Chandra Grahan Lagne Ka Samay: 7 सितंबर 2025 को लगेगा साल का आखिरी चंद्रग्रहण, जानिए ग्रहण का समय

Chandra Grahan Ke Bare Mein Jankari: 7 सितंबर 2025 को इस साल का आखिरी चंद्रग्रहण होगा ।

Shivani Jawanjal
Published on: 6 Sept 2025 10:00 AM IST
Chandra Grahan 2025 Date and Timing
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Chandra Grahan 2025 Date and Timing

Chandra Grahan 2025 Date and Timing: खगोल विज्ञान के नजरिए से चंद्रग्रहण हमेशा से मानव जिज्ञासा का केंद्र रहा है। चंद्रग्रहण तब घटित होता है जब पृथ्वी सूर्य और चंद्रमा के बीच आ जाती है और उसकी छाया चंद्रमा पर पड़ती है। साल 2025 में कुल तीन चंद्रग्रहण हो चुके हैं और 7-8 सितंबर को होने वाला चंद्रग्रहण साल का आखिरी होगा। यह पूर्ण चंद्रग्रहण पूरी रात लगभग 3 घंटे तक रहेगा और इसे 'ब्लड मून' भी कहा जाता है क्योंकि चंद्रमा लाल रंग में दिखाई देता है। खगोल विज्ञानीय दृष्टि से यह घटना महत्वपूर्ण है क्योंकि यह पृथ्वी के वायुमंडल के प्रभावों को दिखाती है और ज्योतिषीय दृष्टि से भी इसे विशेष माना जाता है। ज्योतिष के अनुसार चंद्रग्रहण का प्रभाव विभिन्न राशियों और प्राकृतिक घटनाओं पर पड़ता है। यह खगोलीय घटना विश्व के कई हिस्सों में दिखाई देगी, जिसमें भारत भी शामिल है। ऐसे में आइये जानते है की चंद्रग्रहण क्या है और यह क्यों इतना महत्वपूर्ण है?

कब है चंद्रग्रहण?

7 सितंबर 2025 को साल का आखिरी चंद्रग्रहण होगा और पूर्ण चंद्रग्रहण होगा। इसीलिए इसे 'ब्लड मून' भी कहा जाता है क्योंकि इस दौरान चंद्रमा लाल रंग का दिखाई देता है। यह ग्रहण लगभग 3 घंटे 28 मिनट तक चलेगा। इसकी शुरुआत दोपहर करीब 12:50 बजे उपछाया चरण से होगी। रात करीब 8:00 बजे से आंशिक ग्रहण दिखाई देना शुरू होगा और लगभग 9:57 बजे यह अपने चरम पर होगा, जब पूरा चंद्रमा पृथ्वी की छाया में होगा। ग्रहण की समाप्ती 8 सितंबर की रात करीब 1:26 बजे होगी । यह अद्भुत खगोलीय घटना भारत सहित एशिया के कई हिस्सों, यूरोप, अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया में साफ दिखाई देगी।

चंद्रग्रहण क्या है?


चंद्रग्रहण तब होता है जब सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा एक सीधी रेखा में आ जाते हैं और पृथ्वी की छाया चंद्रमा पर पड़ जाती है। यह तीन प्रकार का हो सकता है - पूर्ण, आंशिक और उपछाया चंद्रग्रहण। पूर्ण चंद्रग्रहण में चंद्रमा पूरी तरह पृथ्वी की गहरी छाया में चला जाता है और लालिमा लिए दिखता है। आंशिक चंद्रग्रहण में चंद्रमा का केवल कुछ हिस्सा ही छाया में आता है। वहीं उपछाया चंद्रग्रहण में चंद्रमा सिर्फ हल्की छाया से ढकता है, जिससे वह हल्का धुंधला या मटमैला दिखाई देता है। ज्योतिष में इसे उतना महत्वपूर्ण नहीं माना जाता जितना पूर्ण या आंशिक चंद्रग्रहण माना जाता है ।

पहले चंद्रग्रहण का उल्लेख

मानव सभ्यता के शुरुआती दौर से ही चंद्रग्रहण लोगों के लिए रहस्य और जिज्ञासा का विषय रहा है। बेबीलोन, चीन और भारत जैसी प्राचीन सभ्यताओं में इसके उल्लेख मिलते हैं। इतिहासकार बताते हैं कि सबसे पुराना दर्ज चंद्रग्रहण 29 जनवरी 1136 ईसा पूर्व का है, जिसका जिक्र बेबीलोनियन खगोलीय अभिलेखों में है। भारत के ऋग्वेद और पुराणों में भी चंद्रग्रहण का वर्णन है और इसे पौराणिक कथा में राहु - केतु से जोड़ा गया है। प्राचीन यूनानियों ने चंद्रग्रहण के समय पृथ्वी की छाया को देखकर साबित किया कि पृथ्वी गोल है। चंद्रग्रहण के अध्ययन ने खगोल विज्ञान, समय की गणना और कैलेंडर प्रणाली के विकास में भी बड़ा योगदान दिया।

