Elephant Mahadevi Controversy: 1200 साल पुराना नंदनी मठ क्यों आया विवादों में? जानिए इतिहास और पूरा मामला

Elephant Mahadevi Controversy: हाल ही में यह प्रतिष्ठित मठ विवादों में घिर गया। आखिर क्या है इस विवाद की जड़ और मठ का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व? आइए जानते हैं संक्षेप में।

Shivani Jawanjal
Published on: 3 Aug 2025 7:30 AM IST (Updated on: 3 Aug 2025 7:30 AM IST)
Elephant Mahadevi Controversy: 1200 साल पुराना नंदनी मठ क्यों आया विवादों में? जानिए इतिहास और पूरा मामला
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Elephant Mahadevi Controversy: महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले की पवित्र भूमि पर स्थित नंदनी मठ सह्याद्री की सुरम्य घाटियों में छुपा एक ऐतिहासिक, धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर है। यह मठ दिगंबर जैन परंपरा का एक प्रतिष्ठित तीर्थस्थल रहा है, जिसकी जड़ें प्राचीन जैन इतिहास और भट्टारक परंपरा में गहराई से जुड़ी हुई हैं। यहां केवल भगवान की भव्य जैन मूर्तियाँ और मंदिर ही नहीं हैं बल्कि यह स्थान तप, साधना, आस्था और विरासत का जीवंत केंद्र भी रहा है। पंचकल्याणक जैसे महापर्वों की भव्यता, श्रद्धालुओं का अटूट विश्वास और वर्षों से चली आ रही साधु-संतों की उपस्थिति ने इसे एक जीवंत आध्यात्मिक स्थल बना दिया है।

क्या है मामला?


हाल ही में नंदनी मठ एक बड़े विवाद का केंद्र बन गया, जिसका कारण बना वहाँ वर्षों से रह रही 36 वर्षीय हथिनी महादेवी (माधुरी) का स्थानांतरण। बॉम्बे हाई कोर्ट ने 16 जुलाई 2025 को PETA इंडिया की शिकायतों और स्वतंत्र पशु चिकित्सकों की रिपोर्ट्स के आधार पर महादेवी को गुजरात के जामनगर स्थित ‘राधे कृष्णा मंदिर एलीफेंट वेलफेयर ट्रस्ट’ (वनतारा) भेजने का आदेश दिया। रिपोर्ट्स में महादेवी की गंभीर शारीरिक‑मानसिक स्थिति जैसे पैरों में सड़न, नेल इंजरी, घाव और एकाकीपन को उजागर किया गया था। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि धार्मिक आस्थाओं से ऊपर पशु कल्याण को प्राथमिकता दी जाएगी। मठ ने सुप्रीम कोर्ट में इस आदेश को चुनौती देते हुए 33 वर्षों के भावनात्मक व धार्मिक संबंध का हवाला दिया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 28 जुलाई 2025 को हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा। इस आदेश के विरोध में 25 जुलाई को करीब 7,000 लोगों ने नंदनी गाँव में शांतिपूर्ण मार्च निकाला जिसमें स्थानीय नेता, श्रद्धालु व ग्रामीण शामिल हुए। लेकिन 29 जुलाई की रात जब महादेवी को स्थानांतरित किया गया, तो हालात बेकाबू हो गए। 10,000 से अधिक लोग मौके पर जुटे, जिनमें से कुछ ने पथराव और हिंसा शुरू कर दी, जिससे पुलिस को हल्का लाठीचार्ज करना पड़ा। इस दौरान पुलिस वाहन और एनीमल एंबुलेंस को नुकसान पहुंचा, 80 लोगों पर केस दर्ज हुए, 10 पुलिसकर्मी घायल हुए और PETA के कार्यकर्ता भी जख्मी हो गए। यह घटना न केवल नंदनी मठ को राष्ट्रीय बहस का विषय बना गई, बल्कि पशु अधिकार बनाम धार्मिक भावना की गहराई से पड़ताल भी करवा गई।

