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Khichadi Ka Itihas: भारत के सबसे सादे, सबसे समृद्ध और सबसे पुराने व्यंजन खिचड़ी की हजारों साल पुरानी कहानी

Khichadi Ka Itihas: यह लेख खिचड़ी के ऐतिहासिक सफर, सांस्कृतिक महत्व और पोषणपूर्ण विरासत का विस्तार से वर्णन करता है

Shivani Jawanjal
Published on: 17 July 2025 11:00 AM IST (Updated on: 17 July 2025 11:00 AM IST)
Khichadi Ka Itihas
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Khichadi Ka Itihas

History Of Khichadi Food: भारतीय व्यंजनों की विशाल विविधता में खिचड़ी एक ऐसा व्यंजन है जो सादगी में ही अपनी गरिमा और गहराई समेटे हुए है। यह सिर्फ चावल और दाल का मिश्रण भर नहीं बल्कि भारत की एकता, परंपरा और भावनात्मक जुड़ाव का प्रतीक है। देश की हर भाषा, संस्कृति और भूगोल में खिचड़ी की कोई न कोई रूपरेखा मिलती है - कहीं यह प्रसाद बनती है, तो कहीं बीमार को दी जाने वाली पौष्टिक औषधि, कहीं यह त्योहारों का हिस्सा है, तो कहीं जीवन की कठिन घड़ी में सुकून देने वाला भोजन। सादा दिखने वाली यह खिचड़ी असल में भारत की सांस्कृतिक समृद्धि और भावनात्मक जुड़ाव की सबसे स्वादिष्ट परिभाषा है।

वेदों और ग्रंथों तक खिचड़ी का प्राचीन इतिहास


खिचड़ी की उत्पत्ति भारतीय इतिहास की गहराइयों में छिपी है और माना जाता है कि यह व्यंजन कम-से-कम 2000 से 2500 वर्षों पुराना है। हालांकि आयुर्वेदिक ग्रंथों जैसे चरक संहिता में सीधे 'खिचड़ी' शब्द का उल्लेख नहीं मिलता लेकिन 'मुद्ग युष' और 'कृषर' जैसे शब्दों के ज़रिए दाल-चावल के मिश्रण वाले भोजन का वर्णन किया गया है, जिसे आज की खिचड़ी से जोड़ा जा सकता है। कुछ विद्वानों का मानना है कि इस प्रकार के मिश्रित भोजन का उपयोग आयुर्वेद में सुपाच्य, संतुलित और पौष्टिक आहार के रूप में होता था। महाभारत या मनुस्मृति में भी खिचड़ी जैसे किसी भोजन का प्रत्यक्ष उल्लेख नहीं है लेकिन समय के साथ इन ग्रंथों में वर्णित दाल-चावल के मिश्रण को ही आधुनिक खिचड़ी का पूर्वज माना जाता है। विदेशी यात्रियों जैसे ग्रीक शासक सेल्यूकस, अरब यात्री इब्न बतूता और रूसी व्यापारी अफानासी निकितिन ने भी भारत में खिचड़ी जैसे भोजन का उल्लेख किया है। जो इसके प्राचीन और व्यापक प्रचलन का प्रमाण है।

मुगल काल में खिचड़ी की लोकप्रियता


मुग़ल काल में खिचड़ी को एक नया शाही रूप मिला जिसने इसे साधारण भोजन से एक समृद्ध और बहुआयामी व्यंजन में परिवर्तित कर दिया। मुग़ल खानसामाओं ने पारंपरिक खिचड़ी में केसर, घी, सूखे मेवे और मसालों का उपयोग कर इसे 'शाही खिचड़ी' या 'लज़ीज़न' जैसे नामों से नवाज़ा। खासकर सम्राट जहांगीर को खिचड़ी बेहद प्रिय थी और कहा जाता है कि उन्हें सूखे मेवों और मसालों से सजी लज़ीज़न खिचड़ी विशेष रूप से पसंद थी। हिंदू रसोइयों की भूमिका ने भी मुग़ल रसोई में शाकाहारी व्यंजनों को स्थान दिलाया, जिससे खिचड़ी को शाही दर्जा मिला। समय के साथ खिचड़ी ने शाही महलों की सीमाओं को पार कर आम जनजीवन में भी अपनी जगह बना ली। वर्ग, धर्म और क्षेत्रीय सीमाओं से परे यह व्यंजन पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में लोकप्रिय हो गया और 'आम से खास' तक का भोजन बन गया।

