Ganesh Chaturthi 2025: गणपति बप्पा की स्थापना, पूजा और विसर्जन का शास्त्रीय विधान

Ganesh Chaturthi 2025: गणेश चतुर्थी भले ही महाराष्ट्र, कर्नाटक, गोवा व आंध्र प्रदेश के आस पास मनाया जाता था लेकिन अब इस त्यौहार की धूम पूरे देश में देखने को मिलती है।

Yogesh Mishra
Published on: 22 Aug 2025 12:03 PM IST
Ganesh Chaturthi 2025 Sthapana Puja Visarjan Vidhi Mantras Importance
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Ganesh Chaturthi 2025 Sthapana Puja Visarjan Vidhi Mantras Importance (Image Credit-Social Media)

Ganesh Chaturthi 2025: यूँ तो गणपति की पूजा किसी भी अनुष्ठान, पाठ, गृह प्रवेश व मांगलिक काम के समय सबसे पहले करने का विधान है। हर समय सबसे पहले विध्नहरण का आह्वान किया जाता है। भगवान गणेश की पूजा के बाद ही कोई शुभ काम शुरु किया जाता है। पर इन दिनों महाराष्ट्र, कर्नाटक, गोवा व आंध्र प्रदेश के तर्ज़ पर गणपति की मूर्ति की स्थापना, पूजन और विसर्जन का चलन तेज़ी से फलता फूलता जा रहा है। ऐसे में यह जानना ज़रूरी हो जाता है कि भगवान गणेश की स्थापना , पूजन और विसर्जन का शास्त्रीय विधान क्या है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि


ऐतिहासिक रूप से यह एक पारिवारिक पूजा होती थी, जिसमें घर के भीतर मिट्टी से बनी गणेश प्रतिमा स्थापित की जाती थी। दस दिन बाद उसका जल में विसर्जन किया जाता था।पर 1893 में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने इसे सामूहिक रूप देकर ब्रिटिश शासन के खिलाफ लोगों को एकजुट करने का साधन बनाया।इसके बाद से गणपति उत्सव महाराष्ट्र के सामाजिक–धार्मिक जीवन का अभिन्न हिस्सा बन गया।

शास्त्रीय आधार और उल्लेख

गणपति का उल्लेख ऋग्वेद, अथर्ववेद, गणेश पुराण, मुद्गल पुराण, शिव पुराण आदि में है। इनमें गणेशजी को सर्वव्यापी-सभी लोकों में विचरण करने वाले, बताया गया है।शास्त्रों में गणेश चतुर्थी का महत्व है — भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को उनका जन्मोत्सव माना गया है।पुराणों में गणपति की प्रतिमा-स्थापना और विसर्जन की परंपरा का उल्लेख है।

गणेश पुराण (उपासनाखण्ड, अध्याय 46-47)

“यः स्तापयेत् गणपतिं मूर्तिं वा चित्रलिखिताम्। तत्स्थानं पुण्यमायाति सर्वतीर्थमयो भवेत्॥” अर्थ: जो व्यक्ति गणेशजी की मूर्ति या चित्र की स्थापना करता है, वह स्थान सारे तीर्थों के समान पवित्र हो जाता है।

गणेश पुराण, उपासनाखण्ड

“मृन्मयीं रत्नमयीं वापि धातुमीं दारुमीं तथा। प्रतिमां स्थापयेद् भक्त्या पूजयेत् विघ्ननायकम्॥”

अर्थ: मिट्टी, रत्न, धातु, लकड़ी आदि किसी भी रूप में बनी प्रतिमा को स्थापित करके भक्तिपूर्वक विघ्ननायक की पूजा करनी चाहिए।

विसर्जन का विधान


मुद्गल पुराण (अध्याय 5) में कहा गया है कि – प्रतिमा पूजन और आवाहन के पश्चात विसर्जन अनिवार्य है।विसर्जन का भाव यह है कि “यः तत्त्वात् आवाहितः, सः तत्त्वमेव प्रतिनियोज्यः” – अर्थात् जिस तत्त्व, मूल स्वरूप, से देवता को आवाहित किया गया है, उसी तत्त्व में उन्हें लौटा देना चाहिए।विसर्जन न करने पर पूजा अधूरी मानी जाती है।

स्कन्द पुराण (गणेश खण्ड, अध्याय 5)

