Soap Making History: जानिए साबुन के सुगंधित इतिहास के बारे में?

Soap Making History: क्या आपने कभी सोचा है कि जिस साबुन से आप रोज़ नहाते हैं, उसका इतिहास कितना पुराना है? कैसे और कब बना पहला साबुन?

Jyotsana Singh
Published on: 24 Jun 2025 8:44 PM IST
Soap Making History and Manufacturing
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Soap Making History and Manufacturing

Soap Fragrance History: क्या आपने कभी सोचा है कि जिस साबुन से आप रोज़ नहाते हैं, उसका इतिहास कितना पुराना है? कैसे और कब बना पहला साबुन? और आखिर इसे 'सोप' क्यों कहा जाता है? हमारी रोजमर्रा की ज़िंदगी में शामिल यह साधारण-सा दिखने वाला उत्पाद दरअसल एक बेहद दिलचस्प इतिहास समेटे हुए है। बेबीलोन, मिस्र और रोमन सभ्यताओं से लेकर आज के आधुनिक वैज्ञानिक प्रयोगशालाओं तक, साबुन ने सफाई, स्वास्थ्य और सुंदरता की एक बड़ी लंबी यात्रा तय की है। आइए, जानते हैं साबुन से जुड़ी रोचक और तथ्यात्मक कहानी, जो इसे सिर्फ एक उत्पाद नहीं, बल्कि मानव विकास की एक अहम कड़ी बनाती है।

साबुन की शुरुआत कब और कैसे हुई


साबुन की शुरुआत को लेकर कोई एक तय समय या स्थान नहीं कहा जा सकता, लेकिन ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार इसका सबसे पहला उपयोग लगभग 2800 ईसा पूर्व की मेसोपोटामियन सभ्यता में देखने को मिलता है। उस समय लोग जानवरों की चर्बी (fat) और लकड़ी की राख (wood ash) को मिलाकर एक ऐसा पदार्थ बनाते थे, जिससे वे ऊन और कपड़े धोते थे।

बेबीलोन और मिस्र में ऐसे हुई साबुन की शुरुआत

बेबीलोन के लोगों ने चर्बी और राख के साथ पानी मिलाकर एक पेस्ट जैसी चीज बनाई जिसे वे सफाई के लिए इस्तेमाल करते थे।प्राचीन मिस्र में, लगभग 1500 ईसा पूर्व के दस्तावेजों (जैसे 'एबर्स पेपिरस') में एक ऐसे मिश्रण का ज़िक्र है जिसे लोग नहाने और जख्मों की सफाई के लिए इस्तेमाल करते थे। मिस्रवासी जानवरों की चर्बी, पौधों से प्राप्त तेल और क्षारीय पदार्थों का प्रयोग करते थे।

साबुन शब्द 'सोप' कैसे पड़ा

'Soap' शब्द की उत्पत्ति एक रोचक कहानी से जुड़ी है। कहा जाता है कि रोम की 'माउंट सोपो (Mount Sapo)' नाम की एक पहाड़ी जानवरों की बलि के लिए जानी जाती थी। जब बारिश होती, तो बलि में उपयोग की गई जानवरों की चर्बी और राख पहाड़ी से बहकर नीचे की नदी तक पहुंचती।


यह मिश्रण नदी किनारे की मिट्टी में मिलकर एक चिकना पदार्थ बनाता, जिससे वहां के स्थानीय लोग कपड़े धोते थे और इससे कपड़े साफ करना आसान भी हो गया था। यही 'Sapo' शब्द धीरे-धीरे लैटिन से अंग्रेजी में 'Soap' बन गया। लैटिन में 'Sapo' का अर्थ है एक गाढ़ा, चिकना पदार्थ जो सफाई के लिए उपयोग किया जाता है।

रोमन और ग्रीक सभ्यता में साबुन का विकास

रोमवासी नहाने के शौकीन थे, लेकिन शुरुआती दौर में वे साबुन का उपयोग नहीं करते थे। वे शरीर को साफ करने के लिए तेल और खुरचनी (strigil) का प्रयोग करते थे। लेकिन जैसे-जैसे 'सोप' का प्रचलन बढ़ा, रोमन समाज में साबुन लोकप्रिय होने लगा। ग्रीक सभ्यता में भी एक प्रकार का साबुन मौजूद था, लेकिन उसका उपयोग केवल कपड़े धोने तक सीमित था।

मध्यकाल यूरोप में साबुन विलासिता से जरूरत तक

मध्यकालीन यूरोप में विशेष रूप से अरब और मुस्लिम वैज्ञानिकों ने साबुन बनाने की तकनीक को निखारा।उन्होंने जैतून के तेल, सोडा ऐश, और सुगंधित तत्वों को मिलाकर नए प्रकार के साबुन बनाए। अलेप्पो (सीरिया) में बना 'अलेप्पो साबुन' दुनिया के सबसे पुराने और आज भी प्रचलित साबुनों में से एक माना जाता है। हालांकि, यूरोप के कुछ हिस्सों में यह धारणा बन गई थी कि ज्यादा नहाना सेहत के लिए हानिकारक है। इसलिए कई सदियों तक नहाना और साबुन का उपयोग अमीरों तक ही सीमित रहा।

