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कृत्रिम मानव DNA की ओर एक ऐतिहासिक कदम- प्रयोगशाला में तैयार होगा इंसानी जीवन
Artificial Human DNA: पहली बार वैज्ञानिक प्रयोगशाला में इंसानी DNA को पूरी तरह से कृत्रिम रूप से तैयार करने का प्रयास किया जा रहा है।
Artificial Human DNA (Image Credit-Social Media)
Artificial Human DNA: विज्ञान एक बार फिर मानव सभ्यता को ऐसे मोड़ पर ला खड़ा कर रहा है, जहां कल्पनाएं हकीकत बन रही हैं। ब्रिटेन में शुरू हुआ एक अनोखा प्रोजेक्ट वैज्ञानिक इतिहास में मील का पत्थर साबित हो सकता है। पहली बार वैज्ञानिक प्रयोगशाला में इंसानी DNA को पूरी तरह से कृत्रिम रूप से तैयार करने का प्रयास कर रहे हैं। यानी जो DNA प्राकृतिक रूप से माता-पिता से संतानों में आता है, वह अब प्रयोगशाला में एक-एक अंश जोड़कर नई तरह से रचा जाएगा। इस तकनीक से उम्र संबंधी बीमारियों का इलाज, जेनेटिक समस्याओं का समाधान और जीवन की गुणवत्ता बेहतर बनाने की संभावनाएं जुड़ी हैं। वहीं इसके नैतिक और सामाजिक पहलुओं पर भी गंभीर बहस छिड़ गई है। आइए जानते हैं इस क्रांतिकारी पहल की प्रक्रिया, उद्देश्य, संभावनाओं और चिंताओं के बारे में विस्तार से -
क्या है यह प्रोजेक्ट?
ब्रिटेन की प्रतिष्ठित संस्था वेलकम ट्रस्ट ने लगभग 120 करोड़ रुपये (लगभग 11.5 मिलियन पाउंड) की फंडिंग से इस प्रोजेक्ट की शुरुआत की है। इसे 'ह्यूमन सिंथेटिक जीनोम प्रोजेक्ट' कहा जा रहा है। इसका उद्देश्य प्रयोगशाला में इंसानी DNA को पूरी तरह से कृत्रिम रूप से तैयार करना है। इसका मतलब यह नहीं कि पहले से मौजूद DNA को एडिट किया जाएगा, बल्कि DNA की नींव से शुरुआत कर उसे पूरी तरह से नए सिरे से बनाया जाएगा।
यह प्रोजेक्ट अमेरिका और यूरोप के कई प्रमुख जैव अनुसंधान संस्थानों के सहयोग से चलाया जा रहा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि यह मानव आनुवंशिकी को समझने और नियंत्रित करने की दिशा में एक नया अध्याय खोलेगा।
DNA क्या है और यह क्यों इतना महत्वपूर्ण है
DNA (Deoxyribonucleic Acid) वह अणु है जिसमें किसी जीव के विकास, कार्य और प्रजनन के लिए जरूरी सभी सूचनाएं होती हैं।
मानव DNA में 23 जोड़े क्रोमोसोम होते हैं और हर क्रोमोसोम में हजारों जीन होते हैं। यही जीन तय करते हैं कि आपकी आंखों का रंग क्या होगा, शरीर किस प्रकार का होगा, रोगों से लड़ने की क्षमता कितनी होगी और यहां तक कि आपकी सोचने-समझने की शैली भी।
इसलिए अगर हम DNA को समझ लें, तो हम बीमारियों से लेकर मानवीय व्यवहार तक को नियंत्रित करने की ताकत हासिल कर सकते हैं।
कैसे तैयार किया जा रहा है कृत्रिम DNA
इस प्रोजेक्ट की सबसे बड़ी चुनौती है इंसानी DNA के 3 अरब से ज्यादा बेस पेयर को एक-एक करके तैयार करना और उन्हें क्रम में जोड़ना। इसके लिए वैज्ञानिक नीचे दी गई प्रक्रिया अपना रहे हैं-
Preparation of small pieces of DNA; DNA के छोटे-छोटे टुकड़ों को तैयार करना
शुरुआत में वैज्ञानिक छोटे DNA टुकड़ों को कृत्रिम रूप से लैब में बना रहे हैं, जिन्हें oligonucleotides कहा जाता है।