अनंत अंबानी का इस मामले से संबंध


नंदनी मठ से हथिनी महादेवी (माधुरी) के स्थानांतरण के मामले में अनंत अंबानी का नाम सामने आने से यह विवाद और भी अधिक सुर्खियों में आ गया। दरअसल गुजरात के जामनगर में स्थित ‘राधे कृष्णा मंदिर एलीफेंट वेलफेयर ट्रस्ट’ (वनतारा), जहाँ महादेवी को भेजा गया है अनंत अंबानी द्वारा स्थापित और संचालित एक पशु संरक्षण केंद्र है। यह ट्रस्ट हाथियों और अन्य वन्य प्राणियों के संरक्षण, पुनर्वास और उनके जीवन को बेहतर बनाने हेतु कार्य करता है। PETA इंडिया और अन्य पशु कल्याण संस्थाओं की रिपोर्ट के अनुसार, वनतारा एक विश्वस्तरीय सुविधा है जहाँ घायल, बीमार या उपेक्षित हाथियों की वैज्ञानिक देखभाल, चिकित्सा और प्राकृतिक वातावरण में पुनर्वास किया जाता है।

हालांकि, महादेवी को महाराष्ट्र से गुजरात भेजे जाने के निर्णय से स्थानीय जनता में गहरा आक्रोश पैदा हुआ है। कोल्हापुर जिले सहित आसपास के 700 से अधिक गांवों में लोगों ने इस फैसले का विरोध करते हुए रिलायंस समूह की सेवाओं का बहिष्कार शुरू कर दिया है। स्थानीय मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, भावनात्मक रूप से जुड़ी जनता इस विरोध को ‘जियो’ सिम कार्ड को पोर्ट करवाकर और रिलायंस के उत्पादों का उपयोग बंद कर अभिव्यक्त कर रही है। उनका मानना है कि धार्मिक आस्था और परंपरा को दरकिनार कर महादेवी को जबरन मठ से दूर किया गया है। ऐसे में यह मामला अब पशु कल्याण बनाम धार्मिक भावना की बहस के साथ-साथ कॉरपोरेट हस्तक्षेप और स्थानीय जनभावनाओं के संघर्ष का प्रतीक बन गया है।

आइये जानते है नंदनी मठ का प्राचीन इतिहास

नंदनी मठ की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि


महाराष्ट्र(Maharashtra) के कोल्हापुर(Kolhapur) जिले की करवीर तहसील स्थित नंदनी मठ न केवल भौगोलिक दृष्टि से एक विशिष्ट स्थल है, बल्कि इसका ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व भी अत्यंत गहरा है। यह मठ नंदनी गाँव में स्थित है और इसका इतिहास लगभग 1,200 वर्षों पुराना माना जाता है। इसकी प्राचीनता और गौरवशाली विरासत की पुष्टि जैन हेरिटेज सेंटर, एनसाइक्लोपीडिया ऑफ जैनिज्म, और प्रमुख मराठी मीडिया संस्थानों द्वारा समय-समय पर की जाती रही है।

इस मठ की स्थापना का कालखण्ड 9वीं से 10वीं शताब्दी के बीच का माना जाता है, जब दक्षिण भारत में जैन धर्म अपने उत्कर्ष पर था। उस दौर में कोल्हापुर क्षेत्र पर शिलहार वंश (940 - 1212 ई.) का शासन था, जो जैन धर्म के सक्रिय संरक्षक माने जाते हैं। खासतौर पर राजा गोंका जैसे शासकों ने जैन मठों को न केवल संरक्षण और भूमि दान दिया, बल्कि उन्हें संस्थागत रूप से मजबूती देने का भी कार्य किया। इस संबंध में कई ऐतिहासिक साक्ष्य मौजूद हैं, जो शिलहार राजाओं की धर्मनिष्ठा और जैन परंपरा के प्रति उनके समर्थन को प्रमाणित करते हैं।

