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एक विषैली विरासत का अंत: मध्य प्रदेश में यूनियन कार्बाइड की 337 टन जहरीली अपशिष्ट सामग्री पूरी तरह जला दी गई
End of a Toxic Legacy: मध्य प्रदेश में स्थित एक उच्च तापमान वाले विशेष निस्तारण केंद्र में पूरी तरह से जला कर नष्ट कर दिया गया है।
End of a Toxic Legacy (Image Credit-Social Media)
Bhopal: 1984 की भोपाल गैस त्रासदी के केंद्र रहे कुख्यात यूनियन कार्बाइड की कीटनाशक फैक्ट्री से बचा हुआ 337 टन जहरीला अपशिष्ट अब इतिहास बन चुका है। इसे मध्य प्रदेश में स्थित एक उच्च तापमान वाले विशेष निस्तारण केंद्र में पूरी तरह से जला कर नष्ट कर दिया गया है। इस ऐतिहासिक और प्रतीकात्मक कार्रवाई का अंतिम चरण, जिसमें 307 टन कचरे का निस्तारण किया गया, 5 मई से 30 जून की सुबह तक पूरा किया गया।
मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (MPPCB) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने इस कार्रवाई की पुष्टि करते हुए बताया कि इससे पहले 30 टन कचरे को तीन पायलट परीक्षणों के तहत नष्ट किया जा चुका था। समस्त अपशिष्ट को धार जिले के पीथमपुर स्थित टीएसडीएफ (TSDF: ट्रीटमेंट, स्टोरेज एंड डिस्पोजल फैसिलिटी) में नष्ट किया गया।
इतिहास रचने वाली सफाई: वर्षों से लंबित प्रक्रिया
यह अपशिष्ट त्रासदी के बाद से ही भोपाल की परित्यक्त फैक्ट्री परिसर में जमा था और स्थानीय निवासियों, पर्यावरणविदों और पीड़ितों के लिए दशकों से चिंता का विषय बना हुआ था। आसपास के क्षेत्रों में भूमिगत जल के दूषित होने, जहरीली गैसों के संपर्क, और मिट्टी की विषाक्तता को लेकर लगातार भय बना रहा।
इस सफाई अभियान को गति तब मिली जब पीड़ित संगठनों द्वारा सतत दबाव डाला गया, सुप्रीम कोर्ट के कानूनी निर्देश आए और औद्योगिक कचरे के दुरुपयोग पर जन जागरूकता बढ़ी।
अधिकारियों ने स्पष्ट किया कि इस पूरी प्रक्रिया को कड़े पर्यावरणीय प्रोटोकॉल के तहत अंजाम दिया गया। खतरनाक कचरे के सुरक्षित निस्तारण के लिए बनाए गए राष्ट्रीय मानकों का पूरा पालन किया गया। उन्नत स्क्रबिंग सिस्टम के जरिये जहरीली गैसों को निष्क्रिय किया गया और वायु गुणवत्ता की सतत निगरानी की गई ताकि आम जनस्वास्थ्य को कोई खतरा न हो। पूरी प्रक्रिया केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) और विशेषज्ञ संस्थाओं की निगरानी में संपन्न हुई।
अतीत की प्रतिध्वनि: भोपाल गैस त्रासदी
2-3 दिसंबर 1984 की रात को यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से मिथाइल आइसोसाइनेट गैस का रिसाव हुआ था, जिससे हजारों लोग तत्काल मारे गए और 5 लाख से अधिक लोग जहरीली गैस के संपर्क में आए। इसे दुनिया की सबसे भीषण औद्योगिक त्रासदी माना जाता है। इस घटना के बाद केवल बीमारियां और आघात ही नहीं बचे, बल्कि टन भर जहरीला कचरा भी वहीं छोड़ दिया गया, जिसे कंपनी ने कभी साफ नहीं किया।
हालांकि अधिकांश लोगों ने इस लंबे समय से प्रतीक्षित निस्तारण कार्य का स्वागत किया है, लेकिन कई पीड़ित संगठन अब भी सतर्क आशावाद व्यक्त कर रहे हैं।
रचना ढींगरा, भोपाल ग्रुप फॉर इंफॉर्मेशन एंड एक्शन से जुड़ीं, कहती हैं –
“यह केवल न्याय की एक छोटी सी कड़ी है। जहरीला कचरा भले गया हो, लेकिन पीड़ित अब भी चिकित्सा पुनर्वास, स्वच्छ पेयजल और उचित मुआवज़े का इंतजार कर रहे हैं।”
अब अगला कदम: पर्यावरणीय पुनर्स्थापन
कुछ विशेषज्ञों ने यह भी कहा कि अब सरकार को प्रभावित क्षेत्र की दीर्घकालिक पर्यावरणीय पुनर्स्थापना पर ध्यान देना चाहिए, जिसमें मिट्टी और भूजल की सफाई शामिल हो।
अब जब कि कचरे का निस्तारण हो चुका है, तो यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री स्थल पर विस्तृत पर्यावरणीय आकलन शुरू किया जाएगा। मध्य प्रदेश सरकार, केंद्र सरकार के सहयोग से इस क्षेत्र को गैस त्रासदी के पीड़ितों की स्मृति और पर्यावरणीय जागरूकता केंद्र के रूप में विकसित करने पर भी विचार कर रही है।
तथ्य फाइल (Fact File):
• कुल नष्ट किया गया अपशिष्ट: 337 टन
• निस्तारण स्थल: टीएसडीएफ, पीथमपुर (धार जिला)
• निस्तारण अवधि: 5 मई – 30 जून, 2025
• त्रासदी में नुकसान (1984): अनुमानित 3,000 तत्काल मौतें; 15,000+ बाद में मौतें; 5 लाख+ प्रभावित
• कंपनी: यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड (अब डॉव केमिकल की सहायक कंपनी)
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