भरता का भरोसा दिया। मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना के तहत पात्र महिलाओं को 10,000 रुपये की सीधी मदद दी जा रही है, और आगे इसे दो लाख तक बढ़ाने का वादा किया गया है। शराबबंदी का बड़ा फैसला भी महिलाओं की सुरक्षा और घरेलू जीवन को ध्यान में रखकर लागू किया गया था। गांव की महिलाएं आज भी मानती हैं कि इस फैसले ने उनकी जिंदगी आसान की।

नीतीश का मकसद साफ है कि महिलाओं को जातीय राजनीति से अलग कर अपनी सबसे मजबूत वोट बैंक के रूप में खड़ा करना है।

विपक्ष का दांव तेजस्वी यादव का महिला पैकेज

आरजेडी नेता तेजस्वी यादव भी महिला वोटरों को लुभाने के लिए बड़े ऐलान कर चुके हैं। उनकी 'माई-बहन मान योजना' के तहत हर महिला को 2,500 रुपये महीना देने का वादा है। इसके अलावा महिला पेंशन योजना में 1,500 रुपये मासिक पेंशन, 500 रुपये में गैस सिलेंडर और बेटियों की शिक्षा के लिए आवासीय कोचिंग, खेल प्रशिक्षण और मुफ्त प्रतियोगी परीक्षा फॉर्म जैसे वादे शामिल हैं।

तेजस्वी की रणनीति सिर्फ घरेलू राहत तक सीमित नहीं है, बल्कि शिक्षा और रोजगार के जरिए लंबे समय तक भरोसा बनाने पर केंद्रित है।

जन सुराज और प्रशांत किशोर का अलग रास्ता

प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी इस दौड़ को और दिलचस्प बना रही है। वे घोषणाओं से ज्यादा सीधा संवाद करने पर जोर दे रहे हैं। उनकी पदयात्रा में बड़ी संख्या में महिलाएं शामिल हुईं। प्रशांत किशोर का फोकस यह संदेश देना है कि महिलाएं खुद महसूस करें कि उनकी आवाज सुनी जा रही है। भले ही उनका असर कितना गहरा होगा, यह अभी कहना जल्दबाजी होगी, लेकिन माहौल बनाने में उनकी भूमिका अहम मानी जा रही है।

दूसरे राज्यों का सबक


बिहार ही नहीं, देश के कई राज्यों में महिला वोटरों ने हाल के वर्षों में चुनाव पलट दिए। मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान की 'लाड़ली बहना योजना' ने भाजपा को भारी फायदा दिलाया। महाराष्ट्र और हरियाणा में महिलाओं को नकद राशि और योजनाओं से जोड़ने पर सत्ताधारी दलों ने लाभ पाया। झारखंड में हेमंत सोरेन की महिला-केंद्रित योजनाओं का असर भी साफ नजर आया। इन अनुभवों ने बिहार की पार्टियों को चेतावनी दे दी है कि महिला वोट बैंक को साधना सत्ता की असली कुंजी है।

महिला वोटों के पीछे की राजनीति

बिहार में आज तीन तरह की रणनीतियां दिख रही हैं। एनडीए महिलाओं को रोजगार और आरक्षण जैसी नीतियों से जोड़कर सशक्तिकरण का संदेश दे रहा है। महागठबंधन नकद राशि, पेंशन और सस्ती गैस जैसी राहत योजनाओं पर भरोसा कर रहा है। वहीं जन सुराज महिलाओं से सीधा संवाद और जमीनी जुड़ाव पर फोकस कर रहा है। यानी हर दल की नजर अब महिला वोट बैंक पर है।

बदलती मानसिकता, बदलती राजनीति


गांवों और कस्बों में अब यह आम होता जा रहा है कि महिलाएं खुद तय करती हैं कि किसे वोट देना है। पहले वे परिवार की राय पर ज्यादा निर्भर रहती थीं, लेकिन अब शिक्षा और जागरूकता ने उन्हें स्वतंत्र सोचने की ताकत दी है। महिलाएं अब गैस, पानी, स्वास्थ्य, रोजगार, सुरक्षा और पेंशन जैसे मुद्दों पर गंभीरता से विचार करती हैं। खासकर युवा महिला मतदाता सोशल मीडिया पर सक्रिय होकर राजनीति पर अपनी राय जाहिर कर रही हैं। यानी महिला मतदाता अब सिर्फ निर्भर नहीं रहीं, बल्कि निर्णायक बन चुकी हैं। बिहार चुनाव 2025 का सबसे बड़ा सवाल यही है कि महिला मतदाता किस ओर झुकेंगी। उनकी संख्या बड़ी है, मतदान प्रतिशत पुरुषों से अधिक है और उनका रुख नतीजों को पलटने की क्षमता रखता है।

नीतीश कुमार आरक्षण और रोजगार योजनाओं के सहारे महिलाओं को साधना चाहते हैं। तेजस्वी यादव नकद सहायता और शिक्षा योजनाओं के जरिए भरोसा जीतने की कोशिश कर रहे हैं। प्रशांत किशोर सीधा संवाद और भरोसे की राजनीति पर जोर दे रहे हैं।

लेकिन असली रहस्य यही रहेगा कि ये 'साइलेंट वोटर' आखिरकार किसके पक्ष में चुपचाप बटन दबाएंगी। इतना तय है कि बिहार की अगली सरकार की चाबी महिलाओं के ही हाथों में है।

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