इसी युग में प्रसिद्ध जैन आचार्य माघानंदी (जिन्हें 'कोलापुरिया माघानंदी' भी कहा जाता है) का उल्लेख मिलता है। उन्हें ‘सिद्धांत-चक्रवर्ती’ की उपाधि प्राप्त थी और ऐसा माना जाता है कि उन्हीं के नेतृत्व या उनके शिष्यों द्वारा नंदनी मठ को एक समृद्ध धार्मिक एवं सांस्कृतिक केंद्र के रूप में विकसित किया गया।

यह मठ केवल एक जैन तीर्थ स्थल नहीं रहा बल्कि यह विद्या, तपस्या, साधना और आध्यात्मिक शिक्षा का केंद्र भी रहा है। भट्टारक परंपरा से जुड़े अनेक प्रमुख जैन आचार्य यहाँ निवास कर चुके हैं जिन्होंने इसे धर्म, दर्शन और ज्ञान-विज्ञान की तपस्थली में परिवर्तित कर दिया। आज भी नंदनी गाँव और उसके आसपास क्षेत्र में प्राचीन जैन मूर्तियाँ, शिलालेख और स्थापत्य कला के अद्वितीय नमूने विद्यमान हैं। जो इसकी समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर और जैन स्थापत्य परंपरा का जीवंत प्रमाण प्रस्तुत करते हैं।

भट्टारक गद्दी की परंपरा

नंदनी मठ दिगंबर जैन परंपरा की एक प्राचीन और जीवंत भट्टारक गद्दी के रूप में जाना जाता है, जो महाराष्ट्र में कोल्हापुर, नंदनी और कुंभोज जैसे ऐतिहासिक केंद्रों में से एक है। आज के समय में जब भट्टारक परंपरा केवल कुछ चुनिंदा स्थानों तक ही सीमित रह गई है, नंदनी मठ की गद्दी धार्मिक नेतृत्व और परंपरा की सतत विरासत का एक विशिष्ट प्रतीक बन चुकी है। यह मठ 'सेना गण' और 'पुष्कर आदेश' जैसे जैन गच्छों से भी संबंधित रहा है।

वर्तमान में नंदनी मठ के भट्टारक श्री जिनसेन जी मठाधीश के रूप में पदासीन हैं। वे केवल धार्मिक प्रमुख नहीं बल्कि जैन समुदाय के शिक्षक, आयोजक, परंपराओं के संरक्षक और सांस्कृतिक मार्गदर्शक के रूप में सक्रिय हैं। उनका कार्यक्षेत्र धार्मिक उपदेशों से लेकर बड़े स्तर के पंचकल्याणक महोत्सवों के आयोजन तक फैला हुआ है।

मध्यकाल में जब नग्न तपस्वी साधुओं की संख्या घटने लगी, तब भट्टारक परंपरा की शुरुआत हुई थी। जिसमें विद्वान और ब्रह्मचारी गृहस्थों को मठ संचालन, शिक्षण और धर्म-प्रसार के लिए नियुक्त किया गया। यह परंपरा विशेष रूप से दक्षिण भारत, कर्नाटक और महाराष्ट्र में विकसित हुई और आज भी इसकी जड़ें समाज में गहराई से फैली हुई हैं।

‘ब्रह्मज्ञ भट्टारक’ जैसी उपाधियाँ नंदनी गद्दी की प्रतिष्ठा को और भी ऊँचा स्थान देती हैं। मराठी भाषी जैन दिगंबर समुदाय में इस मठ और इसके भट्टारक का विशेष धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव रहा है जो आज भी विद्यमान है। नंदनी भट्टारक गद्दी न केवल परंपरा का वाहक है, बल्कि समुदाय की आस्था, दिशा और धार्मिक अनुशासन का आधार स्तंभ भी है।

नंदनी मठ के प्राचीन जैन मंदिर और अद्भुत शिल्पकला

नंदनी मठ परिसर में स्थित प्राचीन जैन मंदिर न केवल धार्मिक आस्था के केंद्र हैं, बल्कि भारतीय शिल्पकला और स्थापत्य की समृद्ध परंपरा के भी उत्कृष्ट उदाहरण हैं। इन मंदिरों की दीवारों और स्तंभों पर अत्यंत निपुणता से उकेरी गई जैन तीर्थंकरों की मूर्तियाँ देखने को मिलती हैं, जिनमें पारंपरिक हस्तमुद्राएँ, आसन, और आभूषण आदि की बारीक अभिव्यक्ति दिखाई देती है। प्राचीन पाषाण शिलाओं पर की गई जटिल और सजीव नक्काशी उस युग की कला-संवेदना, धार्मिक भक्ति और तकनीकी दक्षता को उजागर करती है।