“यथा आगतं तथा गन्तुं पूजया सम्प्रयोजयेत्। विसर्जनं न कृत्वा तु दोषो भवति निश्चयम्॥”

अर्थ: जिस प्रकार देवता का आवाहन किया गया है, उसी प्रकार पूजा के बाद विसर्जन करना चाहिए। यदि विसर्जन न किया जाए तो दोष होता है।

नारद पुराण (पूर्व खण्ड, अध्याय 71)

“प्रतिष्ठितं तु यद्देवं पूजितं नियमान्वितम्। तदन्ते विसर्जयेत् भक्त्या तस्मिन्नेव जलाशये॥”

अर्थ: जो देवता प्रतिमा रूप में प्रतिष्ठित किए गए हैं, उनका पूजन करके अंत में उसी जल में विसर्जन करना चाहिए।

विसर्जन का आध्यात्मिक भाव, गणेश पुराण, उपासनाखण्ड

“मूर्तौ चित्तं निवेश्यैव यः पश्चात् तां विसर्जयेत्। सदा तस्यां सदा भक्तो विघ्नेशः सन्निधौ भवेत्॥”

अर्थ: जो भक्त प्रतिमा में चित्त लगाकर पूजा करता है और बाद में उसका विसर्जन करता है, उसके साथ गणेशजी सदा रहते हैं।

स्थापना विधि (Sthapana Vidhi)


स्थापना से पहले तैयारी: मुहूर्त में (मध्याह्न काल में) स्थापना करें, क्योंकि शास्त्रों में गणेश जन्म मध्याह्न में माना जाता है। मूर्ति पर्यावरण-अनुकूल (मिट्टी की) हो, जैसा पुराणों में उल्लेख है। स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें। गणपति प्रतिमा के सामने दीपक, फूल, अक्षत (चावल), जल का कलश, नारियल, मिठाई और पान सुपारी रखें। गंगाजल या शुद्ध जल से स्नान कराएँ।

दाहिने हाथ में जल लेकर संकल्प मंत्र बोलें: “ॐ तत्सत् श्री गणेशाय नमः। मम उपात्त समस्त दुरितक्षयद्वारा श्रीगणेश स्थापना पूजा करिष्ये।”

आवाहन और प्राण-प्रतिष्ठा: “ॐ हे हेरम्ब! त्वमेह्येहि ह्यम्बिकात्र्यम्बकात्मज। सिद्धिबुद्धिपते त्र्यक्ष लक्षलाभपितुः पितः॥” फिर प्राण-प्रतिष्ठा: “ॐ अस्यै प्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणा क्षरन्तु च। अस्यै देवत्वमर्चायै मामहेति च कश्चन॥ ॐ सिद्धि-बुद्धि-सहिताय श्रीमहागणाधिपतये नमः। सुप्रतिष्ठो वरदो भव॥”।

आसन समर्पण: “ॐ विचित्ररत्नखचितं दिव्यास्तरणसंयुतम्। स्वर्णसिंहासनं चारु गृहाण गुहाग्रज॥”।

पूजा विधान (Puja Vidhan)

प्रतिमा पूजन और आवाहन के लिए पूजा षोडशोपचार (16 उपचार) से की जाती है। पूजा शुरू में ध्यान मंत्र जपें: “ॐ गजाननं भूतगणादिसेवितं कपित्थजम्बूफलचारुभक्षणम्। उमासुतं शोकविनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजम्॥”। दैनिक पूजा का नियम: सुबह-शाम पूजा करें, भोग लगाएं (मोदक प्रिय हैं), और मंत्र जप को 108 बार तक बढ़ाने का विकल्प रखें।

षोडशोपचार का क्रम:

1. आवाहन (ऊपर वर्णित)।

2. आसन (ऊपर वर्णित)।

3. पाद्य: “ॐ सर्वतीर्थसमुद्भूतं पाद्यं गन्धादिभिर्युतम्। गजानन गृहाणेदं भगवान् भक्तवत्सलः॥”।

4. अर्घ्य: “ॐ गणाध्यक्ष नमस्तेऽस्तु गृहाण करुणाकर। अर्घ्यं च फलसंयुक्तं गन्धमाल्याक्षतैर्युतम्॥”।

5. आचमन: “ॐ विघ्नराज नमस्तुभ्यं त्रिदशैरभिवन्दित। गङ्गोदकेन देवेश कुरुष्वाचमनं प्रभो॥”।