DNA अनुक्रमण (Sequencing) और संयोजन (Assembly):
इन छोटे टुकड़ों को आपस में जोड़कर एक बड़ा खाका तैयार किया जाता है। इसमें यह ध्यान रखा जाता है कि अनुक्रम बिल्कुल वैसा हो जैसा किसी स्वस्थ इंसानी DNA में होता है।
गुणसूत्र निर्माण
DNA के पूरे अनुक्रम को एक-एक करके जोड़कर वैज्ञानिक संपूर्ण chromosomes बना रहे हैं, जिनमें जीवन के सभी निर्देश होते हैं।
Not an option for cell formation; कोशिका निर्माण का विकल्प नहीं
यह प्रोजेक्ट इस मायने में अनोखा है कि इसमें पहले से कोई कोशिका नहीं ली जाती। यानी यह DNA पहले से किसी मानव कोशिका में नहीं डाला जाता, बल्कि DNA को पूरी तरह से नई शुरुआत से बनाया जाता है।
क्या होगा इसका लाभ
इस प्रोजेक्ट से कई संभावनाओं के द्वार खुल सकते हैं। उम्र बढ़ने पर भी स्वस्थ जीवन संभव।
जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, शरीर की कोशिकाएं कमजोर होती जाती हैं। कृत्रिम DNA तकनीक से ऐसी कोशिकाएं बनाई जा सकती हैं जो लंबे समय तक स्वस्थ रहें।
जेनेटिक बीमारियों पर नियंत्रण
- थैलेसीमिया, हेमोफीलिया, सिकल सेल एनीमिया जैसी आनुवंशिक बीमारियों का उपचार संभव हो सकेगा।
- हर इंसान के DNA के हिसाब से दवा तैयार करना संभव होगा, जिससे इलाज अधिक सटीक और प्रभावशाली होगा।
- भविष्य में यह तकनीक बांझपन के इलाज से लेकर खास गुणों वाले बच्चों के जन्म तक में मददगार हो सकती है।
क्या हैं इसके खतरे और चिंताएं
जहां एक ओर यह तकनीक कई आशाएं जगाती है, वहीं इससे जुड़ी कुछ गंभीर चिंताएं भी हैं। जैसे -
डिजाइनर बेबी; Designer Baby
इस तकनीक का उपयोग खास गुणों (जैसे सुंदरता, बुद्धिमत्ता) वाले बच्चे पैदा करने के लिए कर सकते हैं, जिससे सामाजिक असमानता और भेदभाव बढ़ सकता है।
जैविक हथियार
कृत्रिम DNA से ऐसे वायरस या बैक्टीरिया बनाए जा सकते हैं जो विशिष्ट समूहों को टार्गेट कर सकें।
इस प्रोजेक्ट में नैतिकता और समाजशास्त्रीय पक्ष को बहुत गंभीरता से लिया जा रहा है।
स्वतंत्र एथिक्स बोर्ड द्वारा एक स्वतंत्र नैतिक समिति बनाई गई है जो प्रत्येक चरण की समीक्षा कर रही है। इस विषय पर समाजशास्त्रियों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की टीम आम जनता की राय और चिंताओं का अध्ययन कर रही है।
भारत में जैविक अनुसंधान और जेनेटिक टेक्नोलॉजी की दिशा में तेजी से काम हो रहा है। हाल के वर्षों में जीनोम इंडिया प्रोजेक्ट और बायोटेक्नोलॉजी मिशन जैसी पहलों से यह स्पष्ट हो गया है कि भारत भी इस क्षेत्र में अग्रणी बनना चाहता है।
ऐसे में, यदि नैतिकता, कानून और सार्वजनिक जागरूकता को प्राथमिकता दी जाए, तो भारत भी इस प्रकार की परियोजनाओं में भाग लेकर वैश्विक नेतृत्व कर सकता है। कृत्रिम DNA निर्माण एक दोधारी तलवार जैसा है। यह एक तरफ चिकित्सा, विज्ञान और जीवन के क्षेत्र में चमत्कार ला सकता है। वहीं दूसरी तरफ इसके गलत प्रयोग से मानवता पर संकट भी आ सकता है। इसीलिए इसका प्रयोग अत्यंत सावधानी, पारदर्शिता और वैश्विक सहमति के साथ होना जरूरी है।
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