मठ में प्रमुख रूप से आदिनाथ (रिशभनाथ), नेमिनाथ (22वें तीर्थंकर), पार्श्वनाथ (23वें) और भगवान महावीर स्वामी (24वें तीर्थंकर) की प्रतिमाएँ स्थापित हैं। ये प्रतिमाएँ सामान्यतः ध्यान और शांति की मुद्राओं में निर्मित की गई हैं और इनमें जैन धर्म के विशिष्ट प्रतीक, जैसे सिंहासन, चिह्न एवं त्रिकाल ज्ञान, स्पष्ट रूप से दर्शाए गए हैं।

विशेष रूप से ध्यान देने योग्य हैं यहां के गुफा शैली के मंदिर जो प्राचीन काल में चट्टानों को काटकर निर्मित किए गए थे। इसके अतिरिक्त, आसपास के क्षेत्रों में भी जैन स्थापत्य की छाप स्पष्ट दिखाई देती है। जैसे कि कुंभोज में स्थित 28 फुट ऊँची विशाल बहुबली प्रतिमा स्थानीय और बाहरी तीर्थयात्रियों के लिए एक महत्वपूर्ण आकर्षण है। वहीं कोल्हापुर और निकटवर्ती खिद्रापूर में भी शिलहार वंश के शासनकाल में निर्मित जैन मंदिर मिलते हैं, जिनमें श्री नेमिनाथ सहित अन्य तीर्थंकरों की मूर्तियाँ प्रतिष्ठित थीं।

इस प्रकार नंदनी मठ का स्थापत्य इतिहास, कला, साधना और आध्यात्मिक परंपरा का एक जीवंत संगम है। जो आज भी जैन संस्कृति की गौरवशाली विरासत को सहेज कर रखे हुए है।

पंचकल्याणक महोत्सव

नंदनी मठ में समय-समय पर आयोजित होने वाला पंचकल्याणक महोत्सव जैन धर्म की धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक परंपरा का एक भव्य प्रतीक है। यह उत्सव तीर्थंकरों के पाँच महत्वपूर्ण जीवन प्रसंगों जैसे गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान और मोक्ष का धार्मिक रूप से उत्सवपूर्वक स्मरण करता है। यह पर्व आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत पावन माना जाता है तथा यह जैन संस्कृति की एकता, धर्म प्रचार और सामाजिक सहभागिता का भी सशक्त माध्यम बनता है।

इस महोत्सव में देश-विदेश से जैन साधु-साध्वियाँ, आचार्यगण, धर्माचार्य, विद्वान और हजारों-लाखों श्रद्धालु सम्मिलित होते हैं। नंदनी मठ इन आयोजनों के माध्यम से न केवल धार्मिक जीवन को जागृत करता है बल्कि समाज में समरसता, सेवा भावना और संस्कृति के संरक्षण का कार्य भी करता है। यह महोत्सव मठ की आध्यात्मिक चेतना और समुदाय की सहभागिता को एक साथ जोड़ने वाली परंपरा के रूप में आज भी अत्यंत महत्वपूर्ण बना हुआ है।

नंदनी मठ और हाथी महादेवी

नंदनी मठ में हाथी महादेवी (माधुरी ) केवल एक प्राणी नहीं बल्कि धार्मिक आस्था, परंपरा और सांस्कृतिक पहचान का एक जीवंत प्रतीक रही है। लगभग 33 वर्षों तक यह हाथिनी मठ का हिस्सा रही है और दैनिक धार्मिक अनुष्ठानों से लेकर पंचकल्याणक महोत्सव, रथयात्रा जैसे विशेष आयोजनों में केंद्रीय आकर्षण बनकर उपस्थित रहती है । मठ के लिए महादेवी मात्र एक सेवा-हाथी नहीं बल्कि एक आध्यात्मिक सहयोगी है जो श्रद्धालुओं के लिए शक्ति, शांति, सज्जनता और समृद्धि का प्रतीक बन चुकी है ।