6. स्नान: गंगाजल या शुद्ध जल से स्नान कराएँ (जैसा ऊपर)।

7. वस्त्र: स्वच्छ वस्त्र अर्पित करें।

8. चंदन: चंदन लगाएं।

9. पुष्प: फूल अर्पित करें।

10. धूप: धूप जलाएं।

11. दीप: दीपक जलाएं।

12. नैवेद्य: मिठाई, मोदक आदि भोग लगाएं।

13. फल: फल अर्पित करें।

14. तांबूल: पान सुपारी अर्पित करें।

15. दक्षिणा: दक्षिणा दें।

16. आरती: आरती गाएं।

फूल, धूप, दीप, नैवेद्य, जल अर्पण करें। गणेश मंत्र जपें- “ॐ गं गणपतये नमः।” (कम से कम 21 बार) हाथ जोड़कर निवेदन करें: “हे गणेशजी! आपने मेरे घर पधारकर कृपा की। अब कृपा करके अपने धाम पधारें और सदा मेरे हृदय में विराजें।”

विसर्जन विधि (Visarjan Vidhi)


विसर्जन का विधान अनंत चतुर्दशी पर मुहूर्त में करें। विसर्जन से पहले पवित्रीकरण: “ॐ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा। य: स्मरेत पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यान्तर शुचि:॥”। फिर संकल्प मंत्र बोलें: “ॐ तत्सत् श्री गणेशाय नमः। मम उपात्त समस्त दुरितक्षयद्वारा श्रीगणेश विसर्जन पूजा करिष्ये।” अर्थ: मैं अपने पाप-ताप दूर करने हेतु गणेश विसर्जन पूजा कर रहा हूँ।

इसके बाद विसर्जन का मंत्र उच्चारित होता है – “गणेश त्वं प्रसन्नोऽसि नित्यं मे विघ्ननाशकः। इष्टकामप्रदो भूत्वा गच्छ देव गणालयम्॥”

अर्थ: हे गणेश! आप सदा प्रसन्न रहकर मेरे विघ्न दूर करें और इच्छाएँ पूर्ण करें। अब अपने लोक में लौट जाएँ।

प्रतिमा या उसके प्रतीक को जल में विसर्जित करते हुए कहा जाता है: “जलाधिष्ठित देवेश गजवक्त्र महाबल। मम पूजां समाप्य त्वं स्वस्थानं प्रतिपद्यताम्॥”

अर्थ: हे जलाधिष्ठित देव, गजवक्त्र! मेरी पूजा पूर्ण करके अपने दिव्य स्थान को प्राप्त करें।

जल में विसर्जन

प्रतिमा उठाते समय मंत्र बोलें: “गृहाण पूजितं देवं पूजितोऽसि गणाधिप। इदानीं स्वालयं यातु त्वत्प्रसादान्ममेश्वरः॥”

मंत्र: “गृहाण पूजितं देवं पूजितोऽसि गणाधिप। इदानीं स्वालयं यातु त्वत्प्रसादान्ममेश्वरः॥”

(अर्थ: हे गणपति! आपने मेरी पूजा स्वीकार की, अब कृपा करके अपने धाम पधारें।)

विसर्जन करते समय बोलें: “गणेश त्वं प्रसन्नोऽसि नित्यं मे विघ्ननाशकः। इष्टकामप्रदो भूत्वा गच्छ देव गणालयम्॥”

आरती और क्षमा प्रार्थना: आरती गाएँ: “जय गणेश देवा…” फिर क्षमा मंत्र: “ॐ गणेशपूजनं कर्म यन्यूनमधिकं कृतम्। तेन सर्वेण सर्वात्मा प्रसन्नोऽतु सदा मम॥”।

विसर्जन के बाद हाथ जोड़कर प्रणाम करें। प्रसाद बाँटें और यह भाव रखें कि अब गणपति आपके हृदय में स्थायी रूप से विराजमान हो गए हैं। यदि घर पर विसर्जन, तो बाल्टी में करें और जल पौधों में डालें।

नियम और सावधानियां

पूजा में ब्रह्मचर्य, शाकाहारी भोजन का पालन करें। मूर्ति को हिलाएं नहीं (विसर्जन तक), और महिलाओं/पुरुषों के लिए समान भागीदारी रखें

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