Ganesh Chaturthi 2025: क्यों जरूरी हैं ईको-फ्रेंडली गणेश मूर्तियाँ?

Ganesh Chaturthi 2025: गणेश चतुर्थी केवल धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि भावनाओं का जीवंत प्रतीक है।

Shivani Jawanjal
Published on: 29 Aug 2025 12:16 PM IST
Ganesh Chaturthi 2025 Special Story
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Ganesh Chaturthi 2025 Special Story

Ganesh Chaturthi 2025 Special Story: भारत में गणेश चतुर्थी केवल धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि समाज, संस्कृति और भावनाओं का जीवंत प्रतीक है। पारंपरिक रूप से स्थापित गणेश मूर्तियों का विसर्जन हाल के दशकों में पर्यावरण पर गंभीर असर डाल रहा है, क्योंकि POP और रासायनिक रंगों से बनी मूर्तियाँ जल प्रदूषण और जलीय जीवों के लिए खतरा बन गई हैं। इसी कारण अब मिट्टी से बनी ईको-फ्रेंडली गणेश प्रतिमाएँ लोकप्रिय हो रही हैं, जो आस्था के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी सार्थक कदम साबित हो रही हैं।

गणेश चतुर्थी और मूर्ति विसर्जन की परंपरा


गणेश चतुर्थी का इतिहास महाराष्ट्र के छत्रपति शिवाजी महाराज के समय से जुड़ा हुआ माना जाता है। कहा जाता है कि शिवाजी महाराज और उनकी माता जीजाबाई ने इस पर्व की शुरुआत अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक एकजुटता को बढ़ाने के लिए की थी। उस समय यह उत्सव मुख्य रूप से परिवार और समुदायों के बीच मनाया जाता था। लेकिन 1893 में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने इस पर्व को एक सामाजिक और राष्ट्रीय आंदोलन का रूप दिया, इसे सार्वजनिक रूप से मनाना शुरू किया जिससे यह स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया। गणेश जी की स्थापना और पूजा इस बात का प्रतीक है कि जीवन अस्थाई है और अंततः हमें प्रकृति को समर्पित कर आगे बढ़ना होता है। पुराने समय में मिट्टी की मूर्तियां कच्ची मिट्टी से बनाई जाती थीं और विसर्जन के बाद वे कृषि कार्यों में पुनः उपयोग की जाती थीं। लेकिन आधुनिक युग में प्लास्टर ऑफ पेरिस (POP) और रासायनिक पेंट्स से बनी मूर्तियों का प्रचलन बढ़ा है, जो पर्यावरण के लिए गंभीर खतरा बन गई हैं। इस कारण अब पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ाते हुए प्राकृतिक और ईको-फ्रेंडली गणेश मूर्तियों को अपनाने का चलन तेजी से बढ़ रहा है।

प्रदूषण की समस्या


जल प्रदूषण - POP (Plaster of Paris) से बनी मूर्तियाँ पानी में आसानी से घुलती नहीं हैं, जिससे नदियों और जलाशयों की सतह पर परत जमती है और जल प्रदूषण बढ़ता है।

जलीय जीवों पर असर - POP मूर्तियों और रासायनिक पेंट्स में जहरीले तत्व जैसे सीसा, पारा, और आर्सेनिक होते हैं जो जलीय जीवों के लिए अत्यंत विषैले होते हैं। इससे मछलियों और अन्य जलजीवों की मृत्यु हो जाती है।

मानव स्वास्थ्य - प्रदूषित जल का उपयोग यदि पीने या कृषि सिंचाई के लिए किया जाए तो मानव स्वास्थ्य पर गंभीर विपरीत प्रभाव पड़ता है।

नदियों का प्राकृतिक प्रवाह बाधित होना - भारी POP मूर्तियाँ जल निकायों में डूबकर तलछट और गाद बढ़ाती हैं, जिससे नदियों का प्राकृतिक प्रवाह बाधित होता है और जलाशयों की स्वच्छता व जैव विविधता प्रभावित होती है।

ईको-फ्रेंडली गणेश मूर्ति

ईको-फ्रेंडली गणेश मूर्तियाँ पूरी तरह से प्राकृतिक और बायोडिग्रेडेबल सामग्री जैसे प्राकृतिक मिट्टी, नदी या खेत की शुद्ध मिट्टी से बनाई जाती हैं। जो जल में आसानी से घुल जाती हैं और पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचातीं। इन मूर्तियों को रंगने के लिए हल्दी, चूना, गेरू और फूलों के अर्क जैसे प्राकृतिक रंगों का प्रयोग किया जाता है, जो पूरी तरह से पर्यावरण मित्र होते हैं। पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में एक खास पहल बीज गणपति मूर्ति है जिसमें मूर्ति के अंदर नीम, इमली, तुलसी जैसे देशी पौधों के बीज डाले जाते हैं, जो विसर्जन के बाद अंकुरित होकर पौधे बन जाते हैं। इसके अलावा चॉक पाउडर और पेपर पल्प जैसी हल्की और पानी में आसानी से घुलने वाली सामग्री से बनी मूर्तियाँ भी पर्यावरण के अनुकूल विकल्प के रूप में उभर रही हैं। ये प्रयास न केवल प्रदूषण को कम करते हैं बल्कि पारंपरिक धार्मिक आस्था को भी संरक्षित करते हुए प्रकृति की सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं।

