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Former Prime Minister V.P Singh :वीपी सिंह ने जो किया, डंके की चोट पर किया
Former Prime Minister V.P Singh : पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह (वीपी सिंह) का जयंती समारोह के अवसर पर बीते कल लखनऊ के गांधी भवन में आयोजन किया गया जिसमे उनकी याद में बहुत अच्छी अच्छी बातें कही गई।
Former Prime Minister V.P Singh (Image Credit-Social Media)
Former Prime MinisterV.P Singh : पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह (वीपी सिंह) का जयंती समारोह कल यहां लखनऊ के गांधी भवन में आयोजित हुआ । वीपी सिंह की याद में बहुत अच्छी अच्छी बातें कही गई हैं। राष्ट्रीय स्तर पर कई विषयों पर आवाज उठाने वाले देश के अनेक राज्यों से लोग आए। मैं भी मौजूद रहा। सबकी बातें सुनकर मैं करीब सैंतीस साल पहले की यादों में पहुंच गया हूं।
1988 की गर्मी में वीपी सिंह लोकसभा का उप चुनाव (बाइ इलेक्शन) लड़ रहे थे। प्रधानमंत्री राजीव गांधी से बागी होकर वह सरकार से बाहर आ गए थे और विपक्ष के हीरो माफिक देश की राजनीति में चमक उठे थे।
मैं उन दिनों इलाहाबाद में नया नया पत्रकार था। लगभग डेढ़ साल से ही पत्रकारिता में था। दुबला पतला युवक था। उत्साहवश हर राजनीतिक कार्यक्रम मे पहुंचने और वहां की रिपोर्टिंग करने की कोशिश करता था। बाइ इलेक्शन में उस जमाने के देश के ऐसे कौन से धुरंधर नेता थे, जो इलाहाबाद नहीं आए थे। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक और कामरूप से लेकर कच्छ तक के वो सारे बड़े-बड़े कांग्रेस विरोधी राजनेता वीपी सिंह के पीछे खड़े थे। वीपी सिंह की शान में कसीदे पढ़ते थे। देवीलाल तो सैकड़ों मोटर साइकिल चालकों की एक ब्रिगेड लेकर मौजूद थे, जिसका नाम ग्रीन ब्रिगेड रखा गया था। दरअसल ब्रिगेड के सारे लड़के हरे कपड़े पहनते थे।
वीपी सिंह के मुकाबिल थे कांग्रेस के सुनील शास्त्री। उनके समर्थन में देश का हर बड़ा कांग्रेस नेता इलाहाबाद में खूंटा गाड़कर बैठा था। उस समय अखबार ही थे। टेलीविजन चैनल तो थे नहीं। कुछ चैनल जो दिखते थे, वो विदेश के थे। बीबीसी तो था ही, बीच बीच में दूरदर्शन के भी दर्शन होते थे। देश ही नहीं, दुनिया भर का मीडिया इलाहाबाद में डेरा डाले हुए था। वीपी सिंह की ऐसी लोकप्रियता कि उनकी चुनावी सभाओं में भीड़ ही भीड़ और कांग्रेस की हालत यह थी कि जनसभाओं के लिए भीड़ मैनेज की जाती थी। प्रेस कांफ्रेंस तो इतनी होती थीं कि पत्रकारों का सबमें पहुंचना कठिन होता था। राजीव गांधी को कांग्रेस ने रणनीतिक रूप से चुनाव में नहीं आने दिया था। आकाशवाणी केंद्र के सामने स्थित वीपी सिंह के ऐश महल का नाम उसी समय बदलकर मांडा कोठी किया गया था। चुनाव प्रचार के दौरान लाउडस्पीकर पर तरह तरह के गाने बजते थे जैसे "हाय हाय राजा मांडा तूने फोड़ा मेरा भांडा...." सारा निज़ाम वीपी सिंह के लिए लामबंद था। हम लोग अक्सर मांडा कोठी पहुंचते थे क्योंकि वीपी सिंह अक्सर पत्रकारों से वहीं बातें करते थे। इलाहाबाद के तब के पत्रकारों में डॉ रामनरेश त्रिपाठी, एसके दुबे, हरिशंकर द्विवेदी, शिवशंकर गोस्वामी, प्रमोद शुक्ल, डॉ. प्रदीप भटनागर, राधेश्याम पटेल, माथुर साहब आदि हुआ करते थे। हम सब लगभग एक साथ वीपी सिंह जी से मिलते थे।
इसी आवाजाही और मेल मुलाकात में मैं उनसे पटर-पटर सवाल करता तो वो मुझे पहचानने लगे थे। मुझे टोकते और कहते--आवा बड़का पत्रकार तू आगे आवा...आज त तू कुछ पुछबै नाही किहा...। वह मंझे हुए लोकप्रिय राष्ट्रीय नेता थे लेकिन इलाहाबाद में वह सबसे अपनी गंवई बोली में ही बातचीत करते थे।
मंडल कमीशन लागू करने के बाद देश में जो कुछ हुआ, वह सबने देखा है। मैं उसके विवरण और व्याख्या में नहीं जाऊंगा लेकिन किसी मुलाकात में मैंने वीपी सिंह से मंडल कमीशन को लागू करने पर सवाल किया था तो उनका जवाब था कि मैंने जो मजार खड़ी की है, एक दिन सब उसी पर सज़दा करेंगे। उनकी बात सच साबित हुई। भारत की सारी राजनीतिक पार्टियां उत्तर से लेकर दक्षिण तक और पूरब से लेकर पश्चिम तक सब पिछड़ों की बात करते हैं।
एक सच यह है कि वीपी सिंह के मंडल कमीशन वाले कदम से जिन नेताओं की दुकान चली या चल रही है, वह उनका न तो सम्मान करते हैं और न ही याद करते हैं। वीपी सिंह जी से जुड़ी मेरी कई यादें हैं जो फिर कभी साझा करूंगा। फिलहाल इस कार्यक्रम में मौजूद रहते हुए बात यहीं खत्म करता हूं क्योंकि संतोष भारतीय जी को सुनना था।
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