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Dangerous Space Mission: वो अंतरिक्ष मिशन जो मौत के मुंह से लौट आया, जानें अंतरिक्ष के सबसे भयानक घटना की कहानी

Dangerous Space Mission Apollo 13 History: अपोलो 13 की कहानी एक रोमांचक थ्रिलर से कम नहीं।

Shivani Jawanjal
Published on: 29 Jun 2025 4:29 PM IST
Dangerous Space Mission Apollo 13 History
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Dangerous Space Mission Apollo 13 History

Dangerous Space Mission Apollo 13 History: धरती से 3,84,400 किलोमीटर दूर जब अपोलो 13 अंतरिक्ष यान एक भयानक हादसे का शिकार हुआ, तो एक पल के लिए ऐसा लगा मानो सब खत्म हो गया हो - न मिशन बचेगा, न यात्री। लेकिन उसी अंधकार और शून्य में इंसानी हौसले, वैज्ञानिक बुद्धिमत्ता और टीमवर्क की ऐसी मिसाल गढ़ी गई, जिसने इतिहास बदल दिया। यह सिर्फ एक मिशन की कहानी नहीं है, यह उस क्षण की दास्तान है जब मौत सामने थी, पर इंसान डटा रहा। अपोलो 13 - एक ऐसा मिशन जिसे नासा ने 'असफलता में सफलता' कहा और जिसे आज भी संकट प्रबंधन और मानवीय जज़्बे की सबसे बड़ी परीक्षा माना जाता है।

आइये जानते है इस मिशन के बारे में विस्तार से!

अपोलो मिशनों की शुरुआत और अपोलो 13 की तैयारी


अपोलो 13 मिशन को 11 अप्रैल 1970 को लॉन्च किया गया था, जिसका मुख्य उद्देश्य चंद्रमा से चट्टानों और अन्य नमूनों को धरती पर लाना था। इससे पहले अपोलो 11 और अपोलो 12 सफलतापूर्वक चंद्रमा पर उतर चुके थे।इस ऐतिहासिक मिशन के चालक दल में कमांडर जिम लोवेल, कमांड मॉड्यूल पायलट जैक स्वाइगर्ट और लूनर मॉड्यूल पायलट फ्रेड हैज़ शामिल थे। दिलचस्प बात यह है कि जैक स्वाइगर्ट को अंतिम समय में मिशन में शामिल किया गया था। मूल रूप से यह जिम्मेदारी केन मैटिंगली की थी लेकिन उन्हें खसरा (measles) के संपर्क में आने के कारण हटाया गया। यह बदलाव आखिरी समय में हुआ, जो बाद की घटनाओं को और भी नाटकीय बना देता है।

सब कुछ ठीक था, जब तक कि एक धमाका नहीं हुआ


13 अप्रैल 1970 को, जब अपोलो 13 यान धरती से करीब 3,20,000 किलोमीटर दूर अंतरिक्ष में था, एक भयानक विस्फोट ने सबकुछ बदल दिया। ऑक्सीजन टैंक नंबर 2 में हुए इस धमाके ने यान के सर्विस मॉड्यूल को गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त कर दिया और यान पूरे जोर से हिल गया। इस खतरनाक पल में कमांड मॉड्यूल पायलट जैक स्वाइगर्ट ने कंट्रोल सेंटर से संपर्क कर ऐतिहासिक शब्द कहे, “Okay, Houston, we’ve had a problem here” ।इसके तुरंत बाद कमांडर जिम लोवेल ने भी इस समस्या की पुष्टि की। यद्यपि यह वाक्य पॉप संस्कृति में अक्सर “Houston, we have a problem” के रूप में प्रचारित हुआ, लेकिन वास्तविक शब्द इससे थोड़े अलग थे। विस्फोट के कारण ऑक्सीजन लीक होने लगी और पावर सिस्टम फेल हो गए, जिससे मिशन का चंद्रमा पर उतरने का सपना वहीं समाप्त हो गया। अब पूरा मिशन केवल एक लक्ष्य पर केंद्रित हो गया । तीनों अंतरिक्ष यात्रियों को किसी भी कीमत पर सुरक्षित पृथ्वी पर वापस लाना।

‘Moon Landing’ से ‘Survival Mission’ में तब्दील मिशन


विस्फोट के बाद अपोलो 13 मिशन का मूल उद्देश्य पूरी तरह बदल गया। अब यह चाँद पर उतरने का वैज्ञानिक मिशन नहीं रहा, बल्कि एक संघर्षपूर्ण 'सर्वाइवल मिशन' बन चुका था। नासा और तीनों अंतरिक्ष यात्रियों का मुख्य लक्ष्य अब केवल एक था हर हाल में सुरक्षित पृथ्वी पर वापसी। इस संकट की घड़ी में जिस यान को चंद्रमा पर उतरने के लिए तैयार किया गया था, वही लूनर मॉड्यूल 'Aquarius' अब जीवनरक्षक नौका बन गया। सर्विस मॉड्यूल के ऑक्सीजन और ऊर्जा प्रणाली के क्षतिग्रस्त हो जाने के बाद क्रू को Aquarius में स्थानांतरित होना पड़ा। और उन्होंने उसी के सिस्टम्स की मदद से अपनी जान बचाने की कोशिश की। इस असाधारण निर्णय और त्वरित अनुकूलन ने मिशन की दिशा ही नहीं, उसकी नियति भी बदल दी।