राहु - केतु और चंद्रग्रहण की कथा

भारतीय पौराणिक कथाओं में चंद्रग्रहण का संबंध राहु और केतु से जोड़ा जाता है। कथा के अनुसार, समुद्र मंथन के समय असुर राहु ने छल से अमृत पी लिया था। सूर्य और चंद्रमा ने यह देखकर भगवान विष्णु को बताया, जिन्होंने सुदर्शन चक्र से राहु का सिर धड़ से अलग कर दिया। अमृत पीने के कारण राहु अमर हो गया। उसका सिर राहु और धड़ केतु कहलाए। माना जाता है कि राहु और केतु सूर्य और चंद्रमा के शत्रु हैं और समय-समय पर उन्हें निगल लेते हैं। जब राहु चंद्रमा को निगलता है तो चंद्रग्रहण लगता है। यह कथा आज भी भारतीय संस्कृति और ज्योतिष में चंद्रग्रहण के आध्यात्मिक महत्व को समझाने के लिए सुनाई जाती है।

खगोल विज्ञान प्रेमियों के लिए अवसर


चंद्रग्रहण को आप बिना किसी खास उपकरण के भी देख सकते हैं। इसे टेलीस्कोप, दूरबीन या सीधे आंखों से सुरक्षित रूप से देखा जा सकता है। इसके लिए किसी विशेष चश्मे की जरूरत नहीं होती जबकि सूर्यग्रहण देखने के लिए सुरक्षा चश्मा जरूरी होता है। 7 सितंबर 2025 का यह पूर्ण चंद्रग्रहण भारत सहित कई देशों में साफ दिखाई देगा और लोग इसे बिना किसी डर के नंगी आंखों से देख सकते हैं। यह खगोल प्रेमियों और आम लोगों दोनों के लिए एक शानदार मौका है, जब वे चंद्रमा के रंग बदलते हुए नज़ारे का आनंद ले सकते हैं।

धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व

भारत में चंद्रग्रहण को धार्मिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। परंपरा के अनुसार, ग्रहण के समय पूजा-पाठ और शुभ कार्य नहीं किए जाते क्योंकि इसे अशुभ समय माना जाता है। इस दौरान कई लोग उपवास रखते हैं और ग्रहण खत्म होने के बाद स्नान करके शुद्धि करते हैं। मंदिरों के कपाट भी सूतक काल में बंद कर दिए जाते हैं। ग्रहण के दौरान खाने-पीने, पूजा या मूर्ति स्पर्श से बचने की सलाह दी जाती है। ग्रहण समाप्त होने के बाद गंगाजल से स्नान, घर की शुद्धि और भगवान का नाम जप करना शुभ माना जाता है। इन मान्यताओं को वेद, पुराण और लोक आस्था का हिस्सा माना जाता है और आज भी देशभर में इन्हें व्यापक रूप से माना जाता है।

ज्योतिषीय दृष्टिकोण

ज्योतिष के अनुसार चंद्रग्रहण का असर मनुष्य की मानसिक स्थिति और भावनाओं पर पड़ सकता है। माना जाता है कि इस समय मन में बेचैनी, तनाव या भावनात्मक उतार-चढ़ाव बढ़ सकते हैं। इसलिए इस दिन ध्यान लगाना, मंत्र जाप करना और सकारात्मक सोच बनाए रखना शुभ माना जाता है। कई ज्योतिषी इसे आत्मचिंतन और जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने का सही अवसर मानते हैं। इस कारण लोग ग्रहण के समय पूजा-पाठ और अच्छे कर्म करते हैं, ताकि नकारात्मक ऊर्जा कम हो और मानसिक शांति बनी रहे।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण बनाम अंधविश्वास

वैज्ञानिक दृष्टि से चंद्रग्रहण एक प्राकृतिक खगोलीय घटना है। जब सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा एक सीधी रेखा में आ जाते हैं और पृथ्वी की छाया चंद्रमा पर पड़ती है। नासा और अन्य वैज्ञानिक संस्थान बताते हैं कि चंद्रग्रहण का मनुष्यों या पृथ्वी पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता और यह किसी आपदा या दुर्भाग्य का कारण नहीं बनता। इस समय चंद्रमा लाल दिखता है क्योंकि पृथ्वी का वायुमंडल सूर्य की रोशनी को छानकर लाल रंग की किरणों को चंद्रमा तक पहुंचने देता है, जिसे 'ब्लड मून' कहा जाता है। हालांकि भारतीय समाज में यह घटना धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व भी रखती है। इसलिए आज इसे विज्ञान और परंपरा दोनों दृष्टियों से समझना सही माना जाता है।

आने वाले चंद्रग्रहण


7 सितंबर 2025 के बाद अगला चंद्रग्रहण साल 2026 में होगा। 2026 में दो चंद्रग्रहण होंगे। पहला चंद्रग्रहण 3 मार्च 2026 को होगा जो आंशिक चंद्रग्रहण होगा और यह भारत समेत कई देशों में दिखाई देगा। दूसरा चंद्रग्रहण 27-28 अगस्त 2026 को होगा, लेकिन यह भारत में दिखाई नहीं देगा। इसलिए खगोल विज्ञान प्रेमियों को पूरे साल का इंतजार नहीं करना पड़ेगा । वे लगभग छह महीने बाद ही फिर से चंद्रग्रहण का नजारा देख पाएंगे।

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