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परमाणु बम मेरी सबसे बड़ी भूल थी! नीलामी में आइंस्टीन का ऐतिहासिक युद्ध-विरोधी पत्र, जिसमें गूंजती है गांधी की गूंज
Einstein's Historic Anti-War Letter: अल्बर्ट आइंस्टीन का एक ऐतिहासिक पत्र, जिसमें उन्होंने 'परमाणु बम को अपनी सबसे बड़ी गलती' बताया था अब नीलामी के लिए उपलब्ध है।
Einstein's Historic Anti-War Letter
Einstein's Historic Anti-War Letter: बीसवीं सदी के महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन को जितना विज्ञान में उनके योगदान के लिए जाना जाता है, उतना ही याद किया जाता है उनके मानवतावादी विचारों और युद्ध-विरोधी रुख के लिए। अब उनका एक ऐतिहासिक पत्र, जिसमें उन्होंने 'परमाणु बम को अपनी सबसे बड़ी गलती' बताया था नीलामी के लिए उपलब्ध है। यह पत्र न केवल इतिहास की एक झलक देता है बल्कि यह भी दर्शाता है कि एक वैज्ञानिक अपने ज्ञान और विवेक से कितनी गहराई से समाज और विश्व की दिशा को प्रभावित कर सकता है। आइए जानते हैं महान वैज्ञानिक आइंस्टीन के लिखे इस पत्र और उसकी नीलामी से जुड़ी जानकारी के बारे में -
मैनहट्टन प्रोजेक्ट की प्रेरणा बना था आइंस्टीन का ये पत्र
अल्बर्ट आइंस्टीन प्रत्यक्ष रूप से परमाणु बम के निर्माण में शामिल नहीं थे, लेकिन उनका अप्रत्यक्ष योगदान ऐतिहासिक रूप से निर्णायक रहा। अगस्त 1939 में, उन्होंने अपने सहयोगी लियो स्ज़ीलार्ड के आग्रह पर अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी. रूजवेल्ट को एक पत्र लिखा था। इस पत्र में उन्होंने चेतावनी दी थी कि नाजी जर्मनी यूरेनियम पर काम कर रहा है और एक घातक परमाणु हथियार विकसित करने के कगार पर है। यह पत्र मैनहट्टन प्रोजेक्ट की प्रेरणा बना वही गुप्त कार्यक्रम जिसके तहत अमेरिका ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान परमाणु बम का विकास किया।
पछतावे की छाया में बीता अंतिम जीवन
हालांकि, परमाणु हथियारों के दुष्परिणामों को देखकर आइंस्टीन का मन वैज्ञानिक उपलब्धियों की बजाय आत्मग्लानि से भर गया। हिरोशिमा और नागासाकी पर अमेरिकी परमाणु हमलों के बाद उन्होंने सार्वजनिक रूप से अपने अफसोस को व्यक्त किया और कहा कि रूजवेल्ट को लिखा गया उनका पत्र, उनके जीवन की सबसे बड़ी गलती थी। आइंस्टीन शांति, सत्य और मानवतावाद के गहरे समर्थक थे। उन्होंने बार-बार युद्ध को मानव सभ्यता के लिए विनाशकारी बताया और अंतरराष्ट्रीय सहयोग और परमाणु हथियारों के उन्मूलन का समर्थन किया।
1952 का ऐतिहासिक पत्र बना युद्ध-विरोधी विचारों की दस्तावेज़ी गूंज