कड़ाके की ठंड, ऑक्सीजन की कमी और डरावनी खामोशी


लूनर मॉड्यूल ‘Aquarius’ मूल रूप से केवल दो अंतरिक्ष यात्रियों के लिए और वह भी चंद्रमा पर दो दिन तक रहने के लिए डिज़ाइन किया गया था, लेकिन विस्फोट के बाद यह तीन लोगों का एकमात्र सहारा बन गया। ऊर्जा की भारी कमी के कारण अधिकांश सिस्टम बंद करने पड़े, जिससे मॉड्यूल का तापमान शून्य के करीब पहुँच गया। अंतरिक्ष यात्री ठंड और नमी से कांपते रहे, उनके हाथ-पैर सुन्न होने लगे थे। वहीं, भोजन और पानी की भी गंभीर किल्लत थी। उन्हें अत्यंत सीमित मात्रा में पानी पीना पड़ा, जिससे डिहाइड्रेशन जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई

ऑक्सीजन की आपूर्ति भी सीमित थी, लेकिन उससे बड़ी चुनौती थी तेजी से बढ़ता कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर। चूंकि लूनर मॉड्यूल में तीन लोगों के लिए पर्याप्त CO₂ फ़िल्टर मौजूद नहीं थे। नासा के ज़मीनी इंजीनियरों ने अंतरिक्ष यात्रियों को सीमित संसाधनों से एक इम्प्रोवाइज्ड CO₂ फ़िल्टर बनाने का निर्देश दिया, जिसे ‘मेलबॉक्स’ कहा गया। इस नवाचार ने उनकी जान बचाने में अहम भूमिका निभाई।

बिजली की कमी के कारण मॉड्यूल के कई सिस्टम फ्रीज़ हो चुके थे जिससे स्थिति और भी खराब हो गई थी। लेकिन इन तमाम विकट परिस्थितियों के बीच, अंतरिक्ष यात्रियों ने अपनी गहरी ट्रेनिंग, संयम और अविश्वसनीय टीमवर्क के दम पर साहस की एक अनोखी मिसाल पेश की।

धरती पर एक टीम, जो हर सेकंड लगी रही


अपोलो 13 संकट के दौरान नासा के वैज्ञानिकों और इंजीनियरों ने ह्यूस्टन, टेक्सास स्थित मिशन कंट्रोल सेंटर से दिन-रात काम करके मानवता की एक अभूतपूर्व मिसाल पेश की। मिशन के फ्लाइट डायरेक्टर जीन क्रांज़ ने अपनी टीम के साथ हर संभावित उपाय खोजे ताकि अंतरिक्ष यात्रियों की जान बचाई जा सके। शिफ्ट डायरेक्टर ग्लिन लनी (Glynn Lunney) ने भी संकट के सबसे कठिन क्षणों में निर्णायक भूमिका निभाई। सबसे बड़ी चुनौती थी लूनर मॉड्यूल में बढ़ता कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर, क्योंकि वहाँ पर्याप्त CO₂ स्क्रबर मौजूद नहीं थे। ऐसे में नासा की ज़मीनी टीम ने एक अद्भुत समाधान निकाला । उन्होंने क्रू को सीमित संसाधनों जैसे प्लास्टिक बैग, कार्डबोर्ड, डक्ट टेप और चांदी की पट्टियों से एक इम्प्रोवाइज्ड फ़िल्टर बनाने का तरीका समझाया, जिसे बाद में 'मेलबॉक्स' कहा गया। यह आज भी इंजीनियरिंग इनोवेशन की मिसाल माना जाता है। साथ ही, ऊर्जा की बचत के लिए अंतरिक्ष यात्रियों को अधिकांश सिस्टम्स बंद करने की सलाह दी गई और केवल जीवन रक्षक, नेविगेशन और संचार से जुड़े आवश्यक सिस्टम्स ही चालू रखे गए। इस संकट में विज्ञान, मानवता और टीमवर्क ने मिलकर इतिहास रचा।

एक गलत कोण और वे अंतरिक्ष में खो सकते थे


जब अपोलो 13 यान पृथ्वी की ओर लौट रहा था, तब सबसे बड़ा तकनीकी और जीवन-मरण का संकट 'Re-entry Angle' था। यानी यान का पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करने का कोण। यह कोण न केवल मिशन की सफलता, बल्कि अंतरिक्ष यात्रियों की जान के लिए भी निर्णायक था। यदि यह कोण बहुत अधिक (steep) होता, तो अत्यधिक घर्षण और ताप से यान जलकर नष्ट हो सकता था। वहीं यदि यह बहुत कम (shallow) होता, तो यान वायुमंडल को छूकर वापस अंतरिक्ष में चला जाता और हमेशा के लिए खो जाता।