जैन धर्म में हाथी को एक पवित्र प्रतीक माना गया है, जो दक्षिण भारत के मंदिरों और जैन रीति-रिवाजों से गहराई से प्रभावित परंपरा का हिस्सा है। नंदनी मठ में हाथियों को धार्मिक आयोजनों में शामिल करने की परंपरा कई वर्षों से चली आ रही है। भक्तों के लिए महादेवी न केवल एक धार्मिक प्राणी बल्कि मठ की आध्यात्मिक ऊर्जा, सांस्कृतिक विरासत और सामाजिक पहचान से जुड़ी हुई एक सजीव प्रतीकात्मक मूर्ति है । जिसका स्थान किसी मूर्त या प्रतीक चिह्न से कहीं अधिक गहराई रखता था।

नंदनी मठ की सामाजिक सेवा और सांस्कृतिक भूमिका

नंदनी मठ केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि सामाजिक सेवा और सांस्कृतिक चेतना का महत्वपूर्ण केंद्र भी है। मठ में जैन धर्मशाला, निशुल्क भोजनशाला, पुस्तकालय और गोशाला जैसी सुविधाएँ वर्षों से संचालित की जा रही हैं। जो तीर्थयात्रियों और स्थानीय लोगों दोनों के लिए उपयोगी हैं।

यह मठ स्थानीय जैन समाज की सांस्कृतिक पहचान और धार्मिक जीवन का हृदयस्थल है जहाँ संस्कार, व्रत, विवाह और उत्सवों में बड़ी संख्या में लोग भाग लेते हैं। इसके साथ ही मठ शिक्षा, नैतिक मूल्यों और धार्मिक ज्ञान के प्रसार में भी सक्रिय है जिससे युवाओं और परिवारों को प्रेरणा मिलती है।

नंदनी मठ और स्थानीय जैन समुदाय

नंदनी मठ का स्थानीय जैन समुदाय से गहरा संबंध है। गाँव और आसपास के क्षेत्र के लोग मठ के धार्मिक और सामाजिक कार्यक्रमों में सक्रिय भागीदारी निभाते हैं। हाल ही में जब हाथी महादेवी के स्थानांतरण की तैयारी हुई, तो करीब 7,000 लोगों ने शांतिपूर्ण मार्च निकाला और 10,000 से अधिक श्रद्धालु अंतिम दर्शन में शामिल हुए। यह विरोध महादेवी को धार्मिक और सांस्कृतिक प्रतीक मानकर किया गया। मठ को स्थानीय जनप्रतिनिधियों (MLC, MLA, पूर्व सांसद) का समर्थन भी प्राप्त है, जिससे इसकी आस्था और परंपरा से गहराई से जुड़ी भूमिका स्पष्ट होती है।

संरक्षण और शोध की दिशा में पहल

नंदनी मठ की ऐतिहासिक, धार्मिक और कलात्मक महत्ता को देखते हुए इसे संरक्षित स्मारक घोषित किए जाने की संभावना है। महाराष्ट्र का पुरातत्व विभाग ऐसे प्राचीन स्थलों को संरक्षित करने का प्रावधान रखता है और मठ की प्राचीन मूर्तियाँ, शिलालेख एवं स्थापत्य इस योग्य हैं।

इस मठ पर कोल्हापुर और मुंबई विश्वविद्यालय सहित कई संस्थानों द्वारा शोध पत्र और ग्रंथ प्रकाशित किए गए हैं। जो इसे जैन सांस्कृतिक केंद्र के रूप में प्रस्तुत करते हैं। विश्वविद्यालयों के इतिहास विभागों ने मठ को आधिकारिक मान्यता देने और संरक्षण बढ़ाने की मांग भी की है, जिसे स्थानीय व शैक्षणिक स्तर पर सकारात्मक कदम माना जा रहा है।

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