1952 में जापानी पत्रिका काइजो के संपादक और आइंस्टीन के पुराने मित्र कात्सु हारा ने उनसे एक पत्र में सवाल पूछा कि 'आपने परमाणु बम के निर्माण में सहयोग क्यों किया, जबकि आप इसकी विनाशकारी शक्ति से भलीभांति परिचित थे?" इसके जवाब में आइंस्टीन ने एक पत्र लिखा, जिसका शीर्षक था 'परमाणु बम परियोजना में मेरी भागीदारी'। इस पत्र में उन्होंने लिखा कि, 'मुझे उस समय कोई और रास्ता नहीं दिख रहा था। जर्मनी द्वारा पहले परमाणु हथियार बनाने की संभावना इतनी गंभीर थी कि हम इसे नजरअंदाज नहीं कर सकते थे।' आइंस्टीन ने पत्र में स्पष्ट किया कि उनका इरादा केवल जर्मनी को रोकना था, लेकिन जो हुआ वह उनके लिए जीवनभर का पछतावा बन गया।
गांधी को बताया राजनीतिक प्रतिभा का आदर्श
पत्र में एक और उल्लेखनीय बात थी। वो थी महात्मा गांधी के प्रति आइंस्टीन की गहरी श्रद्धा। उन्होंने गांधी को उस युग का सबसे बड़ा राजनीतिक प्रतिभाशाली व्यक्ति बताया और भारत के स्वतंत्रता संग्राम में उनके अहिंसक आंदोलनों की खुलकर सराहना की। 'महात्मा गांधी ने दुनिया को यह दिखाया कि बिना हिंसा के भी क्रांतिकारी परिवर्तन संभव हैं। उनके सिद्धांत युद्ध के कट्टरपंथी उन्मूलन का सबसे सशक्त उदाहरण हैं।'
बहुभाषी प्रकाशन और अंग्रेजी संस्करण की नीलामी
कात्सु हारा ने इस पत्र को 1952 में जर्मन भाषा और जापानी अनुवाद में प्रकाशित किया था। इसके बाद, इसका अंग्रेजी अनुवाद 1953 में हर्बर्ट जेले नामक सैद्धांतिक भौतिक विज्ञानी ने आइंस्टीन की मदद से किया। यही अंग्रेजी संस्करण अब नीलामी के लिए उपलब्ध कराया गया है। इस दस्तावेज़ पर आइंस्टीन के हस्ताक्षर हैं और इसमें की गई त्रुटियों को पेंसिल से ठीक भी किया गया है। जो इसे एक अमूल्य ऐतिहासिक विरासत बनाते हैं।
कब और कहां हो रही है नीलामी?
इस ऐतिहासिक पत्र की नीलामी प्रसिद्ध नीलामीघर बोनहम्स द्वारा आयोजित की जा रही है। इच्छुक व्यक्ति 24 जून 2025 तक इसकी बोली लगा सकते हैं। नीलामी आयोजकों को उम्मीद है कि यह पत्र ₹86 लाख से ₹1 करोड़ रुपये के बीच बिक सकता है।
आइंस्टीन की विरासत बनी नव चेतना
यह पत्र सिर्फ एक वैज्ञानिक की निजी अभिव्यक्ति नहीं है। बल्कि यह दर्शाता है कि ज्ञान की शक्ति के साथ उत्तरदायित्व का बोध कितना आवश्यक है। आइंस्टीन का यह युद्ध-विरोधी रुख आज भी उतना ही प्रासंगिक है, जब दुनिया फिर से हथियारों की होड़ और वैश्विक असुरक्षा के दौर से गुजर रही है।उनकी यह स्वीकारोक्ति कि परमाणु बम के विकास में अप्रत्यक्ष भूमिका उनकी 'सबसे बड़ी गलती' थी आज की और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक गहरी चेतावनी है। आइंस्टीन का यह पत्र न केवल विज्ञान और इतिहास की दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह एक महान वैज्ञानिक के आत्ममंथन, पछतावे और मानव कल्याण की चिंता का सजीव प्रमाण है। इसमें गूंजती है गांधी की सीख, युद्ध के खिलाफ आवाज और शांति की आवश्यकता। यह नीलामी केवल एक दस्तावेज़ की नहीं, बल्कि विचारों की विरासत की है। जिसे दुनिया को संभालकर रखना चाहिए।
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