आधुनिक युग में साबुन के व्यावसायिक उत्पादन में आई क्रांति

18वीं शताब्दी में विज्ञान और रसायनशास्त्र में क्रांति आई।1791 में फ्रांसीसी वैज्ञानिक निकोलस लेब्लांक ने सोडियम हाइड्रॉक्साइड (Caustic Soda) बनाने की प्रक्रिया खोजी, जो साबुन का मुख्य घटक बना।

इसी समय इंग्लैंड और फ्रांस में साबुन निर्माण की फैक्ट्रियां स्थापित हुईं।


19वीं शताब्दी में वैज्ञानिकों ने साबुन को बड़े पैमाने पर शुद्ध, सुगंधित और रंगीन बनाना शुरू किया।

अब साबुन केवल शुद्धिकरण या धार्मिक क्रियाओं का हिस्सा नहीं रहा, बल्कि दैनिक जीवन का अहम हिस्सा बन गया।

साबुन के जनक कौन माने जाते हैं?

हालांकि साबुन का आविष्कार किसी एक व्यक्ति ने नहीं किया, लेकिन निकोलस लेब्लांक को साबुन निर्माण की वैज्ञानिक प्रक्रिया को विकसित करने का श्रेय दिया जाता है। इसके बाद मिशेल यूजीन शेवरुल (Michel Eugène Chevreul) ने 19वीं शताब्दी में साबुन बनाने की रासायनिक प्रक्रिया यानी सैपोनीफिकेशन (Saponification) को वैज्ञानिक रूप से समझाया।

इन दोनों वैज्ञानिकों के कार्यों से साबुन के निर्माण में भारी बदलाव आया और यह सस्ती कीमत पर आम लोगों तक पहुंच सका।

भारत में कब हुआ साबुन का आगमन

भारत में साबुन का प्रयोग ब्रिटिश शासन के दौरान शुरू हुआ। पहला भारतीय निर्मित साबुन ब्रांड 'हमाम' (Hamam) था, जिसे टाटा ऑयल मिल्स ने 1930 के दशक में लॉन्च किया।

इसके बाद माइसूर सैंडल सोप, लाइफबॉय और लक्स जैसे ब्रांड्स आए जो आज भी लोकप्रिय हैं। आज भारत दुनिया के सबसे बड़े साबुन उपभोक्ता देशों में से एक है।

साबुन के प्रकार- सिर्फ सफाई नहीं, अब सौंदर्य भी

आज साबुन केवल सफाई तक सीमित नहीं रह गया है बल्कि यह स्वास्थ्य, सुंदरता और खुशबू का प्रतीक बन चुका है। बाजार में आपको अब अनगिनत प्रकार के साबुन मिल जाएंगे।

  • जैसे - औषधीय साबुन (डेटोल, सेवलॉन कई अन्य)
  • सौंदर्य साबुन (लक्स, पियर्स कई अन्य)
  • हर्बल साबुन (नीम, तुलसी, एलोवेरा आधारित कई अन्य)
  • स्पेशल्टी साबुन (केमिकल-फ्री, वीगन, चारकोल, स्किन टाइप आधारित कई अन्य)

कोविड काल में साबुन की महत्ता

कोरोना महामारी के दौरान साबुन ने एक बार फिर अपनी उपयोगिता साबित की। 'हाथ धोना' एक सामान्य क्रिया से जीवन रक्षक आदत बन गई। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने साबुन और पानी से नियमित हाथ धोने को वायरस से बचाव का सबसे सरल और प्रभावी तरीका बताया।

साबुन का इतिहास बहुत ही रोचक है। स्वक्षता का पाठ पढ़ाने वाला साबुन एक साधारण-सा उत्पाद हजारों वर्षों से मानव सभ्यता का हिस्सा रहा है। पहले कपड़े धोने का माध्यम, फिर स्वास्थ्य रक्षक और आज सुंदरता बढ़ाने वाला उत्पाद बनकर अपने वजूद को और अधिक मजबूत करता जा रहा है। साबुन ने हर युग में मानव की जरूरतों के अनुरूप खुद को ढाला है। आज जब हम किसी खुशबूदार साबुन से नहाते हैं, तो शायद हमें उस लंबी यात्रा का एहसास नहीं होता जो यह छोटा-सा टुकड़ा तय करके हम तक पहुंचा है। हमारे बाथरूम में मौजूद छोटा सा साबुन कोई साधारण वस्तु नहीं बल्कि इसका उपयोग कर आप एक हजारों साल पुरानी परंपरा का हिस्सा बन रहे हैं।

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