अंग्रेजों के समय में खिचड़ी और 'किचरी' का यूरोपीकरण


खिचड़ी की लोकप्रियता केवल भारत तक सीमित नहीं रही, बल्कि यह ब्रिटिश उपनिवेशवाद के दौर में विदेशों तक भी पहुँची। खासकर ब्रिटेन में खिचड़ी ने एक नए रूप Kedgeree को जन्म दिया। ब्रिटिश लोगों ने भारत में खिचड़ी के हल्के और संतुलित स्वाद को अपनाया और अपनी भोजन शैली के अनुसार उसमें बदलाव किए। उन्होंने इसमें उबली मछली (जैसे स्मोक्ड हैडॉक), उबला अंडा, क्रीम और मसाले मिलाकर इसे एक नया रूप दे दिया। यह व्यंजन ब्रिटेन में खासकर पारंपरिक नाश्ते के रूप में लोकप्रिय हुआ और आज भी यूरोप के कई देशों में इसका स्वाद लिया जाता है। इतिहासकारों का मानना है कि Kedgeree की जड़ें भारतीय खिचड़ी में हैं और इसकी सबसे पुरानी लिखित रेसिपी 1790 के दशक में स्कॉटलैंड की स्टेफाना मैलकम की डायरी में दर्ज है। जिसमें उबली मछली, अंडे और चावल का प्रयोग किया गया था। यह खिचड़ी की वैश्विक पहचान और सांस्कृतिक अनुकूलन का जीवंत उदाहरण है।

खिचड़ी के प्रकार - हर क्षेत्र की अपनी कहानी


उत्तर भारत (उत्तर प्रदेश, बिहार, दिल्ली) - उत्तर भारत में खिचड़ी को एक सादा, हल्का और पचने में आसान भोजन माना जाता है जिसे मूंग दाल, चावल, हल्दी, नमक और घी के साथ तैयार किया जाता है। यह विशेष रूप से मकर संक्रांति जैसे पर्वों पर तिल और गुड़ के साथ खाई जाती है । जहाँ यह न केवल स्वाद का प्रतीक है बल्कि धार्मिक और सांस्कृतिक परंपरा का हिस्सा भी है।

बंगाल (पश्चिम बंगाल) - बंगाल में खिचड़ी को 'भोगेर खिचुड़ी' के नाम से जाना जाता है और यह दुर्गा पूजा के अवसर पर देवी को भोग के रूप में चढ़ाई जाती है। इसमें देसी घी, मसाले और मौसमी सब्जियों का समावेश होता है जो इसे स्वाद और श्रद्धा का अद्भुत संगम बनाते हैं।

गुजरात - गुजरात में खिचड़ी एक दैनिक भोजन के रूप में लोकप्रिय है, जिसे प्रायः कढ़ी, पापड़ और अचार के साथ परोसा जाता है। यहाँ खिचड़ी और कढ़ी की जोड़ी इतनी प्रसिद्ध है कि यह हर गुजराती घर में आरामदायक भोजन का पर्याय बन चुकी है।

महाराष्ट्र - महाराष्ट्र में खिचड़ी को मसालेदार अंदाज़ में पसंद किया जाता है। यहाँ 'मसाला खिचड़ी' या 'वरन-भात' आम है जिसमें मूंग दाल, सब्जियाँ और तीखा तड़का डाला जाता है। यह व्यंजन स्वाद के साथ-साथ पोषण का भी ख्याल रखता है।

दक्षिण भारत (तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, केरल) - दक्षिण भारत में खिचड़ी को 'पोंगल' कहा जाता है और यह विशेष रूप से त्यौहारों पर बनाई जाती है। इसमें काली मिर्च, जीरा, काजू और घी का तड़का डाला जाता है, जो इसे स्वाद में विशिष्ट और उत्सवों में विशेष स्थान दिलाता है।

राजस्थान - राजस्थान में खिचड़ी का देसी और अनोखा रूप देखने को मिलता है - बाजरे की खिचड़ी। यह ठंडी रातों में शरीर को ऊर्जा और गर्मी देने वाला भोजन माना जाता है, जिसे प्रायः घी और छाछ के साथ खाया जाता है। इसका देहाती स्वाद और पोषक तत्व इसे खास बनाते हैं।

खिचड़ी का सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्त्व


भारत में खिचड़ी सिर्फ एक व्यंजन नहीं, बल्कि एक गहरी सांस्कृतिक और धार्मिक भावना है। मकर संक्रांति, दुर्गा पूजा, अन्नकूट और अष्टमी जैसे पर्वों पर इसे प्रसाद के रूप में देवी-देवताओं को अर्पित किया जाता है। खासकर मकर संक्रांति पर खिचड़ी का महत्व और भी बढ़ जाता है जहाँ इसे सूर्य और शनि ग्रह से जुड़ा हुआ माना जाता है। इस दिन खिचड़ी का सेवन और दान ग्रह दोषों को शांत करने के लिए शुभ माना जाता है। आयुर्वेद और योगशास्त्र में इसे 'सत्त्विक भोजन' की श्रेणी में रखा गया है जो शरीर को शुद्ध करने, मन को स्थिर करने और पाचन को बेहतर बनाने वाला माना गया है। यही कारण है कि यह आज भी आश्रमों और योग केंद्रों में एक आदर्श भोजन के रूप में दी जाती है। पौराणिक मान्यताओं में भी खिचड़ी की एक खास जगह है । बाबा गोरखनाथ की कथा के अनुसार उन्होंने युद्धकाल में अपने शिष्यों के लिए मकर संक्रांति पर खिचड़ी बनाने और वितरित करने की परंपरा शुरू की थी। इसके अलावा खिचड़ी के अलग-अलग घटक नवग्रहों से संबंधित माने जाते हैं । जिससे यह न केवल स्वाद और सेहत का प्रतीक है बल्कि आध्यात्मिक संतुलन का माध्यम भी बन जाती है।