स्थिति और भी जटिल थी क्योंकि ऊर्जा की बचत के लिए यान के मुख्य कंप्यूटर और गाइडेंस सिस्टम पहले ही बंद किए जा चुके थे। ऐसे में नासा के इंजीनियरों और अंतरिक्ष यात्रियों ने मिलकर मैन्युअल और नवाचारपूर्ण तरीकों से यान की दिशा और प्रवेश कोण को नियंत्रित किया। यह मानवीय बुद्धिमत्ता और तकनीकी सूझबूझ का अद्वितीय उदाहरण था। अंततः 17 अप्रैल 1970 को, इन सटीक गणनाओं और समन्वय की बदौलत अपोलो 13 का कमांड मॉड्यूल सुरक्षित रूप से पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश कर गया और तीनों अंतरिक्ष यात्री सकुशल घर लौट आए।

घर वापसी - एक चमत्कार जैसी कहानी


17 अप्रैल 1970 को अपोलो 13 का कमांड मॉड्यूल अंततः पृथ्वी के वायुमंडल में सफलतापूर्वक दाखिल हुआ और दक्षिण प्रशांत महासागर में पैराशूट की सहायता से सुरक्षित लैंडिंग (splashdown) की। अमेरिकी नौसेना के जहाज USS Iwo Jima ने मिशन के तीनों अंतरिक्ष यात्रियों - जिम लोवेल, जैक स्वाइगर्ट और फ्रेड हैज़ को बचाया। जैसे ही उनकी सुरक्षित वापसी की खबर सामने आई पूरी दुनिया ने राहत की सांस ली। इस मिशन को शुरू से अंत तक मीडिया ने बेहद करीब से कवर किया था और इसकी हर खबर पर लोगों की निगाहें टिकी थीं। अपोलो 13 अब केवल एक अंतरिक्ष मिशन नहीं था बल्कि यह मानवीय साहस, असाधारण टीमवर्क और इंजीनियरिंग कौशल का प्रतीक बन चुका था। हालांकि तीनों अंतरिक्ष यात्री बेहद थके हुए और शारीरिक रूप से कमजोर थे। लेकिन वे जीवित लौटे और यही इस मिशन की सबसे बड़ी जीत थी।

इस मिशन ने क्या सिखाया?

Apollo 13 मिशन ने दुनिया को यह सिखाया कि चाहे हालात कितने भी भयावह और कठिन क्यों न हों, अगर इंसान हिम्मत, धैर्य और बुद्धिमत्ता से काम ले, तो वह किसी भी संकट को मात दे सकता है। तीनों अंतरिक्ष यात्रियों और नासा की ज़मीनी टीम ने कभी हार नहीं मानी यही इस मिशन की सबसे बड़ी प्रेरणा है। यह घटना मानवीय जिजीविषा, अटूट टीमवर्क और तकनीकी कुशलता का अद्भुत उदाहरण बन गई। जिस मिशन का उद्देश्य चाँद पर उतरना था वह अपने लक्ष्य में तो असफल रहा। लेकिन जिस तरह संकट के समय सभी ने मिलकर असंभव को संभव कर दिखाया उसने इसे 'A Successful Failure' यानी 'सबसे सफल असफल मिशन' बना दिया। आज भी Apollo 13 मिशन को नासा और पूरी दुनिया एक प्रेरणास्रोत के रूप में देखती है। यह उस समय की कहानी है जब विज्ञान, मानवीय साहस और उम्मीद ने मिलकर एक करिश्मा कर डाला।

मिशन का सांस्कृतिक प्रभाव और प्रेरणा


1995 में रिलीज़ हुई हॉलीवुड फिल्म 'Apollo 13' ने इस ऐतिहासिक मिशन की असाधारण कहानी को बड़े पर्दे पर जीवंत कर दिया। रॉन हॉवर्ड द्वारा निर्देशित इस फिल्म में प्रसिद्ध अभिनेता टॉम हैंक्स ने मिशन कमांडर जिम लोवेल की भूमिका निभाई थी। यह फिल्म Apollo 13 मिशन पर आधारित एक सच्ची घटना को बेहद तकनीकी सटीकता और गहरी भावनात्मक गहराई के साथ प्रस्तुत करती है। दर्शकों और समीक्षकों दोनों ने इसे खूब सराहा, और इसे कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों एवं ऑस्कर नामांकनों से सम्मानित किया गया। आज भी यह फिल्म उन लोगों के लिए एक बेहद प्रभावशाली और भावनात्मक माध्यम है जो Apollo 13 मिशन की चुनौतीपूर्ण यात्रा को न सिर्फ समझना बल्कि महसूस भी करना चाहते हैं।

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