ईको-फ्रेंडली मूर्तियों की लोकप्रियता

• वर्तमान में पर्यावरण जागरूकता बढ़ने के कारण लोग ईको-फ्रेंडली गणेश मूर्तियों की ओर ज्यादा आकर्षित हो रहे हैं। इसके मुख्य तथ्य इस प्रकार हैं:

• बड़े शहरों जैसे मुंबई, पुणे, बेंगलुरु, दिल्ली में नगर निगम और पर्यावरण संस्थाएं POP मूर्तियों पर रोक लगा चुकी हैं और ईको-फ्रेंडली मूर्तियों को बढ़ावा दे रही हैं।

• ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर मिट्टी और बीज वाली ईको-फ्रेंडली गणेश मूर्तियाँ आसानी से खरीदने के लिए उपलब्ध हैं, जिससे लोग घर बैठे इन्हें प्राप्त कर सकते हैं।

• युवा वर्ग पर्यावरणीय संवेदनशीलता के प्रति अधिक जागरूक और सक्रिय है। वे सोशल मीडिया के माध्यम से इस संदेश को फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।

• बाजार में ईको-फ्रेंडली मूर्तियों की मांग तेजी से बढ़ी है और कई जगह पर इनके विसर्जन के लिए कृत्रिम तालाब बनाए जा रहे हैं ताकि जल प्रदूषण न हो।

• कई कारीगर विभिन्न राज्यों से मिट्टी लाकर पर्यावरण अनुकूल गणेश मूर्तियाँ बना रहे हैं, जो पारंपरिक पूजा के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण का भी संदेश देती हैं।

सरकार और संस्थाओं की पहल

कई राज्यों में प्लास्टर ऑफ पेरिस (POP) से बनी गणेश मूर्तियों के निर्माण, बिक्री और विसर्जन पर कड़ाई से प्रतिबंध लगाए गए हैं। उदाहरण के लिए, कर्नाटक हाईकोर्ट ने इस प्रतिबंध को सख्ती से लागू करने के आदेश दिए हैं। महाराष्ट्र में सुप्रीम कोर्ट और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के निर्देशानुसार POP मूर्तियों पर प्रतिबंध है। जिसमें मूर्तियों के विसर्जन को केवल कृत्रिम तालाबों तक सीमित किया गया है ताकि जल प्रदूषण रोका जा सके। पर्यावरण संरक्षण के लिए कई एनजीओ और स्वयंसेवी संस्थाएं मिट्टी की मूर्तियां बनाने के लिए प्रशिक्षण देती हैं और मुफ्त में पर्यावरण अनुकूल मूर्तियां वितरित करती हैं। नगर निगम भी प्रदूषण कम करने हेतु कृत्रिम तालाबों और टैंकों का निर्माण कर रहे हैं, जहां इन ईको-फ्रेंडली मूर्तियों का विसर्जन सुरक्षित तरीके से किया जा सके। ये कदम पर्यावरण को सुरक्षित रखने और पारंपरिक त्योहारों को प्रदूषणमुक्त बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण प्रयास हैं।

बदलती मानसिकता और चुनौतियाँ

प्लास्टर ऑफ पेरिस (POP) से बनी गणेश मूर्तियाँ आमतौर पर सस्ती होती हैं क्योंकि इन्हें कम समय और कम खर्च में बनाया जा सकता है। वहीं, मिट्टी की मूर्तियाँ बनाने में कारीगरों को अधिक समय और कच्चे माल की लागत अधिक लगती है, इसलिए इनकी कीमत POP मूर्तियों से लगभग दोगुनी होती है। शहरों की तुलना में ग्रामीण और छोटे शहरों में अभी भी ईको-फ्रेंडली मूर्तियाँ कम मात्रा में उपलब्ध होती हैं, जबकि बड़े शहरों में ये ऑनलाइन भी मिल जाती हैं। POP मूर्तियाँ अधिक भव्य और आकर्षक दिखाई देती हैं, इसलिए कई बड़े पंडाल इन्हें प्राथमिकता देते हैं। जबकि ईको-फ्रेंडली मूर्तियाँ पारंपरिक रूप से कम रंगीन और बड़े आकार में उपलब्ध होती हैं, जिससे उनकी मांग सीमित रहती है। इस तरह लागत, उपलब्धता और आकर्षण के कारण POP मूर्तियाँ आज भी अधिक प्रचलित हैं। जबकि पर्यावरण की दृष्टि से मिट्टी की मूर्तियाँ अधिक लाभकारी और सुरक्षित विकल्प हैं।

समाधान और आगे की राह

जन-जागरूकता अभियान - स्कूल, कॉलेज और मीडिया के माध्यम से बच्चों और युवाओं को जागरूक किया जाए।

स्थानीय कारीगरों को प्रोत्साहन - सरकार और संस्थाओं द्वारा मिट्टी की मूर्तियाँ बनाने वाले कारीगरों को सब्सिडी और प्रशिक्षण दिया जाए।

विसर्जन की नई परंपरा - कृत्रिम तालाब, घर पर छोटे टब या गमले में विसर्जन की परंपरा अपनाई जाए।

धार्मिक आस्था का समन्वय - लोगों को समझाया जाए कि गणपति बप्पा आस्था के साथ-साथ प्रकृति के भी देवता हैं और प्रकृति को नुकसान पहुँचाना उनकी पूजा की भावना के विपरीत है।

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