खिचड़ी का वैज्ञानिक पक्ष

खिचड़ी को आयुर्वेद और आधुनिक पोषण शास्त्र दोनों ही एक संपूर्ण और संतुलित आहार मानते हैं। आयुर्वेद के अनुसार यह एक सत्त्विक, सुपाच्य और शरीर को शुद्ध करने वाला भोजन है जो विशेष रूप से रोगी अवस्था में शरीर को आराम देने और रोगों से उबरने में मदद करता है। वहीं न्यूट्रिशन के दृष्टिकोण से खिचड़ी में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, फाइबर, विटामिन, मिनरल्स और हेल्दी फैट का उत्तम संतुलन होता है। इसमें चावल शरीर को त्वरित ऊर्जा प्रदान करता है जबकि मूंग दाल उच्च गुणवत्ता वाला प्रोटीन देती है और पचाने में बेहद आसान होती है। इसलिए यह बच्चों, बुजुर्गों और बीमारों के लिए विशेष रूप से लाभकारी मानी जाती है। घी आयुर्वेद में पाचन अग्नि को प्रबल करने वाला और वात-पित्त संतुलक माना गया है, वहीं इसमें मौजूद हेल्दी फैट शरीर को पोषण भी देते हैं। जब खिचड़ी में मौसमी सब्जियाँ मिलाई जाती हैं तो यह फाइबर, विटामिन्स (A, C, K आदि) और मिनरल्स (आयरन, मैग्नीशियम, पोटैशियम) से भरपूर हो जाती है। इसलिए खिचड़ी न केवल स्वादिष्ट बल्कि पौष्टिक और शरीर के लिए सर्वश्रेष्ठ भोजन बन जाती है।

खिचड़ी का वैश्विक मंच पर सम्मान


2017 में भारत सरकार ने खिचड़ी को राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित करने की दिशा में एक अहम कदम उठाया। उसी वर्ष 'World Food India' कार्यक्रम के दौरान खिचड़ी को 'India’s Superfood' घोषित किया गया। 4 नवंबर 2017 को नई दिल्ली के इंडिया गेट पर आयोजित इस कार्यक्रम में लगभग 918 किलो खिचड़ी बनाकर गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड भी बनाया गया। जिसका उद्देश्य इस पारंपरिक भारतीय व्यंजन के पोषण, सादगी और सांस्कृतिक महत्व को वैश्विक मंच पर प्रस्तुत करना था। इस ऐतिहासिक आयोजन में प्रसिद्ध शेफ संजीव कपूर, योग गुरु बाबा रामदेव सहित देशभर के कई जाने-माने शेफ शामिल हुए। केंद्र सरकार ने खिचड़ी को भारतीय खाद्य संस्कृति का प्रतीक मानते हुए उसे एक सुपरफूड के रूप में विश्व समुदाय के सामने लाने का संकल्प लिया, जिससे यह पारंपरिक व्यंजन अंतरराष्ट्रीय पहचान भी हासिल कर सके।

खिचड़ी और आधुनिक जीवनशैली


आज के दौर में जब जंक फूड और प्रोसेस्ड फूड सेहत पर नकारात्मक असर डाल रहे हैं, ऐसे समय में खिचड़ी एक बार फिर सुपरफूड के रूप में सामने आई है। फिटनेस और स्वास्थ्य को महत्व देने वाले लोग अब पारंपरिक खिचड़ी को नए अंदाज़ में अपना रहे हैं। मसाला ओट्स खिचड़ी, क्विनोआ खिचड़ी और बाजरे की खिचड़ी जैसे विकल्प न केवल स्वाद में नए हैं बल्कि पोषण के लिहाज से भी बेहद समृद्ध हैं। ये नई वैरायटीज़ पारंपरिक खिचड़ी की सुपाच्यता और संतुलन को बरकरार रखते हुए उसमें फाइबर, प्रोटीन, और मिनरल्स की अतिरिक्त मात्रा जोड़ती हैं। खिचड़ी की सबसे बड़ी खूबी यह है कि इसे बनाना आसान है, यह जल्दी तैयार हो जाती है और पाचन में भी हल्की होती है - जो आज की तेज़ रफ्तार जीवनशैली में इसे एक आदर्श भोजन बनाती है। आयुर्वेद और आधुनिक न्यूट्रिशन दोनों के अनुसार खिचड़ी शरीर को सम्पूर्ण पोषण देने वाला संतुलित आहार है।

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