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‘गुरु का काम वरदान देना नहीं, चेतना जगाना है'- प्रेमानंद महाराज का गुरु पूर्णिमा पर आत्मिक संदेश
Guru Purnima 2025: गुरु पूर्णिमा को लेकर प्रेमानंद जी ने कहा कि यह पर्व केवल फूल अर्पण या आरती करने का नहीं, बल्कि आत्मचिंतन का अवसर है।
Guru Purnima 2025 (Image Credit-Social Media)
Guru Purnima 2025: प्रेमानंद महाराज जी ने अपने गुरु पूर्णिमा के प्रवचन में इस बात पर ज़ोर दिया कि लोग आज संतों के पास वरदान मांगने के लिए आते हैं, न कि चेतना जगाने या आत्मा की उन्नति के लिए। उन्होंने स्पष्ट कहा कि सच्चा गुरु वह है जो शिष्य को संसार की इच्छाओं से ऊपर उठाकर उसकी आत्मा को ईश्वर से जोड़ दे। किसी रोग के इलाज या पैसों की कामना लेकर गुरु के पास आना, उनके मार्ग को समझे बिना सिर्फ चमत्कार की अपेक्षा रखना, साधना के मूल उद्देश्य का अपमान है।
गुरु पूर्णिमा- केवल भक्ति नहीं, आत्म-अनुशासन का पर्व
गुरु पूर्णिमा को लेकर प्रेमानंद जी ने कहा कि यह पर्व केवल फूल अर्पण या आरती करने का नहीं, बल्कि आत्मचिंतन का अवसर है। उन्होंने कहा कि यह दिन उस प्रण को दोहराने के लिए है जब शिष्य आत्म-संशोधन और साधना के मार्ग पर चलने की प्रतिज्ञा करता है। यह वह समय है जब हमें गुरु के उपदेशों को केवल सुनना नहीं, बल्कि उन्हें अपने जीवन में आत्मसात करना होता है।
मन की चंचलता से मुक्ति ही सच्चा आशीर्वाद है
महाराज जी ने कहा कि अगर मन चंचल है, तो कोई भी वरदान स्थायी शांति नहीं दे सकता। उन्होंने कहा कि संत शरीर का इलाज नहीं, आत्मा का उपचार करते हैं। वे उन इच्छाओं का बोझ नहीं उठाते जो केवल देह से जुड़ी हैं। मन की चंचलता और भावनात्मक भटकाव जैसी बाधाओं को दूर करने में सत्संग मददगार साबित होता है।
नाम-जप और सेवा से बनता है गुरु के प्रति सच्चा संबंध
प्रेमानंद जी ने जोर दिया कि गुरु से जुड़ने का सबसे श्रेष्ठ साधन है नाम-जप और सेवा। उन्होंने कहा कि जो शिष्य श्रद्धा से गुरु नाम का स्मरण करता है, उनके बताए गए मार्गों पर चलता है। वह संसार के विकारों से स्वतः मुक्त होता है। सेवा, चाहे मंदिर की हो या जरूरतमंद की, आत्मा को विनम्र बनाती है और उसी विनम्रता में भक्ति फलती है। सेवा और साधना में किया गया हर क्षण, भीतर के विकारों को धोता है।
पश्चाताप से पुनः आरंभ संभव है अवसर है परिवर्तन का
महाराज जी ने बताया कि चाहे जीवन में कितनी भी बड़ी भूल क्यों न हो, अगर व्यक्ति सच्चे मन से पश्चाताप करता है तो नया अध्याय शुरू करना बिल्कुल संभव है। उन्होंने यह भी कहा कि परिवार को ऐसे समय उस व्यक्ति के साथ खड़ा रहना चाहिए न कि उसे तिरस्कार देना चाहिए। प्रेम और मार्गदर्शन से ही कोई अपने भीतर की शक्ति को पहचान सकता है।
आज की पीढ़ी के लिए चेतावनी और आशा का संदेश
प्रेमानंद जी ने आज के युवाओं से कहा कि इंटरनेट और सोशल मीडिया की चकाचौंध में जीवन का असली उद्देश्य कहीं खोता जा रहा है। उन्होंने आग्रह किया कि युवा अपने जीवन में एक बार अवश्य यह प्रश्न करें कि, 'मैं कौन हूं, और क्यों हूं?' उन्होंने कहा कि आत्म-अनुशासन, संयम और सत्संग की नियमितता से ही आत्मिक शक्ति उत्पन्न होती है, जो जीवन को सही दिशा में मोड़ सकती है।
गुरु केवल मार्गदर्शक नहीं, चेतना का दीपक हैं
प्रवचन के अंतिम भाग में उन्होंने कहा कि गुरु को केवल पूजने योग्य मूर्ति न मानें, बल्कि उन्हें अपने जीवन में क्रियात्मक रूप में उतारें। उनका कार्य केवल उपदेश देना नहीं, बल्कि भक्त के भीतर दिव्य ऊर्जा का संचार करना है। संत का सान्निध्य, केवल पवित्रता का नहीं बल्कि परिवर्तन का माध्यम है और वही सच्चा सत्संग है।
गुरु पूर्णिमा के इस प्रवचन का सार था कि, वरदानों के पीछे भागने से बेहतर है, आत्मा को जागृत करने का प्रयास करें। गुरु को जानना, उनकी सीखों को जीवन में उतारना और नाम-जप तथा सेवा से स्वयं को संयमित करना ही असली श्रद्धा है। प्रेमानंद जी महाराज का संदेश था कि आज भी जीवन में रोशनी हो सकती है, अगर हम भीतर की ओर लौटें, गुरु के उपदेशों को आत्मा से समझें और साधना के मार्ग पर चलें।
श्रद्धा सिर्फ फूल चढ़ाने से नहीं, बल्कि अपने भीतर के अंधकार को पहचानकर उसका उपचार करने से ही सच्ची गुरु भक्ति संभव है।
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